जॉन लॉक और उनकी राजनीतिक सिद्धांत | John Locke and his Political Theory in Hindi!

रक्तहीन क्रांति का दार्शनिक, उदार और सीमित शासन का पोषक तथा हॉब्स से भिन्न सामाजिक समझौते की परिकल्पना करने वाला ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का प्राध्यापक जॉन लीक सामाजिक समझौते के सिद्धांत का दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है ।

लॉक का जन्म 1632 ई॰ में ब्रिटेन के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ । उसकी प्रारंभिक शिक्षा वेस्ट मिस्टर स्कूल में हुई । बी॰ए॰ और एम॰ए॰ की उपाधियाँ उसने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की । तत्पश्चात उसने इसी विश्व विद्यालय में अध्यापक का पद ग्रहण किया परंतु इसमें लीक की इस धारणा को तत्कालीन यूरोप पर व्याप्त रुचि न होने के कारण उसने त्याग-पत्र दे दिया ।

इसके नवीन बौद्धिक वातावरण ने पुष्ट किया । फ्रांस और हालैंड बाद उसने डा॰ डेविड नामक चिकित्सक के निर्देशन में में निवास करने के समय उसने स्वयं देखा कि डॉक्टरी सीखनी शुरू कर दी तथा शीघ्र ही उसने एक अच्छे डॉक्टर के रूप में ख्याति प्राप्त की ।

लीक के विचारों पर प्रभाव (Impact on Locke’s Ideas):

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जॉन लॉक एक उदारवादी विचारक था । अन्य विचारकों की तरह उसके चिंतन को भी उसकी परिस्थितियों ने प्रभावित किया । उन्हीं परिस्थितियों से प्रभावित होकर वह उदारवादी बना । उसके परिवार के उदारवादी और प्यूरिटनवादी वातावरण तथा उसके उदारवादी मित्रों ने उसके चिंतन को प्रभावित किया । पार्लियामेंट और राजा के बीच चलने वाले संघर्ष तथा ब्रिटेन की गौरवपूर्ण क्रांति ने भी उसके को प्रभावित किया ।

पार्लियामेंट और राजा के बीच सत्ता के नाम पर चल रहे गृहयुद्ध में सत्ता के पक्षधरों की विजय हुई । इसके फलस्वरूप क्रॉमवेल की अध्यक्षता में ब्रिटेन में गणतंत्र की स्थापना हुई । 1658 में उसकी मृत्यु के पश्चात ब्रिटेन में राजतंत्र की स्थापना हुई तथा चार्ल्स द्वितीय सम्राट बना । इन सबका लीक के उदारवादी और सीमित शासन का समर्थक होने में महत्वपूर्ण योगदान है ।

राज्य की उत्पत्ति का सिद्धांत (Theory of Origin of State):

जॉन लॉक के राज्य की उत्पत्ति संबंधी विचारों को निम्न बिन्दुओं में समाहित किया जा सकता है ।

मानव स्वभाव:

लॉक ने हॉब्स के विपरीत मानव स्वभाव का वर्णन किया है । उसकी दृष्टि में मानव मूलतः अच्छा, शांतिपूर्ण और सामाजिक होता है । लीक में यह विश्वास उत्पन्न होने का कारण उसमें सह्यदयता और सहानुभूति के स्वाभाविक गुण का होना था । वस्तुतः पिता का स्नेह, मित्रों की सहानुभूति और लार्ड एशले की कृपा प्राप्त करने के कारण उसमें यह विश्वास उत्पन्न होना स्वाभाविक था कि मनुष्यों में दया, प्रेम, सहानुभूति आदि स्वाभाविक गुण होते हैं ।

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राजपदों पर काम करते समय और एशले के पतन के बाद निर्वासित जीवन व्यतीत करते समय उसे मानव स्वभाव की विकृतियों के कटु अनुभव हुए लेकिन उसकी मूल धारणा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ कि मनुष्य स्वभाव से अच्छा होता है ।

लॉक की इस धारणा को तत्कालीन यूरोप पर व्याप्त नवीन बौद्धिक वातावरण ने पुष्ट किया । फ्रांस और हालैंड की राजनीति और धार्मिक कट्‌टरता का स्थान सहिष्णुता ने ले लिया था तथा मानव को दुष्ट और स्वार्थी न समझा जाकर, अच्छा माना जाने लगा था ।

1688 ई॰ की रक्तहीन क्रांति ने लीक की मानव स्वभाव संबंधी धारणा को बल प्रदान किया । उसने देखा कि ब्रिटेन के निवासियों ने बिना रक्तपात किए एक राजा को उसकी अयोग्यता के कारण राजसिंहासन से हटाकर दूसरे राजा विलियम को उस पर इस आशा से आसीन किया कि वह राज्य के कार्यों को कुशलतापूर्वक करेगा तथा उनकी अधिकार संबंधी मांगों को पूरा करेगा ।

