Read this article in Hindi to learn about:- 1. चुनाव आयोग का विधायी संरचना (Legal Framework of Election Commission) 2. चुनाव आयोग का आयोग की संरचना (Composition of Election Commission) 3. चुनाव आयोग का स्वतंत्रता (Independence of Election Commission) 4. शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions).

चुनाव आयोग का विधायी संरचना (Legal Framework of Election Commission):

देश में आयोग का गठन स्वच्छ एवं उन्मुक्त चुनाव आयोजन सुनिश्चित करने के लिए भारत के संविधान के तहत एक स्थायी और स्वतंत्र निकाय के रूप में हुआ था । संविधान के अनुच्छेद 324 में संसदीय चुनावों, विधानसभा चुनावों, भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए चुनावों की देखरेख उनके निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार चुनाव आयोग को दिया गया है । अतः चुनाव आयोग, इस अर्थ में अखिल भारतीय स्तर का निकाय है कि यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों दोनों के लिए एक है ।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग को प्रदत्त शक्तियों में संसदीय अधिनियमों तथा उनमें वर्णित नियमों और आदेशों के द्वारा और वृद्धि की गई हैं जैसे:

1. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, जो मतदाताओं की योग्यता, मतदाता सूचियों की तैयारी, चुनाव क्षेत्रों के निर्धारण, संसद में तथा विधानसभा में सीटों के बंटवारे से संबंधित है ।

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2. 1950 की जन प्रतिनिधित्व (मतदाता सूचियों की तैयारी) नियमावली ।

3. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, जिसके संबंध चुनावों के आयोजन से जुड़े प्रशासनिक तंत्र, मतदान, चुनाव संबंधी विवाद, उपचुनाव, राजनीतिक दलों का पंजीकरण आदि से है ।

4. जन प्रतिनिधित्व (चुनाव संचालन और चुनाव याचिका) नियमावली 1951

5. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952

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6. संघ शासित राज्य अधिनियम, 1963

7. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राज्यों में चुनाव आयोग का पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव से कुछ भी लेना देना नहीं है । इसके लिए भारतीय संविधान (अनुच्छेद 243 के. और 243 जेड. ए.) में अलग से राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान किया गया है ।

चुनाव आयोग का आयोग की संरचना (Composition of Election Commission):

संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग की संरचना के संदर्भ में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

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1. चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त होगा तथा राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर निर्धारित संख्या में चुनाव आयुक्त होंगे ।

2. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी ।

3. किसी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति जब इस प्रकार होती है तो मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा ।

4. राष्ट्रपति चुनाव आयोग से परामर्श कर आवश्यक समझने पर चुनाव आयेग की सहायतार्थ क्षेत्रीय आयुक्तों की भी नियुक्ति कर सकता है ।

5. चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों की सेवा शर्तों और कार्यकाल का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा ।

वर्ष 1950 में अपने गठन से लेकर 15 अक्टूबर, 1989 तक चुनाव आयोग मात्र मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ एक सदस्यीय निकाय के रूप में कार्य करता रहा था । 61वें संविधान (संशोधन) अधिनियम 1989 के द्वारा राष्ट्रपति ने मतदान की आयु 21 वर्ष से कम कर 18 वर्ष कर दी थी । इसके कारण चुनाव आयोग के कार्यों में हुई वृद्धि से निपटने के लिए 16 अक्टूबर, 1989 को दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई । तब से चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय निकाय के रूप में कार्य करता रहा जिसमें तीन चुनाव आयुक्त थे ।

तथापि, जनवरी, 1990 में चुनाव आयुक्तों के दो पद समाप्त कर दिए गए तथा चुनाव आयोग को पहले जैसी स्थिति में ला दिया गया । अक्टूबर, 1993 में राष्ट्रपति ने पुन: दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की । तब से अब तक चुनाव आयोग तीन चुनाव आयुक्तों के साथ कार्य कर रहा है ।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की शक्तियां वेतन भत्ते और सुविधाएँ समान हैं । मुख्य चुनाव आयुक्त और/या दो अन्य चुनाव आयुक्तों के मध्य मतभेद की स्थिति में मामले का निर्णय आयोग द्वारा ही बहुमत के आधार पर किया जाता है ।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान ही वेतन तथा अन्य सुविधाएँ मिलती हैं । ये तीनों आयुक्त 6 वर्ष की अवधि तक या 65 वर्ष की आयु होने तक (जो भी पहले हो) के लिए अपने पद पर बने रह सकते हैं ।

चुनाव आयोग का स्वतंत्रता (Independence of Election Commission):

संविधान के अनुच्छेद 324 में, चुनाव आयोग की स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्य प्रणाली को सुरक्षित और सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

1. मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल निश्चित है । उसे उसके पद में उसी आधार पर और उस ढंग से हटाया जा सकता है जैसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है ।

दूसरे शब्दों में, मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति द्वारा तब ही हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदन उसके द्वारा दुर्व्यवहार अथवा उसकी अक्षमता के आधार पर विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करें । राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने के बावजूद मुख्य चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति की सहमति से पद पर बने नहीं रह सकता ।

