Read this article in Hindi to learn about the twelve major reforms of public sector enterprises. The reforms are:- 1. सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण (Privatization of Public Enterprises) 2. सार्वजनिक उद्यमों की स्थायी कान्फ्रैंस द्वारा सुझाये गये उपायों का पुलन्दा (Package of Measures Suggested by SCOPE) 3. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विनिवेशन (Disinvestment of PSE Shares) and a Few Others.

पचास के दशक के पहले वर्षों में भारतीय लोगों को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से, बिना उन्हें विस्तार में देखे ही, उनमें रुचि थी । परन्तु धीरे-धीरे उच्च स्तरीय निवेश की मात्रा बढ़ने से, कई उद्यमों में हानि की मात्रा में वृद्धि तथा निवेशित पूंजी पर लाभ का न्यून दर आदि के कारण इनके पक्ष में जनमत ठण्डा पड़ गया । नब्बे के दशक में इन सार्वजनिक उद्यमों के सुधार करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाये गये ।

इनमें से कुछ मुख्य सुधार नीचे दिये गये हैं:

Reform # 1. सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण (Privatization of Public Enterprises):

निजीकरण की मुक्ति को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार के भाग के विनिवेशन के रूप में तथा अब तक सुरक्षित क्षेत्र को निजी उद्यमों की भागीदारी के लिए खुल कर अपनाया गया है । वर्ष 1990-91 में बड़े स्तर पर वित्तीय असन्तुलन और बढते हुए भुगतानों के शेष के सकट के कारण देश ने विवश होकर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को पुन: क्रय सुविधाओं के लिए तथा विश्व बैंक को संरचनात्मक समन्वयन ऋण के लिए प्रस्ताव रखा ।

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यह सहायता देते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक दोनों ने इस सहायता को कुछ शर्तों के साथ जोड़ा जिनके अनुसार अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को क्रमिक खोला जायेगा और उदारीकरण की नीति का आरम्भ किया जायेगा । तदानुसार नई औद्योगिक नीति 1991 इन शर्तों के अनुसार तैयार की गई ।

नई नीति ने औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका के विकास पर बल दिया तथा इस प्रकार कई ढंग अपनाये । इन महत्त्वपूर्ण विधियों के कुछ ढंग थे 18 उद्योगों को छोड़ कर सब उद्योगों में अनुज्ञा प्रणाली को समाप्त करना (बाद में 18 से घटा कर यह उद्योग 15 कर दिये गये) सार्वजनिक क्षेत्र के लिए उद्योगों की संख्या 17 से घटा कर 8 कर दी गई, एम. आर. टी. पी. (MRTP) लिमेट को समाप्त कर दिया जाना, विदेशी निवेश तथा तकनीक का मुक्त स्थानान्तरण आदि ।

हाल ही के वर्षों में सरकार ने निजीकरण के मामले में विविधीकरण जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के भागों को साझे कोष में बदल कर, वित्तीय संस्थाओं तथा अन्त में निजी क्षेत्र को बेच कर आदि उद्योगों के विकास के लिए पग उठाये हैं ।

संरचनात्मक क्षेत्र के सम्बन्ध में निजीकरण को विद्युत से तार संचार, सड़कों, बन्दरगाहों, रेलवे तथा वायु मार्गों तक ले जाया गया । निजीकरण की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि सरकार के पास आवश्यक स्तर तक संरचना के निर्माण के लिए साधनों का अभाव था ।

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सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्यमों (PSEs)के निजीकरण के आरम्भण ने कुछ ध्यान आकर्षित किया, जहां कि लगातार हानिकारक उद्यमों को धीरे-धीरे उनके भाग को विनिवेशित करके सार्वजनिक रूप में अंश बेच कर निजीकरण किया गया । इससे उनके आधुनिकीकरण एवं विविधीकरण के लिए आय की बड़ी राशि प्राप्त हुई ।

अब तक अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमो में भी अंशों के विनिवेशन के सुझाव अनेक ओर से दिये जा रहे हैं ताकि इन उद्योगों में प्रतियोगिता की भावना डाली जा सके ।

Reform # 2. सार्वजनिक उद्यमों की स्थायी कान्फ्रैंस द्वारा सुझाये गये उपायों का पुलन्दा (Package of Measures Suggested by SCOPE):

