लेंस: प्रकार और अनुप्रयोग | Lens: Types and Applications. Read this article in Hindi to learn about:- 1. Introduction to Lens 2. Types of Lens 3. Applications.

गोलीय लैंस का आशय (Introduction to Lens):

आपने अपने घर या आसपास लोगों को आँख में चश्मा लगाए देखा होगा । इन चश्मों का उपयोग लोग दृष्टि कमजोर होने पर (अर्थात् दृष्टि दोष होने पर) पास या दूर की वस्तु को देखने में करते हैं । इन चश्मों में लगे काँच खिड़की में लगे काँच से भिन्न होते हैं ।

साधारण काँच की प्लेट से किताब के अक्षर देखने पर उनके आकार में कोई परिवर्तन नहीं होता है जबकि चश्मे में लगे काँच से किताब के अक्षर देखने पर वे छोटे या बड़े दिखाई देते हैं । दृष्टि दोष दूर करने के लिए आँख के चश्मों में काँच के लेंसों का उपयोग करते हैं ।

साधारण काँच और लैंस को हम छूकर पहचान सकते हैं । साधारण काँच की सतहें आपस में समांतर तथा समतल होती हैं जबकि लैंस की सतह वक्राकार होती हैं । लैंस एक ऐसा समांगी पारदर्शी माध्यम होता है जो दो वक्राकार सतहों से अथवा एक वक्राकार सतह तथा एक समतल सतह से घिरा होता है ।

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घड़ीसाज द्वारा घड़ी के छोटे कलपुर्जों को देखने में प्रयुक्त पारदर्शी काँच, ज्योतिषी द्वारा हस्तरेखा देखने में प्रयक्त पारदर्शी काँच तथा फोटोग्राफिक कैमरा में प्रयक्त पारदर्शी काँच आदि दैनिक जीवन में लैंस के उपयोग के उदाहरण हैं ।

लैंस के प्रकार (Types of Lens):

लैंस दो प्रकार के होते हैं:

(1) उत्तल लैंस;

(2) अवतल लैंस

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(1) अभिसारी या उत्तल लैंस:

ये लैंस बीच में मोटे तथा किनारों पर पतले होते हैं । ये आपतित प्रकाश किरणों को एक बिन्दु पर एकत्रित करते हैं । उत्तल लैंस के (अ) दोनों पृष्ठ उत्तल (ब) एक समतल या एक उत्तल और (स) एक उत्तल और एक अवतल हो सकते हैं ।

(2) अपसारी लैंस या अवतल लैंस:

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ये लैंस किनारों पर मोटे तथा बीच में पतले होते हैं । ये लैंस आपतित प्रकाश किरणों को फैला देते हैं । अवतल लैंस के (अ) दोनों पृष्ठ अवतल (ब) एक पृष्ठ समतल और एक पृष्ठ अवतल या (स) एक पृष्ठ उत्तल और एक पृष्ठ अवतल हो सकते हैं ।

 

उत्तल लैंस से अपवर्तन के बाद प्रकाश किरणें अभिसारित हो जाती हैं:

उत्तल लैंस से अपवर्तन के बाद प्रकाश किरणें एक विशेष बिन्दु पर मिल जाती है या अभिसारित हो जाती हैं ।

उत्तल लैंस से अपवर्तन के बाद प्रकाश किरणें अभिसारित हो जाती हैं । इसे समझने के लिए उत्तल लैंस को चित्रानुसार छोटे-छोटे काँच के कई भागों से मिलकर बना हुआ मानते हैं । लैंस का मध्य भाग काँच की समतल पट्टिका की भाँति तथा दोनों ओर के अन्य भाग कुछ ब्रिज की आकृति के समान दिखाई देते हैं ।

लैंस के मध्य भाग से गुजरने वाली किरणें बिना विचलित हुए सीधी निकल जाती हैं जबकि अन्य भागों से निकलने वाली किरणें विचलित होकर एक बिन्दु पर मिलने लगती है । हम जानते हैं कि जब कोई प्रकाश किरण किसी ब्रिज में से गुजरती है तो वह प्रिज्म के आधार की ओर झुककर बाहर निकलती है ।

