Read this article in Hindi to learn about:- 1. पदोन्नति के परिभाषाएं (Definitions of Promotion) 2. पदोन्नति के प्रकार (Types of Promotion) 3. विशेषताएं (Features) and Other Details.

पदोन्नति के परिभाषाएं (Definitions of Promotion):

फिफनर- ”निम्न पद से उच्च पद की और जिसमें कर्त्तव्यों में भी परिवर्तन आ जाता है ।”

एल.डी. व्हाइट- ”पदोन्नति से अर्थ है वर्तमान पद से अधिक उत्तरदायित्व और कठिनाई वाले पद पर नियुक्ति, जिसके साथ प्राय: पद नाम परिवर्तन और वेतन वृद्धि जुड़े होते हैं ।”

चार्ल्सवर्थ- ”निम्न उत्तरदायित्व से उच्च उत्तरदायित्व पर जाना पदोन्नति तथा उच्च से निम्न पद पर लौटना है ।”

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स्कॉट एवं स्प्रीगल के अनुसार- ”पदोन्नति किसी कर्मचारी का ऐसे कार्य पर स्थानांतरण है जो उसे पहले से अधिक धन अथवा अधिक ऊँचा स्तर प्रदान करता है ।”

पदोन्नति के प्रकार (Types of Promotion):

पदोन्नति सामान्यतया 3 प्रकार की होती है:

1. श्रेणी आधारित (Category Based):

निम्न से उच्च श्रेणी में पदोन्नति, जैसे कनिष्ट लिपिक की वरिष्ट लिपिक के पद पर या तृतीय श्रेणी से द्वितीय श्रेणी में ।

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2. वर्ग आधारित (Class Based):

निम्न से उच्च वर्ग में पदोन्नति जैसे क्लेरिकल से कार्यकारी वर्ग में ।

3. सेवा आधारित (Service Based):

अधीन स्तरीय सेवा से उच्च स्तरीय सेवा में जैसे राज्य लोक सेवा से आई.ए.एस. में ।

पदोन्नति की विशेषताएं (Features of Promotion):

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1. यह कार्मिक की उन्नति है, पद की नहीं ।

2. इसमें कार्मिक सदैव ही वर्तमान पद से उच्च पद पर पहुंचता है ।

3. यह मात्र वेतन वृद्धि नहीं है अपितु इसका पहला तत्व ऊंचे पद की प्राप्ति है और वेतनवृद्धि इसका परिणाम है ।

4. इसमें अनिवार्य रूप से वेतन वृद्धि जुड़ी नहीं होती, बल्कि सामान्यतया वेतन वृद्धि होती है । उदाहरण के लिये कार्मिक वर्तमान पद पर ही विभिन्न वार्षिक वेतन वृद्धि से इतने वेतनमान पर पहुंच जाता है जो पदोन्नति से प्राप्त पद के मूल वेतन से अधिक हो सकता है ।

5. पदोन्नति से प्राप्त पद अधिक श्रेष्ठ, सम्मानजनक और चुनौतिपूर्ण होता है ।

6. यह संगठन की आंतरिक प्रक्रिया है अर्थात संगठन में पहले से कार्यरत कार्मिकों में से ही पदोन्नति होती है ।

7. पदोन्नति में जरूरी नहीं कि स्थानांतरण अन्यत्र किया ही जाए । यद्यपि प्राय: एसा होता है ।

8. पदोन्नति का निर्णय स्वयं कार्मिक नहीं करता अपितु उच्चाधिकारी करते है लेकिन पदोन्नति लेने या अस्वीकार करने का अधिकार संबंधित कार्मिक का होता है । पदोन्नति अस्वीकार करने को “फार-गो” कहा जाता है ।

भारत में पदोन्नति (Promotion in India):

भारत में वरिष्ठता और योग्यता दोनों के सम्मिलित स्वरूप का उपयोग किया जाता है । प्रथम श्रेणी पदों पर पदोन्नति कम होती है, और सीधी भर्ती अधिक । भारत में पदोन्नति के लिए संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग परामर्श देते है, लेकिन अंतिम निर्णय विभागाध्यक्ष करते हैं । पदोन्नति के वित्तीय प्रभावों की जानकारी हेतु वित्त मंत्रालय से परामर्श लिया जाता है ।

प्रथम वेतन आयोग के अनुसार उच्च पदों पर पदोन्नति हेतु योग्यता को तथा निम्न पदों पर पदोन्नति हेतु वरिष्ठता को आधार बनाया जाना चाहिए:

1. अखिल भारतीय सेवा के 33 प्रतिशत पद राज्य सेवाओं के अधिकारियों द्वारा वरिष्ठता एवं योग्यता सिद्धान्त से भरे जाते हैं ।

2. प्रथम श्रेणी अर्थात् ग्रुप ‘क’ की सेवाओं में 45 प्रतिशत पद पदोन्नति से भरे जाते हैं ।

