Read this article in Hindi to learn about the top twenty three practices of soil management. The practices are:- 1. भौगोलिक क्षेत्र का चुनाव (Choice of Geographic Area) 2. खेत का चयन (Selection of Field) 3. मिट्टी का चयन (Selection of Soil) 4. मिट्टी का उपचार (Soil Treatment) 5. सफाई के उपाय (Sanitation Measures) 6. ऊष्मा द्वारा मृदा का निर्जमीकरण (Soil Sterilization by Heat) and a Few Others.

Soil Management के अन्तर्गत विभिन्न बिन्दुओं के अन्तर्गत खेती की मृदा (मिट्टी) को उचित प्रकार से उपचारित करके फसल के योग्य बनाया जाता है तथा विभिन्न विधियों से मृदा का प्रबन्धन किया जा सकता है ।

Practice # 1. भौगोलिक क्षेत्र का चुनाव (Choice of Geographic Area):

किसी भी फसल के लिए भौगोलिक क्षेत्र का चुनाव उस क्षेत्र में फसल के लिए जलवायु, मृदा (Soil) तापमान आदि की अनुकूलता के आधार पर होता है । यही वातावरण रोगजनक (Pathogens) के लिए भी अनुकूल या उचित हो सकता है । अनेक Fungi एवं Bacteria से उत्पन्न रोग Dry Area की अपेक्षा आर्द्र क्षेत्रों (Wet Areas) में उत्पन्न होते हैं और तेजी से वृद्धि करते हैं ।

अत: वहाँ की मृदा अधिक रोगाणु हो सकती है । इसलिए Geographic Area न ज्यादा गर्म न ज्यादा आर्द्र हो, क्योंकि जैसे सेम के पौधे आर्द्र स्थान पर अच्छे वृद्धि करते हैं, परन्तु उसके बीज अधिक संक्रमित होते है। अत: सेम के बीज के उत्पादन के लिए हमेशा शुष्क क्षेत्रों का उपयोग किया जाता है ।

Practice # 2. खेत का चयन (Selection of Field):

ADVERTISEMENTS:

एक फसल (Crop) की सफल खेती, एक उचित खेत के चयन पर बहुत निर्भर करती है । यदि एक Soil Borne Pathogen द्वारा उत्पन्न रोग खेत में स्थापित हो गया है, तो उस फसल को कुछ वर्षों के लिए नहीं उगाया जाता है ।

कुछ रोग जैसे आलू की जीवाणुज ग्लानि (रैल्स्टोनिया सोलेने सियेरम), गेहूँ का सेंहूँ (ऐग्विना ट्रिटिसाई) इत्यादि में खेत का परिवर्जन किया जा सकता है । यदि रोगी फसल कटने के बाद दोबारा उसी खेत में गन्ना बोया जाता है, तब रोग के उग्रता से उत्पन्न होने के अधिक अवसर बढ़ जाते हैं क्योंकि रोगजनक मृदा (Soil) में कुछ महीनों के लिए उत्तरजीवी रह जाते हैं जो दूसरी फसल पर Attack कर देते हैं ।

इसी प्रकार खेतों के जल निकास भी अनेक रोगों को तीव्रता से बढ़ा देता है । यदि पौधों के रोपण से पहले उचित भूमि का चुनाव नहीं किया जाता है, तो कुछ वर्ष बाद ही जब उनकी जड़े (Roots) Soil में गहराई तक पहुँचती है । तब वहाँ Degeneration का प्रभाव अधिक होता है, क्योंकि भूमि की अवमृदा में उपस्थित कठोर पथरीली परत जड़ों की वृद्धि एवं पोषक में बाधा पहुंचाता है ।

Practice # 3. मिट्टी का चयन (Selection of Soil):

मृदा का चुनाव करने से पहले यह ज्ञात होना आवश्यक है कि मृदा उपजाऊ होना चाहिए तथा मृदा में पानी सीखने की क्षमता तथा Nutrients अधिक होना चाहिए । काली भुरभुरी मिट्टी अधिक उपयोगी होती है तथा मृदा को उलट-पलट होने पर आसानी होना चाहिए ।

Practice # 4. मिट्टी का उपचार (Soil Treatment):

ADVERTISEMENTS:

मृदा उपचार (Soil Treatment) का मुख्य उद्देश्य मृदा में उपस्थित रोगजनक को निष्क्रिय करना अथवा उनका अन्मूलन करना है । इसके लिए विभिन्न रसायन (Chemicals) ऊष्मा (Heat) कर्षण प्रक्रियायें जैसे Flooding एवं Following आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है ।

