Read this article in Hindi to learn about:- 1. जापानी लोकसेवा का इतिहास (History of Japanese Civil Service) 2. जापानी लोकसेवा – केंद्रीय कार्मिक एजेंसी (Japanese Civil Service – Central Personnel Agency) 3. वर्गीकरण (Classification) 4. भर्ती (Recruitment) 5. प्रशिक्षण (Training) 6. पदोन्नति (Promotion) 7. वेतन और सेवा-शर्तें  (Salary and Terms of Service).

Contents:

  1. जापानी लोकसेवा का इतिहास (History of Japanese Civil Service)
  2. जापानी लोकसेवा – केंद्रीय कार्मिक एजेंसी (Japanese Civil Service – Central Personnel Agency)
  3. जापानी लोकसेवा का वर्गीकरण (Classification of Japanese Civil Service)
  4. जापानी लोकसेवा में भर्ती (Recruitment of Japanese Civil Service)
  5. जापानी लोकसेवा की प्रशिक्षण (Training for Japanese Civil Service)
  6. जापानी लोकसेवा में पदोन्नति (Promotion in Japanese Civil Service)
  7. जापानी लोकसेवा में वेतन और सेवा-शर्तें  (Japanese Civil Service – Salary and Terms of Service)


1. जापानी लोकसेवा का इतिहास (History of Japanese Civil Service):  

1868 की मेईजी क्रांति के बाद जापानी लोकसेवा में आमूल परिर्वतन हो गया । इसको जर्मन पद्धति (नौकरशाही का वेबेरियन मॉडल) के आधार पर संगठित किया गया, अत: आधुनिक अर्थों में जापानी लोकसेवा या नौकरशाही की उत्पत्ति का श्रेय मेइजी पुनर्स्थापना को जाता है ।

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मेईजी युग के प्रारंभिक वर्षों में लोकसेवकों की नियुक्ति संरक्षण के आधार पर होती थी । भर्ती में योग्यता सिद्धांत 1885 में अपनाया गया । भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा 1887 में ली गई थी । परंतु जापानी नौकरशाही को वैधानिकता अभी भी सम्राट से प्राप्त होती है, न कि जनता से ।

सरकारी तौर पर नौकरशाह को सम्राट का चुना हुआ नौकर समझा जाता था न कि जनता का । वह सम्राट के प्रति उत्तरदायी था, जनता के प्रति नहीं । वह शाही श्रेणीक्रम का अंग था और जनता को हेय दृष्टि से देखता था ।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात 1945-52 के दौरान आधिपत्यधारी अधिकारियों ने जापानी लोकसेवा में अमरीकी पद्धति के अनुसार सुधार किया । उन्होंने लोक सेवा को जनतांत्रिक, आधुनिक, तर्कसंगत और व्यावसायिक बनाया ।

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1946 में संयुक्त राज्य अमरीकी कार्मिक सलाहकार मिशन को जापान भेजा गया । इसका काम उस समय की लोकसेवा पद्धति का अध्ययन करना और उपचार के उपाय सुझाना था । इसकी सिफारिश के आधार पर 1947 में विधानसभा के द्वारा राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून बनाया गया ।

जापान में लोकसेवा को विनियमित करने वाला यह सबसे महत्त्वपूर्ण कानून है । इसका उद्देश्य जापानी लोकसेवा को अमरीकी के आधार लोकसेवा की पद्धति पर ढालना था । 1947 के मैक्आर्थर संविधान ने जापान की लोकसेवा की पूरी अवधारणा को बदल दिया ।

इस संबंध में संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ कीं:

1. सभी लोकसेवक समूचे समाज के सेवक हैं न कि उसके किसी समूह के (धारा 15) ।

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2. किसी सरकारी अधिकारी के गैर कानूनी कार्य से अगर किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचा है तो वह राज्य अथवा किसी सार्वजनिक सत्ता द्वारा प्रदत्त कानून के अनुसार दावा कर सकता है । (धारा 17) ।