2. मुख्य चुनाव आयुक्त की सेवा-शर्तें उसकी नियुक्ति के बाद इस प्रकार नहीं बदली जा सकती जिससे उसे हानि होती हो ।

3. किसी भी चुनाव आयुक्त अथवा क्षेत्रीय आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की अनुशंसा के बिना पद से नहीं हटाया जा सकता है ।

संविधान में यद्यपि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ-साथ उसकी रक्षा के भी प्रबंध किए गए हैं फिर भी कुछ कमियों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है:

1. संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों की (विधायी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) / योग्यता का निर्धारण नहीं किया गया है ।

2. संविधान में चुनाव आयोग के सदस्य के कार्यकाल का उल्लेख नहीं किया गया है ।

3. संविधान के तहत उन चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा पुनर्नियुक्त किए जाने से वारित नहीं किया गया है जो सेवानिवृत्त हो रहे हों ।

चुनाव आयोग का शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions of Election Commission):

संसदीय चुनावों, विधानसभा चुनावों और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनावों के संदर्भ में चुनाव आयोग की शक्तियों और कार्यों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है । जैसे- प्रशासनिक, परामर्शी और अर्ध-न्यायिक ।

इन शक्तियों और कार्यों का विवरण इस प्रकार है:

1. वर्ष 1962 और 1972 में संशोधित संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 के आधार पर देशभर में चुनावी क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण ।

2. मतदाता सूचियों की तैयारी और उनमें आवधिक संशोधन कर वैधानिक मतदाताओं को शामिल करना ।

3. चुनावों तिथियों और अनुसूचियों को अधिसूचित करना तथा नामांकन पत्रों की जाँच करना ।

4. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आबंटित करना ।

5. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और उन्हें चुनाव चिह्न आबंटित करने संबंधी विवादों के निपटान के लिए न्यायालय का कार्य करना ।

6. चुनावी प्रबंधों से संबंधित विवादों की जाँच के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करना ।

7. चुनावों के समय राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा पालन किए जाने वाली आचार-संहिताओं का निर्धारण करना ।

8. चुनावों के समय राजनीतिक दलों की नीतियों को रेडियो और टेलीवीजन पर प्रसारित करने का कार्यक्रम तैयार करना ।

9. संसद के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों पर राष्ट्रपति को सलाह देना ।

10. विधानसभा के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों पर राज्यपाल को सलाह देना ।

11. मतदान केंद्रो पर कब्जों, हिंसा और अन्य अनियमितताओं की स्थिति में चुनावों को रद्‌द करना ।

12. चुनावी आयोजन की आवश्यक स्टाफ की तैनाती के लिए राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल से अनुरोध करना ।

13. देशभर में निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव तंत्र का पर्यवेक्षण करना ।

14. आपातकाल की अवधि को एक वर्ष के बाद भी बढ़ाने की दृष्टि से राष्ट्रपति को यह सलाह देना कि राष्ट्रपति शासन के तहत राज्य में चुनाव कराए जा सकते हैं या नहीं ।

15. चुनावों के प्रयोजन से राजनीतिक दलों की पंजीकृत करना और चुनाव में उनके परिणामों के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तर के दल का दर्जा प्रदान करना ।

किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल का दर्जा तब प्रदान किया जाता है जब (क) उसे किसी चार राज्यों के वैध मतों में से 6% मत हासिल हुए हों और (ख) उसे किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा की 4 सीटें प्राप्त हुई हों; या (क) उसे लोकसभा में सीटों की संख्या की 2% सीट मिली हो, और (ख) ये सदस्य अलग-अलग राज्यों से चुने गए हों ।

इसी प्रकार किसी राजनीतिक दल को प्रांतीय दल का दर्जा तब प्रदान किया जाता है जब (क) उसे राज्य के वैध मतों में से 6% मत हासिल हुए हों और (ख) उसे विधानसभा में 2 सीट मिली हों; अथवा उसे विधानसभा में कुल सीटों के 3% के बराबर सीट मिली हो अथवा विधानसभा में 3 सीट मिली हो, (जो भी अधिक हो) ।

चुनाव आयोग की सहायता के लिए दो उपचुनाव आयुक्त होते हैं । इन दोनों को लोकसेवा से लिया जाता और कार्यकाल प्रणाली के तहत आयोग द्वारा नियुक्त किया जाता है । इन दोनों अधिकारियों की सहायतार्थ सचिव, संयुक्त सचिव निदेशक उपनिदेशक और अवर सचिव होते हैं जो आयोग के सचिवालय में पदस्थ होते हैं ।

राज्य स्तर पर चुनाव आयुक्त की सहायतार्थ मुख्य चुनाव अधिकारी होते हैं जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार के परामर्श से मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा की जाती है । इनके नीचे जिला स्तर पर जिलाधिकारी जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कार्य देखता है । जिलाधिकारी संबद्ध जिले के प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है तथा प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए निर्वाचनाध्यक्ष की नियुक्ति भी करता है ।