Read this article in Hindi to learn about the provisions for civil services in India along with their criticisms.

अखिल भारतीय सेवाएँ केंद्र और राज्य दोनों से समान रूप से संबंद्ध हैं । यहाँ पर उल्लेखनीय है कि केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग सेवाएँ हैं जिन्हें क्रमशः केंद्रीय सेवा और राज्य सेवा कहते हैं । इस प्रकार अखिल भारतीय सेवाएँ-केंद्र और राज्य सेवाओं के अतिरिक्त हैं ।

वर्तमान में, अखिल भारतीय स्तर की निम्नलिखित तीन सेवाएँ है:

(i) भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस)

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(ii) भारतीय पुलिस सेवा (आई.पी.एस.)

(iii) भारतीय वन सेवा (आई.एफ.एस)

वर्ष 1947 में, इंडियन सिविल सर्विस की जगह आई.ए.एस. को तथा इंडियन पुलिस की जगह आई.पी.एस. को लाया गया तथा इन्हें संविधान के तहत अखिल भारतीय सेवा का दर्जा प्रदान किया गया ।

वर्ष 1963 में अखिल भारतीय स्तर की जिन तीन और सेवाओं का गठन हुआ वह हैं:

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1. भारतीय वन सेवा ।

2. भारतीय चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा ।

3. भारतीय इंजीनियर सेवा ।

इन तीन सेवाओं में से केवल भारतीय वन सेवा (आई.एफ.एस) वर्ष 1966 में अस्तित्व में आई । वर्तमान में अखिल भारतीय स्तर की केवल तीन सेवाएँ हैं: आई.ए.एस., आई.पी.एस और आई.एफ.एस । संविधान के अनुच्छेद 312 के द्वारा भारतीय संसद को यह प्राधिकार प्राप्त है कि राज्यसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर वह अखित भारतीय स्तर की नई सेवाओं का गठन कर सकती है । अतः अखिल भारतीय स्तर की नई सेवा का गठन संसदीय अधिनियम द्वारा ही किया जा सकता है न कि राज्यसभा के प्रस्ताव द्वारा ।

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किंतु राज्यसभा की अनुशंसा के बिना संसद ऐसा नहीं कर सकती । भारतीय संघीय प्रणाली में राज्यों के हितों की रक्षार्थ अखिल भारतीय स्तर की नई सेवा के गठन का अधिकार राज्यसभा को दिया गया है ।

अखिल भारतीय सेवा अधिनियम में केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों की भर्ती और सेवा-शर्तों को विनियमित करने के लिए राज्य सरकारों की सलाह से नियम बना सकती है ।

इन सेवाओं के सदस्यों की भर्ती और उन्हें प्रशिक्षित करने का कार्य केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है किंतु उनकी तैनाती विभिन्न राज्यों में की जाती है । इन सेवाओं के सदस्यों को विभिन्न राज्यों का संवर्ग आबंटित किया जाता है; इस संदर्भ में केंद्र स्तर का कोई संवर्ग नहीं है ।

इन सेवाओं के सदस्य केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्त होते हैं और कार्यकाल की समाप्ति पर वापिस संबद्ध राज्यों को चले जाते हैं । केंद्र सरकार इन अधिकारियों की सेवाएँ ‘कार्यकाल प्रणाली’ के तहत प्राप्त करती है ।  यहाँ उल्लेखनीय है कि अलग-अलग राज्यों में विभक्त होने के बावजूद अखिल भारतीय स्तर की प्रत्येक सेवा को देशभर में एक समान सेवा माना जाता है तथा दर्जा और वेतनमान भी एक समान है । अखिल भारतीय स्तर की तीनों सेवाएँ: ग्रुप ‘ए’ अर्थात् क्लास-I श्रेणी की सेवाएँ है ।

अखिल भारतीय सेवाओं की निम्नलिखित तीन श्रेणियाँ हैं:

1. सुपर टाइम स्केल

2. सीनियर स्केल

3. जूनियर स्केल

शुरू में, अधिकारियों को जूनियर स्केल में नियुक्त किया जाता है, बाद में उन्हें सीनियर स्केल और सुपर टाइम स्केल में पदस्थ किया जाता है ।

अखिल भारतीय सेवाओं का प्रबंधन और नियंत्रण कार्य केंद्र सरकार के तीन अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा किया जाता है:

1. आई.ए.एस – कार्मिक मंत्रालय द्वारा

2. आई.पी.एस – गृह मंत्रालय द्वारा

3. आई.एफ.एस – पर्यावरण तथा वन मंत्रालय द्वारा ।

उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय सेवाओं पर केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त रूप से नियंत्रण है । प्राथमिक नियंत्रण कार्य केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है जबकि तात्कालिक नियंत्रण का अधिकार राज्य सरकारों को है । इन सेवाओं के सदस्यों के वेतन भत्तों और पेंशनों का भुगतान राज्यों द्वारा किया जाता है किंतु इन अधिनियमों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही (अर्थदंड) केवल केंद्र सरकार द्वारा की जा सकती है ।

केंद्रीय सेवा (Central Service):

केंद्रीय सेवा से संबद्ध कार्मिक केंद्र सरकार के विशेषाधिकार के तहत कार्य करते हैं । ये कार्मिक केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यपरक और तकनीकी पदों पर नियुक्त होते हैं । इनमें से अधिकांश कार्मिक संबद्ध मंत्रालयों/विभागों के प्रबंधन और नियंत्रण में तथा कुछ ‘कार्मिक मंत्रालय’ के प्रबंधन और नियंत्रण में होते हैं । कार्मिक मंत्रालय सभी केंद्रीय सेवाओं से संबद्ध सामान्य नीतियों का निर्धारण भी करता है । कार्मिक मंत्रालय, वस्तुतः, भारत सरकार की प्रमुख कार्मिक एजेंसी है ।

केंद्रीय सेवा में केंद्रीय लोक सेवा और सामान्य केंद्रीय सेवा शामिल है । केंद्रीय लोक सेवाएँ स्थापित सेवाएँ हैं जबकि सामान्य सेवा में केंद्रीय लोक सेवा के वे पद शामिल हैं जिनका सृजन स्थापित सेवाओं के बाहर हुआ है तथा केंद्रीय लोक सेवा में शामिल नहीं है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केंद्रीय सेवाएँ क्लास-I, क्लास-II, अधीनस्थ और निचले स्तर की सेवाओं के रूप में वर्गीकृत थीं । प्रथम वेतन आयोग (1946-1947) का अनुशंसा पर अधीनस्थ और निचले स्तर की सेवाओं का नाम बदलकर क्रमशः क्लास III और क्लास IV कर दिया गया ।

पुन: वर्ष 1974 में केंद्रीय सेवाओं के क्लास I, क्लास II, क्लास III और क्लास IV को क्रमशः ग्रुप ए, ग्रुप बी, ग्रुप सी और ग्रुप डी के रुप में वर्गीकृत किया गया । ऐसा तृतीय वेतन आयोग (1970-1973) की अनुशंसा पर किया गया ।

इस प्रकार, केंद्रीय सेवाएँ (स्थापित और सामान्य दोनों सेवाएँ) अब चार श्रेणियों में वर्गीकृत हैं, अर्थात:

1. केंद्रीय सेवा, ग्रुप ए

2. केंद्रीय सेवा, ग्रुप बी

3. केंद्रीय सेवा, ग्रुप सी

4. केंद्रीय सेवा, ग्रुप डी

वर्तमान में, केंद्रीय सेवा, ग्रुप ए श्रेणी की 34 सेवाएँ तथा केन्द्रीय सेवा ग्रुप बी श्रेणी की 25 सेवाएँ हैं ।

ग्रुप ए (क्लास I) श्रेणी की सेवाएँ इस प्रकार हैं:

1. पुरातत्व सेवा

2. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण

3. केंद्रीय इंजीनियरिंग सेवा

4. केंद्रीय इलैक्ट्रीकल इंजीनियरिंग सेवा

5. केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा

6. केंद्रीय सूचना सेवा

7. केंद्रीय विधि सेवा

8. भारतीय राजस्व (आयकर) सेवा

9. केंद्रीय सचिवालय सेवा

10. केंद्रीय जल इंजीनियरिंग सेवा

11. सामान्य केंद्रीय सेवा

12. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण

13. भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा

14. भारतीय प्रतिरक्षा लेखा सेवा

15. भारतीय आर्थिक सेवा

16. भारतीय विदेश सेवा

17. भारतीय विदेश सेवा-शाखा ‘बी’

18. भारतीय निरीक्षण सेवा

19. भारतीय मौसम विज्ञान सेवा

20. भारतीय डाक सेवा

21. भारतीय डाक तार प्रशुल्क सेवा

22. भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क व उत्पादन शुल्क)

23. भारतीय नमक सेवा

24. भारतीय सांख्यिकी सेवा

25. भारतीय आपूर्ति सेवा

26. खदान विभाग

27. व्यापारी जहाज प्रशिक्षण सेवा

28. विदेश संचार सेवा

29. रेलवे निरीक्षण सेवा

30. रेलवे कार्मिक सेवा

31. भारतीय सर्वेक्षण

32. तार इंजीनियरिंग सेवा

33. तार प्रशुल्क सेवा

34. भारतीय प्राणी सर्वेक्षण

केंद्रीय सेवा ग्रुप ए श्रेणी की उपर्युक्त सेवाओं/संवर्गों में ग्रुप बी श्रेणी की सेवाएँ भी शामिल हैं । केंद्रीय सेवाओं में से ग्रुप सी श्रेणी के तहत लिपिकीय कार्मिक तथा ग्रुप डी के तहत श्रमिक वर्ग के कार्मिक (मैनुअल पर्सनल) आते हैं । इस प्रकार, ग्रुप ए और ग्रुप बी श्रेणी के तहत राजपत्रित अधिकारी और ग्रुप सी तथा ग्रुप डी के तहत अराजपत्रित श्रेणी के कार्मिक आते हैं ।

यहाँ उल्लेखनीय है कि प्रतिष्ठा, दर्जा, वेतन और भत्तों तथा परिलब्धियों की दृष्टि से भारतीय विदेश सेवा (इंडियन फॉरेन सर्विस) का केंद्रीय सेवा में सर्वोपरि स्थान है । वस्तुतः यह सेवा केंद्रीय सेवा होने के बावजूद प्रतिष्ठा, दर्जा तथा वेतनमान की दृष्टि से अखिल भारतीय सेवाओं से होड़ लेती है ।

भारतीय विदेश सेवा का रैंक की दृष्टि से भारतीय प्रशासनिक सेवा के बाद दूसरा स्थान हे और इस सेवा का वेतनमान भारतीय पुलिस सेवा के वेतनमान से अधिक है । भारतीय विदेश सेवा विदेश मंत्रालय के नियंत्रण में है । इस सेवा के तहत भर्ती अधिकारी/कर्मचारी विदेश स्थित भारतीय मिशनों/दूतावासों में भी कार्य पर लगाए जाते हैं ।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provision):

भारत के संविधान में अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं में भर्ती और सेवा से संबंधित शर्तों के संदर्भ में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

1. संविधान के अनुच्छेद 309 के द्वारा संसद को केंद्रीय सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा-शर्तों को विनियमित करने का अधिकार दिया गया है ।

2. अनुच्छेद 310 में यह प्रावधान है कि अखिल भारतीय सेवा और केंद्रीय सेवा के सदस्य राष्ट्रपति की अनुमति से ही पद पर बने रह सकते हैं ।