इस घटना ने लॉक की इस धारणा को सत्य सिद्ध कर दिया कि मानव स्वभाव में अनेक गुण होते हैं । उसे इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया कि मनुष्य स्वार्थी और अविवेकी नहीं होता, उसमें सामाजिकता का गुण होता है तथा उसको नियंत्रण में रखने के लिए बल प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती ।

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रक्तहीन क्रांति से लीक ने जो निष्कर्ष निकाला उसको ‘जोन्स’ ने निम्नलिखित शब्दों में कहा, यह घटना इस बात की साक्षी है कि मनुष्य काफी विवेकी होते हैं और वे समझते हैं कि उसका सर्वात्तम हित इसी बात में है कि वे पारस्परिक सहयोग द्वारा शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करें ।

इसी निष्कर्ष के आधार पर लीक ने मानव स्वभाव के विषय में अपनी धारणा को व्यक्त किया है । इस संदर्भ में जोन का कथन है कि – ”यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि लीक का राजनीतिक सिद्धांत स्वाभाविक और अनिवार्य रूप से उसकी इस धारणा पर आधारित है कि मनुष्य किस प्रकार के होते हैं ।”

लॉक ने भी हॉब्स की तरह मानव स्वभाव पर अपने विचारों का विश्लेषण क्रमबद्ध रूप से नहीं किया है ।

”शासन पर दो निबंध” के दूसरे खंड में उसके विचार इधर-उधर बिखरे पड़े हैं, जो इस प्रकार हैं:

1. विवेक:

मनुष्य विवेकशील प्राणी है उसमें सर्वप्रधान गुण विवेक है, इसीलिए वह सभी नियमों को स्वीकार करता है और उनके अनुसार आचरण करने का प्रयत्न करता है । इसके अतिरिक्त मनुष्य में पारस्परिक सहयोग और सामाजिकता के भी गुण होते हैं । वह प्रेम, दया, शांति, सज्जनता, एकता तथा नैतिकता में विश्वास रखता है ।

2. मानव-समानता:

लॉक ने मानव समानता पर विशेष बल देते हुए लिखा है, ”सब मनुष्य प्राकृतिक रूप में समानता की अवस्था में होते है ।” वह कहता है कि प्राकृतिक रूप में सब मनुष्यों की शक्ति, स्थिति और अधिकार समान होते हैं । अतः प्राकृतिक अवस्था में सभी लोग समान लाभ प्राप्त करते हैं और समान शक्तियों का प्रयोग करते हैं ।

मानव समानता से लीक का तात्पर्य यह है कि चूंकि प्रत्येक व्यक्ति एक स्वतंत्र इकाई है, इसीलिए वह नैतिक दृष्टि से दूसरे मनुष्यों के समान है । उसे केवल वे ही अधिकार प्राप्त हैं जो उसे मनुष्य के नाते प्राप्त होने चाहिए न कि वे अधिकार जो शक्ति, स्थिति या सम्पत्ति के कारण प्राप्त होते हैं ।

3. कांट के समान मानव स्वभाव:

लॉक का मानव स्वभाव संबंधी विचार जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के विचारों के समान है । कांट का मानना है कि ‘विवेकशील प्रकृति अपने-आप में साध्य है’ (Rational Nature Exists as an End-in-Itself) । चूँकि मनुष्य इसी विवेकशील प्रकृति की श्रेणी में आता है, इसलिए मानव मात्र को सदैव एक साध्य मानकर चलना चाहिए, केवल साधन मानकर कभी नहीं चलना चाहिए । इस तरह राज्य के प्रत्येक सदस्य को स्वतंत्र कर्ता के रूप में मान्यता देनी चाहिए; उनमें किसी को दास बनाकर रखना अनुचित होगा ।

प्राकृतिक अवस्था का स्वरूप (Human Nature):

लॉक की प्राकृतिक अवस्था उसके मानव स्वभाव से संबंधित है । उसने हॉब्स की तरह यह माना है कि राज्य की उत्पत्ति के पूर्व मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में रहता था जिसमें समाज था लेकिन राज्य नहीं, अर्थात समाज का स्वरूप था लेकिन राजनीतिक संगठन नहीं । ‘डनिंग’ के शब्दों में ”जिस प्राकृतिक अवस्था की लॉक द्वारा कल्पना की गई है वह प्राकृतिक-सामाजिक के स्थान पर प्राकृतिक-राजनीतिक अवस्था है ।”

लॉक का मनुष्य स्वभावतः अच्छा, शांतिप्रिय, परोपकारी, सामाजिक और विवेकी है, इसीलिए प्राकृतिक अवस्था में उसका जीवन सुखमय और शांतिमय था । उसका जीवन, उसकी स्वतंत्रता और सम्पत्ति सुरक्षित थी । प्राकृतिक अवस्था समृद्ध, सम्पन्न और शांतिपूर्ण थी ।

