Read this article in Hindi to learn about:- नौकरशाही का अर्थ (Meaning of Bureaucracy) 2. नौकरशाही की परिभाषाएं (Definition of Bureaucracy) 3. नौकरशाही के प्रति विचार (Views of Scholars on Bureaucracy) 4. नौकरशाही का विकास (Development of Bureaucracy) 5. नौकरशाही पर नियंत्रण के उपाय (Measures for Controlling Bureaucracy).

नौकरशाही का अर्थ (Meaning of Bureaucracy):

नौकरशाही को अंग्रेजी में ब्यूरोक्रेसी कहा जाता है । ‘ब्यूरो’ फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ लिखने डेस्क से है । इसका उद्‌भव फ्रांस में हुआ, वहां यह ड्राइवर वाली मेज के लिए प्रयुक्त किया था । इस पर ढके हुए कपड़े को ‘ब्यूरल’ कहा जाता था । नौकरशाही अर्थात् सरकारी नौकरो का तंत्र । इस शब्द के अनेक अर्थ लगाये जाते रहे है ।

मौटे तौर पर इसके अर्थ को दो भिन्न आधारों पर देखा जाता है:

ADVERTISEMENTS:

1. संरचना के अर्थ में:

इस अर्थ में नौकरशाही सेवकों एक ढांचा है । यह ढांचा पदसौपान में है, जिसे विभिन्न सिद्धांतों के आधार पर बुना गया ।

2. प्रकार्यात्मक अर्थ में:

इस संदर्भ में नौकरशाही ढांचे के अपने कार्य, प्रक्रिया, नियम आदि का पर्याय मानी जाती है । अर्थात उचित माध्यम प्रक्रिया, कार्य की निश्चित नियमावली आदि नौकरशाही बन है ।

ADVERTISEMENTS:

इसके प्रकार्यात्मक अर्थ भी दो हो सकते हैं- वेबर इसे कार्य कुशलता का पर्याय मानते है जबकि क्रोजीयर, मर्टन जैसे विद्वान अकार्यकुशलता का । वास्तविकता यह है कि कार्य-नियम, प्रक्रिया आदि सैद्धांतिक रूप से जिस कार्यकुशलता और पारदर्शिता को प्राप्त करने के लिये जरूरी माने जाते है, वे ही अधिकार और बौद्धिकता से संपन्न नौकरशाही के हाथों में अकार्यकुशलता और भ्रष्टाचार के औजार बन जाते है ।

एल्विन गोल्डनर दो भिन्न नौकरशाही बताते है:

(i) दण्ड-केन्द्रीत नौकरशाही:

इसमें कार्मिक नियमों को अनिच्छा से अपनाते है क्योंकि वे मानते है कि ये नियम थोपे गये है ।

ADVERTISEMENTS:

(ii) प्रतिनिधियात्मक नौकरशाही:

इसमें अधिकारीगण नियमों को तकनीकी आधार पर तथा अपने हितों के लिये आवश्यक मानते हैं ।

अन्य अर्थ:

नौकरशाही शब्द को स्थान-स्थान पर तथा अवसर-अवसर पर भिन्न अर्थों में लिया जाता है । फ्रेडरिग्स ने इसलिए कहा कि, ”लगभग दस शीर्षकों में नौकरशाही के चालीस अर्थ देखने को मिलते है ।”

1. विसेंट डि गोर्ने (फ्रांसीसी अर्थशास्त्री) पहला व्यक्ति था जिसने ”नौकरशाही” शब्द का उपयोग किया और उसे एक अर्थ प्रदान किया । 1746 में गोर्ने ने कहा कि, ”फ्रांस में ब्यूरोमनिया” नामक बीमारी हो गयी है जो देश को बर्बाद कर रही है । गोर्ने कहता है कि ”ऐसा प्रतीत होता है कि इन अधिकारियों की नियुक्ति” “लोक सेवा” के लिये नहीं की जाती अपितु ”लोक सेवाएं” इसलिये स्थापित है ताकि इन अधिकारियों को शासकीय कार्यालयों में बैठाया जा सके ।”