Soil के रासायनिक उपचार में साधारणतः कवकनाशी Fungicides एवं Fumigant या Granular Nematicides प्रयोग किये जाते है । Soil Fumigants, Fungicides और Dusts का प्रयोग फसल के प्रति रोपण के समय किया जा सकता है तथा प्रयोग में आने वाले अधिकांश कवकनाशी क्रिया में केवल विशिष्ट कवकों को ही नष्ट करते हैं ।

इसके उपयोग से Pathogens का विकास घटी हुई सूक्ष्मजीव (Micro-Organism) स्पर्धा के करण बढ़ सकता है । Soil Fumigants जिनको Nematicides Control के लिए प्रयोग किया जाता है । वह Soil में उपस्थित लाभदायी Micro-Organisms को तथा Bacteria को भी नष्ट कर देते है ।

ऐसी मिट्टी (Soil) का Fungus Pathogens से Reinfestation आसानी से तथा तेजी से हो जाता है । इन मृदा धूमन (Soil Fumigants) का प्रयोग फसल की बुवाई या प्रतिरोपण से कुछ सप्ताह पहले Seed एवं पौध क्षतिग्रस्त होने से बचाता है परन्तु अब Fumigant के स्थान पर दानेदार, संस्पर्शी सूत्रकृमिनाशियों (Nematicides) का प्रयोग करते है ।

ADVERTISEMENTS:

खेती के लिए मृदा (Soil) में पूरी तरह से इनका उपयोग आवश्यक होता है और वृक्षों की जडों के चारों ओर इनका प्रयोग किया जाता है । इसका प्रयोग सस्ता तथा रासायनिकों की लागत अधिक होती है । विशेष अवस्थाओं में खेत से Soil Borne Fungi एवं Nematicides Pathogens के उन्मूलन (Eradictation) की विधि खेत का Flooding भी होती है ।

इसके लिए खेत में पानी भरकर कई सप्ताहों के लिए छोड़ देते है, तो अवायवीय या अनॉक्सीय अथवा निम्न ऑक्सीजन अवस्थायें Anaerobic Bacteria द्वारा उत्पादित आविष (Toxins) Fungal Sclerotia एवं Plant Parasite Nematicidies को नष्ट कर देते है ।

इसके अतिरिक्त अनेक Fungus Pathogens की सुप्त संरचनाएँ भी जल की सतह पर तैरने लगती है । यदि खेत के जल का निकास तुरंत कर दिया तो ये संरचनाएँ भी खेत से बाहर बह जाती है । खेत के विधि को अपनाने की संभावना तथा जल की उपलब्धता भूमि की Topography पर निर्भर करती है ।

कृषि के प्रारम्भिक काल से ही मृदा (Soil) में Micronutrients को बनाये रखने के लिए किसानों द्वारा भूमि का Following की प्रथा चली आ रही थी । इस विधि से मृदा में अनेक Soil Borne Pathogens के स्तर को कम करने में बहुत सहायता मिलती है ।

Practice # 5. सफाई के उपाय (Sanitation Measures):

खेत की स्वच्छता भी अनेक Soil Borne एवं परजीवी (Parasite या Saprophyte Pathogens) के उन्मूलन के लिए बहुत आवश्यक होती है । अनेक Biotrophs भी Soil में या उसके ऊपर पड़े रोगग्रस्त पादप अंगों में प्रसुप्त संरचनाओं द्वारा हमेशा बने रहते है ।

मिट्टी में फसल के मलबे को मिट्टी पलटने वाले हल से अधिक गहराई में दबाने से भी अनेक Pathogens का रहना निष्क्रिय हो जाता है । यह सफाई उस समय बहुत आवश्यक होती है जब रोगग्रस्त फसल के अवशेषों को खेत में छोड़ दिया जाता है, जो दूसरी फसल को भी रोगग्रस्त कर देता है, क्योंकि Pathogens Soil में ही रह जाते हैं ।

Practice # 6. ऊष्मा द्वारा मृदा का निर्जमीकरण (Sterilization of Soil by Heat):

मृदा का निर्जमीकरण छोटे क्षेत्रों में किया जाता है । इसमें भाप (Steam) द्वारा Disinfestation अथवा Sterilization करना एक पुरानी विधि है । Stem Sterilization द्वारा मृदा में उपस्थित Soil Borne Pathogens जैसे Fungi, Bacteria एवं Nematicides आदि तथा Insects एवं Weeds के बीजों को नष्ट कर दिया जाता है ।

