Read this article in Hindi to learn about:- 1. नौकरशाही का उदय और विकास (Rise & Growth of Bureaucracy) 2. नौकरशाही की चारित्रिक विशेषताएँ (Characteristics of Bureaucracy).

नौकरशाही का उदय और विकास (Rise & Growth of Bureaucracy):

‘नौकरशाही’ शब्द की शुरुआत 1746 में एक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री विंसेंट डि गॉर्नी ने की । उन्होंने कहा- ”फ्रांस में हमारी एक बीमारी है जो हमें तबाह कर रही है यह बीमारी ब्यूरोमेनिया कहलाती है ।” फ्रेंच में ‘ब्यूरो’ का अर्थ है- डेस्क ।

एफ. एम. मार्क्स के शब्दों में- ”अठारहवीं सदी के फ्रांसीसी वाणिज्य मंत्री द्वारा प्रयुक्त फ्रेंच ‘ब्यूरोक्रेटिक’ में इस्तेमाल हुए शब्द ‘नौकरशाही’ का अर्थ, सक्रिय सरकार है । यह ‘Burokratic’ के रूप में उन्नीसवीं सदी में जर्मनी में फैला और तब से यह अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में भी आ गया ।”

थामॅस कार्लाइल ने इस शब्द के प्रसार को ‘महाद्वीपीय जंजाल’ कहा । नौकरशाही पर क्लासिकीय लेखन कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर, रॉबर्ट मिशेल्स और गीटानो मोस्का ने किया । किंतु नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर के साथ शुरू हुआ ।

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जैसा कि मोहित भट्टाचार्य ने कहा है- ”नौकरशाही की अवधारणा मार्क्स के चिंतन में केंद्रीय स्थान नहीं रखती ।” मार्क्स के अनुसार, नौकरशाही स्वयं राज्य की तरह, एक औजार है जिसके जरिए प्रमुसत्तापूर्ण वर्ग अन्य सामाजिक वर्गों पर अपनी प्रभुसत्ता थोपता है । इस तर्क के अनुसार नौकरशाही के हित प्रभुसत्ताधारी वर्ग और राज्य के साथ नजदीकी से जुड़े हैं ।

रॉबर्ट मिशेल्स ने अपनी पुस्तक पोलिटिकल पार्टीज में ‘अल्पतंत्र का लौह नियम’ नामक अवधारणा प्रतिपादित की । इस अवधारणा के अनुसार, बड़े संगठनों में नौकरशाहाना ढाँचा (अल्पतांत्रिक व्यवस्था) विकसित कर लेने का रुझान होता है ।

दूसरे शब्दों में यह कहता है कि बड़े संगठनों में सत्ता कुछ लोगों (अल्पतंत्रवादी) के हाथ में केंद्रित होती है । यह परिघटना कुलीन प्रभाविता के कारण बड़े संगठनों में आंतरिक जनतंत्र की संभावना को नकार देती है । गीटानो मोस्का ने अपनी पुस्तक ‘दि रूलिंग क्लास’ में राजनीतिक व्यवस्थाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया अर्थात् सामंती और नौकरशाहाना । उन्होंने कहा कि नौकरशही बड़े साम्राज्यों में शासन के लिए आधारभूत है ।

किंतु यह मैक्स वेबर है जिन्हें प्रशासनिक राजनीतिक चिंतकों की उस आकाशगंगा में अद्वितीय स्थान प्राप्त है जिन्होंने नौकरशाही की अवधारणा की व्याख्या का प्रयास किया । इस प्रकार उनका नाम नौकरशाही के साथ एकार्थी हो गया ।

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जैसा कि एस. आर. माहेश्वरी ठीक ही कहते हैं- नौकरशाही सिद्धांत के व्यवस्थित सूत्रीकरण का श्रेय मैक्स वेबर (1864-1920) को जाता है, क्योंकि, उन्होंने प्रतिकूल निहितार्थों से मुक्त, नौकरशाही के आधुनिक समाजशास्त्रीय अध्ययन की नींव डाली और किसी संगठन के लक्ष्यों की तर्कसंगत प्राप्ति के लिए नौकरशाही की अनिवार्यता पर बल दिया ।

