Read this article in Hindi to learn about:- 1. लोक सेवा की सामान्य विशेषताएं (General Characteristics of Civil Service) 2. लोक सेवा के कार्य (Functions of the Civil Service) 3. भूमिका (Role) 4. वर्तमान स्थिति (Current Status).

लोक सेवा की सामान्य विशेषताएं (General Characteristics of Civil Service):

1. स्थायी कार्यकाल ओर जीवन वृत्ति (Permanent Term and Life Instinct):

लोक सेवा के सदस्य एक निश्चित आयु या सेवावधि के लिए इसके सदस्य बनते है अर्थात् लोक सेवा एक जीवन वृत्ति (Career) के रूप में स्थापित हो चुकी है । सरकारे बदलती है, लेकिन लोक सेवा निरन्तर बनी रहती है ।

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2. पदसोपानिक सांगठनिक ढांचा (Promotional Organizational Structure):

ऊपर से नीचे तक लोक सेवाएं उच्च अधीनस्थ पदों के पिरामीडाकार संगठन में व्यवस्थित रहती है ।

3. निश्चित वेतन, पेंशन, सेवानिवृत्ति (Fixed Salary, Pension, Retirement):

जीवन वृत्ति की संरचना के रूप में लोक सेवकों को मासिक निश्चित वेतन अपने पदानुसार मिलता है । प्रत्येक को निश्चित समय पश्चात् सेवा से निवृति दी जाती है, पेंशन आदि लाभ के साथ ।

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4. व्यावसायिक, प्रशिक्षित और कुशल सेवा (Professional, Trained & Efficient Service):

आधुनिक लोक सेवा अपनी कार्यप्रणाली में व्यावसायिक और पेशेवर होती है । अपने पद का कर्त्तव्य उसका एक मात्र पेशा होता है, जिसके लिए उसे प्रशिक्षण दिया जाता है ।

5. राजनीतिक निर्देशन (Political Direction):

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लोक सेवा राजनीतिक कार्यपालिका के निर्देशों का पालन करती है और उसकी नीतियों को क्रियान्वित करती है ।

6. राजनीतिक तटस्थता और अनामता (Political Neutrality and Anonymity):

लोक सेवा के कार्यों के पिछे उसका नाम नहीं होता । वे पृष्ठभूमि में रहकर राजनीतिज्ञों को सलाह देते हैं । वे राजनीतिक विचारधारा के प्रति तटस्थ रहते है और उनकी प्रतिबद्धता नीतियों और संविधान के प्रति रहती है ।

7. नियन्त्रणाधीन (Under Control):

लोक सेवा कार्यपालिका और उसके माध्यम से व्यवस्थापिका के नियन्त्रण में रहती है । उसके कार्यों की समीक्षा न्यायालय भी करते है अत: वह न्यायिक नियन्त्रण में भी रहती हैं ।

8. जन उत्तरदायित्व (Public Liability):

”लोक सेवक” शब्द से ही स्पष्ट है कि यह जनता रूपी स्वामी के सेवक होते है । सैद्धांतिक रूप से यही माना जाता है कि लोक सेवा जन इच्छा के नियन्त्रणाधीन है, उसके प्रति उत्तरदायी है । उपर्युक्त विशेषताएं आधुनिक लोक सेवा को ऐसी वृत्तिक लोक सेवा के रूप में स्थापित करती है जो योग्य, प्रशिक्षित, कार्यकुशल है और विभिन्न लोकतान्त्रिक संस्थाओं के प्रति उत्तरदायी रहते जनहित के कार्य में संलग्न हैं ।

वृत्ति लोक सेवा की विशेषताएं (Characteristics of Institute Civil Service):

1. कार्यकाल का स्थायित्व ।

2. योग्यता आधारित भर्ती ।

3. निश्चित मासिक वेतन ।

4. सेवा निवृत्ति और पदोन्नति के लाभ ।

5. पेंशन की व्यवस्था ।

6. नौकरी की सुरक्षा ।

लोक सेवा के कार्य (Functions of the Civil Service):