सामान्य रूप से मृदा निर्जमीकरण के लिए Vapour Heat, Hot Air के स्थान पर Live Steam के रूप में प्रयोग किया जाता है । भाप को पाइप के द्वारा मृदा में भेजकर किया जाता है । ये भाप मृदा में विसरित हो जाती है । प्राय: 50°C पर सभी Nematicides, Fungi, Algea और Bacteria के साथ-साथ कुछ Worms, Slugs, Centipedes आदि सामान्य रूप से नष्ट हो जाते हैं ।

82°C पर खरपतवारों के बीज Plant Pathogens Bacteria, Virus, Insects आदि मर जाते हैं । 90°C से 100°C तापमान पर लगभग सभी Pathogens मर जाते हैं । सामान्यतः मृदा का निर्जमीकरण उस समय पूर्ण हो जाता है, जब मृदा के सबसे शीतल भाग का तापमान कम से कम 30 मिनट के लिए 82°C या इससे थोड़ा ऊपर बना रहता है ।

इस तापमान (Temperature) पर मृदा (Soil) में उपस्थित लगभग सभी Plant Pathogens मर जाते है । मृदा की ऊष्मा जल द्वारा ऊष्मा की पूर्ति करने की अपेक्षा विद्युत उत्पादित ऊष्मा द्वारा भी पूर्ण किया जा सकता है ।

मृदा का निर्जमीकरण निम्न विधियों द्वारा किया जा सकता है:

(i) अन्तनिर्मित पटियाँ या पाइप (Built in Tiles or Pipes):

मृदा तल के लगभग 30 सेमी॰ Porous Built Pipe अनेक भाप जेट (Steam Jets) के साथ बिछाये जाते हैं । इन पाइपों में से भाप को दाब के साथ छोड़ा जाता है, जो छिद्रों में से निकलकर Soil में विसरित होती है और उसका Sterilization करती है ।

(ii) वाष्प पात्र या प्रवाष्प रेक (Steam Pan and Steam Rake):

अस्थाई स्थानों पर अलग से Pathogen और Nematicides स्थानों की मृदा (Soil) का Sterilization करने के लिए उल्टे वाष्प पात्र या भाप रेक का उपयोग किया जाता है । ये पात्र वर्गाकार या आयताकार व जस्तेदार लोहे की चादर का बना होता है ।

इसकी तली में एक छिद्र होता है, जिसके द्वारा भाप को नली के भीतर प्रवेश कराया जा सके एक लचीली माप की नली को कडाह या पात्र के एक छोर के नीचे दबाया जा सकता है ।

जिसका खुला सिरा मृदा (Soil) सतह के ऊपर पात्र के भीतर रहता है । भाप की पूर्ति एक थोड़े भार के वहनीय बॉयलर (Portable Boiler) द्वारा की जाती है । भाप के Pressure के द्वारा 20 से 60 मिनट तक छोड़ा जाता है, जिससे Pathogen, मर जाते है ।

(iii) दाब प्रवाष्प निर्जेपात्र (Pressure Steam Sterilizer):

मृदा का निर्जमीकरण, Pressure Steam Sterilizer द्वारा किया जाता है । इसका प्रयोग ग्रीन हाउस की मृदा के खंडों या गमलों की मृदा को Sterilize करने के लिए किया जाता है । इसमें भाप की नली पहुँचाने के लिए एक प्रवेश द्वारा होता है ।

इसे चारों ओर से एक कसा हुआ लकड़ी का खोल (Box) घेरे रहता है । इस Box में मिट्टी भरकर लगभग 454 किग्रा॰ प्रति वर्ग सेमी॰ दाब पर एक घंटा या अधिक समय तक भाप को छोड़ा जाता है ।

Practice # 7. मृदा का आतपन या सौरीयन (Soil Solarization):

मृदा सौरीयन (Soil Solarization) अथवा Soil के Solar Therapy द्वारा अनेक Soil Borne Pathogens से उत्पन्न Plant रोगों जैसे अनेक फसलों की फ्यूजेरियम की जातियाँ एवं मूल विगलन स्क्लेरोटियम की जातियाँ, कपास टमाटर, बैंगन आदि तथा अनेक सूत्रकृमि जैसे मूलगाँठ की जातियाँ आदि का सफलतापूर्वक नियन्त्रण किया जा सकता है या मृदा को फैलाकर 10 से 30 दिनों तक सौर तापन देने से रोगजनक मर जाते है । कुछ Plants जैसे बहुवर्षी या वार्षिक खरपतवारों जैसे एविना, फैटुआ, लैक्टूका सोरघम आदि के नियंत्रण के लिए उपयोग में लाते है ।

