Read this article in Hindi to learn about the relations between India and China.

चीन व भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाले विश्व के दो बड़े पड़ोसी देश हैं । दोनों वर्तमान में विश्व की उभरती हुयी आर्थिक शक्तियाँ हैं । वैश्वीकरण तथा आर्थिक उदारीकरण के युग में दोनों ने उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति अर्जित की है । यद्यपि दोनों देश एशिया में स्थित हैं लेकिन दोनों के सम्बन्ध विश्व राजनीति को प्रभावित करते हैं ।

भारत को 1947 में आजादी मिली तथा 1949 में चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई । आधुनिक राष्ट्रों के रूप में उदय के पूर्व भी दोनों के नम प्राचीनकाल से सांस्कृतिक व व्यापारिक सम्बन्ध रहे हैं ।

जहाँ भारतीय बौद्ध धर्म का प्रचार चीन में हुआ वहीं चीनी यात्री फाहियान तथा ह्वेनसांग प्राचीनकाल में भारतीय दर्शन के अध्ययन हेतु भारत आये थे । भारत व यूरोप के देशों के बीच व्यापार हेतु प्राचीन सिल्क रूट भी नान से होकर गुजरता था ।

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रति चीन की जनता व नेताओं की सहानुभूति प्राप्त थी । भारत ने 1949 की साम्यवादी क्रान्ति का स्वागत किया था तथा जूटका राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् में चीन की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया था । भारत ने चीन को स्वाभाविक मित्र पड़ोसी देश माना था ।

1954 में चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई भारत की यात्रा पर आये तथा दोनों देशों ने शान्ति व पारस्परिक सहयोग पर संबन्धों को में बढ़ाने के लिये पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें पाँच सिद्धांत शामिल किये गये थे- एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और सम्प्रभुता का सम्मान, दोनों देशो द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध अनाक्रमण की वचनबद्धता, दोनों देश द्वारा एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व ।

तिब्बत की समस्या तथा सीमा विवाद (Tibet’s Problem and Border Dispute):

भारत व चीन के मध्य स्थित तिब्बत में बौद्ध जनसंख्या का बहुमत था । उसे ब्रिटिश शासनकाल में चीन का स्वायत्तशासी क्षेत्र माना गया था । भारत ने भी 1954 में तिब्ब्त पर चीन की स्वायत्ता स्वीकार कर ली थी । लेकिन चीन ने चन्दन जर अपनी पूर्ण सम्प्रभुता स्थापित करने के लिये बड़ी तादाद में वहाँ चीनी नागरिकों को बसाना आरंभ किया जिसका तिब्बतियों ने विरोध किया ।

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मार्च 1959 में चीनी सेना के दमन से बचने के लिये तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा अपने 14000 समर्थकों के साथ भारत चले आये । भारत में बौद्ध तिब्बतियों के लिये स्वाभाविक सहानुभूति थी । भारत ने तिब्बतियों को राजनीतिक शरण प्रदान की तथा तिब्बत की निर्वासित सरकार की स्थापना भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थान पर की गयी । चीन ने भारत के इस कदम को शत्रुतापूर्ण कार्य माना ।

साम्यवादी चीन ने आरम्भ से ही विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया है जिसके कारण चीन तथा उसके पड़ोसियों के साथ सीमा विवादों की उत्पत्ति हुई है । चीन पश्चिमी तथा पूर्वी दोनों सीमा क्षेत्रों पर भारत के एक बड़े भू- भाग पर अपना दावा करने लगा था । चीन ने भारत के साथ ऐतिहासिक सीमा रेखा- मैकमोहन रेखा को यह कहकर मानने से मना कर दिया कि यह सीमा रेखा साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासन द्वारा 1914 में निर्धारित की गयी थी तथा उसमें चीन के हितों का ध्यान नहीं रखा गया था । वास्तव में चीन की विस्तारवादी नीति का उद्देश्य भारत के एक बड़े भू-भाग पर कब्जा करना था ।

1962 का चीनी आक्रमण (Chinese invasion of 1962):

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अपनी विस्तारवादी नीति के अन्तर्गत अचानक 20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों सीमा क्षेत्रों में भारत के विरुद्ध बड़े पैमाने पर सैनिक आक्रमण कर दिया था । भारत ने अमेरिका और ब्रिटेन से सैनिक सहायता की अपील की तथा चीन के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त कर दिये ।

