मृदा: संरचना और टिलेज | Read this article in Hindi to learn about the composition and tillage of soil.

मृदा संगठन (Composition of Soil):

जलवायु आदि की भाँति मृदा (Soil) भी जीवधारियों के लिए परम आवश्यक कारक है । अधिकांश वनस्पति और जन्तुओं का मिट्टी में स्थायी निवास है । साधारणतः पृथ्वी के ऊपरी सतह को मृदा या मिट्टी की संज्ञा से सम्बोधित करते है, परन्तु ऊपरी परत के अतिरिक्त मिट्टी निर्माण में मौसम, कार्बनिक पदार्थों (Organic Matter) और जीवधारियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है ।

इस मृदा से हजारों टन से लेकर अरबों टन अनाज, दूसरी सब्जियां, पेड़-पौधे आदि पैदा होते है । इसी मृदा में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव (Micro-Organism) पाए जाते हैं, जिससे ह्यूमस (Humous) का निर्माण होता है । Soil का निर्माण चट्टानों के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अपक्षय से होता है ।

Soil का रासायनिक संगठन (Chemical Composition) भी वैसा ही होता है । एल्युमिनियम (Aluminium), पोटेशियम (Potassium), सोडियम (Sodium) तथा मेग्निशियम (Magnesium) भी खनिज युक्त मृदा (Soil) में पाये जाते हैं । Calcium तथा Magnesium चूना युक्त चट्टानों से निर्मित मृदा (Soil) में पाए जाते हैं ।

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ये सभी पोषक तत्व (Nutritional Element) Microbes की वृद्धि तथा Metabolic क्रियाओं में सहायक होते हैं । मृदा का कार्बनिक (Organic) भाग मुख्य रूप से पौधों तथा प्राणी जगत के सदस्यों से मिलकर बनता है । मृदा में उपस्थित Microbe Cells के कार्बनिक (Inorganic) एवं अकार्बनिक (Organic) रसायनों का निर्माण करते है ।

यह रसायन (Chemical) मृदा के कणों (Particles) को आपस में बांधते है । Fungi, Actinomycetes आदि सजीव (Livings) इस परिवर्धन में सहायक होते है । Microbes Soil Particles की सतह पर या अन्तर कणों के खाली स्थान में निवास करते है । वाष्पशील रसायन जैसे मिथेन (Methane), H2S (Hydrogen Sulphide), अमोनिया (Ammonia) तथा हाइड्रोजन आदि भी पायी जाती है ।

मनुष्यों की आवश्यकतानुसार मृदा में विभिन्न प्रकार की उपज की जाती है । इस मृदा में विभिन्न प्रकार के हानिकारक रसायन तथा सूक्ष्मजीवी होते हैं, जो हानिकारक होते हैं । यह हानिकारक पदार्थ मृदा तथा उपज दोनों को ही नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे उपज पर प्रभाव पड़ता है ।

हानिकारक सूक्ष्मजीव पौधों तथा दूसरी उपज को हानि पहुंचाते है, इसलिए इन सभी को नियंत्रण किया जाना आवश्यक है ताकि फसल का उत्पादन अच्छा हो, इसके लिए सर्वप्रथम मृदा का प्रबंध (Management) आवश्यक है । मृदा का प्रबंधन बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार की विधियों को अपनाया जाता है जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहे ।

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मृदा प्रबंधन को स्थिर रखने के लिए यह सुनिश्चित करना होता है कि मृदा प्रबंधन से उर्वरता बनी रहे । हानिकारक जीव जन्तुओं को अलग किया जा सके । मृदा में खनिज और खाद का प्रबंधन किया जाए जिससे कि मृदा को किसी प्रकार की हानि न हो और उसकी Nutrient Power बनी रहे ।

