Read this article in Hindi to learn about:- 1. केंद्रीकरण का अर्थ (Meaning of Centralisation) 2. केंद्रीकरण  के प्रकार (Types of Centralisation) 3. केंद्रीकरण के उपागम (Approaches to Centralisation) 4. केंद्रीकरण के गुण (Merits of Centralisation) 5. केंद्रीकरण के दुर्गुण (Demerits of Centralisation) 6. केंद्रीकरण  बनाम विकेंद्रीकरण के निर्धारक कारक (Factors Governing Centralisation and Decentralisation) 7. विकेंद्रीकरण के गुण (Merits of Decentralisation) and Other Details.

Contents:

  1. केंद्रीकरण का अर्थ (Meaning of Centralisation)
  2. केंद्रीकरण  के प्रकार (Types of Centralisation)
  3. केंद्रीकरण  के उपागम (Approaches to Centralisation)
  4. केंद्रीकरण के गुण (Merits of Centralisation)
  5. केंद्रीकरण के दुर्गुण (Demerits of Centralisation)
  6. केंद्रीकरण  बनाम विकेंद्रीकरण के निर्धारक कारक (Factors Governing Centralisation and Decentralisation)
  7. विकेंद्रीकरण के गुण (Merits of Decentralisation)
  8. विकेंद्रीकरण के दुर्गुण (Demerits of Decentralisation)
  9. फील्ड संगठन के प्रतिरूप (Patterns of Field Organisation)


1. केंद्रीकरण का अर्थ (Meaning of Centralisation):

केंद्रीकरण का अर्थ है- प्रशासनिक व्यवस्था के उच्चतम स्तर पर प्राधिकार का संकेंद्रण । वहीं दूसरी और, विकेंद्रीकरण का अर्थ होता हैं- प्रशासनिक व्यवस्था के निम्नतर स्तरों पर प्राधिकार का विसरण । इस प्रकार, केंद्रीकरण बनाम विकेंद्रीकरण मुद्दा प्रशासनिक व्यवस्था में निर्णय-निमार्ण के क्षेत्र इर्द-गिर्द घूमता है ।

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इस संबंध निम्न परिभाषाओं पर गौर किया जा सकता है:

एल.डी. व्हाइट- ”सरकार के निम्नतर स्तरों व उच्चतर स्तरों पर प्रशासनिक प्राधिकार के स्थानांतरण का प्रक्रिया केंद्रीकरण कहलाती है, इसका उल्टा विकेंद्रीकरण होता है ।” हेनरी फेयॉल- ”हर वह प्रक्रिया जो अधीनस्थ की भूमिका के महत्व का बढ़ाता है, विकेंद्रीकरण है, और जो उसे घटाती है, वह केंद्रीकरण है ।”

प्रशासन की केंद्रीकृत व्यवस्था में, निम्नतर स्तर (जो फील्ड दफ्तर कहलाते हैं) अपनी पहल पर काम नहीं कर सकते । उन्हें अपनी अधिकांश समस्याओं को निर्णय लेने के लिए उच्चतर स्तरों (जो हेडक्वार्टर कहलाता है) को संदर्भित करना पड़ता है । वे केवल लागू करने वाली एजेंसियाँ होती हैं ।

दूसरी ओर एक विकेंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था में, कुछ खास मामलों में फील्ड दफ्तर अपनी पहल पर काम कर सकते हैं । उन्हें मुख्यालय या हेडक्वार्टर से सलाह-मशविरों के बगैर निर्णय लेने का प्राधिकार मिला होता है ।

ADVERTISEMENTS:

इस प्रकार, विकेंद्रीकरण का सार निर्णय लेने की ताकत फील्ड-दफ्तरों को सौंपने में निहित है । पुनकेंद्रीकरण विकेंद्रीकरण का उल्टा है । इसका अर्थ है एक बार विकेंद्रीकरण प्राधिकार का केंद्रीकरण । यह शब्द ‘डिसेन्ट्रलाइजेशन’ लातिनी भाषा से निकला है ।


2. केंद्रीकरण  के प्रकार (Types of Centralisation):

व्यापक तौर पर कहें, तो विकेंद्रीकरण दो प्रकार का होता है- राजनीतिक और प्रशासनिक । प्रशासनिक विकेंद्रीकरण आगे क्षेत्रीय (क्षैतिज) और कार्यात्मक (ऊर्ध्वाधर) विकेंद्रीकरण में विभाजित है ।