इस युद्ध में भारतीय सेनाओं की चीन के हाथों पराजय हुई तथा 21 नवम्बर 1962 को चीन ने एक पक्षीय युद्ध विराम की घोषणा कर दी । इस युद्ध के बाद भारत की प्रतिष्ठा को धक्का लगा तथा दोनों देशों के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गये ।

उल्लेखनीय है कि इस युद्ध के बाद चीन ने अक्साई चिन क्षेत्र में भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर अधिकार कर लिया जो आज भी चीन के नियन्त्रण में है । इसके अतिरिक्त चीन अरूणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर अपना दावा कर रहा है ।

1963 में चीन ने पाकिस्तान से पाक अधिकृत कश्मीर का 5000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्राप्त कर लिया है । साथ ही चीन मध्य क्षेत्र में लगभग दो हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर भी अपना दावा प्रस्तुत कर रहा है । सीमा विवाद के समाधान हेतु आयोजित की गयी कई चक्रों की वार्ताओं के बावजूद यह विवाद आज भी इसी रूप में लम्बित है ।

भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार का युग (The Era of Improvement in Indo-China Relations):

1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में दोनों देशों के सम्बन्धों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई । 1976 में कूटनीतिक सम्बन्धों की पुन: शुरुआत की गयी । 1979 में भारत के तत्कालीन विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की । भारत व चीन के सम्बन्धों में सुधार का एक बड़ा अवसर तब आया जब भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1988 में चीन की यात्रा की ।

पिछले 34 वर्षों में यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा थी । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अतीत को भूलकर सम्बन्धों के नये युग की शुरुआत करने का संकल्प लिया । इस यात्रा में नागरिक उड्‌डयन व सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग के साथ-साथ सीमा विवाद को हल करने के लिये वार्ताओं पर सहमति व्यक्त की । इसी के बाद दोनों देशों के बीच सीमा वार्ताओं का क्रम शुरू हुआ है ।

शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त तथा वैश्वीकरण के युग में दोनों देशों के मध्य उच्चस्तरीय यात्राओं के आदान-प्रदान के क्रम में तेजी आयी । 1991 में चीन के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की । यह 31 वर्षों के बाद किसी भी चीनी प्रधानमंत्री की पहली भारत यात्रा थी ।

1992 में भारत के राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने चीन की यात्रा की । 1992 में ही भारत में चीन महोत्सव तथा 1994 में चीन में भारत महोत्सव का आयोजन किया गया । 1996 में चीन के राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आये तथा दोनों देशों ने एक-दूसरे के विरुद्ध आक्रमण न करने तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव घटाने पर सहमति व्यक्त की ।

इस बदले हुए सकारात्मक माहौल का कारण यह था कि दोनों ही वैश्वीकरण के युग में तीव्र आर्थिक विकास के लिये आपसी सहयोग को आगे बढ़ाना चाहते थे । चीन ने भी इस अवधि में ‘शान्तिपूर्ण स्वयं’ (Peaceful Rise of China) की नीति अपनायी ।

भारत के राष्ट्रपति ने मई-जून 2000 में चीन की यात्रा की । इस यात्रा के दौरान भारत ने चीन को यह आश्वासन दिया कि भारत तिब्बत को चीन का स्वायत्त क्षेत्र मानता है । दलाई लामा की स्थिति भारत में एक धार्मिक गुरु की है तथा उन्हें भारत में राजनीतिक गतिविधियों के संचालन की अनुमति नहीं दी जायेगी ।

जनवरी 2002 में चीन के प्रधानमंत्री झू रोंगजी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 6 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किये जिसमें बह्मपुत्र नदी में बाढ़ के दौरान सूचनाओं का आदान-प्रदान करने, विज्ञान, तकनीकि तथा पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने वाले सहमति पत्र शामिल थे ।

22-27 जून 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा भी ऐतिहासिक रही । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एक ऐतिहासिक घोषणा-पत्र, व्यापार सम्बन्धी सहमति पत्र तथा 9 अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर किये ।

नियमित उच्च स्तरीय शिखर वार्ताओं की शुरुआत (Regular High Level Summit Begins):