मृदा सौरीयन (Soil Solarization) द्वारा खरपतवार नियंत्रण (Control) की संभावी क्रियाविधियों निम्न है:

(i) खरपतवार के बीजों की ऊष्मीय या तापीय मृत्यु होना ।

(ii) Germination के लिए प्रेरित बीजों कई मृत्यु होना ।

(iii) बीज Dormancy का टूटना और इसके परिणाम में Germinate Seeds की मृत्यु होना ।

(iv) दुर्बलता या अन्य क्रियाविधियों द्वारा जैविक नियन्त्रण (Biological Control) आदि है ।

पलवार के नीचे जो वाष्पशील (Volatiles) संग्रहित हो जाते है । वह भी खरपतवारों को सीधे मारने में अथवा अंकुरण को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।

Practice # 8. मृदा में उत्तरजीवी प्रसुप्त कवकी तथा सूत्रकमियों का विनाश (Destruction of Surviving Dormant Fungal Propagules and Nematodes in Soil):

मृदा (Soil) में Fungal के उत्तरजीवी Dormant Propagules का प्राकृतिक विनाश सामान्य रूप से मिलता है, जिसे विरोधी Micro-Organisms द्वारा अनेक क्रियाविधियाँ अपनाकर किया जाता है ।

जैसे Trichoderma Viride नामक कवक (Fungi) की Parasitic सक्रियता का प्रयोग मूल विगलन कवक Rhizoctonia Solani के प्रयोग से Control किया गया, उस समय से ही Tricoderma की जातियों ने न केवल Soil Borne मूल Pathogens को कुछ पर्णाय एवं फलों के Pathogens के Fungal Antagonists के रूप में सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है ।

अनेक Fungus Pathogens के स्क्लैरोशियमो को Sporodesmium Sclerotivorum, Coniothyrium Minitans की Parasitism द्वारा नष्ट कर दिया जाता है । V. Dahliae से ग्रस्त Soil में कपास कई बुवाई से पहले ट्रोइकेडर्मा हारजियानसज प्रवेश करने पर कपास की वर्टिसिलियम ग्लानि का क्षनन होता है ।

मृदा (Soil) में सूक्ष्मजीवों द्वारा पादप सूत्रकृमियों को नष्ट करने के अनेक उदाहरणों का उल्लेख किया है । जैसे अरेकश्ला इम्पेटियेन्स नामक Ameoba, मूल गाँठ सूत्रकृमि के सक्रिय डिम्भकों को अपने सूक्ष्म Filopodia से पकड़कर उनका पूर्णतया अवशोषण करके खाली कर देता है ।

इसी प्रकार Vampyrella, Vorax Ameodia भी एक Pupae के संपूर्ण शरीर को पूर्ण रूप से घेर लेता है और आहार को पूर्ण करने के लिए 12-24 घंटे लेता है । Collembola की कुछ जातियाँ (Oil Cakes) संशोधित Soil में मूलगाँठ मेल्वाय डोगाइन नावानिका के अंडो का शीघ्रता से भक्षण करती है ।

मृदा (Soil) में उपस्थित कवकभक्षी (Mycophagous) सूत्रकृमि कवकी पादप रोगजनकों (Plant Pathogens) का Inoculation को कम करने के लिए उत्तरदायी होते हैं और फसलों के कुछ मूल रोगों को बहुत कम कर देते हैं । सूत्रकृमि के निश्चित संयोजन से कवक के जैव नियंत्रण की संभावना हो जाती है ।

मृदा में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले रोगजनक पौधों के शत्रु उस मृदा (Soil) में सक्रिय रहते हैं, जहाँ वह स्थापित हो चुके होते हैं । साधारणतया विरोधी Micro Organisms के मृदा में मिलाये जाने वाले शुद्ध संवर्धन क्रिया करने में असफल रहते है ।

यह विरोधी सूक्ष्मजीव अपने स्वयं के विशिष्ट पारिस्थितिक गुण रखते हैं और अपने को केवल उन्हीं पर्यावरणों में स्थापित करते हैं । जहाँ के मूल निवासी (Micro Flora) होते है । यदि वह किसी विशिष्ट मृदा के निवासी होते हैं, तो खेत में इनकी संख्या को उचित मृदा सुधारक पदार्थ द्वारा बढ़ाया जा सकता है ।

जैसे हीटरोडेरा सूत्रकृमि के विरूद्ध पत्तागोभी की पत्तियों के टुकड़ों को मृदा में हरी खाद के रूप में देकर परभक्षी कवकों की संख्या को बढ़ाया जाता है । कुछ खेतों की मृदा में विरोधी Micro-Organisms का बाह्य अनुप्रयोग करके कुछ विशिष्ट रोगों को नियंत्रित करके मृदा स प्रबंधन किया जाता है ।