1. राजनीतिक विकेंद्रीकरण:

ADVERTISEMENTS:

यह सरकार के नए स्तरों की स्थापना की बात कहता है जैसे भारत में स्वायत्त राज्य और कनाडा में प्रति । संघीय व्यवस्थाओं में, राजनीतिक प्राधिकार केंद्रीय और क्षेत्रीय सरकारों में विभाजित होता है (भारत में राज्य सरकारें और कनाडा में प्रांतीय सरकारें) ।

अमेरिका या भारत जैसे- संघीय राज्यों और ब्रिटेन या जापान जैसे एकल राज्यों में स्वायत्त स्थानीय सरकारों का गठन भी राजनीतिक विकेंद्रीकरण को दिखलाता है । इस प्रकार अमेरिका में नगर सरकारों, भारत में पंचायती राज और नगर निगमों, ब्रिटेन में काउंटी सरकारों और जापान में प्रशासकीय सरकारों की स्थापना राजनीतिक विकेंद्रीकरण की अच्छी मिसालें हैं ।

2. क्षेत्रीय विकेंद्रीकरण:

इसका अर्थ है- उच्चतर अधिकारियों (हेडक्वार्टर) द्वारा क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाइयों (फील्ड दफ्तर) का गठन । मिसाल के तौर पर, भारत में खंडों, जिलों, तालुकों, दायरों इत्यादि की स्थापना । इन्हें विशेष सीमाओं में निर्णय लेने के अधिकार सौंपे गए थे और इस प्रकार वे एक स्वतंत्र तरीके से काम करते थे ।

3. कार्यात्मक विकेंद्रीकरण:

इसका अर्थ है केंद्रीय एजेंसी द्वारा विशेष इकाइयों को निर्णय लेने की शक्ति का सौंपा जाना । मसलन, भारत में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बाढ़ नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड इत्यादि जैसे तकनीकी या पेशेवर निकायों का गठन ।


3. केंद्रीकरण  के उपागम (Approaches to Centralisation):

जेम्स डब्ल्यू. फेस्लर ने विकेंद्रीकरण की अवधारणा के प्रति विभिन्न उपागमों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:

1. सैद्धांतिक उपागम:

यह विकेंद्रीकरण को ही साध्य के रूप में देखता है बजाय किसी और लक्ष्य की पूर्ति के साधन के रूप में । यह विकेंद्रीकरण को आदर्शीकरण की शब्दावली में देखता है जो यह मानने वाली विचारधारा है कि चीजें दिमाग में सिर्फ विचार के रूप में मौजूद रहती हैं ।

2. राजनीतिक उपागम:

यह कहता है कि कार्यात्मक स्वायत्तता के एक समुच्चय के साथ विकेंद्रीकृत इकाइयों की रचना राजनीतिक कारक से संचालित होती है । उदाहरण के लिए हमारे देश में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन के रूप में पंचायती राज की रचना राजनीतिक रूप से निर्धारित है ।

3. प्रशासनिक उपागम:

यह कहता है कि फील्ड में स्वायत्त प्रशासनिक इकाइयों की स्थापना प्रशासनिक प्रभाविता के कारक से निर्धारित होती है । बेहतर निर्णय निर्माण और समस्याओं को तेजी से हल करने के कारक से । जैसे- राज्य हेडक्वार्टर और फील्ड के बीच, क्षेत्रों, खंडों, जिलों, उपखंडों, तालुकों और दायरों की रचना ।

4. द्वैध-भूमिका उपागम:

यह विकेंद्रीकरण को फील्ड प्रशासन में परंपरा और परिवर्तन के बीच के द्वंद्व को हल करने की पद्धति के रूप में समझता है । तीव्र सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए यथा स्थिति-निर्देशित उपनिवेशवादी फील्ड प्रशासन का प्रयोग हमारे देश के जिला प्रशासन में क्षेत्र-कार्य द्विभाजन को जन्म दे रहा है ।


4. केंद्रीकरण के गुण (Merits of Centralisation):

1. यह संपूर्ण संगठन पर सर्वाधिक नियंत्रण देता है ।

2. यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि सभी कार्य एक तरह से और समान सामान्य नीतियों और सिद्धांतों के अनुसार किए जाते हैं ।

3. यह रोजगार और कर्मचारियों, खरीद और आपूर्तियों के प्रयोग आदि को सँभालने जैसे मामलों में प्रशासनिक दुरुपयोग को काफी मुश्किल बना देता है ।