अप्रैल 2005 में चीन के प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ ने भारत की यात्रा की तथा दोनों देशों ने 5 साल के अन्दर सभी विवादों का समाधान करने तथा सहयोग व साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए सहमति व्यक्त की । दोनों देशों का मानना था कि सीमा विवाद के रहते हुए भी अन्य क्षेत्रों में दोनों देश सम्बन्धों को आगे बढ़ायेंगे ।

दोनों देशों ने शांति व सम्पन्नता के लिए सामरिक व सहयोगात्मक साझीदारी (Strategic and Cooperative Partnership for Peace and Prosperity) नामक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये । सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों ने राजनीतिक मानदण्डों तथा निर्देशक सिद्धान्तों का निर्धारण किया गया । महत्वपूर्ण बात यह थी कि दोनों देशों ने नियमित उच्च स्तरीय विचार-विमर्श के लिए प्रतिवर्ष प्रधानमंत्री स्तर की शिखर वार्ताओं के आयोजन का निर्णय लिया ।

इस व्यवस्था के अन्तर्गत 2006, 2008 तथा 2010 तथा 2013 में चीन के प्रधानमंत्रियों ने भारत की यात्रा की तथा वर्ष 2007, 2009 तथा 2011 में भारत के प्रधानमंत्रियों ने चीन की यात्रा की । शिखर वार्ताओं का यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा ।

भारत ने इस तरह की नियमित शिखर वार्ताओं की व्यवस्था केवल अन्य 4 साझीदारों- रूस, जापान, यूरोपीय संघ तथा आसियान के साथ की है । 2011 से दोनों देशों ने विदेश मंत्री स्तर पर प्रतिवर्ष सामरिक व आर्थिक वार्ताओं का क्रम शुरू किया है ।

भारत-चीन सम्बन्ध: वर्तमान स्थिति (Current Status of India-China Relations):

21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में दोनों के सम्बन्धों में तनाव व सहयोग दोनों के बिन्दु समान रूप से विद्यमान हैं । भारत और चीन प्रमुख वैश्विक मुद्दों जैसे-जलवायु परिवर्तन, दोहा व्यापार वार्ताएँ, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार आदि में लगभग एक समान दृष्टिकोण रखते हैं ।

लेकिन दोनों के मध्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर मतभेद के कई बिन्दु भी विद्यमान हैं:

1. दोनों का सीमा विवाद अभी तक विद्यमान है । 2013 तक 16 चक्रों की वार्ताएँ हो चुकी हैं, लेकिन समाधान नहीं मिला । 2013 में लद्‌दाख क्षेत्र में भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ की घटनाएँ हुई हैं ।

2. दोनों के मध्य एशिया प्रशान्त क्षेत्र, दक्षिण एशिया व अफ्रीका में आर्थिक और सामरिक हितों की पूर्ति हेतु प्रतियोगिता भी चल रही है । चीन ही सुरक्षा परिषद् का एकमात्र ऐसा स्थायी सदस्य देश है जिसने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का खुलकर समर्थन नहीं किया ।

3. दक्षिण एशिया में चीन द्वारा भारत को घेरने की नीति तथा पाकिस्तान के उसके सामरिक गठजोड़ के कारण भारत सुरक्षा की दृष्टि से चिन्तित है ।

इन तमाम मतभेदों के बावजूद गत एक दशक में जो नई बात सामने आयी है वह यह कि दोनों ही आर्थिक व व्यापारिक क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं । भारत और चीन के व्यापार में गत एक दशक में आशातीत बढ़ोत्तरी हुई है । इसे वैश्वीकरण के युग में आर्थिक तर्क का प्रभाव भी कहा जा सकता है कि 2010 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार देश बन गया है ।

वर्ष 2001 में दोनों का द्विपक्षीय व्यापार 2.32 बिलियन डॉलर था, जो 2012-13 में बढकर 66.5 बिलियन डॉलर हो गया है । लेकिन 40 बिलियन का व्यापार घाटा भारत के विरुद्ध है । 2013 में चीन में नए नेतृत्व ने सत्ता ग्रहण की है । चीन के प्रधानमंत्री केक्यांग की मई 2013 में सम्पन्न भारत यात्रा के दौरान व्यापार घाटे से सम्बन्धित मुद्‌दों पर चर्चा हुई है, लेकिन अभी तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं मिल सका है । अत: वर्तमान में दोनों के सम्बन्ध मतभेदों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने के हैं ।

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