Read this article in Hindi to learn about the six main causes responsible for the decline of soviet union. The causes are: 1. लोकतंत्र तथा नागरिक अधिकारों का अभाव (Lack of Democracy and Civil Rights) 2. आर्थिक दुर्बलताएँ व चुनौतियाँ (Financial Weaknesses and Challenges) 3. गणराज्यों में केन्द्रीय शासन के प्रति असन्तोष (Dissatisfaction with the Central Government in Republics) and a Few Others.

Cause # 1. लोकतंत्र तथा नागरिक अधिकारों का अभाव (Lack of Democracy and Civil Rights):

सोवियत संघ की एक दलीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक लोकतंत्र का नितान्त अभाव था । साम्यवादी पार्टी के अलावा किसी अन्य पार्टी को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार नहीं था । 1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद स्टालिन के शासनकाल में यह स्थिति तानाशाही शासन का रूप धारण कर गयी । संसद स्टालिन के अधिनायकवादी निर्णयों पर केवल मुहर लगाने वाली संस्था रह गयी ।

समाचार पत्रों व मीडिया पर सरकार का कड़ा नियंत्रण था । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अभाव में सरकार की तानाशाही नीतियों के विरोध की संभावना नगण्य थी । विरोधियों का दमन आम बात हो गई थी । लोकतंत्र तथा नागरिक अधिकारों के अभाव में नागरिकों का असन्तोष लम्बे समय से पनप रहा था ।

Cause # 2. आर्थिक दुर्बलताएँ व चुनौतियाँ (Financial Weaknesses and Challenges):

सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पूरी तरह राज्य नियंत्रित थी तथा निजी सम्पत्ति व निजी पहल का अभाव था । नियोजित विकास में भारी उद्योगों पर अधिक बल था तथा उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में सोवियत संघ पीछे रह गया । शीत युद्ध की सैनिक प्रतिद्वन्द्विता के चलते बड़ी मात्रा में संसाधनों को सैनिक सामान तथा हथियारों के निर्माण में व्यय किया गया ।

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परिणामत: जनता की बुनियादी जरूरत की आवश्यक वस्तुओं की कमी असन्तोष का कारण बन गयी । आर्थिक क्षेत्र में निजी पहल के नितान्त अभाव के कारण अर्थव्यवस्था के विकास की गति 1970 के दशक के अन्त तक स्थिर हो गयी । यद्यपि सोवियत संघ में तेल व गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों की विपुलता थी लेकिन तकनीकी विकास की दृष्टि से सोवियत संघ पश्चिम की तुलना में पीछे रह गया था ।

आर्थिक दुर्बलताओं का परिणाम यह हुआ कि सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था जहाँ एक ओर जनता की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम नहीं थी वहीं दूसरी ओर तकनीकि दृष्टि से पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत पीछे रह गयी । यही आर्थिक पिछड़ापन नागरिकों में असन्तोष का प्रमुख कारण बना ।

Cause # 3. गणराज्यों में केन्द्रीय शासन के प्रति असन्तोष (Dissatisfaction with the Central Government in Republics):

सोवियत संघ में अत्यधिक केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था थी । तानाशाही शासन के दौरान गणराज्यों की राष्ट्रीय आकांक्षाएँ दबा दी गयी थीं लेकिन गोर्बाचेव के शासनकाल में परिस्थितियों में बदलाव के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आकांक्षाएँ प्रबल हो उठीं ।

सबसे पहले तीन बाल्टिक राज्यों- एस्टोनिया, लाटविया तथा लिथुआनिया में अलगाव की लहर चली । 1988 व 1990 के मध्य से तीनों गणराज्य सोवियत संघ से अलग होने की घोषणा कर चुके थे । इन राज्यों को 1940 में स्टालिन ने जर्मनी के साथ एक गुप्त समझौता करके सोवियत संघ में मिला लिया था ।

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सोवियत संघ में सत्ता का केन्द्र रूस गणराज्य था तथा अन्य गणराज्य आर्थिक, राजनीतिक व जातीय आधार पर भेदभाव व घुटन का अनुभव कर रहे थे । तीन बाल्टिक राज्यों के बाद 1991 में जार्जिया ने भी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी । इसी दौरान माल्डोविया तथा आर्मीनिया में भी राष्ट्रवादी भावनाएँ जोर पकड़ रही थी ।

