लेखा: अर्थ, विभागीकरण और संरचना | Read this article in Hindi to learn about:- 1. लेखा का अर्थ (Meaning of Accounts) 2. लेखापरीक्षा से लेखा का पृथकीकरण (Separation of Accounts from Audit) 3. विभागीकरण (Departmentalisation) 4. महालेखा नियंत्रक (Comptroller General) 5. ढाँचा (Structure).

Contents:

  1. लेखा का अर्थ (Meaning of Accounts)
  2. लेखापरीक्षा से लेखा का पृथकीकरण (Separation of Accounts from Audit)
  3. लेखा का विभागीकरण (Departmentalisation of Accounts)
  4. लेखा का महालेखा नियंत्रक (Comptroller General of Accounts)
  5. लेखा का ढाँचा (Structure of Accounts)

1. लेखा का अर्थ (Meaning of Accounts):

वित्तीय प्रशासन में ‘लेखा’ शब्द की व्याख्या इस रूप में की गई है कि यह ”मौद्रिक मूल्य रखने वाले धन या वस्तुओं से संबंधित तथ्यों का विवरण है ।” जिन तथ्यों को लेखा के अभिलेखों में शामिल किया जाता है उनको ‘लेनदेन’ कहते हैं ।

अत: लेखा विधि का अर्थ है- वित्तीय लेन-देन का व्यवस्थित अभिलेख रखना । इसके अंतर्गत वित्तीय प्रकृति के लेन-देन का एकत्रण, अंकन, वर्गीकरण तथा सार प्रस्तुतीकरण और उनके परिणामों का अर्थ लगाना शामिल है ।

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लेखा विधि के तीन उद्देश्य है:

(i) कोष संभालने वालों की विश्वसनीयता का निर्धारण,

(ii) नीति निर्धारण एवं प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए वित्तीय स्थितियों तथा कार्यों से संबंधित सूचनाएं प्रदान करना और

(iii) व्यय को बजटीय प्रावधानों एवं सीमाओं रखना ।

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एल.डी.व्हाइट के अनुसार व्यवस्थित लेखा के प्रमुख कार्य तीन हैं:

(i) वित्तीय अभिलेख तैयार करना ।

(ii) कोष सँभालने वालों की रक्षा करना ।

(iii) संगठन एवं उसकी सभी शाखाओं में वित्तीय शर्तों को प्रकट करना ।

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(iv) व्यय की दरों में आवश्यक संशोधनों को बढ़ावा देना ।

(v) उत्तरदायी पदों पर बैठे लोगों को जानकारी देना जिसके आधार पर भविष्य के वित्तीय और कार्यकारी कार्यक्रमों को बनाया जा सके ।

(vi) लेखापरीक्षा में सहायता करना ।


2. लेखापरीक्षा से लेखा का पृथकीकरण (Separation of Accounts from Audit):

1976 तक लेखाविधि और लेखापरीक्षण कार्य भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के पद से जुड़े थे । दूसरे शब्दों में, वह लेखा के संग्रहण तथा रखरखाव के साथ उनका लेखापरीक्षण भी करता था । ये दोनों काम वह केंद्र सरकार के ही नहीं, राज्य सरकारों के लिए भी करता था । यह मिली-जुली व्यवस्था ब्रिटिशराज का अवशेष थी और इसकी आलोचना हुई ।

अत: इंचकेप कमेटी (1923), डीमैन कमेटी (1924), साइमन कमेटी (1929), सार्वजनिक लेखा समिति और आकलन समिति ने निम्नलिखित आधारों पर लेखा को लेखापरीक्षा से अलग करने की सिफ़ारिश की:

(i) पृथकीकरण से लेखापरीक्षा विभाग की कुशलता बढ़ेगी क्योंकि लेखाविधि के उत्तरदायित्वों से मुक्त होकर यह केवल लेखापरीक्षा पर ध्यान केंद्रित कर सकेगा ।

(ii) सम्मिलित व्यवस्था मैं धोखाधड़ी और गबन और इनको प्रकट होने से रोकने के खतरे अंतर्निहित हैं ।

(iii) एक ही पद के साथ इन दोनों कार्यों का पद के साथ उचित नहीं है क्योंकि लेखा एक कार्यपालक कार्य है जबकि लेखापरीक्षा एक अर्द्ध संसदीय कार्य है ।

(iv) सम्मिलित प्रणाली, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से उसी लेखा की लेखापरीक्षा करने की अपेक्षा करती है जिसको स्वयं उसने संग्रहीत किया है । इससे वह अत्यंत उलझन की स्थिति में पड़ जाते हैं । यह आधुनिक सरकारों की कार्यपद्धति के विरूद्ध भी है जिनमें ये दोनों काम अलग-अलग होते हैं ।