Practice # 9. उचित सिंचाई का प्रबंध (Management of Proper Irrigation):

फसलों (Crops) में सामान्य सिचाई का उद्देश्य केवल मृदा को इस सीमा तक गीला करना है कि पौधों की जड़ें जल एवं खनिज पोषकों को सुगमता से ग्रहण कर लें । यदि मृदा में जल अधिक मात्रा में दिया जाता है, तो यह रोगजनक की सक्रियता को सीधे प्रभावित करता है अथवा यह परपोषी पौधे पर प्रभाव डालकर रोग आपतन को प्रभावित कर सकता है ।

सिंचाई का हितकर प्रभाव आलू के सामान्य सकैब (स्ट्रेप्टोमाइसीज सकेब्रीज) रोग के नियंत्रण में दिखायी देता हैं । जहाँ खेत में कंदी भवन के समय मृदा Humidity को निकटतम नमी धारण क्षमता तक बनाये रख कर आलू के कंदो पर सकैब आक्रमण को रोका जा सकता है ।

यदि मृदा का तापमान बढ़ जाता है और जल दबाव के करण मृदा सुखी हो जाती है । सिंचाई करने से मृदा तापमान घट जाता है एवं मृदा दबाव हट जाता है और कंदों पर कला विलगन रोग के आक्रमण से बचाव हो जाता है ।

Practice # 10. फसल मृदा अम्लता तथा क्षारकता का प्रबंध (Management of Soil Acidity and Alkalinity):

अधिकांश कवक (Fungus), जीवाणु (Bacteria) एवं Nematocides Pathogens Soil के उसी pH मान परिसर को सहनकर सकते हैं, जिनमें उनके परपोषी पौधे उगते हैं । कुछ पादप रोग ही ऐसे है जिनमें Pathogens की सहायता की सीमाएं बहुत संकीर्ण होती है, जबकि परपोषी पौधा इन सीमाओं के बाहर भी उगाया जा सकता हैं, कुछ विशिष्ट पौधों के रोगों के नियंत्रण के लिए एक विधि है ।

अनेक रोगों में मृदा pH मान प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में रोग चक्र की गति और उसके द्वारा रोग तीव्रता को प्रभावित करता है । अत: मृदा का pH फसलों के अनुसार रखना चाहिए कम या अधिक होने से नुकसान अधिक होता है ।

Practice # 11. ऊपरि मृदा का प्रबंध (Management of Top Soil):

ऊपरी मृदा का प्रबंध करने के लिए निम्न क्रियाएँ अपनाई जाती है जो निम्न प्रकार से हैं:

(i) ऊपरी मृदा का पलवारना (Mulching of Top Soil):

Organic या जैव अवशेषों से ऊपरी मृदा का Mulching अथवा ढकना भी पादप रोगों को कम करने में सहायक होता है । पलवारना (Mulching) में केवल उन्हीं पदार्थों को प्रयोग करना चाहिए, जो उस फसल से संबंधित न हो और मृदा को भी न नुकसान पहुँचाने वाले हों ।

Mulching के रूप में प्रयोग किए जाने वाले यह Organic या जैव अवशेष मृदा में पादप Pathogens एवं सूत्रकृमियों के निरोधी पदार्थों को निर्मुक्त करते है तथा साथ ही सूत्रकृमियों से परजीवी एवं परभक्षी जीवों के विकास को भी बढ़ावा देते हैं ।

(ii) मेड़ बाँधना (Ridging):

खेत के ऊपरी मृदा को मेड़ों का आकार देना कर्षण क्रिया का एक मुख्य भाग होता है । मेड़ का बांधना मृदा के आपतन को कम करने में बहुत प्रभावी पाया गया है जो Soil के लिए लाभदायक है ।

(iii) ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई (Hot Weather Deep Ploughing):

तेज गर्मी के महीनों में खेत की ऊपरी मृदा को मिट्टी पलटने वाले हल से दो या तीन गहरी जुताई करके खुला छोड़ देने पर मृदा में उपस्थित Soil-Borne Pathogens को हटाया जा सकता है ।

कुछ कड़ी धूप व निर्जलीकरण के कारण मर जाते है । इसके अतिरिक्त निर्जमीकरण से रोगजनक समाप्त होते है । यह क्रिया सूत्रकृमियों के साथ-साथ खरपतवारों और Soil-Borne Pathogens Fungi एवं Bacteria का भी दमन कर देते हैं ।