वर्तमान राज्यों का दृष्टिकोण राजनीतिक तटस्थता की पुरानी नीति को त्यागकर सामाजिक-आर्थिक कल्याण की मुख्य नीति पर आ टिका हैं । इस एक मुद्‌दे ने सम्पूर्ण राज्य की अवधारणा को ही बदलकर रख डाला है अब वह जनहित में अधिकाधिक ”हस्तक्षेप” की भूमिका को स्वीकारने लगा हैं । नतीजतन उसके कार्यों, उत्तरदायित्वों में भारी वृद्धि हुई हैं ।

इनके कुशलता पूर्वक संचालन के यंत्र के रूप ”लोक सेवा” का स्वाभाविक विकास, परिष्करण और संवर्धन हुआ और हो रहा हैं । ”लोक सेवा” ही है, जो जनता के लिए इस जटिल युग में आशा का केन्द्र बिन्दु बनी हुई हैं, उसकी अनन्य समस्याओं के समाधान, कारक यन्त्र के रूप में तथा उसको सुरक्षित वातावरण में फलने-फूलने में मदद करने के रूप में । ”इंग्लिश गर्वनमेन्ट और पालिटिक्स” (1947) में ”ऑग” ठीक ही लिखते हैं कि सरकार के मंत्रीगणों या उच्च पदाधिकारियों से यह आशा कभी नहीं की जाती कि वे कर एकत्र कर कारखानों का निरीक्षण करें, जनगणना करें….. डाक और समाचार संचार तो बहुत दूर की बात की बात हैं, उनके लिए ।

ऐसे विविध कार्य तो उन अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा ही किए जाते हैं, जिन्हें स्थायी लोक सेवक कहा जाता हैं… । जनसाधारण रोज इनके माध्यम से सरकार के सम्पर्क में आता हैं, भले ही जनता इनके कम मूल्य आकती हो, परन्तु सरकार के उद्देश्यों के लिए यही फौज अनिवार्य हैं ।

लोक सेवा के बढ़ते महत्व ने यह आवश्यक कर दिया है कि इसमें विशिष्ट योग्यता वाले सक्षम और प्रतिभावान व्यक्ति ही सम्मिलित हो सके । इस हेतु लोक सेवा का व्यवसायीकरण पहली शर्त है । लोक सेवा की सेवा शर्तों को आकर्षक बनाकर, भर्ती प्रणाली में यथोचित गुणवत्ता का विकास कर तथा आधुनिक प्रशिक्षण तकनीकों को आत्मसात कर लोक सेवा को उससे अपेक्षित प्रदर्शन के योग्य बनाया जा सकता है ।

लोक सेवा के बढ़ते महत्व के पिछे जो कारण है, कमोबेश उन्हीं कारणों ने उसके कर्तव्यों दायित्वों में भी इजाफा किया है । दूसरे शब्दों में लोक सेवा के बहुविध कार्यों ने ही उसकी प्रतिष्ठा और महत्व वृद्धि की हैं ।

लोकसेवा के कार्य इस प्रकार हैं:

1. नीति क्रियान्वयन (Policy Implementation):

लोक सेवा का मुख्य कार्य नीतियों का क्रियान्वयन करना है । राजनीतिक कार्यपालिका नीतियों का निर्माण करती है, निर्णय लेती है और आदेश देती है । इन सब का निष्पक्षता और ईमानदारी से क्रियान्वयन लोक सेवकों का ही दायित्व होता है ।

2. नीति निर्माण में भूमिका (Role in Policy Formation):

सैद्धान्तिक रूप से लोक सेवा नीति क्रियान्वयन तक सीमित है, लेकिन व्यवहारिक रूप से वह नीति निर्माण भी करती है । मंत्रीयों को नीति-निर्माण में योग्य और अनुभवी प्रशासक परामर्श देते है, जो सामान्यतया यथा स्वरूप स्वीकार कर लिए जाते है । इसी प्रकार लोक सेवकों को अपने कार्यों को करने के लिए उपनीतियों, नियमों, उपनियमों का निर्माण सदैव करते रहना पड़ता हैं ।