4. यह कार्यों के दुहराव को रोककर प्रशासन में अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करता है ।

5. यह व्यक्तिगत नेतृत्व की सक्रिय भूमिका के जरिए संगठन में गतिशीलता लाने में सहायक होता है ।

6. यह आपात और असंभाव्य स्थितियों के लिए उपयुक्त है ।

7. यह संगठन का भौतिक और मानव संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग में सक्षम बनाता है । और इस प्रकार एक कारपोरेट व्यक्तित्व को विकसित करता है ।


5. केंद्रीकरण के दुर्गुण (Demerits of Centralisation):

1. यह कदम उठाए जाने में देर करता है क्योंकि फील्ड अधिकारियों को उच्चतर प्राधिकार से निर्देश लेने पड़ते हैं ।

2. यह ”शिखर पर लकवा और निम्नतर स्तर पर रक्तहीनता” के कारण मुख्य कार्यालय पर अत्यधिक भार डाल देता है ।

3. यह अधीनस्थों पर तानाशाहीपूर्ण नियंत्रण और इस प्रकार प्रशासन के लचीलेपन में कमी की और ले जाता है ।

4. यह प्रशासन को गैर-जवाबदेह बना देता है क्योंकि मुख्य कार्यालय स्थानीय स्थितियों और आवश्यकताओं के ज्ञान के बिना काम करते हैं ।

5. यह प्रशासनिक प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी में सहायक नहीं होता ।

6. यह कार्यकारियों की दूसरी पंक्ति के विकास की इजाजत नहीं देता ।

7. यह संगठन के विस्तार और विविधीकरण के लिए अनुकूल नहीं होता ।


6. केंद्रीकरण  बनाम विकेंद्रीकरण के निर्धारक कारक (Factors Governing Centralisation and Decentralisation):

जेम्स डब्ल्यू. फेस्लर के अनुसार, केंद्रीकृत बनाम विकेंद्रीकरण का मुद्दा चार कारकों से निर्धारित होता है ।

इनकी व्याख्या निम्नलिखित है:

1. जिम्मेदारी का कारक:

चूंकि संगठन में हर बात के लिए केंद्रीय एजेंसी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, इसलिए यह फील्ड दफ्तरों को आसानी से निर्णायक प्राधिकार नहीं सौंपती और उनकी सभी कार्यों को स्वयं निर्देशित और नियंत्रित करना पसंद करती है । इस प्रकार जिम्मेदारी का कारक विकेंद्रीकरण के लिए एक अवरोधक का काम करता है और केंद्रीकरण का पक्ष लेता है ।

2. प्रशासनिक कारक:

इसमें एजेंसी की आयु, नीतियाँ, पद्धतियों की स्थिरता, फील्ड कर्मचारियों की योग्यता, गति एवं अर्थ के लिए दबाव और प्रशासनिक व्यवहार कुशलता शामिल हैं । उच्चतर स्तर से बार-बार संदर्भन पाने वाली नई एजेंसी के मुकाबले सुस्थापित प्रक्रियाओं और प्रथाओं वाली एक पुरानी एजेंसी का विकेंद्रित करना आसान है ।

सांगठनिक नीतियों और पद्धतियों में स्थिरता विकेंद्रीकरण की सहायता करते हैं । फील्ड स्टाफ जितना योग्य होगा, विकेंद्रीकरण की ओर उतना ही झुकाव होगा । प्रशासन में गति और अर्थ पर दबाव का भी विकेंद्रीकरण की ओर रुझान होता है । अंत में, प्रशासनिक व्यवहार कुशलता, जो प्रत्यायोजन की समस्या पर एक पेशेवर दृष्टिकोण है, भी विकेंद्रीकरण को प्रभावित करती है ।

3. कार्यात्मक कारक:

इसमें एक एजेंसी द्वारा किए जाने वाले विविध काम, कामों की तकनीकी प्रकृति और देशव्यापी एकरूपता की जरूरत शामिल है । एक-एक कार्यात्मक संगठन के मुकाबले एक बहु-कार्यात्मक संगठन में विकेंद्रीकरण की गुंजायश अधिक होती है ।

उसी प्रकार, एजेंसी द्वारा किए जाने वालों कामों की तकनीकी प्रकृति विकेंद्रीकरण को अनिवार्य बना देती है क्योंकि उन सारे कामों को सीधे प्रबंधित करने की योग्यता संगठन के प्रमुख में नहीं होती । रक्षा, संचार, परिवहन, योजना आदि-कार्यों में देशव्यापी एकरूपता की आवश्यकता केंद्रीकरण का पक्ष लेती है ।

