भारत में सिविल सेवा का वर्गीकरण | Classification of Civil Services in India | Hindi.

आधुनिक राज्य में लोकसेवा प्रबंधन के लिए सरकार के कार्मिकों का उचित और व्यवस्थित वर्गीकरण बहुत आवश्यक है । डब्ल्यू. एफ. विलोबी कहते हैं- ”सार्वजनिक रोजगार का वर्गीकरण और मानकीकरण वह प्रारंभिक बिंदु या वह आधार है, जिस पर कार्मिकों का सारा ढाँचा टिकना चाहिए ।”

हर्मन फाइनर कहना है- ”भर्ती की क्षमता, तर्कसंगत पदोन्नति की सुसंगठित प्रणाली के निर्माण की संभावना और विभिन्न विभागों में कार्यरत लोगों के साथ समान व्यवहार उचित वर्गीकरण पर ही निर्भर है ।” दुनिया में वर्गीकरण की दो अलग-अलग प्रणालियाँ प्रचलित हैं- पदस्थिति वर्गीकरण और श्रेणी वर्गीकरण । संयुक्त राज्य अमरीका, जापान, ताइवान, फिलीपींस और कनाडा इत्यादि ने पद वर्गीकरण की प्रणाली को अपनाया है जबकि ब्रिटेन, भारत, जर्मनी, मलेशिया, लाओस, पाकिस्तान और फ्रांस इत्यादि ने श्रेणी वर्गीकरण किया ।

लोकसेवा का पद वर्गीकरण (Position Classification of Civil Services):

वर्गीकरण की इस प्रणाली को दायित्व वर्गीकरण भी कहते हैं । इसमें पदों का वर्गीकरण कार्यभारों, उत्तरदायित्वों तथा योग्यताओं के आधार पर किया जाता है । दूसरे शब्दों में, पद का वर्गीकरण काम की प्रकृति के अनुसार किया जाता है न कि पद पर बैठे व्यक्ति के अनुसार । वर्गीकरण की इस प्रणाली की सबसे निचली आधारभूत इकाई ‘पद’ हैं ।

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पद उन अनेक दायित्व और उत्तरदायित्वों का समूह है, जो किसी कर्मचारी को सौंपे जाते हैं । पद और पदस्थ में अंतर किया जाता है । कोई पद किसी समय भरा या खाली हो सकता है और वर्गीकरण के लिए उसका कोई अर्थ नहीं होता है । इसके अतिरिक्त कर्मचारी की पदस्थिति और उसका वेतन उसके कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों पर निर्भर होता है ।

इस प्रकार के अनेक पदों को मिलाकर एक वर्ग बनता है । ग्लेन स्टाल के शब्दों में- ”वर्ग, पदों का एक समूह है जो भिन्न-भिन्न रोजगारों की प्रक्रियाओं के प्रति समान व्यवहार को न्यायोचित ठहराने के लिए, अपने कार्यभार और उत्तरदायित्वों में समान होते हैं ।”

अत: वर्ग, पदों का एक ऐसा समूह है जिनका कार्यभार और उत्तरदायित्व एवं कठिनाई के स्तर भी एक समान होते हैं । एक वर्ग के अंतर्गत आने वाले सभी पदों के लिए योग्यता की अपेक्षाएँ तथा वेतनमान भी समान होते हैं । पद के प्रत्येक वर्ग के लिए वर्ग-विशेष विवरण तैयार किया जाता है ।

आमतौर पर यह निम्नलिखित को निर्दिष्ट करता है:

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i. वर्ग का नाम,

ii. कार्यभार और उत्तरदायित्वों का विवरण,

iii. निष्पादन किये जाने वाले कार्यों या विशिष्ट कार्यों के उदाहरण,

iv. वेतनमान,

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v. पदोन्नति के नियम ।

इसीलिए, ग्लेन स्टाइल कहते हैं- “यदि पद, वर्गिकरण के कच्चे माल हैं तो, वर्ग एक प्रचलन इकाई है ।”

ग्लेन स्टाइल पद वर्गीकरण के विकास में निम्न चार चरणों का उल्लेख करते हैं:

1. वर्गीकृत किए जाने वाले पदों के कार्यभारों तथा उनकी अन्य विशेषताओं का विश्लेषण तथा अभिलेखन (कार्य विश्लेषण तथा वर्णन);

2. पदों का उनकी समानताओं के आधार पर वर्गों में समूहन;

3. पदों के प्रत्येक वर्ग के लिए ऐसे मानदंड या विनिर्देश तैयार करना, जो उसकी प्रकृति को बता सके; इसकी सीमाओं को स्पष्ट करें और वर्ग में अलग-अलग पदों को आबंटित करने तथा भर्ती एवं परीक्षाओं में मार्गदर्शन का कार्य करें और

4. इस प्रकार वर्णित वर्गों में अलग-अलग पदों के आबंटन के द्वारा संस्थापन ।

पद वर्गीकरण प्रणाली के लाभ इस प्रकार हैं:

1. यह उच्चस्तरीय विशेषज्ञता उपलब्ध कराती है । अत: यह इंजीनियरिंग, भूवैज्ञानिकी जैसी विशेषज्ञ सेवाओं के लिए उपयुक्त है ।

2. यह समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत की पुष्टि करती है । इस प्रणाली में कर्मचारियों को उनके कार्य की कठिनाई तथा उत्तरदायित्व के अनुसार भुगतान किया जाता है ।

3. यह प्रत्येक कार्य की विषय-वस्तु की विस्तृत व्याख्या करती है । अत: कर्मचारी के कार्य निष्पादन का मूल्यांकन वस्तुगत और तर्कसंगत हो सकता है ।

4. यह उन वैज्ञानिक मानदंडों के सूत्रीकरण के प्रति संप्रेषणशील है जिन पर कार्मिक प्रशासन के विभिन्न पक्षों, जैसे कि भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, जनशक्ति नियोजन, कैरियर विकास इत्यादि को संगठित किया जा सकता है ।

5. यह वरिष्ठता की अपेक्षा योग्यता पर अधिक बल देती है, क्योंकि यह संपूर्ण लोकसेवा में प्रतियोगिता को प्रेरित करती है ।

6. कार्य की जरूरतों तथा पदस्थ की योग्यता के बीच समय रहता है ।

7. यह निजी क्षेत्र से सरकारी सेवा में पार्श्विक प्रवेश को आसान बनाती हैं ।

8. इसमें एक मजदूर और उच्च प्रबंधन के उत्तरदायित्व की सुस्पष्ट सीमाएं होती हैं ।

9. सेवा के संबंध में यह राजनीतिक तथा व्यक्तिगत भेदभाव का अंत करती है । इसका कारण यह है कि एक वर्ग के सभी कर्मचारियों के साथ एक-सा व्यवहार होता है ।

10. यह एकरूप नाम पद्धति अपनाने को बढ़ावा देती है ।

पद वर्गीकरण प्रणाली के नुकसान इस प्रकार हैं:

1. यह कार्मिक प्रशासन में कठोरता का तत्व प्रविष्ट करती है । इस प्रकार यह क्षैतिज और ऊर्ध्वस्थ गतिशीलता में बाधक है ।

2. यह वर्गीकरण की विस्तृत प्रणाली है जिसमें अनेक वर्ग होते हैं अत: इसकी तैयारी में अधिक समय और धन खर्च होता है ।

3. इस प्रणाली में वर्गीकरण की व्यवस्था थोड़े ही समय में पुरानी पड़ने लगती है । अत: अद्यतन बनाए रखने के लिए इसमें लगातार परिवर्तन करना पड़ता है ।

4. इसमें कर्मचारी अपनी पदस्थिति और वेतन को लेकर सदैव असुरक्षित महसूस करते हैं । अत: कर्मचारियों की ओर से अपने लिए कार्य संबंधी अधिक अनुकूल वर्णन विवरण खोजने तथा अपनी पदस्थिति को ऊँचा करने का दबाव लगातार बना रहता है ।