2. एफ. एम. मार्क्स के अनुसार- ”ब्यूरोक्रेसी” शब्द को सरकारी कार्यालय के अर्थ में सर्वप्रथम फ्रांस के वाणिज्य मंत्री ने 18वीं सदी में प्रयोग किया था । फ्रांस से यह शब्द बटिक के रूप में जर्मनी पहुंचा । फिर ब्रिटेन में अंग्रेजी भाषा में आया । मार्क्स ने स्वयं इसे अर्थ दिया, ”बड़ी सरकार” ।

3. लास्वैल और कैप्लन ने इसे “कुलीन वर्गीय अधिकारी तंत्र” की संज्ञा दी ।

4. मिल के अनुसार नौकरशाही सरकार में एक “व्यावसायिक प्रशासक वर्ग” है ।

5. राजनीतिक विचारक रैम्जेम्यूर के अनुसार नौकरशाही का अर्थ है, ”स्थायी अधिकारी और व्यावसायिक प्रशासन ।”

6. मिल, टेलर कोल, वेबर, ला पालोम्बरा जैसे विद्वानों ने नौकरशाही को ”पदाधिकारी” के अर्थ में भी पहचाना है । इनमें से वेबर और मिल उसे सत्ता रहित मानते है । टेलर कोल और पालोम्बरा ने नौकरशाही के अंतर्गत सभी पदाधिकारियों को शामिल किया है । इससे नौकरशाही का एकांगी विचार विकसित हुआ ।

7. टालकाट पारसंस, हाइनमौन, कैप्लो और वेबर जैसे समाजशास्त्री संगठन और नौकरशाही को पर्याय मानते है । यह संगठन अविभाज्य और पूर्ण यंत्र है ।

8. कार्ल विटफोगल, जेम्स वर्नहम, प्रेस्थस आदि विद्वान नौकरशाही को एक समाज मानते हैं ।

9. मैक्स वेबर ने नौकरशाही का एक अर्थ ”तार्किक व्यवस्था” के रूप में दिया है । पीटर बलाऊ ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि ”नौकरशाही वह संगठन है जो प्रशासन में अधिकतम कार्यकुशलता सुनिश्चित करता है ।”

10. शब्दकोषों में नौकरशाही के भिन्न-भिन्न अर्थ आये हैं:

(a) वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार- नौकरशाही ऐसा व्यवस्थित प्रशासन है जिसमें कार्यकुशलता पद के लिये निष्पक्ष योग्यता, पदसोपानिक सत्ता और नियमानुसार कार्य पाया जाता है ।

(b) डिक्शनरी ऑफ सोशल साइसेंस में नौकरशाही को नकारात्मक अर्थ दिया गया है । इसके अनुसार नौकरशाही शब्द का प्रयोग उस सरकारी व्यवस्था के लिये होता है जिसमें सारी शक्ति और नियंत्रण अधिकारियों के हाथों में होता है जिससे आम नागरिकों की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है ।

नौकरशाही की परिभाषाएं (Definitions of Bureaucracy):

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार- ”जिस प्रकार तानाशाही-तानाशाह का शासन का, उसी प्रकार ब्यूरोक्रेसी-ब्यूरो का शासन (ब्यूरो अमेरिका में विभाग के लिये प्रयुक्त किया जाता है) ।”

स्टोन- ”नौकरशाही का अर्थ है, “सरकारी कार्यालयों या अधिकारियों’ का शासन ।”

वेबर- ”नौकरशाही एक विशेषीकृत रचना है जिसमें विश्वसनीयता, क्रमागतता गोपनियता और नियमों की कठोरता पायी जाती है ।”

फाइनर- ”नौकरशाही मेज का शासन है ।”

नौकरशाही के प्रति विचार (Views of Scholars on Bureaucracy):

वेबर और नौकरशाही (Weber and Bureaucracy):

(1) मैक्स वेबर मूलत: समाजशास्त्री थे लेकिन उन्होंने समाजशास्त्र के अतिरिक्त अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीतिशास्त्र आदि विभिन्न विधाओं में भी योगदान दिया

(2) वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने नौकरशाही की अवधारणा का सकारात्मक ढंग से विश्लेषण किया ।

(3) उल्लेखनीय है कि नौकरशाही अवधारणा का पहला प्रतिपादन गिटानो मोस्का ने अपनी पुस्तक ‘एलीमेन्ट डी सांइस पालिटिका’ (1896) में किया था ।