4. बाह्य कारक:

इसमें विकास कार्यक्रमों के प्रशासन में जनता की भागीदारी की माँग, राजनीतिक पार्टियों और समानहित समूहों का दबाव, तृणमूल स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत और ”नीचे से नियोजन” की माँग शामिल है । ये सभी कारक विकेंद्रीकृत व्यवस्था के पक्ष लेते हैं और प्रशासन में केंद्रीकरण के रुझानों के विरोध में काम करते हैं ।


7. विकेंद्रीकरण के गुण (Merits of Decentralisation):

1. यह विलंबों को घटाकर, लाल फीताशाही पर लगाम कसकर और तेज कार्यवाही को प्रोत्साहित कर प्रशासनिक प्रभाविता को बढ़ाता है ।

2. यह मुख्य कार्यालय पर बोझ घटाता है और इस प्रकार ऊपर की पंक्तियों को नीति-निर्धारण, मुख्य समस्याओं की जाँच करने इत्यादि पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाता है ।

3. यह अधीनस्थों को जिम्मेदारी के साथ निर्णय लेने पर बाध्य कर उनमें संसाधन संपन्नता और आत्मसम्मान को विकसित करता है ।

4. यह प्रशासन को अधिक जिम्मेदार बनाता है क्योंकि फील्ड इकाइयाँ स्थानीय स्थितियों और आवश्यकताओं के ज्ञान के साथ काम करती हैं ।

5. यह प्रशासनिक प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी में सहायता करता है और इस प्रकार तृण-मूल धरातल पर लोकतंत्र को मजबूत करता है ।

6. यह निम्न स्तरों को प्राधिकार को उचित मात्रा में सौंपकर कार्यकारियों की दूसरी पंक्ति को विकसित होने की अनुमति देता है ।

7. यह प्रभावी लक्ष्य पूर्ति के लिए संगठन के विस्तार और वैविध्यकरण को प्रोत्साहित करता है ।

8. यह विभिन्न इलाकों की बदलती परिस्थितियों के अनुसार राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों के अनुकूलन में सहायक होता है ।

9. यह उच्चतर और निम्नतर स्तरों पर कागजी काम को घटाकर संगठन में संचार के अत्याधिक बोझ की समस्या को कम कर देता है ।

10. यह कई प्रतियोगी फील्ड इकाइयों के बीच प्रतिस्पर्द्धा और मूल्यांकन के तुलनात्मक मान को बढ़ावा देता है ।

11. यह पूरे उपक्रम को किसी अनजान रास्ते पर चलाए बगैर निर्णय लेने और लागू करने में प्रयोग को संभव बनाता है ।

जे.सी. चार्ल्सवर्थ के अनुसार- “विकेंद्रीकरण को केवल प्रशासनिक प्रभाविता के आधार पर ही सही नहीं ठहराया जाना चाहिए । यह सीधे-सीधे व्यक्तिगत नागरिक में व्यक्तिगत सम्यक्‌ता के बोध का विकास करता है, इसके आध्यात्मिक अर्थ भी हैं ।”


8. विकेंद्रीकरण के दुर्गुण (Demerits of Decentralisation):

1. यह पूरे संगठन पर केंद्रीय नियंत्रण को घटाने के कारण विभिन्न इकाइयों की गतिविधियों के तालमेल और सम्मिलन को जटिल बना देता है ।

2. यह विभिन्न स्तरों के बीच संचार को मुश्किल बना देता है और इस प्रकार इसकी प्रभाविता और प्रामाणिकता को घटा देता है ।

3. यह कामों के दुहराव और केंद्रीय व्यवस्था सेवाओं की कमी के कारण प्रशासन को खर्चीला बना देता है ।

4. यह आपात और अनुमानित स्थितियों से निपटने के लिए उपयुक्त नहीं है ।

5. यह संगठन में विखंडनकारी शक्तियों को बढ़ावा देता है और इस प्रकार सांगठनिक एकीकरण के लिए खतरा है ।

6. यह स्थानीयतावाद और संकीर्णतावाद को बढ़ावा देकर प्रशासन में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को कमजोर करता है ।