सार्वजनिक उद्यमों की स्थायी कान्फ्रैंस ने सुझाव दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को इजाजत दी जाये कि वह अपने अंश जनता को दे सकें । सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों की स्थायी समिति (SCOPE) के अनुसार इससे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम प्रतियोगिताशील होने के लिए विवश होंगे, इसके अतिरिक्त वह अन्य क्षेत्रों में निवेश के लिए भी पर्याप्त कोष, उपलब्ध करा सकेंगे ।

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मौलिक विचार यह है कि जनन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (PSEs) के शेयरों का छोटा सा भाग भी निर्धारित करने से कम्पनी के शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो जायेंगे जो सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (PSEs)को भविष्य में प्रतियोगिताशाली रहने के लिए विवश करेंगे ।

इसने सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (PSEs) में निवेश प्रस्तावों की ‘एक खिड़की निकासी’ (One Window Clearance) का भी सुझाव दिया है । इस समय निवेश प्रस्तावों के लिए PSEs से छ: स्तरीय स्वीकृति की आवश्यकता है । सार्वजनिक उद्यमों की स्थायी कान्फ्रैंस, वर्तमान बहु-परतीय निर्णय प्रक्रिया को एक पूर्ण रूप में सशक्त बहु-विषयक समिति से परिवर्तित करना चाहती है ।

इस प्रकार एस. सी. ओ. पी. ई. (SCOPE) ने सार्वजनिक क्षेत्र को निष्पादन-परक बना कर सरकार को सुधारो के एक पुलन्दे का सुझाव दिया । इन सुधारों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया जो है- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रबन्ध में विश्वास पैदा करने के लिए सुधार तथा संरचनात्मक सुधार । इन सुधारों का उद्देश्य है कि प्रतियोगितात्मक वातावरण में काम कर रही कम्पनियां उसी वित्तीय अनुशासन के अधीन हों जैसे कि निजी प्रबन्ध में पब्लिक लिमिटेड कम्पनियां हैं ।

एस.सी.ओ.पी.ई. (SCOPE) ने सुझाव दिया कि वाणिव्यात्मक तथा व्यवसायात्मक की विशिष्टता प्राप्त करने के लिए पी.एस.एज (PSEs) को वाणिज्यात्मक तथा उद्यमी वातावरण में काम करना चाहिए जैसा कि निजी क्षेत्र में होता है तथा उन्हें ”प्रान्त की एक शाखा नहीं मानना चाहिए ।”

इसके अतिरिक्त इसने यह सुझाव भी दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र की होटल, पर्यटन, वस्त्र और ब्रैड निर्माता इकाइयों में भागीदारी को धीरे-धीरे निजीकरण करके समाप्त किया जाये । प्रारम्भ में ऐसा करने के लिए इन उद्यमों को पट्‌टे पर देकर अथवा प्रबन्ध का ठेका देकर किया जा सकता है ।

अन्त में सरकार ने क्रमिक ढंग से निजीकरण की प्रणाली को स्वीकार करने का निर्णय लिया । उदाहरण के रूप में ”शिपिंग क्रैडिट एण्ड इन्वैस्टमैन्ट कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया” (SCICI) ने फरवरी 1991 में 25 करोड़ रुपयों के शेयर जारी किये जिससे कम्पनी की अशधारिता 100 प्रतिशत से कम होकर लगभग 66 प्रतिशत रह गई ।

यह आशिक निजीकरण का प्रकरण है न कि पूर्ण निजीकरण का । प्रान्त सरकार की कई बीमार इकाइयां हैं जिनका निजीकरण किया जा रहा है जैसे कुछ एलविन किसान जिसने अपनी स्थिति सुधार ली है । कुछ सरकारी कम्पनियां हैं जिनमें आरम्भ से निजी हिस्सेदारी है जैसे एलविन निस्सान जिन्होंने अपनी स्थिति सुधार ली है । कुछ सरकारी कम्पनियां हैं जिनमें आरम्भ से निजी हिस्सेदारी है । कुछ प्रकरण ऐसे भी हैं जहां सरकार ने छोटे अंशधारकों को एक ओर करके कम्पनी के नियन्त्रक हितों को अपने हाथ में ले लिया है ।