प्राकृतिक अवस्था का सही चित्रण प्रस्तुत करते हुए लीक कहता है कि प्राकृतिक विधान की सीमा में रहते हुए अपना कार्य करने की, अपनी सम्पत्ति और व्यक्तित्व की अपने इच्छानुसार व्यवस्था करने की पूर्ण स्वतंत्रता ही मनुष्य की प्राकृतिक अवस्था है । यह अवस्था समानता की है । इसमें प्रत्येक को सब अधिकार समान रूप से होते हैं, किसी अन्य से अधिक नहीं ।

यद्यपि प्राकृतिक अवस्था स्वतंत्रता की अवस्था अवश्य है तथापि वह उच्छृंखलता की अवस्था नहीं है । यद्यपि इस अवस्था में मनुष्य को अपनी सम्पत्ति या व्यक्तित्व की स्वेच्छापूर्वक व्यवस्था करने की अनियमित स्वतंत्रता है । तथापि उसे अपने को या अपने अधीन किसी जीव को नष्ट करने की स्वतंत्रता नहीं है ।

यदि अपने अधीनस्थ किसी जीव को नष्ट करने से किसी उच्चतर उद्देश्य की पूर्ति प्राप्ति होती है तभी उसे नष्ट किया जा सकता है । प्राकृतिक अवस्था में व्यवस्था के लिए प्राकृतिक विधान है जो सर्वमान्य है । विवेकतत्व का यह विधान है ।

समस्त जिज्ञासु मानवजाति को यह विधान शिक्षा देता है कि सब मनुष्य समान और स्वतंत्र है । अतः किसी को दूसरे के जीवन, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता और सम्पत्ति का अनिष्ट नहीं करना चाहिए ।

लॉक आगे लिखता है कि जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन की यात्रा की रक्षा करता है और जीने की इच्छा स्वतः नहीं त्यागता उसी प्रकार उसे यथा संभव शेष मानवजाति के जीवन की भी रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए । यदि इसके कारण स्वयं उसकी सुरक्षा का प्रश्न न उपस्थित होता है । अपराधी को दंड देने के अतिरिक्त उसे किसी दूसरे का जीवनहरण करने का अधिकार नहीं है और न उसे किसी के जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति को हानि पहुँचाने का ही अधिकार है ।

प्रमुख लक्षण:

1. स्वतंत्रता:

प्राकृतिक अवस्था पूर्ण स्वतंत्रता की अवस्था है जिसमें मनुष्य प्राकृतिक नियमों की सीमाओं के अंदर जो कार्य करना चाहे कर सकता है ।

2. समानता:

प्राकृतिक अवस्था में सब मनुष्यों में समानता है, किसी भी मनुष्य को किसी दूसरे मनुष्य की तुलना में न तो अधिक अधिकार प्राप्त है और न शक्ति । सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं, वे अपनी क्षमताओं में समान नहीं हैं लेकिन अधिकारों का उपयोग करने में समान हैं ।

प्राकृतिक कानून और अधिकार:

लॉक की प्राकृतिक अवस्था स्वतंत्रता और समानता पर आधारित है लेकिन इसका संचालन प्राकृतिक नियमों के अनुसार होता है, जो विवेक पर आधारित है । इसके साथ ही, प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करता था जैसा कि वह दूसरों से अपने साथ चाहता था । वह अपनी स्वतंत्रता का उपयोग प्राकृतिक नियमों की सीमाओं के अंतर्गत ही करता था ।

प्राकृतिक अधिकार:

लॉक का कथन है कि प्राकृतिक अवस्था का संचालन प्राकृतिक नियमों के अनुसार होता था और व्यक्तियों को इन नियमों के अनुसार ही प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे ।

ये अधिकार तीन प्रकार के थे:

1. जीवन का अधिकार:

लॉक के अनुसार आत्मरक्षा मनुष्य की सबसे प्रबल आकांक्षा है और आपकी समस्त क्रियाओं को प्रेरित करने वाला मुख्य तत्व भी है । अतएव आत्मसुरक्षा की प्राप्ति के लिए मनुष्य जिन विवेकपूर्ण कार्यों को करता है वे सब उसके विशेषाधिकार है और प्राकृतिक नियमों के अनुसार उसे प्राप्त होते हैं ।

2. स्वतंत्रता का अधिकार:

हॉब्स के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता था लेकिन लीक कहता है कि प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक नियमों के द्वारा स्थापित नैतिक व्यवस्था के अनुसार कार्य करना ही स्वतंत्रता है । अतः प्रत्येक व्यक्ति को नैतिक सीमाओं में रहते हुए अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करने का प्राकृतिक अधिकार है । लॉक के शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं है ।

यदि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे पर इच्छानुसार अत्याचार कर सके तो स्वतंत्र कौन रह सकेगा । अपने शरीर, कार्य और संपूर्ण सम्पत्ति की अपने पर लागू विधानों की सीमाओं के अंदर अपने इच्छानुसार व्यवस्था करना और इस प्रकार दूसरों की स्वेच्छाचारिता के अधीन न होकर अपनी इच्छा का अनुसरण करना ही स्वतंत्रता है ।