(4) मैक्स वैबर ने 1920 में अपनी पुस्तक “नौकरशाही का सामाजिक और आर्थिक इतिहास” में नौकरशाही के ‘आदर्श रूप’ को प्रस्तुत किया और इस पर लग रहे आरोप को काफी हद तक निष्प्रभावी कर दिया । यहां ”आदर्श प्रकार” वस्तुत: एक मानसिक संरचना है जो यथार्थ में कही देखने को नहीं मिलती अर्थात् यह एक युटोपिया है ।

(5) वैबर ने नौकरशाही का समाजशास्त्रीय अध्ययन किया । वेबर ने समाज शास्त्र के अंतर्गत अपने प्रभुत्व के सिद्धांत के एक अंग के रूप में ही नौकरशाही की व्याख्या की है ।

(6) वैबर जर्मनी का था और रूस तथा जर्मनी आदि की नौकरशाही को जानता था ।

(7) वस्तुत: वेबर ने भी औद्योगिक प्रबंध प्रणाली में व्याप्त कमियों (व्यक्तिगत अधीनता, भाईभतीजावाद, निर्दयता आदि) के विरूद्ध ही अपने इस ”आदर्श माडल” (नौकरशाही) को एक सर्वोत्तम विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया था ।

(8) वेबर का “तार्किक-प्ररूप” इतना महत्व हासिल कर लिया कि नौकरशाही और वेबरियन मॉडल परस्पर पर्याय बन गये ।

प्रभुत्व का सिद्धांत:

वेबर के अनुसार ”प्रभुत्व” का अर्थ है, ”नियंत्रण की अधिकारिक शक्ति ।”

वेबर ने स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति अन्य पर अपना प्रभुत्व तीन प्रकार से स्थापित करता है:

1. पारंपरिक प्रभुत्व:

यह परंपराओं और प्रचलित मान्यताओं पर आधारित प्रभुत्व है । इस प्रभुत्व का अस्तित्व इस विश्वास पर आधारित है कि ”परंपराएं” सदैव ही उचित होती है और इसलिए उनका पालन अवश्य होना चाहिये । इसका सर्वोत्तम उदाहरण है- राजतंत्र । इसका दूसरा उदाहरण है-माता-पिता को पुत्र पर प्राप्त प्रभुत्व ।

वस्तुत: पारंपरिक प्रभुत्व या सत्ता सामाजिक व्यवस्था से निकला है । इसके पीछे सामाजिक मान्यता होती है, जो जरूरी नहीं कि तार्किक हो । लेकिन सामाजिक मान्यता के कारण यह प्रभुत्व स्थिर होता है अर्थात् जमाना कितना ही बदल जाए यह प्रभुत्व बना रहता है । ऐसे प्रभुत्व में कम योग्य भी उच्च सत्ता का उपभोग करता है अर्थात् कार्यकुशलता कम पायी जाती है ।

2. श्रद्धा पर आधारित प्रभुत्व या करिश्माई प्रभुत्व:

यह उस व्यक्ति के साथ जुड़ा प्रभुत्व है, जिसके पास अलौकिक सत्ता करिश्मा या चुंबकीय व्यक्तित्व होता है । यह अंधविश्वास से भी उत्पन्न होता है, जब जनता अपने विश्वास के कारण किसी व्यक्ति को महात्मा या नेता स्वीकार लेती है । यह विश्वास जब तक बना रहता तब तक ही यह प्रभुत्व भी रहता है । अर्थात् करिश्माई प्रभुत्व भी तार्किकता के अभाव के कारण ”स्थिर” नहीं रहता । इसमें भी कार्यकुशलता की कमी पायी जाती है ।

3. वैधानिक प्रभुत्व:

वेबर के अनुसार वैधानिक प्रभुत्व तीसरे प्रकार का प्रभुत्व है लेकिन सर्वोत्तम प्रभुत्व है । क्योंकि इसका आधार कानून या विधि है । चूंकि इस प्रभुत्व का आधार कानून है अत: यही सत्ता या प्राधिकार है । इसका पालन व्यक्ति के लिये बाध्यकारी होता है । इसका सर्वोत्तम उदाहरण नौकरशाही है ।