Reform # 3. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विनिवेशन (Disinvestment of PSE Shares):

वर्ष 1991 की उद्योग नीति के कथन में कुल चयनित सार्वजनिक उद्यमों (PSEs)में सरकार के स्वामित्व वाले अंशों के एक भाग को विनिवेशित करने का प्रस्ताव रखा गया ताकि बाजार अनुशासन उपलब्ध हो और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निष्पादन में सुधार हो ।

सरकार ने पी.एस.ई.एस. (PSEs) की कुछ चयनित इकाइयों के अंशों का धीरे-धीरे विनिवेशन करने का निर्णय किया । कुछ चुनी हुई सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का 5 से 20 प्रतिशत के भागों को दो चरणों में विनिवेशन किया ।

(दिसम्बर 1991 और फरवरी 1992 में) 31 कम्पनिया जिनको अंशों के विनिवेशन के लिए चुना गया वह ऐसी कम्पनियों के मिश्रण थे- 8 बहुत अच्छी, 12 अच्छी और 11 इतनी अच्छी नहीं शुद्ध सम्पत्ति मूल्य (NAV) क्रमशः 10 रुपए प्रति शेयर-पचास रुपयों से अधिक नहीं, 20 और 25 रुपये के बीच और 20 रुपये प्रति शेयर था ।

यह शेयर कुछ चुनी हुई वित्तीय संस्थाओं और साझे कोषों को दिये गये । वर्ष 1991-92 में कुल विनिवेशत अंश सरकार के कुल अंशों का 8 प्रतिशत थे और 31 PSEs में थे । इनके विनिवेशन से 3,038 करोड़ रुपयों की राशि प्राप्त हुई ।

वर्ष 1995-96 में सरकार ने पी.एस.यू (PSU) के विनिवेशन द्वारा 7000 करोड़ रुपयों की राशि एकत्रित करने का निश्चय किया । तदानुसार सरकार ने विनिवेशन के लिए लगभग 15 पी.एस.यूज (PSUs) की पहचान की । इन पी.एस.यूज (PSUs) में अधिकतर समृद्ध कम्पनिया थीं जिनमें पहले भी एक बार विनिवेशन हो चुका था तथा यह उच्च लाभ कमाने वाली कम्पनियां थीं ।

वर्ष 1995-96 में पी. एस. यू के विनिवेशन के पहले दौर में सरकार ने पहले ही समृद्ध कम्पनियों को सम्मिलित कर रखा था जैसे- ओ.एन.जी.सी. और एस.ए. आई.एल. । अन्य पी.एस.यू. जिनकी पहचान की गई थी जैसे भारतीय तेल निगम (IOC), भारतीय पैट्रोलियम निगम और नैशनल फर्टीलाइजर लिमिटेड, भारत पैट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड, विदेश संचार निगम लिमिटेड तथा गैस अथोरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड आदि ।

सरकार ने 1995-96 के वित्तीय वर्ष में अनिवेशन का पहला दौर 27.14 करोड़ शेयरों की खरीद के लिए निविदाएं बुला कर 9 अक्तूबर, 1995 को किया । यह शेयर चार सार्वजनिक उपक्रमों के थे जिनमें ओ.एन.जी.सी., एस.ए.आई.एल., एम.टी.एन.एल. और सी.सी.आई.एल. सम्मिलित थी ।

Reform # 4. पी.एस.ई. शेयरों के विनिवेशन के लिए रंगाराजन समिति (Rangarajan Committee on Dis-Investment of PSE Shares):

नवम्बर 1992 को भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेशन के लिए डॉ रंगाराजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया ।

इस समिति की मुख्य सिफारिशें नीचे दी गई हैं:

(i) माध्यमिक अवधि के लिए विनिवेशन का लक्ष्य स्तर औद्योगिक नीति के अनुकूल होना चाहिए । विनिवेशन वाले भाग की प्रतिशतता सार्वजनिक उद्योगों के सुरक्षित उद्योगों के लिए 49 प्रतिशत तथा अन्य प्रकरणों के लिए 74 प्रतिशत होनी चाहिए ।