मैक्स वेबर नौकरशाही के अपने सूत्रीकरण को ‘आदर्श प्रकार’ कहते हैं । यह आदर्श प्रकार एक मानसिक मानचित्र (मानसिक निर्मिति) है । अपनी अवधारणात्मक शुद्धता में, यह मानसिक निर्मित वास्तविकता में आनुभविक रूप में कहीं नहीं पाई जा सकती । इस प्रकार यह एक ‘यूटोपिया’ है ।

जैसा कि मोहित भट्टाचार्य ने विश्लेषण किया है- ”वेबर के सूत्रीकरण में, नौकरशाही को लोक सेवा के साथ नहीं मिलाया जाता । इसका अर्थ सामूहिक गतिविधियों के तर्कसंगतिकरण की समाजशास्त्रीय अवधारणा से है ।” उनके प्राधिकार व्यवस्थाओं के प्रकार विज्ञान को समझे बिना वेबर की नौकरशाही की अवधारणात्मक रूपरेखा को नहीं समझा जा सकता ।

नौकरशाही की चारित्रिक विशेषताएँ (Characteristics of Bureaucracy):

मैक्स वेबर द्वारा (उनकी पुस्तक दि थियरी ऑफ सोशल एंड इकोनॉमिक ऑर्गनाइजेशन में, जो 1947 में टालकॉट पार्संस व ए. एम. हेंडरसन द्वारा अनूदित हुई) रेखांकित कानूनी तार्किक नौकरशाही के आदर्श प्रकार के निम्न चारित्रिक गुण हैं ।

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वे हैं:

(i) ‘नौकरशाह’ प्राधिकार के अधीन केवल आधिकारिक हैसियत से है और व्यक्तिगत तौर पर वे आजाद है ।

(ii) वे पदों के सुपरिभाषित पदानुक्रम में संगठित होते हैं । अर्थात् हर निम्नतर पद किसी उच्च पद के नियंत्रण और पर्यवेक्षण में रहती है ।

(iii) हर पद की योग्यता का कानूनी अर्थों में परिभाषित क्षेत्र है ।

योग्यता के विशेष क्षेत्र में निम्न क्षेत्र शामिल हैं:

(a) सुनिश्चित कार्यों को करने की बाध्यता का क्षेत्र ।

(b) इन कामों को पूरा करने के अनिवार्य प्राधिकार के साथ पदाधिकारियों की व्यवस्था ।

(c) बाध्यता के अनिवार्य साधन सुपरिभाषित होते हैं और उनका उपयोग निश्चित स्थितियों के अधीन होता है ।

(iv) पद को मुक्त संविदात्मक सम्बंध द्वारा भरा जाता है । इस प्रकार सिद्धांतत: मुक्त चयन होता है ।

(v) अफसरों का चुनाव तकनीकी योग्यता के आधार पर होता है । इसकी परख परीक्षा से होती है या तकनीकी प्रशिक्षण को प्रमाणित करने वाले डिप्लोमा से प्रमाणित होती है या फिर दोनों ही तरीकों से । उन्हें नियुक्त किया जाता है, चयनित नहीं ।

(vi) अफसरों को तय वेतन दिया जाता है और वे सामान्यत: पेंशन के अधिकारी होते हैं । अफसर त्यागपत्र देने के लिए हमेशा स्वतंत्र होता है और विशेष परिस्थितियों में नियोजक अधिकार द्वारा उसकी नौकरी समाप्त भी की जा सकती है ।

वेतन का स्केल मुख्यत: पदानुक्रम में उसके स्थान से तय होता है । लेकिन इस कसौटी के अलावा उसके पद की जिम्मेदारी और पदाधिकारी की सामाजिक हैसियत की आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जा सकता है ।

(vii) पदानुक्रम पदाधिकारी की एकमात्र (या कम से कम प्रमुख) आजीविका माना जाता है ।

(viii) यह वरिष्ठता या उपलब्धि या दोनों के आधार पर पदोन्नति की व्यवस्थ वाला कैरियर होता है । पदोन्नति श्रेष्ठतरों के निर्णय पर निर्भर है ।