नौकरशाही ही कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करती है । इसलिए भी नौकरशाही में विधिक प्रभुत्व होना जरूरी होता है । चूँकि कानून तर्कसम्मत होते है, अत: तार्किकता पर खड़ी नौकरशाही भी एक तार्किक अवधारणा है और इसलिए यह अत्यधिक कार्यकुशल होती हैं ।

वेबर ने नौकरशाही के कई प्रकार बताये है:

i. अभिभावक नौकरशाही

ii. जातीय नौकरशाही

iii. संरक्षण आधारित नौकरशाही

iv. योग्यता आधारित नौकरशाही

v. प्रतिनिधिक नौकरशाही ।

कार्ल मार्क्स और नौकरशाही (Karl Marx and Bureaucracy):

(i) 1818 में जर्मनी में जन्मे कार्लमार्क्स जाति से यहूदी और विचारों से कम्यूनिस्ट थे ।

(ii) मार्क्स के अनुसार यूरोप में पूंजीवाद के उदय और राष्ट्रीय राज्य की स्थापना, इन दो कारणों ने नौकरशाही को जन्म दिया । नौकरशाही की सहायता से पूंजीपतियों ने अन्य पूंजीपतियों से प्रतिस्पर्धा की और राजाओं ने अपने सामंतों से मुक्ति पायी ।

(iii) मार्क्स ने ”राज्य” को पूंजीवाद की ‘कार्यकारिणी समिति’ कहा, जो नौकरशाही को साधन के रूप में प्रयुक्त करती है ।

(iv) मार्क्स कहते है कि राष्ट्रीय राज्यों का उदय 16वीं सदी की घटना है और इसी के साथ सामन्तवाद का पतन और नौकरशाही का उदय होता है । लेकिन सामन्तवाद पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ ।

नौकरशाही का अर्थ:

मार्क्स के अनुसार नौकरशाही का अर्थ है, “अधिकारियों का वह वर्ग जो अपने मालिकों या शासकों की और से मजदूरों या अन्य कार्मिकों पर नियंत्रण रखते है, उनसे काम लेते है ।” इस प्रकार मार्क्स ने सरकारी और निजी दोनों सत्र के उच्च कार्मिकों को नौकरशाह माना ।

पूंजीपति श्रमिकों से काम लेने के लिये जिन प्रबंधकों को नियुक्त करता है उनसे नौकरशाही का निर्माण होता है । सरकार में उच्च नौकरशाहों को नियुक्त किया जाता है ताकि वे निम्न कार्मिकों से काम ले सके । प्रबंधक या उच्च स्तरीय अधिकारी उत्पादन नहीं करते अपितु उत्पादक वर्ग पर नियंत्रण रखते है ताकि वे उत्पादन करते रहे ।

मोस्का और मिशेल्स के नौकरशाही के प्रति विचार (Views of Mowska  and Misales towards Bureaucracy):

मोस्का और मिशेल्स दोनों ‘नौकरशाही’ को अभिजात वर्गीय अल्पसंख्यक लोगों का शासन मानते हैं ।

(I) मोस्का ने ”रूलिंग क्लास” नामक पुस्तक में दो प्रकार की नौकरशाही बतायी, एक सामंतीय नौकरशाही जो सभी कार्यों पर नियंत्रण रखती है और स्वयं कार्य करती है तथा दूसरी आधिकारिक नौकरशाही जो योग्यता, निश्चित वेतन, कार्यकुशलता पर आधारित होती है । गिटानो मोस्का ने ‘एलीमेंट डी साइंस ऑफ पॉलिटिका’ (1895) में ब्यूराक्रेसी की पहली व्यविस्थत व्याख्या दी थी ।

(II) मिशेल्स के अनुसार नौकरशाही सत्ता का प्रतीक है । कुछ वर्गों के हाथों में शक्ति का द्योतक है जो शेष समाज पर प्रभुत्व रखती है । शासन प्रणाली पर राजनीतिक विचारधारा का प्रभाव रहता है अर्थात् यह एक तरह से प्रतिबद्ध नौकरशाही की तरह व्यवहार करती है । ”पोलिटिकल पार्टिस” नामक पुस्तक में मिशेल्स ने तानाशाही का लौह नियम दिया ।