3. सम्पत्ति का अधिकार:

लॉक ने सम्पत्ति के अधिकार का वर्णन विस्तारपूर्वक किया है । सम्पत्ति से उसका तात्पर्य प्राकृतिक अवस्था में जीवन निर्वाह के बाहय साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व स्थापित करने से है । उसका कहना है कि प्रारंभ में सभी व्यक्तियों को प्रकृतिप्रदत वस्तुओं पर समान अधिकार प्राप्त था ।

अतएव सम्पूर्ण सम्पत्ति सामूहिक सम्पत्ति थी, लेकिन जब कोई व्यक्ति इन प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं को अपने श्रम से उपयोगी बना लेता है तब उस पर उसका व्यक्तिगत अधिकार स्थापित हो जाता है । इस प्रकार, मनुष्य के श्रम के माध्यम से व्यक्तिगत सम्पत्ति का निर्माण होता है ।

सामाजिक समझौता (Social Agreement):

प्राकृतिक अवस्था के चित्रण के बाद लीक ने राज्य की उत्पति के कारणों और उनके निर्माण की मीमांसा निम्नलिखित रूप से की है:

राज्य निर्माण के कारण:

प्राकृतिक अवस्था के वर्णन से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मनुष्यों का जीवन सामाजिक था, उसमें व्यवस्था थी । उसमें सब मनुष्य समान थे और सभी को जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति के अधिकार प्राप्त थे । लोगों में शांति, सदभावना और सहयोग की भावना थी । उन पर प्राकृतिक नियमों का शासन था । सभी व्यक्तियों को इन नियमों को स्वयं लागू करने और भंग करने वाले को दंड देने का अधिकार था ।

वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक नियमों को लागू करने और उनको भंग करने वालों को दंड देने के व्यक्तिगत अधिकार ने ही प्राकृतिक अवस्था में शांत वातावरण और सुखी जीवन को युद्ध की स्थिति तथा कष्टमय जीवन में परिवर्तित कर दिया ।

इसके कारण प्रत्येक व्यक्ति आत्महित के आधार पर प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने लगा और प्रतिशोध की भावना से एक दूसरे को दंड देने लगा । इसके साथ ही व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के नहीं रहने से लोग असुविधाओं का अनुभव करने लगे ।

जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति खतरे में पड़ने लगी । दूसरों के आक्रमण और अतिक्रमण का भय बना रहा । इस प्रकार इन असुविधाओं से सुरक्षा पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक समझौते द्वारा राज्य निर्माण की बात सोचने लगा ।

अतः वह उन मनुष्यों के साथ सम्मिलित हो जाता है, जो अपने जीवन, स्वतंत्रता, और संपत्ति की पारस्परिक सुरक्षा के लिए राज्य का निर्माण करने के लिए तत्पर हैं । लॉक के शब्दों में, मनुष्यों द्वारा राज्य के निर्माण और सरकार की अधीनता स्वीकार किए जाने का महान और मुख्य उद्देश्य अपनी संपत्ति की सुरक्षा है ।

सामाजिक समझौते द्वारा राज्य का निर्माण:

प्राकृतिक अवस्था को असुविधाओं से बचने और अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को सुरक्षित करने के लिए सभी मनुष्य सामाजिक समझौते द्वारा राज्य का निर्माण करते हैं । प्राकृतिक अवस्था में सभी व्यक्ति समान और स्वतंत्र हैं । इसीलिए ये समझौता प्रत्येक व्यक्ति का सभी व्यक्तियों के साथ होता है । इस तरह समझौते का स्वरूप सामाजिक है ।

इस स्पष्ट समझौते के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने उन प्राकृतिक अधिकारों का परित्याग करता है जिनके कारण प्राकृतिक अवस्था में अराजकता और अव्यवस्था फैलती है । हॉब्स के सामाजिक समझौते में प्रत्येक व्यक्ति अपने सभी अधिकारों को एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह को समर्पित करता है । दूसरी ओर, लॉक के सामाजिक समझौते में प्रत्येक व्यक्ति अपने कुछ अधिकारों को संपूर्ण समाज को सौंपता है ।

लॉक के सामाजिक समझौते का मुख्य उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति को समाज के आंतरिक और बाह्य खतरों से सुरक्षा प्रदान करना है । इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु व्यक्ति अपने जिन प्राकृतिक अधिकारों को समाज को समर्पित करते हैं, वे हैं, अपने-आप प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने का अधिकार, उनको कार्यान्वित करने का अधिकार और उनको भंग करने वालों को दंड देने का अधिकार । इस प्रकार प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करना, उनको लागू करना तथा उनके अनुसार दंड देना राज्य का कार्य हो जाता है ।