(ii) विनिवेशन के वार्षिक लक्ष्यों के स्थान पर एक स्पष्ट कार्य योजना बनाई जाये ।

(iii) कई कदम उठाये जाने की आवश्यकता है । जिनमें सम्मिलित है- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निगमीकरण, उचित ऋण-भागों की गति तीव्र करने से वित्त का पुन: निर्माण तथा यदि आवश्यक हो तो सम्बन्धित क्षेत्र के लिए स्वतन्त्र नियमन आयोग ।

(iv) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शेयरों के मूल्यकरण की विधि के चुनाव के लिए आवश्यक है कि प्रभावित करने वाली विशेष स्थितियों को ध्यान में रखा जाये । सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यों जैसे सामाजिक दायित्वों पर ध्यान रखा जाये न केवल वाणिव्यात्मक धारणाओं पर ध्यान दिया जाये ।

(v) सार्वजनिक उपक्रमों में श्रमिकों और कर्मचारियों को प्राथमिकता के आधार पर शेयर देने की योजना बनाई जा सकती है ।

(vi) विनिवेशन से प्राप्त राशि का 10 प्रतिशत सरकार द्वारा पी.एस.ई. को रियायती दरों पर उनकी विकास एवं तर्कसंगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अलग रखा जाये ।

(vii) सार्वजनिक क्षेत्र विनिवेशन के लिए एक स्थायी समिति का गठन किया जाये जो सुधारों के लिए कार्य योजना को देखे, पुन: निर्माण तथा विनिवेशन, की गई उन्नति का निरीक्षण और मूल्यांकन करें ।

Reform # 5. विनिवेशन आयोग (Disinvestment Commission):

विनिवेशन का प्रक्रिया में सरकार द्वारा गया निर्णय है- सार्वजनिक शेयरों के विनिवेशन के लिए शर्तें एवं विधियाँ तय करने के लिए विनिवेशन आयोग का स्थापित किया जाना है । जी.वी. रामाकृष्णा (G.V. Ramakrishna) भूतपूर्व योजना आयोग के सदस्य इस आयोग के अध्यक्ष थे । विनिवेशन आयोग सार्वजनिक उद्यमों के विभाग द्वारा सम्भाला जायेगा ।

विनिवेशन की प्रक्रिया में श्रमिकों का अंशधारण एवं सामूहिक स्वामित्व पर ध्यान दिया गया जिससे वर्तमान प्रान्तीय स्वामित्व वाले उद्यम वास्तव में जनता के स्वामित्व वाले उद्यमों में परिवर्तित हो जायेंगे । सरकार ने निर्णय किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य सम्बन्धित तत्त्वों के कारण मुक्ति संगत महत्व वाली कम्पनियों में विनिवेशन नहीं किया जायेगा । वास्तविक विनिवेशन सम्बन्धित पी. एस. यू द्वारा आयोग के मार्गदर्शन में किया जायेगा ।

Reform # 6. सार्वजनिक क्षेत्र और वर्ष 1991 की नई ओद्योगिक नीति (Public Sector and New Industrial Policy of 1991):

सरकार ने अपनी नई औद्योगिक नीति 1991 में सार्वजनिक क्षेत्र के सम्बन्ध में चार मुख्य निर्णय लिए हैं:

(i) सार्वजनिक क्षेत्र के आरक्षित 17 उद्योगों की सूची को कम करके 8 उद्योग रहने देना तथा आरक्षित क्षेत्र में चुनी हुई प्रतियोगिता आरम्भ करना ।

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र के शेयरों का विनिवेशन ताकि साधनों में वृद्धि हो और सामान्य जनता और श्रमिकों की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के स्वामित्व में विस्तृत भागीदारी हो ।

(iii) रुग्ण सार्वजनिक उद्यमों के लिए नीति निजी क्षेत्र के समान बनाई जाये । रुग्ण पी.एस.ई. जिनमें सुधार की सम्भावना कम हो को बी. आई. एफ. आर (BIFR) को पुन: जीवनदायक योजनाएं बनाने के लिए सौंपा जाये ।

(iv) निष्पादन ठेके अथवा समझ पर आधारित स्मरण पत्र (MoU) प्रणाली द्वारा निष्पादन को सुधारना जिसके अनुसार प्रबन्ध को अधिक स्वायत्ता दी जाये तथा परिणामों के लिए उत्तरदायी इहराया जाये ।