अत: नए संविधान ने जापान में जनतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत लोकसेवा को प्रशासन का उपकरण बना दिया । जापानी लोकसेवा के एक प्रमुख रुझान के रूप में सार्वजनिक अधिकारियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होती रही है । 1940 से 1965 के बीच इनकी संख्या सात गुनी बढ़ गई । 1965 में केंद्र सरकार के गैर-सैनिक कर्मचारियों की संख्या 16 लाख से अधिक थी ।

प्रशासनिक कर्मचारियों के फैलाव की समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए:

1. 1969 में विधान सभा ने ‘कुल कर्मचारी संख्या कानून’ पारित किया । इसमें सभी मंत्रालयों, आयोगों और एजेंसियों में अधिकारियों की कुल संख्या को तय किया गया था- सरकार प्रत्येक मंत्रालय, आयोग और एजेंसी में अधिकारियों की संख्या का निर्धारण इसी सीमा के भीतर कर सकती है ।

2. सार्वजनिक अधिकारियों की संख्या कम करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय कार्मिक कटौती योजना को अपनाया । उपरोक्त उपायों के परिणामस्वरूप जापान में हाल के वर्षों में सार्वजनिक रोजगार कम हुए हैं । जापान में अब प्रशासनिक कर्मचारियों की संख्या दुनिया के दूसरे प्रमुख औद्योगिक देशों की तुलना में सबसे कम है ।

अभी तक जापान में निम्न दो प्रशासनिक सुधार आयोग नियुक्त किए गए हैं:

(i) 1962 में गठित प्रथम अंतरिम प्रशासनिक सुधार आयोग जो अमेरिका के दूसरे हूवर आयोग (1955) के मॉडल पर आधारित था ।

(ii) द्वितीय अंतरिम प्रशासनिक सुधार आयोग तोशिओ डोको की अध्यक्षता में 1981 में गठित हुआ था ।


2. जापानी लोकसेवा – केंद्रीय कार्मिक एजेंसी (Japanese Civil Service – Central Personnel Agency): 

जापान की केंद्रीय कार्मिक एजेंसी राष्ट्रीय कार्मिक प्राधिकरण (NPA) है । इसकी स्थापना 1949 के राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून के प्रावधानों के अधीन हुई थी । यह संवैधानिक नहीं, बल्कि वैधानिक और स्वायत्त संस्था है । अर्थात यह विधानसभा और मंत्रालय में स्वतंत्र काम करती है । यह राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून को लागू करती है और इस प्रकार जापान में लोकसेवा के प्रबंधन की देखरेख करती है ।

एनपीए संयुक्त राज्य अमरीका के मस्तिष्क की उपज है । वास्तव में यह संयुक्त राज्य अमरीका के लोकसेवा आयोग के मॉडल पर आधारित है (जिसको कि 1978 में समाप्त किया गया और उसके स्थान पर कार्मिक प्रबंधन कार्यालय स्थापित किया गया) ।

भारत में इसका प्रतिरूप लोकसेवा आयोग और कार्मिक मंत्रालय के सम्मिलन में मिलता है । दूसरे शब्दों में, भारत में जो काम दो एजेंसियाँ करती हैं वही काम जापान में अकेले राष्ट्रीय कार्मिक प्राधिकरण द्वारा किया जाता है ।

अमरीका के पूर्व लोकसेवा आयोग की तरह राष्ट्रीय कार्मिक प्राधिकरण एक तीन सदस्यों वाली संस्था है । इसमें एक अध्यक्ष होता है और दो आयुक्त । उनकी नियुक्ति मंत्रिमंडल द्वारा की जाती है ।

उनकी नियुक्ति के लिए विधानसभा की स्वीकृति और सम्राट के सत्यापन की आवश्यकता होती है । कोई भी दो आयुक्त एक ही दल के या किसी विश्वविद्यालय के एक ही विभाग के स्नातक नहीं हो सकते हैं । आयुक्त का कार्यकाल दो वर्ष का है । उनको दोबारा नियुक्त किया जा सकता है, परंतु इस पद पर वह लगातार 12 वर्ष से अधिक समय तक नहीं बना रह सकता है । राष्ट्रीय कार्मिक प्राधिकरण को निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं: जनतांत्रिक पद्धतियों शुरू करना, कार्मिकों का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन करना और एक कार्य वर्गीकरण प्रणाली का विकास करना ।