व्यक्ति अपने जिन अधिकारों को राज्य को सौंपता है, उनके बदले उसको समाज से जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के प्राकृतिक अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी मिलती है । व्यक्ति इन अधिकारों को राज्य को हस्तांतरित न करके मौलिक अधिकारों के रूप में अपने पास रखता है ताकि वह राजनीतिक शक्ति को मर्यादित कर सके । गेटेल का मत है कि लीक का समझौता विशिष्ट उद्देश्य के लिए और सीमित है, हीबा के समझौते के समान सामान्य और व्यापक नहीं है ।

विशेषताएं:

1. दो समझौते:

लॉक के सामाजिक समझौते के अंतर्गत दो समझौते किए जाते हैं । पहले से राज्य का निर्माण होता है और दूसरे से सरकार का गठन किया जाता है जो मौलिक समझौते के उपबंधों को कार्यान्वित करती है ।

2. समझौता जनता की सहमति पर आधारित:

लॉक का समझौता एक सर्वसम्मत समझौता है जो जन-इच्छा और सहमति पर आधारित है । कोई भी बिना सहमति के इस नवीन राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि लीक का मानना है कि सहमति ही विश्व में प्रत्येक वैध सरकार का निर्माण करती है ।

3. सभी अधिकारों का त्याग नहीं:

इस समझौते द्वारा व्यक्ति हॉब्स की भांति सभी अधिकारों का परित्याग नहीं करता बल्कि वह केवल तीन ही अधिकारों का त्याग करता है, जैसे प्राकृतिक कानून की व्याख्या करना, उसे कार्यान्वित करना और भंग करने वाले को दंड देना । वह जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों को अपने पास रखता है और उनके द्वारा राजनीतिक नियंत्रण को सीमित रखता है ।

4. शासक समझौते का एक पक्ष:

लॉक के समझौते में शासक भी समझौते का एक पक्ष होता है, अतएव समझौते की शर्त उस पर अनिवार्यतः लागू होती है तथा उसके लिए समझौते का पालन आवश्यक होता है ।

5. सीमित सरकार:

लॉक का समझौता हॉब्स के लेवियाथन के समान किसी संप्रभुसत्ताधारी का निर्माण नहीं करता है, जैसा कि गेटेल का कहना है, “चास्तविकता यह है कि लीक की पुस्तक में प्रभुसत्ता शब्द का उल्लेख भी नहीं हुआ है ।”

वस्तुतः समझौता ऐसे राज्य का निर्माण करता है, जिसके शासक राज्य के प्रतिनिधि होते हैं और जिन्हें शक्तियों राज्य से मिलती है । हॉब्स का समझौता ऐसे राज्य का निर्माण नहीं करता । लीक की सरकार सीमित होती है, उसकी शक्तियों पर जनता का नियंत्रण रहता है ।

6. सरकार पर दोहरा नियंत्रण:

लॉक राजनीतिक शक्ति या सरकार पर दोहरा नियंत्रण रखने की व्यवस्था करता है । उस पर पहला नियंत्रण व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का है, जिनको सुरक्षित रखने के लिए उसका निर्माण किया गया है । उस पर दूसरा नियंत्रण प्राकृतिक नियमों का है क्योंकि वह किसी भी दशा में इन नियमों के विरूद्ध कार्य नहीं कर सकता ।

लॉक का कहना है कि प्राकृतिक नियमों के बंधनों का राजनीतिक समाज में अंत नहीं होता है । डॉयल का भी कहना है कि जिस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक नियमों के बंधन में है, उसी प्रकार नवीन राजनीतिक शक्ति भी इन नियमों के बंधन में है ।

7. अटल समझौते:

लॉक का समझौता हॉब्स के समझौता के समान अटल है क्योंकि एक बार होने पर उसको रद्द नहीं किया जा सकता, लेकिन यह उसी तरह से बाद की पीढियों पर लागू नहीं माना जा सकता है जिस प्रकार से यह इसे सम्पन्न करने वालों पर लागू होती है । बाद की पीढ़ियों के समझौते के प्रति स्वीकृति जानने के लिए लॉक यह सुझाव देता है कि अगर बाद की पीढ़ियां समझौते द्वारा स्थापित व्यवस्था को स्वीकार करती है, तो इसे उनकी स्वीकृति समझी जानी चाहिए ।

8. बहुमत का शासन:

लॉक का समझौता शासन को किसी निरंकुश व्यक्ति को न सौंपकर बहुसंख्यकों के हाथ में देता है । इसका अर्थ है लीक बहुमत के शासन का समर्थन करता है ।

9. जनता का विद्रोह करने का अधिकार:

शासक और सरकार की स्थापना मनुष्यों के समझौते और सहमति पर आधारित होती है । अतएव, यदि सरकार निश्चित कार्य को पूरा करने की दिशा में कार्य न करे, तो शासक की नियुक्ति करने वाली जनता, विद्रोह करके उसे पदच्युत कर सकती है ।

विद्रोह या क्रांति का अधिकार (Right to Revolt or Revolution):