(ix) अधिकारी प्रशासन के साधनों के स्वामित्व से विलगीकृत होकर और अपने पद पर कब्जा किए बिना काम करता है ।

(x) पद के आचार में वह सख्त और व्यवस्थित अनुशासन और नियंत्रण के अधीन होता है ।

मोहित भट्टाचार्य ने वेबरीय सूत्रीकरण से संरचनात्मक गुणों और व्यवहारगत गुणों के एक-एक समुच्चय निकाले ।

प्रथम में शामिल हैं:

(a) कार्य विभाजन,

(b) पदानुक्रम,

(c) नियमों की व्यवस्था,

(d) भूमिका निर्धारण-जबकि दूसरे में शामिल हैं,

(e) तार्किकता,

(f) अवैयक्तिकता,

(g) नियम निर्देशिता और

(h) तटस्थता ।

वेबर के अनुसार शुद्ध तकनीकी उपागम से शुद्ध रूप से नौकरशाही प्रकार का प्रशासनिक संगठन (अर्थात् नौकरशाही की एकतंत्रीय नस्ल) प्रभाविता का उच्चतम स्तर प्राप्त करने में सक्षम है । अत: यह मनुष्यों पर आदेशात्मक नियंत्रण कायम रखने का सबसे तार्किक ज्ञात साधन है ।

निश्चिंतता, स्थिरता, अनुशासन और भरोसेमंदी में यह प्रशासन के किसी भी दूसरे रूप से श्रेष्ठ है । अत: संगठन के प्रभुत्वों के लिए यह परिणामों के आकलन का उच्च स्तर संभव बनाता है । यह सघन कुशलता और अपने कार्यों के दायरे में भी श्रेष्ठ है ।

यह सभी प्रकार के प्रशासनिक कामों पर लागू हो सकता है । आधुनिक काल में व्यापक लोक प्रशासन की जरूरतों के लिए यह अनिवार्य है । उन्होंने कहा कि- ”प्रशासन के क्षेत्र में हमें नौकरशाही और अपरिपक्वता के बीच चलना है ।”

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जो लोग एक बार एकतंत्रीय नौकरशाही से शासित होते हैं, वे संगठन के किसी और रूप के बारे में कभी नहीं सोच सकते । अंत में, वेबर ने कहा कि नौकरशाही किसी भी दूसरे रूप से ज्यादा कुशल, तार्किक और श्रेष्ठ है । यह अनिवार्य और स्थायी है ।

नौकरशाही पर नियंत्रण:

मार्टिन एल्ब्रोज अपनी पुस्तक ब्यूरोक्रेसी में बताते हैं कि वेबर ने शीर्षस्थ शक्ति पर आसीन नौकरशाही पर नियंत्रण के कई उपाय बताए ।

वेबर के लेखन में उन्होंने निम्न पाँच रास्तों की पहचान की:

(i) निर्णय निर्माण में एक से ज्यादा व्यक्तियों का भागीदार होना ।

(ii) शक्तियों का अलगाव अर्थात समान कार्य के लिए एक से ज्यादा निकायों में जिम्मेदारियों का विभाजन ।

(iii) अपरिपक्व प्रशासन अर्थात ऐसे गैर वेतनभोगी लोगों द्वारा प्रशासन, जो पेशेवर नहीं है ।

(iv) प्रत्यक्ष लोकतंत्र अर्थात जनता के प्रति नौकरशाहों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उन्हें एक संसद के पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के अंतर्गत रखना ।

(v) प्रतिनिधित्व अर्थात् चयनित प्रतिनिधिक निकायों (संसद या विधानसभाओं) के द्वारा नियंत्रण ।

उपरोक्त पाँच तरीकों में से वेबर आखिरी (अर्थात् प्रतिनिधित्व) का पक्ष लेते थे, क्योंकि यह नौकरशाही पर ज्यादा नियंत्रण में मदद करता है ।