इसके कार्यों में शामिल हैं:

1. भर्ती परीक्षाओं का संचालन ।

2. पद स्थिति वर्गीकरण योजना का विकास और उसे लागू करना ।

3. लोकसेवकों का प्रशिक्षण ।

4. सरकारी अधिकारियों की कार्यकुशलता में सुधार लाना ।

5. लोकसेवकों की पदोन्नति ।

6. सरकारी अधिकारियों की शिकायतें दूर करना ।

7. लोकसेवकों में अनुशासन बनाए रखना ।

8. क्षतिपूर्ति एवं सेवा के बारे में शर्तों सिफारिशें करना ।

9. कार्मिक प्रशासन के विभिन्न पक्षों पर प्रक्रियाएं और मानक तय करना ।

10. कार्मिक प्रशासन में निष्पक्षता बनाए रखना ।

एनपीए अपनी गतिविधियों की वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा और मंत्रिमंडल को प्रस्तुत करती है ।

जापान में लोकसेवा प्रबंधन में एनपीए के अतिरिक्त निम्न तीन अन्य एजेंसियाँ भी सम्मिलित हैं:

1. प्रधानमंत्री कार्यालय,

2. प्रबंधन एवं समन्वय एजेंसी (द्वितीय अंतरिम प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश पर 1884 में स्थापित),

3. वित्त मंत्रालय में बजट ब्यूरो ।


3. जापानी लोकसेवा का वर्गीकरण (Classification of Japanese Civil Service): 

राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा को दो वर्गों में विभाजित करता है- विशेष सेवा और सामान्य सेवा । विशेष सेवा में- प्रधानमंत्री, राज्यमंत्री, एनपीए के आयुक्त, लेखा परीक्षण बोर्ड के लेखा निरीक्षक, संसदीय उपमंत्री, राजघराने के उच्चाधिकारी, विधानसभा सदस्य, आत्मरक्षा एजेंसी कर्मी, न्यायाधीश, राजदूत तथा ऐसे तमाम पद आते है जिन पर विधानसभा की स्वीकृति से नियुक्ति होती है ।

संक्षेप में इसके अंतर्गत निर्वाचकीय, राजनीतिक, न्यायिक, प्रतिरक्षा, राजसी और कूटनीतिक पद आते हैं । दूसरी और सामान्य या नियमित सेवा में विशेष सेवा के अलावा पदों को छोड़कर राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा के प्रशासनिक एवं लिपिक कर्मचारी होते हैं ।

ये लोग एक प्रतियोगी परीक्षा द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए एक मानक अनुबंध पर सेवा में प्रवेश करते हैं । अत: जापान में ‘लोकसेवा’ या ‘सार्वजनिक सेवा’ शब्द का ‘वास्तविक अर्थ’ केवल सामान्य या नियमित सेवा है । इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून का सरोकार नियमित सेवा से ही है ।

जापान में वेतन प्रशासन के लिए लोकसेवा पदों का वर्गीकरण निम्नलिखित सोलह सेवाओं में किया गया है:

1. प्रशासनिक सेवा (i)

2. प्रशासनिक सेवा (ii)

3. सार्वजनिक सुरक्षा सेवा (i)

4. सार्वजनिक सुरक्षा सेवा (ii)

5. शैक्षणिक सेवा (i)

6. शैक्षणिक सेवा (ii)

7. शैक्षणिक सेवा (iii)

8. शैक्षणिक सेवा (iv)

9. नौसेना सेवा (i)

10. नौसेना सेवा (ii)

11. चिकित्सा सेवा (i)

12. चिकित्सा सेवा (ii)

13. चिकित्सा सेवा (iii)

14. कराधान सेवा

15. अनुसंधान सेवा

16. प्रदत्त सेवा

प्रदत्त सेवा (Designated Service) के अंतर्गत सरकार के उच्च पद आते हैं, जैसे- प्रशासनिक उपमंत्री, ब्यूरो प्रमुख, आयोग प्रमुख, एजेंसी प्रमुख, अनुसंधान संस्थान प्रमुख, विश्वविद्यालय प्रमुख तथा अन्य संगठनों के प्रमुख । जापान में सबसे अधिक पारिश्रमिक इन्हीं को मिलता है । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जापान में सरकारी अध्यापक लोकसेवा के नियमित प्रवर्ग में आते हैं, अर्थात उनको लोकसेवक माना जाता है ।