लॉक के अनुसार राज्य का निर्माण जनता के हित के लिए कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त होता है । कुछ असुविधाओं को दूर करने के लिए व्यक्ति राज्य को सीमित अधिकार देकर अपने विरोध का अधिकार नहीं खोते । व्यक्ति के जीवन-स्वातन्त्र्य और सम्पत्ति-रक्षा के मौलिक उद्देश्यों की पूर्ति न कर सकने पर राज्य के विरुद्ध कदम उठाया जाना स्वाभाविक है, हालाँकि यह कदम बहुत समर्थित होना चाहिए ।

लॉक की दृष्टि में व्यवस्थापिका राज्य का सर्वोच्च अंग है और कार्यपालिका उसके अधीन है पर यदि व्यवस्थापिका स्वेच्छाचारी आचरण करने लगे तो जनता को अधिकार है कि वह उसे नष्ट कर दे या बदल दे । लॉक के सिद्धांत की यह विशेषता है कि सरकार के भंग होने पर समाज ज्यों का त्यों बना रहता है, क्योंकि समाज का स्थान सरकार के ऊपर है ।

वह सरकार के भंग होने के सम्बन्ध में केवल इतना कहता है कि “सरकार तभी भंग हो सकती है जब कानून-निर्माण की शक्ति उस संस्था से हट जाती है जिसको जनता ने यह दी थी, या तब जबकि कार्यपालिका या व्यवस्थपिका उसका प्रयोग ट्रस्ट की शर्तों के विपरीत करते हैं” किन्तु विद्रोह करने के इस अधिकार पर प्रतिबंध है ।

प्रथम, जब तक स्थिति गम्भीर च हो जाए अथवा जब तक शासक अपने कर्त्तव्यों का पालन करता रहे तब तक जनता को अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए । द्वितीय, केवल बहुसंख्यक लोगों को ही सरकार उलटने का अधिकार है । लॉक के क्रांति विषयक इन विचारों के कारण ही कहा गया है कि उसने किसी शासन सिद्धांत का नहीं बल्कि क्रांति के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है । इस सिद्धांत का जेफरसन एवं अन्य राजनीतिज्ञों पर काफी प्रभाव था ।

व्यक्तिवाद:

वाहन का कथन है कि ”लॉक की व्यवस्था में हर वस्तु व्यक्ति के चारों तरफ चक्कर काटती है । प्रत्येक वस्तु को इस प्रकार सजाकर रखा गया है कि व्यक्ति की सम्प्रभुता सुरक्षित रहे ।” वास्तव में यह बहुत कुछ सत्य है कि लॉक ने जिस राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की उसका केन्द्र बिन्दु व्यक्ति है, तथापि इसका आशय यह नहीं है कि उसने व्यक्ति के प्रभुत्व का प्रतिपादन किया है ।

(i) लॉक की व्यवस्था व्यक्ति केन्द्रित है, ‘प्राकृतिक अवस्था, सभ्य समाज, संविदा, शासन-तन्त्र और राज्य-क्रांति ये सभी बातें व्यक्ति का गौरव बढ़ाने वाली हैं । लॉक जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति की रक्षा के अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को देता है । इन्हें वह व्यक्ति के जन्मसिद्ध, स्वाभाविक एवं प्राकृतिक अधिकार समझता है । जबकि आधुनिक मत यह है कि व्यक्ति के पास जो कुछ भी है वह समाज प्रदत्त है ।

(ii) लॉक यह भी बतलाता है कि व्यक्ति की नैतिक चेतना, न्याय-अन्याय की भावना आदि प्रकृति प्रदत्त हैं पर आज के समाजशास्त्री मानते हैं कि मानवीय चेतना का निर्माण सामाजिक वातावरण में होता है और समाज से ही उसे नैतिक भावना मिलती है ।

(iii) लॉक के अनुसार राज्य का प्रादुर्भाव ही व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए होता है । इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए ही वह राज्य की सत्ता पर अनेक मर्यादाएँ स्थापित करता है । मैक्सी के शब्दों में, “लॉक का कार्य राज्य की सत्ता को ऊपर उठाना नहीं, बल्कि उसके प्रतिबंधों का प्रतिपादन करना है ।”

प्रथम तो व्यक्ति ने अपनी जिस शक्ति का त्याग किया है वह एक व्यक्ति में नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज में निहित है और द्वितीय, शासक ‘लेवियाथन’ की भाँति असीमित अधिकार सम्पन्न निरंकुश प्रभु नहीं है, अपितु उसके अधिकार वहीं तक सीमित है जहाँ तक समाज अथवा बहुमत ने उन्हें उसे प्रदान किया है । व्यक्तिगत प्राकृतिक अधिकार प्रभुत्वसम्पन्न समाज के अधिकारों को मर्यादित करते थे ।