वेबर के अनुसार, नौकरशाही के उदय के लिए निम्न कारक उत्तरदायी हैं:

(i) धन अर्थतंत्र का पैदा होना,

(ii) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उदय,

(iii) लोकतांत्रिक संस्थाओं का विकास,

(iv) जटिल प्रशासनिक समस्याओं का जन्म,

(v) संचार के आधुनिक साधनों का विकास,

(vi) तर्कवाद का विकास,

(vii) जनसंख्या वृद्धि ।

वेबर के आलोचक (Critics of Weber):

बाद के सामाजिक वैज्ञानिकों ने वेबर के नौकरशाही मॉडल की विभिन्न आधारों पर आलोचना की । वे हैं:

(i) मानवीय आयाम की उपेक्षा की सीमा तक संगठन के औपचारिक ढाँचे पर जोर देने के कारण इसकी एक ‘यंत्र विचारधारा’ के रूप में आलोचना की गई ।

(ii) इसे एक ‘बंद व्यवस्था मॉडल’ के रूप में व्याख्यायित किया गया क्योंकि यह संगठन और उसके परिवेश के बीच संबंधों पर ध्यान नहीं देता ।

(iii) यह एक अस्थिर परिवेश (अर्थात् बदलते परिवेश) में काम नहीं कर सकता ।

(iv) यह रोजमर्रा के और दुहरावपूर्ण कामों के लिए तो उपयुक्त है किंतु रचनात्मक और कल्पनाशीलता वाले कामों के लिए नहीं ।

वेबर के विभिन्न आलोचकों की राय निम्न है:

रॉबर्ट के. मार्टिन- अपने द्वारा संपादित पुस्तक रीडर इन ब्यूरोक्रेसी में उन्होंने दलील दी कि नियमों के पालन का परिणाम ”लक्ष्यों के विस्थापन” में होता है जहाँ साधन मूल्य (जरिए या नियम) अंतिम मूल्य (लक्ष्य) बन जाता है । यह अलोचपन, औपचारिकतावाद और रस्मवाद में विकसित हो जाता है ।

फिलिप सेल्जनिक- वे (अपनी पुस्तक टीवीए एंड दि ग्रासरुट्‌स में) तर्क देते हैं कि प्राधिकार के विकेंद्रीकरण और प्रत्यायोजन का परिणाम विभागीकरण और संगठन की उप इकाइयों के बीच हितों के बढ़े हुए बँटवारे में होता है । वे कहते हैं कि उपइकाइयों और संगठन के बीच लक्ष्यों का टकराव ”लक्ष्यों के विस्थापन” में परिणामित होता है ।

एल्विन गोल्डनर- वे (अपनी पुस्तक पैटर्न्स ऑफ इंडस्ट्रियल ब्यूरोक्रेसी में) कहते हैं कि नियंत्रण तंत्र के रूप में अतिरिक्त नियमों का विस्तार प्रबंधकों और अधीनस्थों के बीच तनाव पैदा करता है जो सांगठनिक लक्ष्यों के भटकाव की और ले जाता है । उन्होंने नौकरशाही को ‘कॉस्मोपॉलिटन’ और ‘लोकल’ में विभाजित किया ।

मिशेल क्रोजिए- उन्होंने (अपनी पुस्तक दि व्यूरोक्रेटिक फेनॉमेना 1964 में) नौकरशाही की व्याख्या एक अलोचदार ‘संगठन’ के रूप में की ”जो अपनी गलतियों से सीखकर अपना व्यवहार दुरुस्त नहीं कर सकता ।”

थॉर्सटीन वेब्लेन- उन्होंने दलील दी कि नियमों के साथ अपने अति लगाव के कारण ब्यूरोक्रेटिक मॉडल बदलती परिस्थितियों से निपटने में असक्षमता को जन्म देता है । दूसरे शब्दों में, यह नई चीजों से निपटने में असक्षम अफसरों का समाजीकरण कर देता है । उन्होंने इसकी व्याख्या ‘प्रशिक्षित अक्षमता’ के रूप में की ।