इस प्रकार यदि उत्तल लैंस को यदि चित्र 8.19 में दिखाए गए दो प्रिज्मों से मिलकर बना माने तो स्पष्ट है कि उत्तल लैंस से अपवर्तन के पश्चात् किरणें ब्रिज के आधार की ओर झुककर बाहर निकलने के बाद आगे चलकर एक बिन्दु पर मिलती हैं ।

 

अवतल लैंस द्वारा प्रकाश किरणें अपवर्तन के बाद फैल जाती हैं:

अवतल लैंस को निम्न चित्रानुसार दो प्रिज्मों से मिलकर बना मान सकते हैं । जब प्रकाश किरणें अवतल लैंस से गुजरती हैं तो वे ऐसे फैल जाती हैं जैसे वे प्रिजम के आधार की ओर झुककर बाहर निकल रही      हो ।

इस प्रकार अवतल लैंस को चित्रानुसार काँच के कई छोटे-छोटे भागों से मिलकर बना माने तो स्पष्ट होता है कि अवतल लैंस से अपवर्तन के बाद प्रकाश किरणें फैल जाती हैं चित्र 8.21 । अवतल लैंस के इस गुण के कारण इसका उपयोग स्पष्ट देखने के लिए आँख के चश्मों, घर के दरवाजे पर लगी Door Eye तथा कुछ पार्थिव दूरदर्शी (गैलीलियन दूरदर्शी) में होता है ।

 

पतले लैंस द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना (Thin Lens Formation):

लैंस के समक्ष जब किसी वस्तु को रखा जाता है तो वस्तु से चलने वाली प्रकाश किरणें लैंस से अपवर्तन के बाद निम्न नियमों का पालन करती हुई बाहर निकलती है इन नियमों को लैंस द्वारा प्रतिबिम्ब बनने के नियम कहते हैं ।

(a) जब कोई प्रकाश किरण लैंस के मुख्य अक्ष के समांतर लैंस पर आपतित होती है तो अपवर्तन के बाद वह लैंस के मुख्य फोकस से होकर जाती है या जाती हुई प्रतीत होती है ।

(b) जब कोई प्रकाश किरण प्रथम मुख्य फोकस से आती है या आती हुई प्रतीत होती है, तो वह लैंस से अपवर्तन के बाद मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है ।

(c) जब कोई प्रकाश किरण प्रकाशिक केन्द्र से होकर गुजरती है तो वह बिना विचलित हुए सीधी निकल जाती है ।

 

उत्तल लैंस द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना (Reflection Formed by Convex Lens):

जब उत्तल लैंस के समक्ष किसी वस्तु को रखा जाता है तो उसका प्रतिबिम्ब लैंस के दूसरी ओर बनता है । लैंस द्वारा बने प्रतिबिम्ब की स्थिति आकार तथा उसका उल्टा या सीधा होना लैंस के सामने रखी वस्तु की स्थिति पर निर्भर करता है । नीचे तालिका में लैंस के सामने भिन्न-भिन्न स्थितियों में वस्तु को रखकर उत्तल लैंस द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना दर्शाया गया है ।

वह प्रतिबिम्ब जिसे पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है, वास्तविक प्रतिबिम्ब कहलाता है । जैसे सिनेमाघर के पर्दे पर बना प्रतिबिम्ब । इसके विपरीत वह प्रतिबिम्ब जिसे पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है, आभासी प्रतिबिम्ब कहलाता है जैसे समतल दर्पण में बना प्रतिबिम्ब ।

उत्तल लैंस द्वारा प्रतिबिम्ब के बनने को समझने के लिए उत्तल लैंस के सामने, तालिका में दी गई भिन्न-भिन्न स्थितियों में वस्तु के स्थान पर जलती हुई मोमबत्ती को रखें तथा लैंस के दूसरी ओर सफेद दीवार या पर्दे पर बनने वाले प्रतिबिम्ब का अवलोकन कीजिए ।

अवतल लैंस द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना (Reflection Formed by Concave Lens):

