Read this article in Hindi to learn about the twelve main elements of span of control. The elements are:- 1. कार्य (Work) 2. व्यकितत्व (Person) 3. स्थल या दूरी (Site or Distance) 4. समय या संगठन की अवधि (Time Span of Organisation) 5. प्रत्यायोजन की मात्रा (Quantity of Delegation) and a Few Others.

न्यूमैन एवं समर ने 7 तत्व बताये जबकि जियाउद्‌दीन खान ने निम्नलिखित 4 तत्व बताये जो नियंत्रण की संख्या का निर्धारण करते हैं:

1. कार्य (Work):

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यदि कार्य में समानता है और वह कम जटिल है तो नियंत्रण की सीमा अधिक रखी जा सकती है । इसी प्रकार बार-बार दोहराये जाने वाले कार्य या दैनिक प्रकृति के कार्यों के कारण भी नियन्त्रण क्षेत्र बढ़ जाता है । कार्य और पद्धतियों का मानकीकरण भी नियन्त्रण क्षेत्र को बढाता है ।

2. व्यकितत्व (Person):

इसमें नियंत्रणकर्ता और अधीनस्थ दोनों का व्यक्तित्व शामिल है । एक योग्य व्यक्तित्व अधिक अधीनस्थों को नियंत्रित कर सकता है । इसी प्रकार प्रतिभावान अधीनस्थों को अधिक संख्या में नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि उनके समक्ष समस्याएँ कम उत्पन्न होंगी ।

3. स्थल या दूरी (Site or Distance):

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यदि कार्य एक ही स्थान पर केन्द्रित हो तो अधिक लोगों पर निगरानी रखी जा सकती है । इसके विपरीत कार्य दूर-दूर तक फैला है तो नियंत्रणकर्ता का समय परिवहन में ही अधिक नष्ट हो जायेगा । वह दूरस्थ कुछ ही व्यक्तियों के कार्यों को नियंत्रित कर पायेगा ।

4. समय या संगठन की अवधि (Time Span of Organisation):

पुराने संगठन में परंपरायें जड़ ले चुकी होती हैं । कार्मिक कार्यों के अभ्यस्थ हो जाते है, अतः अधिक अधीनस्थों पर नियंत्रण किया जा सकता है । नये संगठनों में समस्यायें बार-बार खड़ी होती हैं अतः प्रशासक कम अधीनस्थों पर ही ध्यान दे सकता है ।

5. प्रत्यायोजन की मात्रा (Quantity of Delegation):

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सत्ता के अधिक प्रत्यायोजन का अर्थ है उच्चाधिकारी द्वारा अपने काम को कम कर लेना । इससे उसके पास नियंत्रण के लिये अधिक समय बचेगा और वह अधिक अधीनस्थों पर नियंत्रण रख पाएगा । स्पष्ट है कि प्रत्यायोजन की अधिक मात्रा नियंत्रण के क्षेत्र को बढ़ा सकती है लेकिन इसकी भी एक सीमा है ।

6. विकेन्द्रीकरण (Decentralization):

अधिक विकेन्द्रीत संगठन में उच्चाधिकारी के पास निर्णय लेने के कम अवसर होते हैं, अतएव उसके पास नियंत्रण, निरीक्षण का पर्याप्त समय रहता हैं । परिणामतः विकेन्द्रीकरण नियंत्रण विस्तार में वृद्धि करता है ।

7. पर्यवेक्षण की तकनीकें (Techniques for Supervision):

यदि पर्यवेक्षण के लिये आधुनिक तकनीकों जैसे- कम्प्यूटर, फेंकर, टेलीफोन आदि का इस्तेमाल हो तो नियंत्रण क्षेत्र विस्तृत होगा और यदि परंपरागत कागजी तकनीके प्रयुक्त हों तो वह सीमित होगा । फिर दौरे, स्थल निरीक्षण अधिक हों तो कम लेकिन मात्र प्रतिवेदन प्राप्त करके ही संतुष्ट हो सके तो अधिक अधीनस्थों पर नियंत्रण रखा जा सकता है ।

8. पदसोपान के स्तर (Level of Posting):

एक सुस्थापित तथ्य है कि संगठन में पदसोपान के अधिक स्तर नियंत्रण के क्षेत्र को छोटा करते हैं, जबकि कम स्तर नियंत्रण क्षेत्र को बड़ा कर देते हैं ।

9. संचार व्यवस्था (Communication System):

एक प्रभावी संचार व्यवस्था नियंत्रण क्षेत्र में वृद्धि कर देती है । क्योंकि इसके प्रयोग से उच्चधिकारी-अधीनस्थों के मध्य कम समय में अधिक जानकारियों, विचारों, कार्यों का आदान-प्रदान हो सकता है ।

10. स्पष्ट नियोजन (Clear Planning):

एक अच्छी और स्पष्ट योजना नियंत्रण क्षेत्र को विस्तृत कर देती है क्योंकि यह कार्मिकों के कार्यों, दायित्वों और संगठन के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से स्वयं ही प्रकट कर देती है । अतः प्रबंधकों को उन्हें बार-बार स्पष्ट करने के लिये समय खर्च नहीं करना पड़ता ।

11. स्टाफ सेवाओं की उपस्थिति (Presence of Staff Services):

प्रबंधकों की अपने निर्णयों कार्यों में यदि पर्याप्त स्टाफ सेवायें उपलब्ध हों तो उनका काफी काम कम हो जाता है, परिणामतः उनके नियंत्रण क्षेत्र में वृद्धि हो जाती है ।

12. संगठन का प्रकार (Type of Organization):

लंबे संगठनों में नियंत्रण का क्षेत्र छोटा पाया जाता है जबकि चपटे संगठनों में यह बड़ा पाया जाता है । इनके अपने फायदे-नुकसान हैं ।

प्रशासनिक समिति के प्रतिवेदन 1972 के अनुसार ”नियंत्रण विस्तार” निम्नलिखित अवस्थाओं में अधिक होगा:

1. उत्साहित, कुशल, बुद्धिमान प्रतिभावान उच्चाधिकारी होने पर,

2. प्रतिभावान, प्रशिक्षित और अनुभवी अधीनस्थ होने पर,

3. यदि कार्य की प्रकृति दैन्दीनी हो, बार-बार दोहरायी जाने वाली हो, मापन योग्य हो और एकरूप हो ।

4. जब कार्य योजनाबद्ध हो ।

5. यदि स्टाफ की सहायता का उपयोग हो ।

6. विभिन्न प्रभावशाली संचार साधनों का उपयोग हो ।

7. एक ही छत के नीचे सभी कार्मिक कार्य करते हों ।