डेवी- उन्होंने कहा कि नौकरशाही में अफसर लंबे समय तक एक ही जैसा काम करते रहते हैं और इसलिए कुछ प्राथमिकताएँ और विद्वेष विकसित कर लेते हैं । उन्होंने इसकी व्याख्या ‘पेशा संबंधी साइकोसिस’ के रूप में की । इसी परिघटना को वारनॉट ने ‘पेशेवर विकृति’ कहा ।

विक्टर ए. थॉम्प्सन- उन्होंने ब्यूरोक्रेसी के गैर-इरादतन नतीजों को ‘ब्यूरोपैथोलॉजी’ (नौकरशाही की बीमारी) कहा और कहा कि वे ‘ब्यूरोपैथिक’ व्यवहार के कारण जन्म लेते हैं । साइमन व बर्नार्ड- उन्होंने कहा कि वेबर ने अपनी थीसिस संरचनात्मक उपागम के आधार पर विकसित की । अत: यह मॉडल प्रशासनिक कुशलता को घटाता है जो अनौपचारिक संबंधों और अनाधिकारिक व्यवहारों द्वारा बढ़ाई जा सकती है ।

साइमन व मार्च- अपनी पुस्तक ऑर्गनाइजेशंस में वे दलील देते हैं कि वेबर ने संगठन के औपचारिक पहलू से अत्याधिक सरोकार के कारण संगठन के मानवीय आयाम की उपेक्षा की है । अत: उन्होंने वेबर को गुलिक, अरविक व अन्य क्लासिकीय चिंतकों की श्रेणी में रखा ।

रॉबर्ट प्रेस्थम- उन्होंने कहा कि वेबर का मॉडल विकासशील देशों के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह पश्चिमी संस्कृति की उपज है । फ्रेड डब्ल्यू. रिग्स- उन्होंने कहा कि विकासशील देशों के अध्ययन में नौकरशाही का वेबर का आदर्श मॉडल प्रासंगिक नहीं है क्योंकि यह एक सापेक्षत: स्वायत्त प्रशासनिक तंत्र की कल्पना करता है । अमेरिका, इग्लैंड और फ्रांस जैसे विकसित देशों में प्रशासनिक संरचनाओं को अन्य सामाजिक संरचनाओं से पर्याप्त स्वायत्तता प्राप्त होती है ।

इसके विपरीत विकासशील देशों में वे कम स्वायत्त हैं । इस प्रकार रिग्स ने कहा कि वेबर का आदर्श मॉडल संगठन और परिवेश के संबंधों के अध्ययन में मदद नहीं करता । उन्होंने लोक प्रशासन के अध्ययन के ‘परिवेशीय दृष्टिकोण’ की वकालत की ।

वॉरेन बेनिस- अपनी पुस्तक दि टेम्पररी सोसायटी में उन्होंने पूर्वानुमान लगाया कि नौकरशाही खत्म हो जाएगी । इसका स्थान ज्यादा अनुकूलन योग्य अस्थायी कार्यतंत्र ले लेंगे । उनकी भविष्यवाणी उद्भव सिद्धांत पर आधारित है जो कहता है कि हर युग अपनी जाति के अनुकूल सांगठनिक रूप विकसित करता है ।

लॉयड रुडोल्फ व सुसान रुडोल्फ- उन्होंने तर्क दिया कि वेबर मॉडल औपचारिक तार्किकता, तकनीक (जो सांगठनिक प्रभाविता में योगदान करती है) और सांगठनिक अकुशलता को भी बढ़ा सकती है । ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके अनुसार यह अलगाव और प्रतिरोध के स्रोत निर्मित करती है और प्राधिकार के विरुद्ध सत्ता के लिए संघर्ष को बढ़ावा देती है ।

नौकरशाही प्रशासन में पितृसत्तात्मक तत्वों की मौजूदगी इस संघर्ष को शांत करती है क्योंकि पितृसत्तात्मक प्रशासन में नौकरशाही तत्वों की मौजूदगी इसकी कुशलता को बढ़ाती है । इस प्रकार उन्होंने वेबर के मॉडल को सर्वाधिक तार्किक प्रकार जो कुशलता का उच्चतम स्तर प्राप्त करने में सक्षम है, के रूप में चुनौती दी है ।