(v) पृथकीकरण के फलस्वरूप विभागों के खर्चे संसद द्वारा स्वीकृत विनियोगों से अधिक नहीं हो सकते क्योंकि उन पर लेखापालन की जिम्मेदारी आ जाती है ।

(vi) पृथकीकरण के फलस्वरूप लेखापरीक्षण की स्वाधीनता बढ़ती है क्योंकि सम्मिलित व्यवस्था लेखापरीक्षा के सिद्धांत के विपरीत होती है ।

(vii) लेखापालन के उत्तरदायित्व विभागों को सौंपने से न केवल लेखा पालन की प्रणाली में सुधार आएगा बल्कि इससे वे अधिक उत्तरदायी भी बनेंगे ।

(viii) लेखापालन का उत्तरदायित्व कार्यपालक विभागों को सौंपे जाने से दोनों कार्य अलग हो जाएँगे और इससे न केवल बजट निर्माण को गोपनीय रखना आसान होगा बल्कि विभागों द्वारा संशोधित आकलनों को आसानी से अधिक कारगर ढंग से सूत्रबद्ध किया जा सकेगा ।

(ix) पृथकीकरण से निर्णय-निर्माण और वित्तीय प्रबंधन में लेखाविधि के उपयोग का रास्ता खुलता है ।


3. लेखा का विभागीकरण (Departmentalisation of Accounts):

1976 में लेखा के विभागीकरण की नई योजना लागू करके केंद्र सरकार ने लेखा को लेखापरीक्षा से अलग कर दिया ।

विभागीय प्रबंधन लेखाविधि प्रणाली की योजना की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं:

(i) भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को केंद्र सरकार के लेखा संग्रहीत करने तथा उनके रखरखाव के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया और अब उसका सरोकार उनके लेखापरीक्षण मात्र से है । परंतु उन राज्यों के लेखा संग्रह और उसके रखरखाव का उत्तरदायित्व अब भी उस पर है जिन्होंने लेखा को लेखापरीक्षा से अलग नहीं किया है ।

(ii) प्रशासनिक विभागों ने भुगतान एवं प्राप्तियों के अधिकांश कार्य कोषागारों से ले लिए हैं । दूसरे शब्दों में भुगतान करने और उनका हिसाब रखने की जिम्मेदारी विभागों ने खुद ले ली है ।

(iii) मंत्रालय तथा उससे संलग्न तथा अधीनस्थ कार्यालयों के तमाम लेन-देन के लिए मुख्य लेखा प्राधिकारी के रूप में मंत्रालय सचिव को नामित किया गया है । भुगतान तथा लेखापालन व्यवस्था की कार्यपद्धति का पूरा दायित्व उसी पर है । मासिक लेखा के प्रमाणीकरण के लिए भी ही उत्तरदायी है । वह अपना उत्तरदायित्व मंत्रालय के एकीकृत वित्त सलाहकार के द्वारा और उसकी सहायता से पूरा करता है ।

(iv) एकीकृत वित्तीय सलाहकार मंत्रालय के लेखा संगठन और भुगतान का प्रधान होता है ।

मंत्रालय सचिव अर्थात् मुख्य लेखा प्राधिकारी की ओर से वह निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होता है:

1. मंत्रालय और इसके विभागों के बजट का निर्माण,

2. व्यय पर नियंत्रण,

3. मंत्रालय द्वारा स्वीकृत भुगतानों का व्यवस्थापन,

4. संपूर्ण मंत्रालय के लेखा का समेकन,

5. मंत्रालय द्वारा नियंत्रित अनुदानों के लिए विनियोग लेखा को तैयार करना,

6. प्रबंधन की ऐसी कुशल प्रणाली को लागू करना जो मंत्रालय तथा इसके विभागों के लिए सबसे उपयुक्त हो,

7. भुगतानों एवं लेखा की आंतरिक लेखा परीक्षा,

8. लेखा की सटीकता और कार्य संचालन की कुशलता सुनिश्चित करना ।

उपरोक्त कार्यभारों के निष्पादन के लिए एकीकृत वित्तीय सलाहकार की सहायता निम्न अधिकारी करते हैं- प्रधान लेखा अधिकारी, भुगतान एवं लेखा कार्यालयों के प्रमुख, मुख्य लेखा नियंत्रक और लेखा नियंत्रक ।


4. महालेखा नियंत्रक (Comptroller General of Accounts):

वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के एक अंग के रूप में 1976 में महालेखा नियंत्रक के एक नए पद की स्थापना की गई । उसका काम केंद्र सरकार के लेखा विभागीयकरण से संबंधित मामलों का संचालन करना है । वह केंद्र सरकार की नई लेखा प्रणाली का मुख्य तकनीकी प्राधिकारी है ।

उसके निम्नलिखित काम हैं:

(i) लेखा संबंधी सिद्धांतों एवं लेखाओं के रूप को विनिर्दिष्ट करना ।

(ii) लेखा क्षेत्र में नियमों और विनियमों को बनाना ।

(iii) आंतरिक लेखापरीक्षा ।

(iv) लेखा संहिताओं और नियमावलियों का प्रकाशन ।

(v) भारतीय लोक लेखा सेवा एवं लेखा कार्मिकों का प्रबंधन करना ।

(vi) केंद्र सरकार के मासिक एवं वार्षिक लेखा का समेकन ।

(vii) संविधान की धारा 283 के अधीन नियमों को लागू करना । इस धारा का संबंध संचित निधि के संरक्षण और उसके अन्य पक्षों से तथा आकस्मिकता निधि और सार्वजनिक लेखा में जमा राशियों से है ।

(viii) केंद्र सरकार के विनियोग लेखा और वित्त लेखा का एक संक्षिप्त प्रपत्र तैयार करना । नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक द्वारा लेखापरीक्षण के बाद इनको संसद में प्रस्तुत किया जाता है ।

विनियोग लेखा का काम विभिन्न अनुदानों के अंतर्गत हुए वास्तविक खर्चे की तुलना पारित अनुदानों की राशि से करना है जैसा कि संसद द्वारा पारित विनियोग अधिनियम में निर्दिष्ट है । विनियोग लेखा (संबंधित शीर्षों के अंतर्गत) केंद्र सरकार के लिए वार्षिक प्राप्तियों तथा संवितरणों को प्रदर्शित करता है ।

1992 में सरकारी लेखा कार्यालयों एवं वित्त संस्थान की स्थापना महालेखा नियंत्रक के अधीन दिल्ली में की गयी ताकि नागरिक लेखा सेवा के कर्मिकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके । फरवरी 2000 में के.पी. गीताकृष्णन की अध्यक्षता में व्यय सुधार आयोग का गठन किया गया, जिसने अपनी 10 रिपोर्ट एवं सिफारिशें सितम्बर 2001 में पेश कीं ।


5. लेखा का ढाँचा (Structure of Accounts):

संविधान की धारा 150 के अनुसार केंद्र एवं राज्य सरकारों के लेखा के प्रपत्रों का निर्धारण नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है । लोकसभा की नियम संख्या 204 में कहा गया है कि लोकसभा में बजट वित्त मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रपत्र में (आकलन समिति के सुझावों, यदि कोई हों, पर विचार करके) प्रस्तुत किया जाएगा । व्यवहार में बजट का प्रपत्र लेखा के प्रपत्र से मेल खाने वाला होता है ।

लेखा की मौजूदा कार्यपद्धति निष्पादन बजटिंग की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकी । परिणामस्वरूप प्रबंधन के उद्देश्यों तथा वित्तीय नियंत्रण एवं जवाबदेही की जरूरतों को पूरा करने के लिए 1974 में केंद्र सरकार ने लेखा निधि के एक संशोधित ढाँचे को लागू किया ।

इस संशोधित योजना के अनुसार लेखा के पाँच स्तरीय वर्गीकरण को अपनाया गया:

1. क्षेत्रीय (Sectorial),

2. प्रमुख शीर्ष (Major Head),

3. गौण शीर्ष (Minor Head),

4. उप शीर्ष (Subhead),

5. विस्तृत शीर्ष (Detailed Head) ।

मंडलीय वर्गीकरण ने सरकारी कार्यकलापों को तीन क्षेत्रों में बाँट दिया है- सामान्य सेवाएँ (छह उप क्षेत्रों सहित), सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ और आर्थिक सेवाएँ (सात उपक्षेत्रों सहित) । इसके अतिरिक्त एक चौथा क्षेत्र भी है- सहायता अनुदान और अंशदान ।

लेखा का प्रमुख शीर्ष सरकार के कार्यकलाप (जैसे-कृषि) को इंगित करता है जबकि गौण शीर्ष किसी कार्यक्रम (जैसे कि कृषि कार्य) का संकेतक है । उपशीर्ष किसी कार्यक्रम के अंतर्गत योजना को सूचित करता है जबकि विस्तृत शीर्ष उस खर्चे का प्रतिनिधित्व करता है जो वेतनों, निवेशों आदि के रूप में उस योजना पर हुए हैं ।

नए संशोधित वर्गीकरण में ‘वस्तु शीर्ष’ (जैसे वर्गीकरण वस्तुनिष्ठ स्तर) बनाए रखा गया है और इसको अंतिम पंक्ति में रख दिया गया है । यह खर्च पर मदवार नियंत्रण प्रदान करता है । प्रमुख शीर्ष में किसी भी परिवर्तन के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वीकृति आवश्यक है ।