Cause # 4. अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ (International Circumstances):

1980 के दशक के अंत से ही नई सूचना तकनीकि व नये संचार साधनों का तेजी से विकास हो रहा था । इसी समय वैश्वीकरण व उदारीकरण की प्रवृत्तियाँ भी जोर पकड़ रही थीं । इसका परिणाम यह हुआ कि सोवियत संघ के नागरिकों को पश्चिम देशों में हुई आर्थिक प्रगति व नागरिक सम्पन्नता की जानकारी प्राप्त हुई ।

उन्हें यह भी पता चला कि पश्चिमी देशों में वस्त्र मकान शिक्षा तथा चिकित्सा आदि की बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध हैं । उनका सांस्कृतिक जीवन भी समृद्ध है । जबकि दूसरी ओर सोवियत संघ में न तो लोकतंत्र व नागरिक अधिकार उपलब्ध हैं और न ही जनता को बेहतर सुविधाएँ ।

इस जानकारी के बाद सोवियत संघ की आर्थिक व राजनीतिक असफलता व कमजोरियों के प्रति सोवियत जनता में विश्वास बढ़ गया तथा वे इस व्यवस्था को बदलने के लिए आतुर दिखाई देने लगे । जब गोर्बाचेव ने बदलाव की नीतियों को लागू किया तो उनका प्रबन्धन ठीक से नहीं हो सका तथा जनता का आक्रोश फूट पड़ा । इसका परिणाम सोवियत संघ के विघटन के रूप में देखने में आया ।

Cause # 5. पूर्वी यूरोप में साम्यवादी देशों में बदलाव (Changes in Communist Countries in Eastern Europe):

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उल्लेखनीय है कि पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश सोवियत सघ के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं । 1980 के दशक में जब इन देशों में साम्यवादी सरकारों के विरुद्ध जनता का विरोध सामने आया तथा लोकतंत्र की माँग प्रबल हुई तो पश्चिमी देशों ने लोकतंत्र की माँग का भरपूर समर्थन किया ।

इसका परिणाम यह हुआ कि सोवियत प्रभाव वाले साम्यवादी देशों जैसे- पोलैन्ड, हंगरी, रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया आदि में एक के बाद एक साम्यवादी व्यवस्था को समाप्त कर उदारवादी लोकतांत्रिक सरकारों की स्थापना । इससे पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ का प्रभाव कम हो गया तथा ये देश पश्चिम के प्रभाव में चले गये । इससे सोवियत संघ अन्तर्राष्ट्रीय में राजनीतिक और वैचारिक दोनों दृष्टि से कमजोर हो गया । इसका परिणाम सोवियत संघ के विघटन के रूप में दिखाई दिया ।

Cause # 6. गोर्बाचेव की सुधारवादी नीतियाँ (Gorbachev’s Reformist Policies):

मिखाइल गोर्बाचेव ने 1985 में सोवियत संघ की बागडोर संभाली । उन्हें सोवियत संघ की कमजोरियों था उनके प्रति जनता के दृष्टिकोण का आभास था । अत: उन्होंने धार का कार्यक्रम लागू किया जिसे पेरेस्ट्रॉइका (पुनर्निर्माण) तथा ग्लैस्नास्ट (खुलापन) की नीतियों के नाम से जाना जाता है ।

इन नीतियों मुख्य उद्देश्य जहाँ एक ओर आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक में खुलापन लाना था वहीं अर्थव्यवस्था व राजनीतिक व्यवस्था में साम्यवादी पार्टी के एकाधिकार को समाप्त करना था । लेकिन सुधारों गति विवाद का विषय बन गयी ।

जनता सुधारों में तेजी चाह रही थी, जबकि साम्यवादी पार्टी के कट्टरवादी तत्व इन सुधारों के विरोध में थे । इसका परिणाम यह हुआ कि आपसी खींचतान में सुधार प्रक्रिया समुचित प्रबन्धन नहीं हो सका । राजनीतिक और आर्थिक सुधारों का कार्यक्रम एक साथ चला जो कि उचित नहीं था । सही रास्ता यह था कि आर्थिक सुधारों के बाद क्रमश: राजनीतिक सुधारों को आगे बढ़ाया जाये । इन सुधारों व उनके समुचित प्रबन्धन के अभाव में सोवियत रूस का विघटन हो गया ।