रसायनों से अधिक प्राकृतिक प्रकार की प्रबंधन विधियों को अपनाना आवश्यक होता है ताकि उपज अधिक हो और आवश्यकतानुसार मृदा की भी प्रकृति बनी रहे है । अलग प्रदेशों में मृदा का Composition विभिन्न होने पर उसका प्रबंधन भी उसी प्रकार अपनाना चाहिए । Soil का Management करना जितना सरल है उतना ही कठिन भी है ।

भूमि की जुताई या खेती (Tillage or Cultivation of Soil):

किसी भी स्थान पर कीटों की जनसंख्या वहाँ की भूमि का प्रकार, रासायनिक संगठन, नमी की मात्रा, तापमान तथा भूमि में उपस्थित दूसरे जीवों पर भी निर्भर करती है । इसका कारण यह है कि इन्हीं सब तथ्यों पर उस भूमि में उगने वाले पोषक पौधों की किस्म व वृद्धि निर्भर करती है ।

इन्हीं कारणों के फलस्वरूप भूमि प्रबन्धन के विभिन्न उपायों का उस स्थान के नाशक कीटों की जनसंख्या पर भी प्रभाव पड़ता है । अच्छे परिणामों की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि जिस नाशक कीट का नियन्त्रण करना है उसके स्वभाव व जीवन चक्र का पूत ज्ञान हो ।

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कीटों की बहुत सी जातियों के विषय में इसे ज्ञात है कि उनके जीवन-चक्र की कौन-सी अवस्था मिट्टी में पायी जाती है । अत: ठीक समय पर खेत जोतने से नाशक कीट को प्यूपा अवस्था में ही नष्ट किया जा सकता है जैसे वायर कीट (Wire Worm) ।

यह भी कभी-कभी नाशक कीट की जाति पर निर्भर करता है कि कितनी गहराई तक जुताई करनी चाहिए । जुताई का समय वही होना चाहिए जिस समय नाशक कीट के जीवन-चक्र की अवस्था भूमि में हो । ठीक उसी समय पर जुताई करने से पूरा लाभ मिलेगा क्योंकि ग्रब या प्यूपा सूर्य के प्रकाश में मर जायेंगे ।

बाकी समय जुताई करने से इतना लाभ नहीं होगा । इस प्रकार जुताई की गहराई, उसका समय तथा कितनी बार करनी है यह सब नाशक कीट की जाति पर निर्भर करता है । भूमि को उलट-पलट करने मात्र से जमीन के भीतर रहने वाले कीट भी सतह पर आ जाते हैं और वे पक्षियों का शिकार बन जाते है ।

अनेक पक्षी जैसे- किंग क्रो (King Crow), स्टर्लिन (Sterlin) तथा मैना खेतों में कीटों को चुन-चुन कर खाती हैं । अत: यदि खेत की जुताई बसन्त ऋतु के आरंभ में कर दी जाये, तो विनाशी कीटों की सुप्तावस्था में रहने वाली अनेक अवस्थाओं को पक्षी खा लेते है ।

भूमि के अन्दर सुप्तावस्था में पायी जाने वाली कीटों की जातियों के उपयुक्त उदाहरण के अन्तर्गत बिहार का बाल वाला कैटरपलिर-डीएक्रीसिया ओबलीका (Bihar Hairy Caterpillar-Diacrisia Obliqua), कटवी-एग्राटिस जातियाँ (Agratis sp.), कपास का सेमीलूकर-ट्रेकी नोटोबिलिस (Cotton Semilooper-Tarache Notabilis) आदि आते हैं ।

गुलाबी गोलक कृमि-पेक्टीनोफोरा गाँसोपिएला (Pink Boll Worm-Pectinophora Gossypiella) तथा चित्तिदार गोलक कृमि-एरिआस जातियों (Spotted Boll Worm-Earias sp.) के डिम्भक भूमि में पाये जाते हैं । ये कपास के बीज को खाते हैं । यदि जुताई द्वारा ये अधिक गहराई तक पहुँचा दिये जायें, तो ये पुन: ऊपर नहीं आ सकते हैं जिससे बसन्त ऋतु में इनसे वयस्क शुलभ नहीं निकल सकते ।

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