3. द्वितीय श्रेणी अर्थात् केन्द्र सरकार ग्रुप ‘ख’ के 65 प्रतिशत से अधिक राजपत्रित पद पदोन्नति से भरे जाते हैं ।

4. द्वितीय श्रेणी ग्रुप ‘ख’ में तीन चौथाई से अधिक अराजपत्रित पद पदोन्नति से भरे जाते हैं ।

5. तृतीय श्रेणी या ग्रुप ‘ग’ के अधिकांश पदों पर बाहरी भर्ती होती है ।

6. चतुर्थ श्रेणी पद चूँकि निम्नतम है अत: पूर्णतया बाहरी भर्ती से भरा जाता है ।

7. विशेषज्ञ सेवाओं, यथा-शिक्षा, चिकित्सा, इंजीनियरिंग इत्यादि में अधिकांश उच्च पद पदोन्नति से भरे जाते हैं । राज्यों में तो इन सेवाओं के उच्च पदों पर बाहरी भर्ती लगभग नगण्य है । इस सेवाओं में प्राय: वरिष्ठता का सिद्धान्त अपनाया जाता है ।

8. भारतीय विदेश सेवा में मात्र 10 प्रतिशत ही पदोन्नति होती है । यही हाल रेलवे का है ।

विशेष तथ्य (Special Facts):

(i) भारत में वरिष्ठता का सिद्धांत सर्वप्रथम ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1669 में स्वीकार किया था । 1793 के चार्टर एक्ट ने इसे उचित घोषित किया ।

(ii) 1861 के आई.सी.एस. (इंडियन सिविल सर्विस) ने योग्यता सिद्धांत का भी अनुमोदन किया था ।

(iii) अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 में कहा गया कि राज्य सेवाओं से अखिल भारतीय सेवाओं में पदोन्नति 33½ प्रतिशत से अधिक नहीं दी जानी चाहिए । यह पदोन्नति संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य की अध्यक्षता में गठित राज्य चयन समिति की सिफारिश पर होती है ।

भारत में पदोन्नति की समस्याएं या बाधाएं (Promotion Problems or Obstacles in India):

पदसोपानात्मक बाधा (Postoperative Obstruction):

पदसोपान के जितने अधिक स्तर होने पदोन्नति के उतने अधिक अवसर मिलेंगे । लेकिन प्रत्येक स्तर पर पदों की संख्या कितनी है, इससे भी पदोन्नति प्रभावित होती है । यदि संख्या कम है तो पदोन्नति के अवसर भी उतने ही कम होंगे ।

2. योग्यता को कम और वरिष्ठता को अधिक महत्व ।

3. अनेक महत्वपूर्ण पदों को सीधी भर्ती से भरा जाता है अत: वहां पदोन्नति के अवसर कम हैं ।

4. कार्मिक-अतिशेष की स्थिति भी पदोन्नति के अवसर कम कर देती है ।

5. सर्विस-विस्तार अर्थात सेवानिवृत्ति की आयु पर भी कार्यकाल में वृद्धि होने से पदोन्नति अवरूद्ध होती है ।

6. वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन को समय पर नहीं भरा जाना या उसमें पक्षपात आदि भी पदोन्नति की समस्या है ।

7. पदोन्नति की संपूर्ण, नियमित प्रणाली का अभाव है ।

8. पदोन्नति मंडल की बैठकें समय पर नहीं होती है ।

पदोन्नति की अनुमान समिति के सुझाव (Recommendation of Committee for Promotion):

पदोन्नति की नीति हेतु अनुमान समिति (प्रथम लोकसभा) ने निम्नलिखित सुझाव दिये थे:

1. पदोन्नति का आधार योग्यता हो, न कि सेवारत व्यक्तियों की वरिष्ठता ।

2. कर्मचारियों की पदोन्नति के संबंध में निर्णय का अधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को होना चाहिए जिन्होंने कुछ समय तक उनके कार्य और आचरण की जांच की हो ।

3. कम से कम एक तीन सदस्यीय कमेटी की अनुशंसा के आधार पर ही, जिसका एक सदस्य उस व्यक्ति के कार्य से सुपरिचित हो, पदोन्नति की जानी चाहिए और प्रत्येक ऐसे मामले में, जहां किसी वरिष्ठ अधिकारी के हित की अपेक्षा की गई हो समिति को लिखित रूप में वरिष्ठता की अपेक्षा करने के कारणों के स्पष्ट करना चाहिए ।

4. किसी कर्मचारी को पदोन्नत किए जाते समय उसके गोपनीय प्रतिवेदन की जांच की जानी चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि उसे गलतियों के संबंध में कितनी बार चेतावनी दी गयी और इन चेतावनियों के परिणामस्वरूप उसके आचरण में कोई सुधार नहीं हुआ तो क्या उसे पुन: चेतावनी दी गई ।

5. यदि किसी कर्मचारी को यह चेतावनी नहीं दी गयी है तो इसका यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि उसके संबंध में दिए गए प्रतिवेदन इतने अच्छे है कि उसे पदोन्नत कर देना चाहिए ।