Reform # 7. सार्वजनिक क्षेत्र और आठवीं योजना (Public Sector and Eight Plan):

आठवीं योजना ने पी.एस.ई. (P.S.Es) के लिए महत्वपूर्ण भूमिका की कल्पना की है जिसके अनुसार यह संरचनात्मक और युक्ति संगत सहायता उपलब्ध करवा कर लक्षित वृद्धि दर प्राप्त करने में सहायक होंगे ।

तदानुसार, योजना दस्तावेजों ने सार्वजनिक क्षेत्र के लिए निम्नलिखित नीति सम्बन्धी पहलकदमियों का अनुमोदन किया:

(i) आधुनिकता, क्षमता का पुन: दृढिकरण, उत्पाद मिश्रण तथा चयनित विकास तथा निजीकरण युक्त पुन: निर्माण ।

(ii) प्रशासनिक मन्त्रालयों और सातवीं योजना से आरम्भ की गई सार्वजनिक इकाइयों के बीच प्रभावी एम.ओ.यू. प्रणाली द्वारा स्वायत्ता एवं निष्पादन के दायित्व में वृद्धि ।

(iii) विशेष उद्यमों में नेतृत्व, चतुरता तथा नवप्रवर्तन को बढ़ाने के लिए प्रबन्धन में परिवर्तन ।

(iv) प्रान्तीय सरकार द्वारा अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की कार्यशैली को व्यवस्थित करने के लिए बड़ा प्रयत्न, जो सतत हस्तक्षेप और अस्थायी निवेश एवं रोजगार निर्णयों से घिरे रहते हैं ।

(v) एक अखण्ड शोध एवं विकास प्रयत्न और तकनीक के महत्व द्वारा तकनीक को उन्नत करना ।

(vi) मन्त्रालयों के प्रस्ताव तथा अन्य सरकारी एजेन्सियां जोकि उदारवाद और नियमों को तोड़ना (मूल्य, वितरण, निवेश तथा आयात नियन्त्रण) से मेल खाती हैं, का पुन. सुधार ताकि बाजार शक्तियों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने, एकीकृत शोध एवं विकास प्रयास की सामंजस्यता तथा विभिन्न भण्डार धारकों के बीच एकमत एवं भागीदारी लाने के लिए नई संस्थागत क्षमता विकसित की जाये ।

Reform # 8. सरकारी नीति का नवीनीकरण तथा वर्तमान उपाय (Reorientation in the Government Policy and Current Measures):

सरकार ने विभिन्न संस्थागत सुधार आरम्भ किये हैं जोकि विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों पर आधारित हैं जैसे धारक कम्पनियों की स्थापना तथा एम.ओ.यू की प्रणाली और रुग्ण ओद्योगिक इकाइयों को बी.आई.एफ.आर (BIFR) को सौंपना । इसके बावजूद सार्वजनिक उद्यमों में व्यापक सुधार आवश्यक समझे गये ताकि पी.एस.ई कार्यों को समस्त संरचनात्मक परिवर्तनों तथा वर्तमान सरकार द्वारा आरम्भ किये गये समष्टि आर्थिक स्थायीकरण कार्यक्रम के बराबर लाया जा सके ।

सार्वजनिक क्षेत्र के सुधारों की आवश्यकता पर इसलिए बल दिया गया है ताकि प्रयुक्त पूंजीगत साधनों का उत्पादन बड़े और पी.एस.ई. (PSE) द्वारा उठायी गयी हानियों की सीमा कम हो ताकि राजकोषीय घाटे का आकार कम हो । इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के सुधार के लिए युक्ति के मुख्य तत्त्वों में सम्मिलित है-प्रबन्धकीय स्वायत्ता का दृढ़ीकरण, निजी क्षेत्र का संवर्धन, सामाजिक महत्व वाले क्षेत्रों में प्रतियोगिता, सार्वजनिक उद्यमों को बजटीय सहायता घटाना और बढ़ते हुए लाभांशों का भुगतान ।

Reform # 9. समझ-बुझ का स्मरण पत्र (Memorandum of Undertaking MoU):