3. कार्यक्रम आयोजना (Planning):

देश के संतुलित विकास हेतु नियोजन पद्धति अपनाई जाती है । लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के चलते भी देश को अनेक कार्यक्रम और योजनाएं निर्मित और क्रियान्वित करना होता है । अपने अनुभव, योग्यता और क्षेत्रीय व्यावहारिक ज्ञान के आधार पर योजना के तत्व को लोक सेवा भलीभांति जानती है अत: इनके निर्माण में उसकी ही मुख्य भूमिका होती है । उसका क्रियान्वयन तो लोक सेवकों के संगठनों द्वारा ही संभव हैं ।

4. उत्पादन में योगदान (Contribution in Production):

लोक सेवा का महत्वपूर्ण कार्य है सेवाओं का उत्पादन । वह दो प्रकार से उत्पादन करती है एक क्षेत्र या कार्यालयों में सेवाओं का उत्पादन तथा दूसरा सार्वजनिक उपक्रमों में वस्तुओं का उत्पादन ।

सड़के बिछाना, पुल निर्मित करना, कानून व्यवस्था बनाए रखना, डाक बांटना आदि सेवाएं उसका प्रमुख कार्य है । देश के सेवा क्षेत्र में लोक सेवाओं का एक संगठन के रूप में सबसे बड़ा योगदान होता हैं ।

5. विकास कार्य (Role in Development):

भारत जैसे देशों में लोक सेवा विकास अभिकरण का पर्याय है । वह नियामिकीय कार्यों के स्थान पर आज विकास कार्यों के लिए अत्यधिक समर्पित है । उसका उद्देश्य है देश में व्याप्त असमानताओं को खत्मकर समाज का सर्वांगीण दृष्टिकोण से विकास करना । इसलिए लोक सेवा में विकास अभिकरणों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है ।

6. आधुनिक चुनौतियाँ से निपटने का दायित्व (Responsibility to Meet Out the New Challenges):

समकालीन प्रशासन के सामने अनेक आधुनिक युगीन प्रवृत्तियाँ नित नई प्रस्तुत हो रही है । जैसे औद्योगिक क्रांति के दुष्प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण, शहरीकरण से उत्पन्न समस्याएं, जैसे- गन्दगी, रोग, अपराध तथा जनसंख्या विस्फोट और उससे उत्पन्न समस्याएं, जैसे भुखमरी, बेकारी की समस्या । इन सबसे निपटने की महत्वपूर्ण जवाबदारी लोक सेवाओं पर ही हैं । वह इस हेतु अनेक कार्य कर रही है, अपने को सक्षम बना रही है और निरन्तर इनके समाधान हेतु शोध/अनुसंधान में जुटी हैं ।

7. शोध और अन्वेषण (Research and Development):

लोक सेवा को अपने प्रशासन को निरन्तर सुधारात्मक स्वरूप देने के लिए, कृषि, औद्योगिक, विज्ञान सभी क्षेत्रों में विकसित प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए तथा जनता के साथ सम्पर्कों को बेहतर बनाने के लिए निरन्तर शोध, अन्वेषण में लगे रहना पड़ता है ।

8. अर्धन्यायिक कार्य (Quaisy-Judicial Work):

आधुनिक राज्यों के दायित्वों को शीघ्र और जनहित में सम्पादित करने के उद्देश्य से प्रशासन को न्यायिक शक्तियों से भी लैस किया गया है ।

9. प्रत्यायोजित विधि निर्माण (Delegated Legislation):