3. अनुच्छेद 311 में यह प्रावधान है कि अखिल भारतीय सेवा और केंद्रीय सेवाओं और पदों पर नियुक्ति किसी व्यक्ति को उस प्राधिकारी के नीचे के स्तर के प्राधिकारी द्वारा बर्खास्त या पदच्युत नहीं किया जा सकेगा जिस स्तर के प्राधिकारी ने उस व्यक्ति को नियुक्त किया हो ।

इस अनुच्छेद में यह भी प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को, उस पर लगाए गए आरोपों की सूचना देने के बाद जाँच किए बिना और उसे अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बिना उसके पद से न तो बर्खास्त किया जा सकता है न ही पदच्युत और न ही उसके रैंक में कमी लाई जा सकेगी ।

4. अनुच्छेद 312 में संसद को नई अखिल भारतीय सेवा के गठन (अखिल भारतीय न्यायिक सेवा सहित) और उन सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों को विनियमित करने का प्राधिकार है । तथापि, ऐसी सेवाओं का गठन संसद द्वारा तभी किया जा सकेगा जब राज्यसभा ऐसा करना जरूरी मानते हुए सदन में दो-तिहाई बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दें ।

इस अनुच्छेद में यह भी उल्लेख है कि संविधान लागू होने के समय जिन सेवाओं को भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा माना जाता था उन्हें भी इस अनुच्छेद के तहत संसद द्वारा गठित सेवा माना जाएगा । इसके अतिरिक्त अखिल भारतीय न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीश से नीचे के स्तर का कोई पद शामिल नहीं होता है ।

5. अनुच्छेद 323-ए में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह केंद्रीय सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित विवादों और शिकायतों के न्यायिक समाधान के लिए प्रशासनिक अधिकरण गठित कर सकती है ।

6. अनुच्छेद 335 में यह उल्लेख है कि केंद्रीय सेवाओं और पदों पर नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावों को भी ध्यान में रखा जाएगा ।

अखिल भारतीय सेवाओं का औचित्य (Rationale of All India Services):

अखिल भारतीय सेवाओं के समर्थन में दिए गए तर्क इस प्रकार हैं:

i. राष्ट्रीय एकता:

ये सेवाएं राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देतीं हैं क्योंकि इन सेवाओं के सदस्य अखिल भारतीय स्तर का दृष्टिकोण रखते है । इन सेवाओं के सदस्य अपने मूल राज्य से बाहर पदस्थ रहने के कारण क्षेत्रीयता, भाषायी और सांप्रदायिक हितों के परे कार्य भी कर सकते ।

ii. दक्षता:

इन सेवाओं के सदस्य केंद्र और राज्य दोनों में प्रशासनिक कार्यकुशलता के अर्थों में प्रशासन के उच्चतर को बनाए रखने में सहायक होते हैं । ब्रिटिश शासन काल में इन्हें ‘प्रशासनिक ढाँचे का फौलादी चौखटा’ कहा जाता था ।

iii. एकरूपता:

ये पूरे देश की प्रशासनिक प्रणाली में एकरूपता बनाए रखने में सहायक होते हैं । इन सेवाओं के सदस्यों को बारी-बारी से केंद्र और राज्य दोनों में तैनात किया जाता है ।

iv. सहकारी संघवाद:

इन सेवाओं के सदस्य जनहित से जुड़ी आम समस्याओं और मामलों पर केंद्र और राज्यों के बीच संपर्क सहयोग समन्वयन और संयुक्त कार्यवाही को सुगम बनाते हैं ।

v. प्रतिभा का भंडार:

ये सेवा देश की उत्कृष्ट्र प्रतिभा को आकर्षित करती हैं क्योंकि इसमें भर्ती का क्षेत्र व्यापक है और पारिश्रमिक हैसियत तथा प्रतिष्ठा ऊँची है ।

vi. राष्ट्रपति शासन:

राज्य में राष्ट्रपति शासन होने पर राष्ट्रपति प्रशासन को कुशलतापूर्वक चलाए रखने के लिए राष्ट्रपति इन अधिकारियों की निष्ठा और सहयोग पर भरोसा कर सकता है । ऐसा इसलिए है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी राष्ट्रपति द्वारा ही नियुक्त और पदच्युत किए जा सकते हैं ।

vii. स्वतंत्रता:

इन सेवाओं के सदस्य उच्च स्तर पर लोक सेवा की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रोत्साहन देते हैं । संवैधानिक सुरक्षा मिली होने के कारण ये क्षेत्रीय तथा स्थानीय दबाव और प्रभाव से मुक्त हैं । इसलिए ये राज्य स्तर के मंत्रियों को स्वतंत्र और बेलाग सलाह दे सकते है ।

viii. बेहतर अनुभव:

अखिल भारतीय सेवा के सदस्य विभिन्न राज्यों के बीच प्रचुर अनुभव के आदान-प्रदान को सुगम बनाते हैं । यहाँ उल्लेखनीय है कि इन सेवाओं के सदस्य केवल केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन ही कार्य नहीं करते बल्कि इनकी तैनाती केंद्र शासित राज्यों और स्थानीय सरकारों के अधीन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी होती है । इस प्रकार इनके समृद्ध अनुभव का लाभ पूरा देश उठा सकता है ।

ix. राज्यों के लिए लाभप्रद:

इन सेवाओं में भर्ती राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभा के बीच से है, अतः इसका लाभ राज्यों को मिलता है । इसलिए जिन राज्यों में उच्च और महत्त्वपूर्ण पदों को भरने के लिए जनबल का अभाव है, उनको इन सेवाओं से निश्चित रूप से लाभ होगा ।

x. निरंतरता:

इन सेवाओं के सदस्य ब्रिटिश शासन के दौरान विकसित पुरानी प्रशासनिक व्यवस्था को कायम रखे हैं । ब्रिटिश शासन के दौरान इन सेवाओं के सदस्य प्रशासनिक पदानुक्रम का उच्चतम स्तर गठन करते थे । अखिल भारतीय स्तर की एकमात्र बहुउद्‌देश्य सेवा-भाई, ए.एस है जिसने पूर्ववर्ती आई.सी.एस का स्थान लिया है जिसे ‘स्वर्गजनित सेवा’ कहा जाता था ।

अखिल भारतीय सेवा के बारे में कुछ विशेषज्ञों और आयोगों के मत और विचार ये हैं:

डॉ. अंबेडकर – ”संघीय प्रणाली के सभी देशों में संघीय लोक सर्विस और राज्य लोक सेवा है । भारतीय संघ में जहाँ द्वैत शासन प्रणाली होगी (दोहरी सेवा की प्रणाली) वह अपवाद स्वरूप ही होगी । यह स्वीकार किया जाता है कि प्रत्येक देश के प्रशासनिक ढांचे में कुछ पद ऐसे होते हैं जिन्हें प्रशासन का स्तर बनाए रखने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है । प्रशासन का स्तर इन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त लोक सेवकों की योग्यता पर निर्भर करता है । संविधान में यह प्रावधान है कि राज्यों को अपनी लोक सेवाओं के गठन के अधिकार से वंचित किए बगैर अखिल भारतीय सेवा (संवर्ग) का गठन भी होगा जिसका वेतनमान एकसमान होगा और जिसके सदस्यों को पूरे देश में महत्त्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाएगा ।”

सरदार पटेल – ”मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मैंने इस कठिन समय में उनके साथ कार्य किया है । मैं पूरी जिम्मेदारी की भावना से कह रहा हूँ कि राष्ट्रभक्ति, निष्ठा, ईमानदारी और योग्यता की दृष्टि से उनका (अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों का) स्थान कोई नहीं ले सकता है । मैं इस सदन की कार्यवाही में यह तथ्य शामिल कराना चाहता हूँ कि यदि इस सेवा के सदस्यों ने विगत दो या तीन वर्षों में देशभक्ति और निष्ठा की भावना से कार्य न किया होता तो देश विखंडित हो जाता ।” पटेल को ‘अखिल भारतीय सेवाओं का जनक’ ठीक ही माना गया है ।