(III) मोस्का और मिशेल्स दोनों ही नौकरशाही को अभिजातवर्गीय अल्पसंख्यक प्रशासकों का शासन कहते है । मिशेल्स ने नौकरशाही में सरकारी अधिकारियों के साथ राजनीतिक दल के गैर सरकारी पदाधिकारियों को भी नौकरशाही का भाग माना ।

मार्सटीन मार्क्स और नौकरशाही (Marstin and Bureaucracy):

एम. मार्क्स ने नौकरशाही के चार प्रकार बताये है:

1. अभिभावक,

2. जातीय,

3. संरक्षक एवं

4. योग्यता नौकरशाही ।

1. अभिभावक नौकरशाही:

सर्वप्रथम अरस्तु ने इसका उल्लेख गार्जियन नौकरशाही के रूप में किया था ।

मार्क्स ने इसकी निम्नलिखित विशेषताएं बतायी:

(a) प्राचीन ज्ञान, परंपरा पर आधारित ।

(b) लोकमत से स्वतंत्र ।

(c) राज्य के प्रति वफादार ।

(d) जनता के प्रति अनुत्तरदायी |

(e) स्वयं को जनता का रक्षक मानती है ।

उदाहरण:

चीन में शुगंकालीन नौकरशाही (500-950 ईस्वी) प्रशा में 1650-1950 ईस्वी तक की नौकरशाही ।

2. जातीय नौकरशाही:

इसमें राजनीतिक सत्ता और प्रशासनिक सत्ता का अधिकार किसी एक जाति या वर्ग के हाथों में होता है ।

इसकी निम्नलिखित विशेषताएं है:

(a) पद जाति आधारित ।

(b) भर्ती योग्यता आधारित ।

(c) दोषपूर्ण समाज व्यवस्था (वर्ग विभाजन) ।

उदाहरण:

प्राचीन भारत की नौकरशाही, प्राचीन रोमन साम्राज्य की नौकरशाही, आधुनिक जापान की मेजी नौकरशाही ।

3. संरक्षक नौकरशाही:

इसमें नौकरशाही का संरक्षण, राजनीतिक सत्ता करती है । जब भी राजनीतिक सला बदलती है, नौकरशाही भी बदल जाती है तथा सत्तारूढ़ दल अपनी विचारधारा के समर्थकों को पदों पर बैठाता है, पुरानों को निकाल कर । यह लूट पद्धति के नाम से अमेरिका में प्रचलित रही । यह प्रतिबद्ध नौकरशाही का ही एक प्रकार है ।

इसकी निम्नलिखित विशेषताएं है:

(a) योग्यता का कोई स्थान नहीं ।

(b) नौकरी का असुरक्षित समय ।

4. योग्यता आधारित नौकरशाही:

तुलनात्मक योग्यता के आधार पर श्रेष्ठ व्यक्तियों का चयन किया जाता है । सबसे श्रेष्ठ नौकरशाही यही मानी जाती है ।

इसकी निम्नलिखित विशेषताएं है:

(a) कार्मिकों के गुणों पर आधारित ।

(b) तटस्थ नौकरशाही, न कि प्रतिबद्ध नौकरशाही ।

(c) निर्भीक नौकरशाही ।

नौकरशाही का विकास (Development of Bureaucracy):

वेबर के अनुसार नौकरशाही के उदय के लिये निम्न कारक उत्तरदायी है:

1. धन केंद्रीत अर्थव्यवस्था का पैदा होना

2. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उदय

3. प्रजातांत्रिक संस्थाओं का विकास

4. जटिल प्रशासनिक समस्याओं का जन्म

5. संचार के आधुनिक साधनों का विकास

6. तर्कवाद का विकास

7. जनसंख्या वृद्धि

नौकरशाही वस्तुतः आधुनिक युग की दें है और आधुनिक युग मुद्रा अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी प्रधानता, राष्ट्रीय राज्यों के उदय और विस्तार, तीव्र प्रतिस्पर्धा आदि से निर्धारित हो रहा हैं ।

उत्तर वेबेरियान विकास (East Weberian Development):