Practice # 12. मृदा सुधारक पदार्थ (Soil Amendments):

पौधों को पोषण प्रदान करने के कार्बनिक (Organic) या जैव स्त्रोतों के अन्तर्गत कम्पोस्ट खाद, हरी खाद तथा कुछ विशिष्ट कार्बनिक या जैव सुधारक पदार्थ जैसे खलियाँ, लकडी का बुरादा एवं अहाता खाद को अपघटित रूप में तथा हरी खाद एवं विशिष्ट कार्बनिक सुधारक पदार्थों को अपघटित रूप में प्रयोग किया जाता है ।

इनका अपघटन खेत की मृदा में होता है, जहाँ पर Pathogen उत्तरजीवी होते है । इन कार्बनिक (Organic) पदार्थों के अपघटन से मृदा के साथ-साथ मूल परिवेशी में विविध माइक्रोफ्लोरा (Microflora) की वृद्धि होती है और मृदा की भौतिक रासायनिक एवं जीवीय अवस्थाओं के परिवर्तन में सहायता मिलती है । इन जैव पदार्थों के अपघटन द्वारा मृदा गठन एवं संरचना में भी सुधार होता है और मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है ।

 

Practice # 13. मृदा धूमक (Management by Soil Fumigants Treatment):

सामान्य रूप से मृदा धूमक की क्रिया विशेष रूप से कुछ Plants Parasite Nematicides तथा अन्य Soil Borne Pathogens जैसे Fungi, Bacteria आदि का नियंत्रण करने के लिए की जाती है और इसमें प्रयोग होने वाले अधिकांश रसायन (Chemicals) वाष्पशील होते हैं एवं Fumigants कहलाते है ।

कुछ Fumigants जैसे Chloropicrin, Metlyl Bromide, D.D., DBCP आदि Soil में प्रयोग करने से Evaporate हो जाते है । मृदा की आर्द्रता के सम्पर्क में आने पर इनका गैस के रूप में अपघटन होता है, जो Soil Particles में फैलकर रोगजनक में मार देते है ।

यह रसायन अनाज बोने से पहले प्रयोग होने वाले Fumigants होते हैं जो Soil Micro Organisms जैसे अनेक Fungi कुछ Bacteria, Insects एवं खरपतवारों के एक विस्तृत परिसर के विरूद्ध बहुत प्रभावशील होते है ।

धूमक (Fumigants) को जिसमें रसायन को ट्रैक्टर के पीछे आरूढ़ रुखानी दंत इन्जैक्शन शैंक अथवा तवों या डिस्क की निकासनलियों द्वारा मृदा की ऊपरी सतह से 6 इंच नीचे तक पहुँचा दिया जाता है । इनका उपयोग खड़ी फसल पर नहीं किया जा सकता है ।

Practice # 14. फसल चक्र द्वार (Crop Rotation):

मृदा कई बीमारी एक मुख्य समस्या है । जब एक खेत में बराबर एक ही फसल ली जाती है । तब उस फसल के Soil Borne Pathogens भूमि में सुगमता से चिरकालिक बने रहते है, जिससे उनकी संख्या में अधिक वृद्धि हो जाती है । कुछ समय पश्चात् भूमि इतनी अधिक रोगग्रस्त हो जाती है ।

उसमें उस विशेष फसल की खेती करना कठिन हो जाता है । दूसरी ओर जब खेत में एक रोग ग्राही फसल लेने के बाद एक निश्चित अवधि के लिए Immune, Resistant अथवा परपोषी फसलों को उगाया जाता है ।

उदाहरण Soil Borne Nature के Pathogens द्वारा उत्पन्न ग्लानि एवं मूल विगलन रोगों की रोकथाम के लिए दालों के साथ Crop Rotation अपनाना चाहिए । धान की फसल के बाद में सब्जियां उगाना चाहिए, जिससे Soil का Management उर्वरता बनी रहती है ।

 

Practice # 15. बोने के समय का चुनाव (Selection of Sowing Time):

अनेक रोगों में रोग आपतन उस समय अधिक गंभीर हो जाती हैं, जब Plant Growth की Susceptible Stage एवं Pathogen के लिए अनुकूल अवस्थायें एक ही समय में एक साथ मिल जाती है । इस अनुरूपता को बोने के समय में परिवर्तन करके टाला जा सकता है और Pathogens के लिए अनुकूल अवस्थाओं से फसल को बचाया जा सकता है ।