व्यवस्थापिका के पास समयाभाव, तकनीकी योग्यता की कमी और प्रशासनिक जरूरतों के कारण लोक सेवा को प्रत्यायोजित विधि की शक्तियां दी गयी है । लोक सेवाएं इसके अन्तर्गत अनेक उपविधियों का निर्माण करती है, विधि की व्याख्या करती है और उनमें आवश्यकतानुसार संशोधन करती है ।

10. जनसंपर्क (Public Relation):

लोक सेवा सरकार की जनसंपर्क एजेंसी या उसका माध्यम है । इसी के माध्यम से सरकार जनता की समस्याओं से अवगत होती है ।

लोक सेवा की भूमिका (Role of Civil Service):

उपर्युक्त चुनौतियों के सम्मुख लोक प्रशासन से अपेक्षा है कि वह क्रांतिकारी भूमिका निभाए अर्थात् विषमताओं, अवरोधकों आदि को जड़ से उखाड़ फेंके । इस हेतु उसे यथास्थितिवादी दृष्टिकोण को त्यागकर परिवर्तनवादी बनना होगा ।

संक्षेप में लोक प्रशासन की ऐसे समाजों में भूमिका इस प्रकार अपेक्षित है:

1. सर्वप्रथम लोक प्रशासन को सजग कार्यकर्ता मानव-हितैषी और कर्त्तव्यपरायण सक्रिय एजेन्ट की भूमिका में उतरना होगा ।

2. लोक प्रशासन जनता के जितना निकट पहुंचेगा, उतना ही जन समस्याओं से भावनात्मक रूप से जुड़कर उनका समाधान कर पाएगा ।

3. विकासशील देशों ने अपने तीव्र और संतुलित विकास के लिए आर्थिक नियोजन पद्धति को अपनाया है । लोक प्रशासन न सिर्फ योजना बनाने में मदद करता है अपितु उसके क्रियान्वयन का पूरा दारोमदार उस पर रहता है ।

4. लोक प्रशासन पर ही सामाजिक-शैक्षणिक गतिविधियों के इस प्रकार क्रियान्वयन और संचालन का दायित्व है कि इनमें व्याप्त जड़ता टूट सके, जनता जागरूक होकर विकास पथ पर अग्रसर हो सके ।

5. उसे क्षेत्रीय भावना त्यागकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनी कार्यप्रणाली और व्यवहार में अपनाना चाहिए, जिससे वह राष्ट्रीय एकीकरण का माध्यम बन सके ।

6. उसे अपने कार्यों में पारदर्शिता बरतना होगी और नियमानुसार सबसे साथ समान व्यवहार करना होगा । वह कार्यकुशलता का परिचय दे । निजी प्रशासन से इस बाबद सिखे, ग्रहण करें ।

7. पंचायती राज संस्थाओं के साथ मिलकर काम करें । उन्हें प्रशासनिक तौर-तरीके पूरी लगन के साथ बताए, ताकि वे स्थानीय विकास की सफल इकाईयां बन सके ।

8. वह नियामिकीय प्रशासन के साथ अब विकास प्रशासन का पर्याय बने । उसे अपने को विकास का अग्रदूत बनाना चाहिए ।

9. उसे अपने उद्देश्यों, दायित्वों में सामाजिक सरौकार रखना होगा तथा वंचितों, दलितों, कमजोरों को विशेष सहायता देना होगी अन्यथा असमानता की खाई सदैव के लिये कायम रह जाएगी ।

10. उसे राजनीति के स्थान पर संविधान, उसके आदर्शों तथा तन्त्र द्वारा निर्मित नीतियों के प्रति प्रतिबद्ध रहना होगा ।

लोक सेवा की वर्तमान स्थिति (Current Status of Civil Service):

1. बड़ा आकार ।

2. विशेषज्ञता का बड़ता महत्व ।

3. यथास्थितिवादी के स्थान पर परिवर्तनवादी ।

4. राजनैतिक तटस्थता की बदलती धारणा ।

5. विकास प्रशासन के कारण जनता के साथ सहभागिता ।

6. कार्यों में निरंतर वृद्धि ।