क्लॉज ऑफी- उन्होंने तार्किकता को दो वर्गों में विभाजित किया- सांगठनिक तार्किकता और व्यवस्थित तार्किकता । पहले का अर्थ है- विशेष परिस्थितियों में भी नियमों को यांत्रिक रूप से लागू करना जबकि दूसरे का अर्थ है- परिवेश की आवश्यकताओं के अनुसार नौकरशाही का अनुकूलन ।

उन्होंने कहा कि वेबर मॉडल व्यवस्थित तार्किकता के प्रतिकूल है और तेज और अनिश्चित सामाजिक परिवर्तनों की सूरत में दोनों तार्किकताएँ एक दूसरे से उलझ जाती हैं । विलियम डिलेनी- उन्होंने कहा कि विकासशील देशों में वेबर की तार्किक नौकरशाही की बजाय पितृसत्तात्मक नौकरशाही आर्थिक वृद्धि के लिए ज्यादा अनुकूल है, जबकि वेबर का मॉडल विकसित देशों के लिए ज्यादा उपयुक्त है ।

जोसेफ ला पोलोम्बारा- अपने द्वारा संपादित पुस्तक ब्यूरोक्रेसी एंड पोलिटिकल डेवलपमेंट में उन्होंने टिप्पणी की, कि वेबर नौकरशाही सामाजिक परिवर्तन का कम प्रभावी औजार है । उनका मानना था कि विकासशील देशों में वेबर नौकरशाही (या पश्चिमी नौकरशाही) के मॉडल की बजाय नौकरशाही के चीनी या रूसी मॉडल ज्यादा प्रभावी हो सकते हैं ।

पीटर एम. ब्लाऊ- अपनी पुस्तक ब्यूरोक्रेसी इन मॉडर्न सोसायटी में कहते हैं कि एक बदलते परिवेश में सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति नौकरशाही के ढाँचे में निरंतर बदलाव पर निर्भर करती है । क्रील एंड स्पिट्‌जर- इन्होंने वेबर के इस दावे पर आपत्ति की, कि तार्किक नौकरशाही एक आधुनिक परिघटना है ।

अत: एस.सी. क्रील कहते हैं कि वेबर नौकरशाही के सभी तत्व दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की चीनी नौकरशाही (अर्थात् मंदारिन नौकरशाही) में मौजूद थे । उसी प्रकार, ए.बी. स्पिट्‌जर ने 19वीं सदी की फ्रांसीसी नौकरशाही का उदाहरण दिया । कार्ल फ्रेडरिक- इन्होंने कहा कि वेबर के नौकरशाही के आदर्श प्रकार के ‘आदर्श’ और ‘प्रकार’ ही शब्द एक दूसरे को खारिज करते हैं ।

लारेंस जे. पीटर- इन्होंने कहा कि नौकरशाही में प्रबंधक अपने अयोग्यता स्तर को बढ़ा लेते हैं । यह थीसिस ‘पीटर सिद्धांत’ के नाम से जानी जाती है ।  फ्रेडरिक ब्यूरिन- ब्यूरिन ने तर्क दिया कि लोक उत्तरदायित्व एवं सार्वजनिक जवाबदेही के सिद्धांतों के एक अनुप्रयोग ने नौकरशाही की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव ला दिए हैं । वेबर के मॉडल के इस लक्ष्य की उपेक्षा की गई है ।

अंत में, मोहित भट्टाचार्य के शब्दों में- ”मैक्स वेबर का नौकरशाही मॉडल सामान्यता क्लासिकीय प्रशासनिक चिंतन की श्रेणी में रखा जाता है । लोक प्रशासन में वेबर का आदर्श प्रकार अभी भी प्रभुत्वशाली बना हुआ है । अवधारणात्मक स्तर पर वेबर के सूत्रीकरण का आकर्षण कभी फीका नहीं पड़ा, जो इसकी ‘परागतिक शक्ति’ का स्पष्ट प्रमाण है ।”