यह कदम सार्वजनिक उद्यमों की एम. ओ. यू. द्वारा हर वर्ष वर्तमान निरीक्षण प्रणाली को दृढ़ करने के लिए लिया गया । एम. ओ. यू. की प्रणाली वर्ष 1988-89 में आरम्भ की गई । एम. ओ. यू सरकार एवं. पी. एस. ई. प्रबन्धन के बीच एक प्रभावी अन्तराफलक है जो पी. एस. ई. की क्रियात्मक स्वायत्ता के बराबर दायित्वपूर्ण परिणाम सुनिश्चित करता है ।

एम. ओ. यू. एक उद्योग के लक्ष्य, उद्देश्य तथा वार्षिक निशाना दर्शाता है । प्रत्येक निशाना इसकी प्राथमिकता के भारानुसार किया जाता है । निशाने अथवा लक्ष्य की प्राप्तियां पाँच बिन्दु माप पर आधारित है जोकि ‘उत्कृष्ट से निकृष्ट’ के बीच घूमती हैं ।

वर्ष 1990-91 में 23 पी.एस.ई. ने अपने प्रशासनिक मन्त्रालयों से एम.ओ.यू से हस्ताक्षर किये । उनकी निष्पादन मूल्यांकित श्रेणिया थीं 14 उत्कृष्ट, 8 बहुत अच्छी और 1 निष्कृष्ट । वर्ष 1991-92 में 71 उद्यमों ने एम.ओ.यू हस्ताक्षर किये और वर्ष 1992-93 में 120 उद्यमों की इस कार्य के लिए पहचान की गई ।

एम. ओ. यू. (MoU) प्रणाली का और दृढ़ीकरण किया गया है । वर्ष 1993-94 में 101 पी.एस.ई. ने एम. ओ. यू हस्ताक्षर किये जबकि इससे पिछले वर्ष में 98 पी.एस.ई. ने हस्ताक्षर किये थे ।

लेखा परीक्षण के आधार पर 100 सार्वजनिक उपक्रमों का मूल्यांकन किया गया जिनमें 46 को उत्कृष्ट (46.0 प्रतिशत) माना गया, 29 को बहुत अच्छी (29.0 प्रतिशत), 12 को अच्छी और 10 को ठीक-ठीक माना गया । वर्ष 1994-95 में 106 सार्वजनिक उपक्रमों ने एम.ओ.यू. हस्ताक्षर किये जो पिछले वर्ष से पांच प्रतिशत अधिक थे ।

Reform # 10. रुग्ण इकाइयों को बी.आई.एफ.आर. के पास भेजना (Reference of Sick Units of BIFR):

रुग्ण उद्योग कम्पनिया (विशेष व्यवस्था) अधिनियम 1985 को दिसम्बर 1991 में सुधारा गया ताकि निरन्तर रुग्ण चली आ रही सार्वजनिक कम्पनियों को औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण मण्डल (BIFR) के पास वैज्ञानिक पुनर्गठन के लिए भेजा जाये ।

सार्वजनिक क्षेत्र के अनुसूचित उद्योग जो अधिनियम के अन्तर्गत रुग्णता की शर्तें पूरी करते हैं जो हैं- सात वर्षों का समावेशन, शुद्ध मूल्य का पूर्ण अपर्दन और दो वर्षों तक लगातार हानि, को बी.आई.एफ.आर. (BIFR) के पास भेजा जायेगा । 31 दिसम्बर, 1992 को 91 सार्वजनिक क्षेत्र की 91 औद्योगिक कम्पनियों को बी.आई.एफ.आर. (BIFR) के पास भेजा गया ।

इनमें से 9 प्रकरण पंजीकरण करने के सोपान पर रद्द कर दिये गये तथा 11 प्रकरण मण्डल की जांच के अधीन थे, शेष 71 प्रकरणों को प्रभावी रूप में पूंजीकृत किया गया । इन पंजीकृत कम्पनियों में से 38 कम्पनियां केन्द्र के स्वामित्व वाली तथा 33 कम्पनियां प्रान्तीय स्वामित्व वाली थी ।

अप्रैल 1994 को बी.आई.एफ.आर. (BIFR) ने दो सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ‘माइका ट्रेडिंग कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया’ और पेपर कम्पनी को आत्म-निर्भर न होने के कारण बन्द कर दिया गया । इसके अतिरिक्त 2,200 करोड़ रुपयों की व्यवस्था वाला एक राष्ट्रीय नवीकरण कोष खोला गया ।