अवतल लैंस के सामने रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब सदैव आभासी सीधा तथा वस्तु से छोटा व प्रकाशिक केन्द्र तथा फोकस के मध्य बनता है ।

 

लैंस के अनुप्रयोग (Applications of Lens):

आवर्धक लैंस:

वह लैंस जिसकी सहायता से छोटी वस्तुओं छोटे अक्षरों या महीन संरचना को बडे रूप में देख सकते हैं आवर्धक लैंस कहलाता है । यह एक कम फोकस दूरी का उत्तल लैंस होता है । जब उत्तल लैंस के सामने वस्तु को उसके फोकस और प्रकाशिक केन्द्र के बीच रखते हैं तो उसका बड़ा सीधा व आभासी प्रतिबिम्ब दिखाई देता है ।

इस स्थिति में उत्तल लैंस आवर्धक लैंस की तरह कार्य करता है । इस प्रकार के उत्तल लैंस को चित्रानुसार एक हत्थे वाले गोलाकार फ्रेम में कस देते हैं, जिससे इसका उपयोग आसान हो जाता है ।

सूक्ष्मदर्शी:

वह उपकरण जिसका उपयोग सूक्ष्म वस्तुओं को देखने में किया जाता है सूक्ष्मदर्शी है ।

सूक्ष्मदर्शी दो प्रकार के होते हैं:

(i) सरल सूक्ष्मदर्शी:

कम फोकस दूरी के उत्तल लैंस को सरल सूक्ष्मदर्शी कहते हैं । इस प्रकार एक आवर्धक लैंस एक सरल सूक्ष्मदर्शी है ।

(ii) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी:

कुछ कण, संरचनाएं एवं जीव इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें सरल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से नहीं देखा जा सकता है । अत: अत्यंत सूक्ष्म चीजों को देखने के लिए दो या दो से अधिक लेंसों से बने उपकरण का उपयोग करते हैं, इस प्रकार के सूक्ष्मदर्शी को ‘संयुक्त सूक्ष्मदर्शी’ या यौगिक सूक्ष्मदर्शी कहते हैं ।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की खोज एटनी वान ल्यूवेनहॉक (1632-1723) ने की थी । संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में धातु की एक लम्बी बेलनाकार नली होती है, जिसके दोनों सिरों पर उत्तल लैंस लगा होता है ।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में जिस लैंस के सामने वस्तु को रखते हैं, उसे अभिदृश्यक लैंस कहते हैं तथा जिस लैंस से सूक्ष्मतम वस्तु के बडे प्रतिबिम्ब को देखते हैं उसे नेत्रिका लैंस कहते हैं । नेत्रिका लैंस का व्यास एवं फोकस दूरी का मान, अभिदृश्यक लैंस के व्यास एवं फोकस दूरी के मान की तुलना में अधिक होता है ।

दूरदर्शी:

दूरदर्शी वह उपकरण है जिसका उपयोग दूर स्थित वस्तुओं को देखने में किया जाता है ।

यह दो प्रकार के होते हैं:

(i) पार्थिव दूरदर्शी ।

(ii) खगोलीय दूरदर्शी ।

ऐसे दूरदर्शी, जो पृथ्वी पर दूर स्थित वस्तु को देखने में प्रयुक्त होते है, पार्थिव दूरदर्शी कहलाते हैं, जबकि ऐसे दूरदर्शी जिनका उपयोग चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों को देखने में करते हैं, खगोलीय दूरदर्शी कहलाते हैं । दूरदर्शी में सूक्ष्मदर्शी की भाँति अभिदृश्यक तथा नेत्र लैंस होते हैं । ये दोनों लैस धातु की एक लम्बी बेलनाकार नली के सिरों पर लगे होते हैं ।

इसमें अभिदृश्यक लैंस का व्यास एवं उसकी फोकस दूरी का मान नेत्रिका लैंस के व्यास एवं फोकस दूरी के मान से अधिक होता है । नेत्रिका लैंस के सामने निश्चित दूरी पर क्रॉस तार लगा होता है, जिसका उपयोग दूर स्थित वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए किया जाता है ।

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