Read this article in Hindi to learn about how to conserve soil.

प्राकृतिक संसाधनों में मृदा एक अति महत्वपूर्ण संसाधन है । विश्व की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या आज भी आ है । मृदा से मानव को केवल भोजन ही प्राप्त नहीं होता, बल्कि उद्योगों के लिये कच्चा माल भी मिलता है । वास्तव में मानव समाज का उत्तर जीवन भी मृदा पर ही निर्भर करता है ।

मृदा संरक्षण की वैज्ञानिकों ने बहुत-सी परिभाषाएँ दी है । साधारण शब्दों में मृदा संरक्षण का अर्थ है कि मृदा संसाधनों का उपयोग ढंग से किया जाये । मृदा संरक्षण का मुख्य उद्देश्य भूमि-संसाधनों को स्वास्थ्य एवं टिकाऊ बनाये रखा जाये ।

मृदा संरक्षण के लिये निम्न उपाय किये जा सकते हैं:

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1. फसल चक्र (Rotation of Crops):

वैज्ञानिक फसल चक्र से बहुत हद तक मृदा अपरदन में कमी आ सकती है । वैज्ञानिक फसल चक्र का अर्थ है कि एक मृदा के उपजाऊपन को कम करने वाली फसल के पश्चात् दूसरी फसल मृदा-उपजाऊपन को बढाई जाने वाली उगानी चाहिए ।

उर्वरकता बढाने वाली फसलों में दलहन तथा हरी खाद की फसलें प्रमुख मानी जाती हैं । यदि निरंतर चावल, गेहूँ अथवा गन्ने की फसल उगाई जाये तो उससे मृदा के विशेष पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा अपरदन की मात्रा बढ़ जाती है ।

2. समोच्चरेखीय जुताई (Contour Ploughing):

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ढलानदार खेतों में समोच्चरेखाओं के अनुसार खेत की जुताई करने से भी मृदा अपरदन की मात्रा में कमी आती है । इस प्रकार की जुताई करने से वर्षा के जल के बहाव में कमी आती है ।

3. पट्टीदार क्यारियों में खेती करना (Strip Cropping):

ढलानदार कृषि भूमि में छोटी-छोटी पट्टी (क्यिारी) बनाकर उनमें फसल उगाने से मृदा के अपरदन में कमी आती है ।

4. हरी खाद का प्रयोग (Green Manuring):

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हरी खाद की फसलें उगाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है । हरी खाद की फसलों में सनी, ढेंचा, बरसीम, रिजका इत्यादि सम्मिलित हैं । मृदा का उपजाऊपन में कमी आ जाती है ।

5. जैविक खाद का उपयोग (Use of Organic Manure):

जैविक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी में ह्‌यूमस की मात्रा में वृद्धि हो जाती है । मृदा में ह्‌यूमस की मात्रा अधिक होने से भी मिट्टी के अपरदन में कमी आ जाती है ।

6. चबूतरेदार कृषि (Terraced Farming):

भूमि ढलान को चबूतरों के रूप में काटकर कृषि करने से भी मृदा अपरदन में कमी आती है । मद ढलानों को चबूतरों की शक्ल आसानी से दी जा सकती है । नागालैंड की राजधानी कोहिमा के आसपास रहने वाली अगामी जनजाति के किसानों अपने 30 तक के ढलानों को सुंदर चबूतरे दार खेतों का रूप दे दिया है ।

7. मिश्रित कृषि (Mixed Cropping):

मिश्रित कृषि में एक से अधिक फसलों को मिलाकर बोया जाता है । उदाहरण के लिये भारत में ज्वार के साथ उरद, मूँग, गेहूँ के साथ चना, मक्का के साथ मूँग की फसलों को मिलाकर बोया जाता है । दलहन की फसलें मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाते हैं जिससे मृदा अपरदन मात्रा में कमी आती है ।

8. फसलों की विविधता (Diversification of Crops):

यह फसल चक्र ही का एक स्वरूप है । खेत में निरंतर एक ही फसल न उगाकर उसमें फसलों को बदलते रहने से भी मृदा अपरदन में कमी आती है ।

मल्च (Mulching) अथवा खाली खेती को घास-फूस में ढकना:

फसल काटने के पश्चात् खाली खेत को खरपतवार एवं घास-फूस के ढकने से भी मिट्टी के अपरदन में कमी आती है ।

9. वायुरोधक वृक्ष पेटियाँ लगाना (Development of Wind Breaks):

मरुस्थल एवं आर्द्र मरुस्थलीय क्षेत्रों पंक्तियों में वृक्ष लगाने से भी वायु के वेग में कमी आ जाती है, जिससे मृदा अपरदन की मात्रा में कमी आती है ।

10. झूम खेती पर प्रतिबंध लगाना (Prevention of Shifting Cultivation):

झूम प्रकार की खेती में जंगलों को काटकर और जलाकर सामान्यतः एक वर्ष के लिये खेती की जाती है । दूसरे वर्ष किसी दूसरे जंगल को काटकर जलाया जाता है । जंगल-रहित ढलानों पर मृदा का अपरदन तीव्र गति से होता रहता है । इस हानिकारक कृषि विधि से मिट्टी का भारी अपरदन होता है । चेरापूँजी (मेघालय), नागालैंड इत्यादि में झूम कृषि से पर्यावरण तथा मृदा को भारी हानि हुई है ।

यदि उपरोक्त उपायों को साथ-साथ किया जाये तो मृदा अपरदन पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है ।