इस प्रकार से शीत ऋतु में बोई गयी फसलें उच्च तापमान एवं आर्द्रता द्वारा अनुकूलित मूल विगलन एवं ग्लानि रोगों के आपतन से पलायन कर जाती है, जो प्राय: ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु के बाद उत्पन्न होते है ।

Practice # 16. बीजों का चयन (Selection of Seeds):

बीजों (Seed) द्वारा खेत में संक्रमण फैलाने वाले पादप रोगों से बचाने के लिए अच्छी उचित Quality के Seeds का चयन करना चाहिए, जो खेत की मिट्टी में Pathogens का गुणन रोकने एवं स्वस्थ फसल को संदूषित होने से बचाने के लिए आवश्यक होता है ।

रोग मुक्त बीजों को Pathogens मुक्त मिट्टी में बोना चाहिए । यह Management कि अत्यधिक प्रभावी विधि होती है । अच्छे स्वस्थ रोग मुक्त बीजों का चयन ही उचित होता है ।

Practice # 17. बीजों का उपचार (Treatment of Seeds):

बीजों (Seeds) के भीतर या उनकी सतह पर उपस्थित Pathogens को हटाने के लिए ऊष्मा, गैस या रासायनिक उपचारों (Chemical Treatment) को किया जा सकता है । इस विधि को Pathogens के Eradication एवं अपवर्जन के लिए किया जाता है ।

बीज उपचार खेत में बीज अंकुरण (Germination) एवं रोग के विकस में होने वाली हानि को बहुत कम कर देते है । साधारणतः बीज उपचार आयात के लिए भी निर्धारित किए जाते हैं तथा निर्यात करने वाले अभिकरण को संगरोध उद्देश्य के लिए इस पर एक प्रमाण पत्र देना पड़ता है ।

Practice # 18. बीजों का प्रमाणीकरण (Certification of Seeds):

जिन फसलों को केवल बीज के लिए उगाया जाता हैं । उनका समय-समय पर बीज द्वारा फैलने वाले रोगों की उपस्थिति के लिए निरीक्षण किया जाता है । यदि फसल पर कोई Seed Borne Disease उत्पन्न हो जाता है ।

इस प्रकार के Seeds जो बोने के लिए प्राप्त होते है वह Certified होते है । इन Seeds संसाधन संयंत्रों पर इनकी जांच की जा सकती है । बुरी तरह से प्रभावित बीजों को अस्वीकृत कर दिया जाता है ।

Practice # 19. रोगजनक का उन्मूलन (Eradication of the Pathogens):

रोगजनक के उत्सरण या परिवर्जन तथा रोगजनक के अपवर्जन के सिद्धान्तों का मुख्य उद्देश्य खेत अथवा फसल में पहले से उपस्थित निवेश द्रव्य को हटाना ही होता है ।

रोगजनक का पूर्ण Eradication संभव नहीं है, परन्तु इसका उद्देश्य निवेशद्रव्य के घनत्व को एक ऐसे स्तर तक कम कर देना है । जहाँ यह एक सार्थक क्षति न पहुँचा सके । रोगजनक का Eradication करने के लिए जैविक साधनों, फसल चक्र, रोगग्रस्त पौधों का उन्मूलन भौतिक एवं रासायनिक उपचार आदि प्रयास किए जाते है ।

Practice # 20. रोगजनकों का जैविक नियंत्रण (Biological Control of Pathogens):

जैविक नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य दूसरे सूक्ष्मजीवों की क्रिया को कम करना तथा उनका उन्मूलन करके उन्हें कम करना तथा मृदा की व पादप सतहों का रक्षा करना है । इसके अन्तर्गत वह क्रियाएँ आती हैं, जो मृदा में अथवा पादप सतहों के संक्रमण स्थलों पर सूक्ष्मजीवी संख्या, गुणता एवं क्रिया में अत्यधिक बढ़ा देती है ।

रोगजनक के विरुद्ध सूक्ष्मजीवी के Antagonistic Component का प्रभाव, Biocidal अथवा Biostatic हो सकता है । इसमें एक सूक्ष्मजीव दूसरे Pathogen सूक्ष्मजीव को मार देता है ।

Organic पदार्थों से Soil Amendment इस विधि में ही आते है । मृदा में कार्बनिक पदार्थों के विघटन से सूक्ष्मजीवी क्रियाओं को बढ़ावा मिलता है, परन्तु सूक्ष्मजीवों के कुछ सदस्य रोगजनक जीवों का दमन करते हैं एवं मार देते हैं ।

Practice # 21. संरोप का जैव नियंत्रण (Biological Control of Inoculum):