4. जापानी लोकसेवा में भर्ती (Recruitment of Japanese Civil Service):

जापान की लोकसेवा में भर्ती द्वारा संचालित खुली प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर होती है । यह सफल प्रत्याशियों की सूची को मंत्रालयों में भेजता है । सूची में से अंतिम चयन करने के पहले अलग-अलग मंत्री भी प्रत्याशियों का साक्षात्कार करते हैं ।

उच्चतर, मध्य और निचले स्तर के लोकसेवकों की भर्ती करने के लिए राष्ट्रीय कार्मिक प्राधिकरण (NPA) प्रतिवर्ष 16 प्रतियोगी परीक्षाओं का संचालन करता है । जापान की तमाम भर्ती परीक्षाओं में प्रधान वरिष्ठ 1-श्रेणी प्रवेश परीक्षा सबसे प्रतिष्ठित है ।

इसमें सफल होने वाले प्रत्याशी उच्च प्रशासनिक वर्ग का गठन करते हैं और इनको ‘कैरियनमैन’ अथवा ‘अभिजात्य’ कहा जाता है । इस प्रवर्ग की तुलना भारत के आईएएस से की जा सकती है । लेकिन इन दोनों के बीच एक अंतर है ।

जापान में ये अभिजात्य किसी एक विशेष मंत्रालय में जाते हैं और जीवन भर उसी में बने रहते हैं । जबकि भारत में आईएएस अधिकारी एक से दूसरे मंत्रालय में जा सकता है । प्रधान वरिष्ठ 1-श्रेणी प्रवेश परीक्षा दो चरणों में होती हैं- प्रारंभिक परीक्षा (बहु-विकल्पीय प्रकार) और मुख्य परीक्षा (लिखित एवं मौखिक दोनों), एनपीए लोकसेवा में भर्ती के संबंध में पाँच अन्य बिंदुओं का उल्लेख करने की आवश्यकता है ।

एक, विदेश सेवा भर्ती परीक्षाओं का संचालन एनपीए द्वारा नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है । दो, चिकित्सा तथा शिक्षा सेवाओं में भर्ती परीक्षा द्वारा नहीं बल्कि मूल्यांकन द्वारा की जाती है । तीन, जापान में प्रतियोगी परीक्षाओं की वर्तमान प्रणाली का प्रारंभ 1948 में आधिपत्यधारी सेना ने किया था ।

चार, उच्च लोकसेवा में भर्ती पर टोक्यो विश्वविद्यालय, विशेष रूप से इसके विधि निकाय का दबदबा रहता है । पाँच, सफल प्रत्याशियों को सेवा में एक ही तिथि अर्थात पहली अप्रैल को शामिल कर लिया जाता है । जापान में वित्त वर्ष का प्रारंभ भी इसी तारीख से होता है ।


5. जापानी लोकसेवा की प्रशिक्षण (Training for Japanese Civil Service): 

जापान में लोकसेवकों के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी एनपीए की है । इसके लिए एनपीए ने साईटामा प्रीफेक्चर, (टोक्यो के निकट स्थित) में लोक प्रशासन संस्थान (Institute of Public Administration-IPA) की स्थापना की है । मध्य और उच्च स्तर के लोकसेवकों के लिए आईपीए कई प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है । आईपीए का प्रमुख एक पेशेवर लोकसेवक होता है जो सीधे आईपीए के अधीन काम करता है ।

1967 से नए-नए भर्ती हुए ‘पेशेवरों’ सहित उच्चतर लोकसेवकों अर्थात प्रधान वरिष्ठ क्लास प्रवेश परीक्षा में सफल प्रत्याशियों के लिए आईपीए संयुक्त प्रारंभिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है ।

इस चार दिवसीय कार्यक्रम के उद्देश्य हैं:

1. समूह की भावना तथा परस्पर समझ को प्रोत्साहन देना ।

2. उनमें लोक सेवकों सेवा की भावना पैदा करना ।

3. उनको समुदाय के प्रति जागरूक बनाना ।

जापान के इस कार्यक्रम की तुलना भारतीय संयुक्त आधारभूत प्रशिक्षण पाठ्यक्रम से की जा सकती है जिसका संचालन मसूरी स्थित, राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी द्वारा किया जाता है । लेकिन इन दोनों के बीच एक अंतर है । जापानी कार्यक्रम की तुलना में भारतीय कार्यक्रम व्याप्ति तथा अवधि (चार महीने) के मामले में अधिक व्यापक है । चार दिन के संयुक्त परिचालक प्रशिक्षण कार्यक्रम को पूरा करने के बाद परिवीक्षार्थी (Probationer) आबंटित मंत्रालयों में अपना काम शुरू कर देते हैं । उनको काम के दौरान अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया जाता है ।

अर्थात वे काम को वास्तविक स्थितियों के दौरान वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में सीखते हैं । अपने पूरे कार्यकाल में वे उन्हीं मंत्रालयों में रहते हैं । इससे वे अपने मंत्रालयों के काम-काज के विशेषज्ञ हो जाते हैं । जापान की विदेश सेवा में परिवीक्षार्थियों का प्रशिक्षण अधिक विस्तृत और दीर्घकालीन (3 या 4 वर्ष) होता है ।

उनके प्रशिक्षण कार्यक्रम के घटक और अवधि का विवरण इस प्रकार है:

1. विदेश सेवा प्रशिक्षण संस्थान में संस्थागत प्रशिक्षण । 4 माह

2. विदेश मंत्रालय के मुख्यालय पर काम के दौरान प्रशिक्षण । 1 वर्ष

3. विदेशी भाषा सीखने के लिए सम्बद्ध कर्मचारी (Attache) के रूप में दूतावास में तैनाती । 2-3 वर्ष


6. जापानी लोकसेवा में पदोन्नति (Promotion in Japanese Civil Service): 

जापान में लोकसेवा में पदोन्नतियों के संबंध में राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून में निम्न दो प्रावधान हैं:

(i) कार्मिकों की पदोन्नति, पदोन्नति के विचाराधीन सरकारी पदों को छोड़कर, निचले स्तर के सरकारी पदों के पदस्थ कर्मचारियों के बीच प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा की जाएगी ।

(ii) जहाँ एनपीए को लगता है कि पदस्थों के बीच प्रतियोगी परीक्षा व्यावहारिक नहीं है, वहाँ पदोन्नतियाँ ऐसे पदस्थों के सेवा के पिछले रिकॉर्ड के मूल्यांकन के आधार पर की जा सकती हैं ।

संक्षेप में, कानून पदोन्नतियों के दो सिद्धांत उपलब्ध कराता है- परीक्षित योग्यता और कार्य निष्पादन मूल्यांकन । परंतु व्यवहार में पदोन्नतियाँ सेवा में वरिष्ठता के आधार पर की जाती हैं । दूसरे शब्दों में, जापानी लोकसेवा में वरिष्ठता का सिद्धांत मजबूती से स्थापित है ।

पदोन्नति के लिए जिस एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व का ध्यान रखा जाता है, वह है- लोकसेवक की शैक्षणिक पृष्ठभूमि अर्थात, विश्वविद्यालय की शिक्षा और शैक्षणिक विशेषज्ञता । लगभग 15 साल की सेवा के बाद लोकसेवकों की पदोन्नति अनुभाग प्रमुख के पद तक हो सकती है ।

20 वर्ष के बाद निदेशक, 25-28 वर्ष की सेवाकाल के बाद महानिदेशक और 28-30 के बाद वह प्रशासनिक उप-मंत्री बन सकता है । कोई लोकसेवक अधिक से अधिक प्रशासनिक उप-मंत्री पद तक पहुँचने की आशा कर सकता है । यह पद भारत सरकार के सचिव के समकक्ष है । विभागीय प्रमुख (निदेशक) के स्तर से ऊपर की पदोन्नति के लिए लोकसेवक को एनपीए की पूर्व स्वीकृति पाना आवश्यक है ।