यह राष्ट्रीय नवीकरण पुन: नियुक्तिकरण के लिए वित्त व्यवस्था करेगी तथा बेरोजगार हुए श्रमिकों की क्षतिपूर्ति उद्योग इस कोष कर पहले उपभोगर्क्त्ता होंगे । इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को पुन: निर्माण करने के लिए एक पगली की स्थापना के लिए जिससे सारा वित्तिय बोझ सरकार पर न पड़े, पी. एम. ई. की रुग्ण इकाइयों को बी.आई.एफ.आर, (BIFR) के पास भेजने की प्रथा आरम्भ की गई । अक्तूबर 1993 के अंत तक 46 पी.एस.यू. को बी.आई.एफ.आर. (BIFR) की ओर भेजा जा चुका था ।

Reform # 11. सार्वजनिक क्षेत्र के सुधारों की कार्य योजना 1994-95 (Game Plan for Public Sector Reforms 1994-95):

फरवरी 1994 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में के दौरान सुधार करने की ”कार्य योजना” (Gameplan) घोषित की । इस कार्य योजना ने गतिशील कौशल एवं निष्पादन का गुणवत्ता की जांच पर अधिक बल दिया । इसके अतिरिक्त एम.ओ.यू में लाभ और लाभ सम्बन्धी प्रवृति पर भी जोर दिया गया ।

इस प्रकार एम. ओ. यू. में लाभ और लाभ सम्बन्धी प्रवृति को 50 प्रतिशत महत्व देने के विचार से सार्वजनिक क्षेत्र का वित्तीय निष्पादन और सुधरा । आरम्भ में वर्ष 1988 में जब एम. ओ. यू. (MoU) आरम्भ किया गया था तो लाभ को कोई महत्व नहीं दिया गया था ।

वर्ष 1993-94 में यह 35 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया तथा वर्ष 1994-95 में इसे पर्याप्त रूप में बढ़ा कर 50 प्रतिशत कर दिया गया । सरकार ने एक छ: वर्षीय कार्य योजना का निर्माण किया है जो सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का पुन निर्माण करेगी तथा छठे वर्ष के अन्त तक लाभ को 100 प्रतिशत भारिता दी जायेगी ताकि सार्वजनिक उद्यम पूर्ण रूप से व्यापारिक दृष्टि से चलाये जाये ।

Reform # 12. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पुनर्जीवित करने के लिए उपाय (Measures for Revival of PSEs):

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के क्षितिज में गतिशील परिवर्तन लाने के लिए निम्नलिखित उपाय वर्णनीय हैं:

(i) देश में समस्त सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की क्षमताओं का अनुकूलतम प्रयोग ।

(ii) इन उद्यमों को अधिक प्रतियोगी एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए तकनीकी उन्नति ।

(iii) उत्पाद मिश्रण का विविधीकरण ।

(iv) सार्वजनिक उद्यमों के आर्थिक निष्पादन के लिए तर्कसंगत मूल्य नीति अपनाना ।

(v) रियायतें देने की नीति को वापिस लेना, कम-से-कम अनोत्पादिक मार्गों से अवश्य वापिस लेना ।

(vi) सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र से दूषित प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के लिए उनमें संबद्धता लाना ।

(vii) प्रबन्ध को जनता तथा सरकार के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाना ।

(viii) उद्यमों को उनकी साधारण गतिविधियों में अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप से बचाना ।

(ix) इन उद्यमों द्वारा उत्पादित उत्पादों की गुणवत्ता के मानकीकरण, विज्ञापन और भिन्न सूत्रों द्वारा उत्पाद की लोकप्रियता को बढा कर आंतरिक एवं बाहरी मण्डियो का विविधीकरण ।

(x) सार्वजनिक उद्यमों के सुधार में श्रमिकों का स्वेच्छापूर्ण सहयोग और भागीदारी ।

(xi) खुलेपन नीति से कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का क्रमिक निजीकरण करने की आज्ञा ।

(xii) हानि उठा रहे उद्यमों को पुन जीवित करने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम (BIFR द्वारा सुझाया गया) आरम्भ करना तथा उनके कौशल एवं उत्पादिकता को बढा कर उनकी आत्म-निर्भरता को बढाना ।

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