राज्य पुनर्गठन आयोग (1955):

”अखिल भारतीय सेवा के गठन का कारण व्यक्तिगत तौर पर या सामूहिक तौर पर वे अधिकारी हैं जिस पर प्रशासन की जिम्मेदारी का भार होगा तथा जो अखिल भारतीय और व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकेंगे ।” यहाँ उल्लेखनीय है कि इस आयोग ने अखिल भारतीय स्तर की तीन और सेवाओं-भारतीय वन सेवा भारतीय इंजीनियरिंग सेवा और भारतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा के गठन की सिफारिश की थी ।

प्राक्कलन समिति (1966):

”अखिल भारतीय स्तर की इन सेवाओं का गठन कल्याणकारी राज्य की विविध एवं बढ़ती जिम्मेदारियों को पूरा करने की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । इन सेवाओं की संरचना भारत की एकता की सूचक है और एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण तथा प्रशासन के कमोवेश एक समान मानदंडों को बढ़ावा देती है । यह ये भी सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक राज्य के प्रशासन को बाहर के अधिकारियों का लाभ मिलता है जिनकी दृष्टि और दृष्टिकोण किसी संकीर्ण सीमा से बँधा नहीं । कारण यह है कि इन अधिकारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण केवल राज्य सरकारों के अधीन नहीं है । अतः ये अधिकारी अपने उत्तरदायित्वों को अनावश्यक स्थानीय प्रभाव के तनाव और दवाब में आए बगैर पूरा कर सकते हैं ।”

प्रशासनिक सुधार आयोग से संबद्ध अध्ययन दल (1967):

”हमारा मत है कि अखिल भारतीय सेवा का गठन निश्चित तौर पर पूरे देश के हित में है । इस सेवा के सदस्य मजबूती प्रदान करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तथा इन पर राजनीतिक अथवा स्थानीय दवाब समूहों के प्रभाव की गुजांइश कम है जो इन सदस्यों के लिए अपने आप में महत्वपूर्ण है । इसके अतिरिक्त, हमारा यह मानना भी है कि ये राष्ट्रीय प्रतिभा से युक्त पूल है जिन्हें, प्रशिक्षित और विकसित करने का कार्य समान आधार पर किया गया होता है ।

प्रशासनिक सुधार आयोग (1969):

”अखिल भारतीय सेवा का गठन शुरू में जिस उद्देश्य से किया गया था उसकी पूर्ति के साथ-साथ आज भी इस सेवा की स्थिति इतनी अच्छी है कि भविष्य के लिए भी आई.ए.एस. जैसी सेवा संरचना को बनाए रखने की आवश्यकता महसूस की जाती है ।”

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस आयोग ने शिक्षा स्वास्थ्य न्यायपालिका जल और अन्य क्षेत्रों के लिए भी एक नई अखिल भारतीय सेवा के गठन की सिफारिश की थी ।

सरकारिया आयोग (1983-87):

”आज अखिल भारतीय सेवा को उतना ही आवश्यक माना जा रहा है जितना इसे संविधान तैयार करते समय माना जा रहा था क्योंकि देश की एकता को कायम रखने की दृष्टि से इसे मुख्य संस्थान का दर्जा आज भी प्राप्त है । निस्संदेह, अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों ने अपनी उन भूमिकाओं को निभाने के प्रति अपनी क्षमता दिखा दी है जिनकी अपेक्षा संविधान निर्माताओं ने उनसे की थी । अखिल भारतीय सेवा को समाप्त करने अथवा राज्य सरकारों को इस सेवा में दखल देने की अनुमति देने संबंधी किसी कदम को देश के व्यापक हित में नुकसानदेह और प्रतिगामी कदम माना जाएगा ।”

अखिल भारतीय सेवाओं की आलोचना (Criticism of All India Services):