वेबेरियन नौकरशाही लोक प्रशासन की सरंचनात्मक-कार्यात्मक पहचान लंबे समय तक बनी रही । 1950 के बाद प्रशासन के लोकतांत्रिकरण की मांग ने अलोकतांत्रिक से ग्रस्त नौकरशाही के विस्थापन को बल प्रदान किया । परिणामत: नौकरशाही की खामियों और विफलता पर बहस के साथ ही नए विकल्प प्रस्तुत होने लगे जिन्हें पोस्ट वेबर बहस या विकास की संज्ञा दी गयी । 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में फैलने लगी थी ।

इस अवधारणा के जोर पकड़ने के साथ राज्य और उसके प्रशासन के कार्य, दायित्व और अधिकार में भी असीमित वृद्धि होने लगी । परन्तु नौकरशाही मूलक प्रशासनिक, संरचना अधिकार संपन्न होने के बावजूद परिणामों में अत्यधिक अनुत्पादक थी ।

इधर द्वितीय महायुद्ध के बाद प्रशासन में विकास केन्द्रिय तत्व बन गया और विकास के लिए परिवर्तनउन्मुख प्रशासनिक संरचना अनिवार्य हो गयी । यहाँ भी यथा स्थितिवादी नौकरशाही बाधक तत्व के रूप में सामने आयी । लोक कल्याण और विकास के अंतर्सम्बंध जितने स्पष्ट है उतने ही इसके साथ लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण ।

उपर्युक्त परिवेशी मांगों ने नौकरशाही को लगभग अप्रासंगिक बना दिया और नये प्रशासनिक संगठन के विकास पर बहसे तीव्र हो गयी । 1950 से अब तक चल रही इस बहस को ही पोस्ट वेबर बहस कहा गया और इसी बहस से पोस्ट वेबेरियन मॉडल का विकास हुआ ।

पोस्ट वेबेरियन मॉडल में आधारभूत भूमिका लोक चयन अभिगम की है । विसेंट ओउट्रम (इंटेलेक्चुअल क्राइसेस इन अमेरिकी एडमिनिस्ट्रेशन) ने लोकतांत्रिक प्रशासन की अवधारणा दी जिसे लोकतांत्रिक नौकरशाही का विकल्प माना गया ।

और यह विकल्प राजनीति और प्रशासन दोनों को अधिकारों के दुरूपयोग का दोषी मानता है और दोषी है तो उसके प्रभाव भी नकारात्मक होते है । जैसे जनता की इच्छा की अवमानना, जनता के प्रति निरकुंश व्यवहार और अंतत: जनकल्याण के स्थान पर स्वकल्याण ।

लोक चयन विकल्प ने ही सर्वप्रथम नौकरशाही की इन मान्यताओं का खण्डन किया कि-

1. केन्द्रीकरण और पदसोपान से कार्यकुशलता उत्पन्न होती है ।

2. राजनीति और प्रशासन दोनो पूर्णत: पृथक् संस्थाए है। (मूल्य रहित प्रशासन)

लोक चयन प्रक्रिया द्वारा इस प्रकार उत्तर वेबरवाद की नींव रखी गयी । और इस बहस को आगे बढ़ाने का काम वाल्डो, फ्रेडरिग्सन जैसे नव लोक प्रशासनवादियों ने किया । जब उन्होंने मूल्य को नौकरशाही की तटस्थता के ऊपर वरीयता दी । साथ ही सामाजिक समस्याओं के प्रति लोक प्रशासन को समसामयिक दृष्टिकोण दिया । (प्रासंगिकता)

इस प्रकार नव लोक प्रशासन विकास प्रशासन के साथ कदम ताल करते हुए नौकरशाही की यथास्थितिवादिता को परिवर्तन के माध्यम से बाहर कर देता है और अंतत: समानता को सरकार का अन्तिम लक्ष्य घोषित कर देता है । लोक चयन विकल्प और लोक प्रशासन किस हद तक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से संबंधित है ।

परंतु 1980 के बाद भूमण्डलीकरण जनित परिस्थितियों, तीव्र प्रौद्योगिकी परिवर्तनों और सूचना क्रांति के अभूतपूर्व प्रभाव ने सामाजिक जीवन को अत्यधिक जटिल बना दिया । परिणामत: प्रशासनिक भूमिकाओं के संदर्भ में निरंतर परिवर्तनों की मांग अब लोक प्रशासन की प्रमुख पहचान बन गयी । इस पहचान ने उसे घटनापरक उपागम बना दिया जो लोक प्रशासन में निरन्तर बदलाव की माँग करता है ।