प्रशासन के वरिष्ठ पद पर पदोन्नति के लिए जापान की एक महत्त्वपूर्ण विशिष्टता है- सामूहिक वरिष्ठता (बैच आधारित वरिष्ठता) प्रणाली । इसका अर्थ है कि समान वरिष्ठता प्राप्त लोकसेवकों की पदोन्नति एक ही समय पर की जाती है ।

जिनकी पदोन्नति उच्चस्तरों पर सीमित अवसर होने के कारण नहीं हो पाती है, वे त्यागपत्र देकर लोकसेवा छोड़ देते हैं । अत: पदोन्नतियाँ और त्यागपत्र साथ-साथ होते हैं । सेवा त्यागने वाले लोकसेवक निजी प्रतिष्ठानों या अर्ध-स्वायत्त सार्वजनिक निगमों में काम करने लगते हैं अथवा राजनीति में प्रवेश कर जाते हैं । जापान में इसको आमतौर पर ‘दूसरा कैरियर’ कहते हैं । यहाँ उल्लेखनीय है कि युद्ध के बाद की विधानसभा में लगभग 20% केबिनेट मंत्री और आधे प्रधानमंत्री पूर्व लोकसेवक रहे थे ।


7. जापानी लोकसेवा में वेतन और सेवा-शर्तें  (Japanese Civil Service – Salary and Terms of Service):

इस संबंध में निम्नलिखित बातों का आवश्यक उल्लेख किया जा सकता है:

(i) राष्ट्रीय सार्वजनिक सेवा कानून में यह व्यवस्था की गई है कि कार्मिकों को वेतन उनके दायित्वों और उत्तरदायित्वों के आधार पर दिया जाएगा । तदनुसार अपने लोकसेवकों के वेतन-निर्धारण के लिए जापान बाहरी संगठनों के साथ ‘उचित तुलना’ का सिद्धांत अंगीकार करता है ।

निजी क्षेत्र में वेतन के स्तरों का पता लगाने के लिए एनपीए वार्षिक सर्वेक्षण करता है । अपने निष्कर्षों के आधार पर यह एक वेतन योजना तैयार करके इसे विधानसभा तथा मंत्रिमंडल के सम्मुख रखता है ।

(ii) नियमित वेतन के अलावा लोकसेवकों को तरह-तरह के भत्ते दिए जाते हैं जैसे कि- आवास भत्ता, विशेष क्षेत्र-कार्य भत्ता, अतिरिक्त समय भत्ता, सर्द-जिला भत्ता, परिवार भत्ता और विशेष कार्य भत्ता इत्यादि ।

(iii) संयुक्त राज्य अमरीका की तरह, जापान भी अपने लोकसेवकों को संगठन का अधिकार देता है । परंतु यह अधिकार पुलिस कर्मियों तथा तटवर्ती सुरक्षा एजेंसियों या दांडिक संस्थाओं (Penal Institutions) के कर्मियों को प्राप्त नहीं है ।

(iv) संयुक्त राज्य अमरीका की भांति, जापान भी अपने कर्मचारियों को हड़ताल का अधिकार नहीं देता है । अत: जापान में लोकसेवकों के लिए हड़ताल में भाग लेना गैर-कानूनी है ।

(v) संयुक्त राज्य अमरीका की तरह का प्रबंध जापान में लोकसेवकों की राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध है । मताधिकार के अतिरिक्त उन्हें कोई भी राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं है ।

(vi) 1985 में लोकसेवकों की सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष की गई थी । इस अवधि से पहले अनिवार्य सेवा निवृत्ति का कोई प्रावधान नहीं था । सेवानिवृत्ति के पश्चात सरकार लोकसेवक को निजी निगम में काम करने का अवसर देती है ।

इस प्रणाली को ‘अमाकुदारी’ कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘स्वर्ग से अवरोहण’ । सेवानिवृत्ति पश्चात लोकसेवक का नियोजन उस मंत्रालय की एक समिति द्वारा किया जाता है जिसमें वह अपनी सरकारी सेवा के दौरान काम करता था ।