(iv) लॉक के धर्म-विषयक विचारों में भी व्यक्तिवाद की स्पष्ट झलक है । वह धर्म को व्यक्तिगत वस्तु मानता है और व्यक्ति को अन्तःकरण के अनुसार पूजा एवं उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करता है । वह कहता है कि धर्म व्यक्तिगत नैतिकता का संबल है, विश्वास-बुद्धि हृदय की पावनतम अनुभूति है ।

लॉक ने हॉब्स की भाँति व्यक्ति के सुख को भी सर्वोच्च महत्व प्रदान किया है । उसने मानव विवेक और मानव-समाज की कृत्रिमता पर आवश्यकता से अधिक बल देते हुए राज्य के जैविक स्वभाव की पूर्ण उपेक्षा की है ।

प्रकट है कि लीक ने व्यक्ति को अपनी सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु बनाया है । बार्कर के अनुसार, “लॉक में व्यक्ति की आत्मा की सर्वोच्च गरिमा स्वीकार करने वाली तथा सुधार चाहने वाली महान् भावना थी, उसमें वह प्यूरिटन अनुभूति थी कि आत्मा को परमात्मा के साथ अपने सम्बन्ध निश्चित करने का अधिकार है । ……… उसमें यह प्यूरिटन सहज बुद्धि थी कि वह राज्य की सीमा निश्चित करते हुए उसे यह कह सके कि उसका कार्यक्षेत्र यहाँ तक है वह इससे आगे नहीं बढ़ सकता ।” डनिंग ने भी उसके व्यक्तिवादी विचारों-उसके प्राकृतिक अधिकारों को राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण देन स्वीकार किया है ।

लॉक की व्यवस्था व्यक्ति केन्द्रित है, इससे सहमत होते हुए भी यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उसने व्यक्ति को पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न माना है । पहली बात तो यह है कि वह सामाजिक समझौते में बहुमत शासन का सिद्धांत अनिवार्यतः निहित करता है । इसका तात्पर्य यह हुआ कि किसी व्यक्ति विशेष अथवा अल्पमत को बहुमत के निर्णय को स्वीकार कर लेना एक अपरिहार्य आवश्यकता है ।

यदि व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार अपहरणीय है तो बहुमत को भी उसे उनसे वंचित करने का अधिकार नहीं हो सकता । यदि व्यक्ति पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न है तो उसे अपने निजी निर्णय का केवल इसलिए परित्याग कर देने को बाध्य नहीं किय जा सकता कि बहुमत उससे सहमत नहीं है ।

दूसरी बात यह है कि लीक ने अत्याचारी शासन के विरुद्ध विद्रोह का जो अधिकार दिया है वह भी बहुसंख्यकों को दिया है व्यक्ति को अथवा अल्पसंख्यकों को नहीं । इसके अतिरिक्त उसने यह भी मान लिया है कि जब तक शासन अपने कर्त्तव्यों का पालन करता रहता है तब तक जनता अपनी शक्ति से वंचित रहती है ।

अन्त में, उसका यह भी कहना है कि प्रारम्भ में लोगों ने जो समझौता किया था वह उसके वंशजों पर भी हो सकता है । इन सब कारणों से यह कहा जा सकता है कि लीक की व्यवस्था में व्यक्ति प्रभुत्वसम्पन्न नहीं है ।

लॉक का महत्व और प्रभाव (Importance and Effects of Locke):

लॉक की असंगतियों के कारण यद्यपि उसके चिंतन में अस्पष्टता आ गई है तथापि इससे राजनीतिक चिंतन के इतिहास में उसके प्रभाव को कम नहीं का जा सकता । अपनी महत्वपूर्ण देन के कारण उसका नाम राजदर्शन के इतिहास में अमर है । लीक के विचारों को उसके जीवन काल में ही न केवल बहुत सम्मान मिला बल्कि भविष्य में भी दो शताब्दियों से अधिक समय तक यूरोप और अमेरिका के जन-मानस पर उनका प्रभाव छाया रहा ।

फ्राँस और अमेरिका की जन-क्रान्तियों तथा आन्दोलनों पर उसके विचारों का प्रभाव पड़ा । 1765-71 तथा अमेरिकन स्वातंज्य युद्ध के नेता और सन् 1789 में फ्रांस की राज्य-क्रांति के प्रवर्तक लीक द्वारा प्रदर्शित व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्तिगत सम्पत्ति, जनमत स्वीकृति, बहुमत-शासन, शक्ति-विभाजन के सिद्धांत आदि से प्रेरित होकर कार्य करते रहे ।

अमेरिका के संविधानवेत्ता लीक की ‘ट्रीटाइजेज’ को बाइबिल की तरह पुनीत मानते रहे । उसके ये दोनों प्रशासन-निबन्ध अमेरिकन क्रांति के पाठ्‌यक्रम बन गए । अमेरिका की ‘स्वतंत्रता की घोषणा’ (Declaration of Independence) इसी महान् ग्रंथ का लगभग प्रतिलेख है । प्रजातान्त्रिक नीतिशास्त्र के प्रणयन में लीक की गौरवपूर्ण विशिष्टता को भुलाया नहीं जा सकता ।