5. यह उन विकासशील समाजों के लिए उपयुक्त नहीं जिनमें तेजी से सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण से हो रहे हैं, क्योंकि जिलाधीश जैसे अनेक अधिकारियों के कार्यभारों और उत्तरदायित्वों की सुस्पष्ट व्याख्या नहीं की जा सकती है ।

6. इसको लागू करना कठिन है क्योंकि इसके लिए कई-तरह की परिष्कृत तकनीकी कुशलताओं की आवश्यकता होती है ।

लोकसेवा का पदक्रम वर्गीकरण (Rank Classification of Civil Services):

पद वर्गीकरण के विपरीत, पदक्रम वर्गीकरण पदस्थों के पदक्रम और व्यक्तिगत पदस्थिति का वर्गीकरण है । दूसरे शब्दों में, कर्मचारियों का वर्गीकरण उनके पदक्रम के अनुसार श्रेणीबद्ध क्रम में किया जाता है । इस प्रणाली में वर्गीकरण कार्य का नहीं बल्कि कर्मचारियों का होता है ।

प्रत्येक कर्मचारी को एक निश्चित वर्ग में रखा जाता है । इस प्रकार लोकसेवा को पद के नहीं, पदस्थ के आसपास संगठित किया जाता है जो एक मोटे तौर पर परिभाषित समूह या सेवा का सदस्य होता है । कर्मचारी का वेतन और उसकी पदस्थिति समूह या सेवा में उसके पदक्रम पर निर्भर होती है न कि तैनाती पर । अन्य शब्दों में, कर्मचारी के वेतन और उसकी पदस्थिति का निर्धारण उस सेवा के संदर्भ में किया जाता है जो भर्ती के बाद उसे सौंपी गई है ।

उदाहरण के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) का कोई सदस्य चाहे वह केंद्रीय सचिवालय में काम करें या राज्य के सचिवालय में या किसी अन्य संगठन में, प्रत्येक स्थिति में उसका वेतन और पदस्थिति एक समान रहेगी । वास्तव में अखिल भारतीय सेवाएँ (आई.ए.एस., आई.पी.एस. और आई.एफ.एस.) पदक्रम वर्गीकरण प्रणाली के आदर्श उदाहरण हैं ।

पदक्रम वर्गीकरण के लाभ इस प्रकार हैं:

1. कार्मिक प्रशासन में यह लोच का तत्व लाता है । अत: अंतर-विभागीय स्थानांतरण आसानी से किए जा सकते हैं ।

2. यह लोक सेवाओं के सामान्य संवर्ग के लिए अधिक उपयुक्त है । कारण यह है कि यह कर्मचारी के सामान्य गुणों पर ज्यादा जोर देता है न कि विशेषज्ञ गुणों पर ।

3. यह वर्गीकरण की सामान्य अथवा कम विस्तृत व्यवस्था है जिसमें वर्गों की संख्या थोड़ी होती है । अत: इसकी तैयारी में धन और समय कम लगता है ।

4. यह संपूर्ण लोकसेवा के प्रति निष्ठा को प्रोत्साहन देता है, न कि इसके किसी पद/पद स्थिति के प्रति ।

5. इस प्रणाली के वर्गीकरण का प्रयोग लंबे समय तक किया जा सकता है । अत: व्यवस्था को प्राय: बदलने की जरूरत नहीं होती है ।

6. यह कर्मचारियों को उनकी पदस्थिति तथा वेतन के बारे में अधिक सुरक्षा प्रदान करता है क्योंकि वे पद से बँधे नहीं होते हैं और उन पर पद/पदस्थिति के कर्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों में होने वाले परिवर्तन से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।

7. पद वर्गीकरण के विपरीत, इसको समझना और लागू करना आसान है ।

8. यह लोकसेवकों के कैरियर अवसरों पर जोर देता है, अत: सेवाओं में गतिशीलता को प्रोत्साहित करता है ।

9. यह सेवाओं में सक्षम कार्मिकों को आकर्षित करता है ।

पदक्रम वर्गीकरण के नुकसान निम्नलिखित हैं:

1. यह लोक सेवकों में विशेषज्ञता को बढ़ावा नहीं देता । अत: यह विशेषज्ञ सेवाओं के लिए उपयुक्त नहीं है ।

2. यह समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत का उल्लंघन करता है । कारण यह है कि इस प्रणाली में कर्मचारियों का वेतन उनके कार्य की कठिनाइयों तथा उत्तरदायित्वों से बँधा नहीं होता है ।

3. यह किसी कार्य की विषय वस्तु को विस्तार से निर्दिष्ट नहीं करता है, अत: किसी कर्मचारी के कार्य का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ आधार पर हो सकता है ।

4. इससे वर्ग विभेदों और सामंती प्रवृत्तियों की गंध आती है क्योंकि यह व्यक्ति के आस-पास घूमता है न कि पद के ।

5. यह उन वैज्ञानिक और वस्तुगत मापदंडों के निर्माण के प्रति सप्रेषणशील नहीं है जिन पर कार्मिक प्रबंधन के, भर्ती, पदोन्नति, जनशक्ति नियोजन और कैरियर विकास जैसे विभिन्न पक्षों को संगठित किया जा सकता है ।

6. कार्य को जरूरतों और पदस्थ की योग्यताओं के बीच कोई मेल नहीं होता है ।

लोकसेवा का भारत में वर्गीकरण (Classification of Civil Services in India):

भारत ने पदक्रम वर्गीकरण प्रणाली को अपनाया है । हमारे देश में सेवाओं का वर्गीकरण । 1930 के लोकसेवा नियम द्वारा नियंत्रित है जिसमें समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं ।

वर्तमान में यह निम्नलिखित सेवाओं में वर्गीकृत है:

i. अखिल भारतीय सेवाएँ,

ii. केंद्रीय सेवाएँ, वर्ग I (समूह-ए)

iii. केंद्रीय सेवाएँ, वर्ग II (समूह-बी)

iv. केंद्रीय सेवाएँ, वर्ग III (समूह-सी)

v. केंद्रीय सेवाएँ, वर्ग IV (समूह-डी)

vi. केंद्रीय सचिवालय सेवाएँ, वर्ग I II III और IV (समूह- ए,बी,सी,डी)

vii. विशेषज्ञ सेवाएं,

viii. राज्य सेवाएँ, वर्ग I II III और IV ।

भारत में लोकसेवाओं को राजपत्रित और अराजपत्रित वर्ग में भी वर्गीकृत किया गया है । आमतौर पर, वर्ग-III (समूह-सी) और वर्ग-IV (समूह- डी) सेवाएँ राजपत्रित वर्ग की नहीं है । राजपत्रित वर्ग के सदस्यों के नाम, नियुक्ति, स्थानांतरण, पदोन्नति और सेवानिवृत्ति के लिए सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किए जाते है जबकि अराजपत्रित के नहीं ।

इसके अतिरिक्त राजपत्रित वर्ग के सदस्यों को कुछ ऐसे विशेषाधिकार प्राप्त है जो अराजपत्रित वर्ग के सदस्यों को प्राप्त नहीं हैं । राजपत्रित वर्ग के सदस्यों को ‘अधिकारी’ कहा जाता है जबकि अराजपत्रित वर्ग के सदस्यों को ‘कर्मचारी’ । हमारे देश में बहस और चर्चा का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह रहा है कि क्या पदक्रम वर्गीकरण को जारी रखना चाहिए या इसके स्थान पर पद वर्गीकरण के प्रणाली लागू की जानी चाहिए ।

आई.ए.एस. जैसे सामान्य सेवाओं के सदस्य पद वर्गीकरण प्रणाली को अपनाने के विरुद्ध हैं जबकि आई.एफ.एस. (भारतीय वन सेवा) और आई. ई.एस. (भारतीय आर्थिक सेवा) जैसी विशेषज्ञ सेवाओं के सदस्य पद वर्गीकरण प्रणाली के पक्ष में हैं और पदक्रम प्रणाली को हटाना चाहते हैं । भारत के प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-67) ने पद वर्गीकरण प्रणाली अपनाने की सिफारिश की थी ।