अखिल भारतीय सेवाओं की निम्नलिखित आलोचनाएँ की गई हैं:

i. अतीत को कायम रखना:

इन सेवाओं का गठन भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान हुआ था । उस समय एकात्मक सरकार थी और इसकी प्रकृति एकाधीनतावादी थी । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार की संरचना और देश की सोच में व्यापक बदलाव आया है । इस बदले हुए परिदृश्य में अखिल भारतीय सेवा का कोई स्थान नहीं है ।

ii. संघीय राज्य के विरुद्ध:

ये सेवाएँ उन प्रावधानों के विरुद्ध हैं जो संघीय प्रणाली की सरकार के बारे में हैं । इनसे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हुई है । वर्ष 1950 से ही ये सेवाऐं केंद्र और राज्यों के मध्य विवाद का प्रमुख कारण रही हैं । संविधान में अखिल भारतीय स्तर की और सेवाओं के गठन का प्रावधान होने के बावजूद राज्यों ने इनका समर्थन नहीं किया है ।

वास्तविकता यह है कि तमिलनाडु सरकार द्वारा वर्ष 1969 में गठित राजामन्नार समिति ने अपनी रिपोर्ट (1971) में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा को समाप्त करने की सिफारिश की थी ।

iii. मंत्रियों के उत्तरदायित्वों का अतिक्रमण:

अखिल भारतीय सेवाओं के कारण राज्य स्तर पर मंत्रियों के उत्तरदायित्वों का अतिक्रमण होता है । इन मंत्रियों को उन लोक सेवकों की (सचिवों की) सहायता और परामर्श से कार्य करना पड़ता है जिनकी नियुक्ति और जिनका प्रशिक्षण केंद्र द्वारा होता है । इस प्रकार लोक सेवकों का मंत्रियों पर सीधा नियंत्रण होता है ।

iv. असमान प्रतिनिधित्व:

इन सेवाओं में अखिल भारतीय संघ के राज्यों का प्रतिनिधित्व एक समान नहीं है । पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश का प्रतिनिधित्व अन्य राज्यों से अधिक है । इस प्रकार इन सेवाओं में क्षेत्रीय निष्ठाओं के कारण राष्ट्रीय चरित्र का अभाव है ।

v. वित्तीय भार:

इन सेवाओं के सदस्यों के वेतनमान अधिक होने के कारण राज्य सरकारों पर भारी वित्तीय भार होता है । ऐसा देश भर से अच्छी प्रतिभाओं को आकृष्ट करने और उनकी कार्यकुशलता को बनाए रखने के लिए करना होता है ।

vi. राज्य सेवाओं का हतीत्साहन:

अखिल भारतीय सेवाओं की सेवा शर्तें और वेतन तथा पदोन्नति के अवसर राज्य स्तर की सेवाओं से बेहतर हैं । इसके अतिरिक्त राज्य सेवाओं के अधिकारियों को अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के अधीन कार्य करना पड़ता है जिससे राज्य सेवाओं के अधिकारी हतोत्साहित होते हैं ।

vii. अज्ञानता:

अखिल भारतीय सेवा के सदस्य उस राज्य के बाहर से होते हैं जहाँ उनकी नियुक्ति होती हैं । इस कारण उन्हें राज्य की स्थानीय भाषा संस्कृति और परिवेश का ज्ञान नहीं होता है । ये अधिकारी उस राज्य की जनता की समस्याओं को ठीक-ठीक नहीं समझ सकते ।

viii. धरती पुत्र सिद्धांत को प्रोत्साहन:

नई अखिल भारतीय सेवाओं के गठन और उनकी निरंतरता के कारण राज्य सेवाओं का प्रभावी प्रसार नहीं हो सका है । इस कारण स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में भी कमी आई है । इन लोगों को ‘धरतीपुत्र’ भी कहा जाता है । ‘धरती पुत्र’ का यह सिद्धांत देश में बढ़ते क्षेत्रवाद का परिणाम है ।

ix. विशेषज्ञता का अभाव:

अखिल भारतीय सेवाओं के तहत मुख्यतः आई.ए.एस के कारण विशेषज्ञता को बढ़ावा नहीं दिया जा सका है जोकि आधुनिक युग में आवश्यक है । कहावत है कि ‘आई.ए.एस के अधिकारी’ हरफन मौला हैं जिन्हें महारथ किसी क्षेत्र में हासिल नहीं होती है । प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-1970) ने भी इस तथ्य को माना था और सिफारिश की थी कि व्यावसायिक क्षेत्र (Functional Field) को आई.ए.एस के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए ।

x. सरकारिया आयोग के सिफ़ारिशें:

प्रशासन में परिवर्तन और राष्ट्रीय एकता से जुड़ी चुनौतियों के साथ-साथ राजनीतिक प्रशासनिक मामलों के संदर्भ में अखिल भारतीय सेवाओं से जुड़ी संस्थाओं का अध्ययन अंतिम बार सरकारिया आयोग द्वारा किया गया था ।

केंद्र और राज्य के बीच संबंधों के अध्ययन के लिए न्यायमूर्ति रंजीत सिंह सरकारिया की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन वर्ष 1983 में हुआ था । इस आयोग के कार्यकाल को पाँच बार बढ़ाया गया था और अंततः इसने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1987 में दी थी ।

इस आयोग ने अखिल भारतीय सेवाओं की भूमिका के संबंध में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न मुद्दों की विस्तृत जाँच की थी । इस आयोग ने भी प्रशासनिक सुधार आयोग की ही तरह अखिल भारतीय सेवाओं का स्पष्ट समर्थन किया और इस सेवा को राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण माध्यम माना था तथा इसकी व्यापक भूमिका को बनाए रखने का महत्वपूर्ण माध्यम माना था इसकी व्यापक भूमिका को बनाए रखने का समर्थन किया था ।

इस आयोग ने इस संदर्भ में निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:

1. आयोग ने तीन नई अखिल भारतीय सेवाओं के गठन की सिफारिश की थी जो इस प्रकार हैं- भारतीय इंजीनियरिंग सेवा, भारतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा और अखिल भारतीय शिक्षा सेवा ।

2. उद्योग, सहकारिता, कृषि आदि क्षेत्रों से संबंधित अखिल भारतीय सेवा के गठन के संबंध में आयोग ने सिफारिश की थी कि पहले केंद्र और राज्यों के अधिकारियों का एक पूल गठित किया जाए और इन क्षेत्रों से संबंधित नई अखिल भारतीय सेवा का गठन किया जाए ।

3. अखिल भारतीय सेवा के प्रबंधन से जुड़े मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के मध्य नियमित परामंर्श के उद्देश्य से केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में सलाहकार परिषद गठित की जानी चाहिए ।

4. राज्य सरकारें यदि अपनी शक्ति का प्रयोग अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों के स्थानांतरण पदोन्नति तैनाती और निलंबन के लिए करें तो केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को प्रताड़ित किया जाना चाहिए ताकि राज्य ‘अनुशासन’ में रहकर कार्य करें ।

5. अखिल भारतीय सेवा के प्रत्येक सदस्य को कुछ समय के लिए केंद्र सरकार के अधीन भी तैनात किया जाना चाहिए । इस उद्देश्य से सीधी भर्ती द्वारा नियुक्त और पदोन्नति अधिकारियों को केंद्र में प्रतिनियुक्त किए जाने की अवधि का अलग-अलग निर्धारण किया जाना चाहिए ।

6. अखिल भारतीय सेवा और सदस्यों के चयन प्रशिक्षण तैनाती पदोन्नति से जुड़ी नीतियों में सुधार लाकर इस सेवा को और सुदृढ़ता प्रदान की जानी चाहिए ।

7. लोक प्रशासन के एक या एक से अधिक क्षेत्र में विशेषज्ञता की धारणा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए न कि सामान्यतावाद पर ही कायम रहना चाहिए ।