राजसत्ता सहमति पर ही आधारित रह सकती है, इस घोषणा द्वारा उसने साम्राज्यवाद और निरंकुश शासन-प्रणाली का प्रबल विरोध किया । बहुमत शासन का जितना सुन्दर पक्षपोषण उसने किया, उतना अन्य किसी भी लेखक ने नहीं । क्रांति के अधिकार का पोषण करके उसने समस्त एकतंत्रों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारी चुनौती दी जिसे फिर रूसो ने और भी अधिक भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त किया ।

सहिष्णुता का समर्थन करके लीक ने केवल उदारवाद की ही सूचना नहीं दी बल्कि यह भी बताया कि तत्कालीन युग में वैज्ञानिक अन्वेषणों के कारण परम्परागत धार्मिक विश्वासों के प्रति एक उपेक्षाभाव जाग रहा था । कार्यपालिका को व्यवस्थापिका के अधीन बनाकर सांविधानिक शासन-क्रिया के समर्थक के रूप में लीक हमारे सामने आया ।

सेबाइन के अनुसार – “उसकी प्रतिभा की विशेषता न तो विद्धता थी और न तर्क शक्ति, यह उसकी अतुलनीय सहज बुद्धि थी जिसके प्रयोग से उसने दर्शन, राजनीति, आचरण शास्त्र तथा शिक्षा के क्षेत्र में उन मुख्य विचारधाराओं का एक स्थान पर संग्रह किया, जिन्हें भूतकाल के अनुभव ने उसकी समकालीन पीढ़ी के जो अधिक ज्ञानवान थी, मस्तिष्क में उत्पन्न कर दिया था । उसने उनको एक

सरल, गंभीर किन्तु हृदयग्राही भाषा में अभिव्यक्त करके 18वीं शताब्दी के लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया, जहाँ जाकर वे ऐसी सामग्री बने जिससे इंग्लैण्ड तथा यूरोप के राजदर्शन का विकास हुआ ।”

प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत यद्यपि आज अमान्य ठहराया जा चुका है किन्तु प्रो. डनिंग के मतानुसार यह सिद्धांत राजदर्शन को लीक की एक अति महत्वपूर्ण देन है । जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति को व्यक्ति के जन्मसिद्ध प्राकृतिक अधिकार मानते हुए उसने कहा कि राज्य का कर्तव्य उनकी रक्षा करना है और वह मनुष्य को इनसे वंचित नहीं कर सकता ।

आज सभी देशों के संविधानों में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा को प्रथम स्थान दिया जाता है । यह वर्तमान प्रजातंत्र और उदारवाद (Liberalism) की आधारशिला है । इसमें कोई संदेह नहीं कि लीक ने अपने पूर्ववर्ती विचारकों की अपेक्षा प्राकृतिक अधिकारों की व्याख्या और उनके निरूपण में निश्चित प्रगति की ।

आर्थिक क्षेत्र में भी लीक ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है । सम्पत्ति के विषय में श्रम को जो महत्व उसने प्रदान किया उसका असर दो प्रकार का हुआ । एडम स्मिथ और रिकार्डो ने मूल्य के श्रम-मूलक सिद्धांत को पूँजीवाद के पोषण में और कार्ल मार्क्स ने श्रमिक वर्ग के हितों के अभिवर्द्धन में प्रयुक्त किया । लॉक के उदारवाद ने भी उसके प्रभाव को बढ़ाने में मदद की । हॉब्स ने मनुष्य को घोर स्वार्थी माना था किन्तु लीक ने मानव-स्वभाव में कर्त्तव्यशीलता, परमार्थ-वृत्ति और नैतिकता के लिए भी स्थान रखा ।

इस कारण तत्कालीन शिक्षित समाज उसके विचारों से विशेष प्रभावित हुआ । शिक्षा-शास्त्री के रूप में लीक का महत्व सामने आया । शिक्षा को उसने चारित्रिक विकास के लिए आवश्यक माना और संस्कृति की प्राप्ति के लिए मातृभाषा द्वारा शिक्षा प्राप्ति को उचित ठहराया ।

लॉक ने व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका शक्तियों के विभाजन (Separation of Powers) के सिद्धांत का बीजारोपण किया । पॉलिबियस के बाद लीक ने ही इसका स्पष्ट और तर्कसंगत प्रतिपादन किया था । व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के रूप में इस सिद्धांत का प्रयोग करने वाला वह सम्भवत: सर्वप्रथम आधुनिक विचारक था ।

मॉन्टेस्क्यू ने इसी आधार पर अपने शक्ति-विभाजन तथा शासन सम्बन्धी कार्यों के त्रिवर्गीय विभाजन के सिद्धांत का विकास किया और अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने लीक एवं मॉन्टेस्क्यू के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए ही अपने विधान की रचना की ।