7. यह भ्रष्टाचार, कुप्रशासन, भाई-भतीजावाद इत्यादि जैसे- दुर्व्यवहारों को बढ़ाता है । ये चीजें हमारे देश में पंचायती राज के काम-काज में देखी जा सकती है ।

प्रभावी विकेंद्रीकरण:

जे.सी. चार्ल्सवर्थ ने विकेंद्रीकरण को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित सुरक्षापायों का सुझाव दिया है:

1. फील्ड कार्यालयों को मात्र एक केन्द्रीय अभिकरण को रिपोर्ट करना चाहिए ।

2. अधिकार क्षेत्रीय रेखाएँ अति सावधानी के साथ खींची जानी चाहिए ।

3. कई फील्ड कार्यालयों में प्रक्रियाओं का एक सामान्य मानक रखा जाना चाहिए यद्यपि उन्हें एकरूप होने की आवश्यकता नहीं है ।

4. फील्ड कार्यालय का एक पर्याप्त लचीला भौतिक एवं मनोविज्ञानिक ढाँचा होना चाहिए जो कि स्थानीय परिस्थितियों के साथ अनुकूलन में सहायक हो ।

5. फील्ड कार्यालय को सम्पूर्ण नीति को प्रभावित करने वाले निर्णय नहीं करने चाहिए यद्यपि इन्हें कुछ परिस्थितियों में स्वयं निर्णय करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।

6. त्वरित अपील की एक प्रणाली मौजूद होनी चाहिए ।

7. फील्ड से लेकर केन्द्र तक सुझावों का स्वतंत्र प्रवाह होना चाहिए ।

8. केन्द्रीय मुखिये के पास फील्ड गतिविधियों की पूर्ण एवं ताजा जानकारी के साथ पर्याप्त रिपोर्टिंग और निरीक्षण पद्धतियाँ होनी चाहिए ।


9. फील्ड संगठन के प्रतिरूप (Patterns of Field Organisation):

1. डब्ल्यू. एफ. विलोबी:

उन्होंने फील्ड संगठनों को एकल और बहुल में बाँटा । इन्हें क्रमश: क्षेत्रीय और कार्यात्मक के नाम से भी जाना जाता है । एकल या क्षेत्रीय व्यवस्था में, एक क्षेत्र के सभी फील्ड कार्यालय एक मुख्य प्रशासक के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के अंतर्गत होते हैं जो स्वयं उनके कार्यों के लिए हेडक्वार्टर को जवाबदेह होता है ।

यह पद्धति फ्रांस में पाई जाती है जहाँ एक विभाग (स्थानीय प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई/क्षेत्र) में काम करते केंद्रीय सरकार के सभी अधिकारी प्रशासक के पर्यवेक्षण और नियंत्रण में होते हैं । बहुल या कार्यात्मक व्यवस्था में, हेडक्वार्टर के अलग-अलग प्रभाग अपने कार्यालयों से सीधे व्यवहार करते हैं । क्षेत्रीय स्तर पर उनके बीच किसी भी पर्यवेक्षक या नियंत्रक प्राधिकार का हस्तक्षेप नहीं होता ।

2. लूथर गुलिक:

उन्होंने तीन प्रकार से फील्ड संगठनों के बीच भेद किया:

(क) सभी उंगलियाँ,

(ख) छोटी बाँह, लंबी उंगलियाँ और

(ग) लंबी बाँह, छोटी उंगलियाँ ।

‘बाँह’ से आशय क्षेत्रीय कार्यालय से है और ‘उंगलियाँ’ से तात्पर्य फायरिंग लाइन पर निम्नतर फील्ड कार्यालय तक जाने वाली संचार की रेखाओं से है । ‘सभी उंगलियाँ’ प्रतिरूप में, हेडक्वार्टर फील्ड कार्यालयों को सीधे नियंत्रित करते हैं, कोई क्षेत्रीय उपविभाजन नहीं होते ।

‘छोटी बाँह, लंबी उंगलियाँ’ प्रतिरूप में, क्षेत्रीय उपविभाजन स्वयं भौतिक रूप से हेडक्वार्टर में ही स्थित होते हैं । वे अपने संबंधित क्षेत्रों में फील्ड कार्यालय नियंत्रित करते हैं । ‘लंबी बाँह, छोटी उंगलियों’ प्रतिरूप में, क्षेत्रीय उपविभाजन स्वयं फील्ड में ही, हेडक्वार्टर से दूर स्थित होते हैं और संबंधित फील्ड कार्यालयों को नियंत्रित करते हैं ।