Parasites तथा Predators द्वारा निवेश द्रव्य का विनाश Inoculum के द्वारा किया जाता है तथा खाद्य आधार या संक्रमित अवशेष से रोगजनक (Pathogens) को दुर्बल करना आवश्यक होता है, जो Inoculum के द्वारा होता है ।

संरोप के द्वारा रोगजनक के मृदा से हटाया जा सकता है, परन्तु इसके छोटी जगहों के लिए ही उपयोग में लाते हैं । अत: संरोपण के द्वारा मृदा को प्रबंधित किया जा सकता है।

Practice # 22. फसल के मलबे का प्रबंध (Management of Crop Residues):

अधिकांश संक्रमित फसल का मलबा, विशेष रूप से फसल की कटाई के बाद खेत में छूटी जडें न केवल रोगजनक की उत्तरजीविता के लिए एक माध्यम के रूप में कार्य करते है । यह उनके निवेशद्रव्य की मात्रा में वृद्धि के लिए भी एक क्रियाधार के रूप में कार्य करते है ।

कुछ कवक एवं जीवाणु खेत में छूटे मलबे में होते है जो मिट्टी में दब जाते हैं और दूसरी फसल को खराब करने के लिए उत्तरदायी होते है । अत: खेत की कटाई के तुरंत बाद इन्हें जला कर या रासायनिकों का उपयोग करके नष्ट कर देना चाहिए ।

Practice # 23. रोगी पौधों का प्रबंध (Management of Diseased Plants):

रोगी पौधों को नियमित रूप से बाहर निकलना अर्थात् Roguing एक निवारण उपाय जिससे स्वच्छता बनी रहती है । यह रोग के प्रसार एवं प्रारम्भिक संरोप की मात्रा को कम करने में बहुत प्रभावी होता है । यह विधि केवल उसी समय अधिक प्रभावी होती है ।

जब रोगवाहक रोगजनक की संख्या बहुत कम होती है । यदि Soil को बचाने के लिए प्रबंध करने के लिए खेतों में सभी रोगी पौधों को स्वस्थ पौधों के बीच से उखाड़ कर नष्ट कर दिया जाये तो फसल में उपस्थित निवेशद्रव्य समाप्त किया जा सकता है और Soil को रोगजनक से बचाया जा सकता है ।

रोगी पौधे को निकालने के बाद मृदा को सूर्य की रोशनी में एक माह के लिए सुखाना आवश्यक है जिससे मिट्टी रोगजनक रहित हो जाए और दूसरी फसल सही व निशेगी रहे । मृदा (Soil) में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले पादप रोगजनक सक्रिय रहते है, जहाँ वो अपना स्थान बना चुके होते है और वो मृदा में मिलने वाले सूक्ष्मजीवों जो कि लाभदायक होते है, उनको खतम कर देते है ।

यह विरोधी सूक्ष्मजीव अपने स्वयं के विशिष्ट परिस्थितिक गुण रखते है, जो केवल उन्हीं पर्यावरणों में स्थापित करते हैं, जहाँ के वह मूल निवासी होते है । यदि वह किसी विशिष्ट मृदा पर्यावरण के निवासी है तो खेत में इनकी संख्या को उचित मृदा सुधारक पदार्थ द्वारा बढ़ाया जा सकता है ।

इन सूक्ष्मजीवों को मूल उद्देश्य मृदा के प्राकृतिक विरोधी समान्य को बनाये रखना है । खेत की मृदा में विरोधी सूक्ष्मजीवों का बाह्य अनुप्रयोग करके कुछ विशिष्ट रोगों को किया जाता है । मृदा (Soil) में कार्बनिक या जैव पदार्थों के अपघटन से हुए भौतिक रासायनिक परिवर्तन रोगजनक एवं परपोषी दोनों के ऊपर प्रभाव डालते हैं ।

जैव पदार्थों के अपघटन से मृदा में कुछ सूत्रकृमिनाशी पदार्थ जैसे ब्यूटिटिक अम्ल आदि उत्पन्न होते है परन्तु सभी सूक्ष्मजीवी हानिकारक नहीं होते हैं और वो Soil के प्रबंध में सहायक होते हैं और उसकी उर्वरकता को बनाए रखते हैं तथा उसके लिए बहुत से उपाय किए जाते हैं जो मृदा के प्रबंधन में सहायक होते है ।

मृदा के प्रबंधन के लिए विभिन्न सिद्धान्तों के अन्तर्गत प्रबंधन किया जाता है, ताकि मृदा की उर्वरकता व लाभदायक सूक्ष्मजीव बने रहे और मृदा में होने वाली फसलों की उन्नति होती रहे ।