जब बदलाव की बात हुई तो नव लोक प्रबंध परिप्रेक्ष्य का विकास हुआ जो लोक चयन विकल्प की व्यवहारिक पराकाष्ठा है । इसके विकास में राज्य बनाम बाजार चर्चा का भी उतना ही विकास रहा जिसमें ”सीमित सरकार बेहतर सरकार” का नारा दिया ।

नारा जितना क्रांतिकारी है उतने ही क्रांतिकारी इसकी प्राप्ति के लिए उठाए गए कदम और 1990 के बाद के दशक से उठाए इन कदमों में वेबेरियन मॉडल के स्वर भी शामिल हो गए । अर्थात् कार्यकुशलता और मितव्ययिता के लिए पेशेवर-व्यावसायिक दृष्टिकोण अब सरकार पर हावी है ।

कुल मिलाकर 1950 के प्रारंभ में जहां पोस्ट वेबेरियन विकास वेबर युग को चुनौती का समय था जो 1990 के बाद नए परिवेश के साथ वेबेरियन मॉडल के अत: सम्बन्धों की खोज की । पोस्ट वेबर मॉडल या विकास इस प्रकार सामाजिक लोक की खोज से शुरू होकर व्यवसायिक लोक प्रशासन के अनुसंधान तक विभिन्न प्रवृत्तियों का विकास हो जाता है ।

और इस विकास के केन्द्र में जनकल्याण प्राप्ति के साधन बदल गए । और उनमें सुशासन, कार्पोरेट शासन, ई. गवर्नेंस इत्यादि ने 21वीं शताब्दी के पहले दशक में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया । और नए प्रशासनिक संगठन के विकास पर बहसे तीव्र हो गयी ।

नौकरशाही पर नियंत्रण के उपाय (Measures for Controlling Bureaucracy):

वेबर नौकरशाही की बुराईयों से अवगत था, लेकिन उसके अनुसार इसके बिना काम भी नहीं चल सकता । हमें ”प्रशासन के क्षेत्र में नौकरशाही और अपरिपक्वता के बीच चलना है ।” वेबर का मानना था कि नौकरशाही संगठन के किसी भी दूसरे विकल्प से अधिक कुशल, तार्किक और श्रेष्ठ हैं । वस्तुत: यह अनिवार्य है और इसीलिए स्थायी है ।

उसने नौकरशाही पर नियंत्रण के पांच उपाय सुझाये:

1. निर्णय निर्माण में एक से अधिक व्यक्तियों की भागीदारी ।

2. शक्ति विभाजन अर्थात समान कार्य से संबंधित व्यक्तियों में उत्तरदायित्व का बंटवारा ।

3. गैरे पेशेवर, गैर वेतन भोगी, अपरिपक्व व्यक्तियों द्वारा प्रशासन ।

4. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र अर्थात नौकरशाहों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिये संसद के पर्यवेक्षण में रखना ।

5. प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा नियंत्रण अर्थात निर्वाचित प्रतिनिधिक निकायों (जैसे संसद) द्वारा नियंत्रण । वेबर ने इसे सर्वाधिक प्रभावी उपाय बताया ।

अन्य उपाय:

(a) विद्वानों ने नौकरशाही पर अंकुश रखने के लिये ”मंत्रियों की योग्यता” पर बल दिया है ।

(b) सत्ता के विकेंद्रीयकरण से भी नौकरशाहों को उत्तरदायी बनाकर नियंत्रित किया जा सकता है ।

(c) नौकरशाहों को सीमित अधिकार दिये जाने चाहिए, प्रत्यायोजित शक्तियों को सीमित किया जाना चाहिए तथा उनके कार्यों के विरूद्ध नागरिकों की शिकायत की सुनवाई की पृथक् और त्वरित व्यवस्था अपनायी जानी चाहिए ।

(d) वस्तुत: नौकरशाही एक आवश्यक बुराई के रूप में विद्ययमान है क्योंकि उसके बगैर काम नहीं चल सकता, और वह है तो बुराईयां आना भी स्वभाविक है । मौरिसन के शब्दों में, ”नौकरशाही वह मूल्य है जो संसदीय प्रजातंत्र के लिये हमें चुकाना पड़ता है ।”