Read this article in Hindi to learn about how to control pests of cole crops.

(1) गोभी की तितली (Cabbage Butterfly):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम पियेरिस ब्रैसिकी है । ये लेपिडोप्टेरा गण के पियेरिडी कुल का कीट है ।

पहचान:

वयस्क कीट सफेद रंग की तितलियां होते हैं जिनके अगले पंखों के शीर्षस्थ कोण काले रंग के होते हैं । शेष पंख पीलापन लिए हुए सफेद होते हैं । अगले पंखों पर दो काले निशान होते हैं । पिछले पंखों के सीमांत भाग में एक काला धब्बा होता है । पंखों की फैली हुई अवस्था में मादा लगभग 6.5 सेमी. चौड़ी होती है ।

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नर मादा की अपेक्षा छोटा होता है और उसके दोनों अगले पंखों की सतह पर काले धब्बे होते हैं । पूर्ण विकसित लार्वा लगभग 40-50 मि.मी. लम्बा तथा प्रारम्भ में पीली नारंगी रंग का होता है । बाद में उनका रंग हरापन लिए पीला हो जाता है । इनके शरीर पर हल्के-हल्के बाल होते हैं और सिर काला होता है ।

क्षति:

इस कीट की लार्वी ही पौधों को क्षति पहुंचाती है । प्रारंभिक अवस्था में वे पास-पास रहकर खाती है, परन्तु बाद में इधर-उधर फैल जाती है और एक पौधे पर आने के बाद दूसरे पौधे पर चली जाती है । अधिक प्रकोप होने पर पौधे पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं ।

ये बड़े पौधों के शीर्ष के आस-पास वाले पत्तों की शिराओं को छोड्‌कर सभी भागों को खा जाती हैं । ये बंधे हुए शीर्ष की ऊपरी पत्तियाँ भी काटकर नष्ट कर देती है । इस प्रकार गोभी का बाजार भाव कम हो जाता है ।

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जीवन-चक्र:

मादा तितली गोभी की पत्तियों की निचली सतह पर 50-80 अण्डे झुण्ड में देती है । अण्डे का ऊष्मायन काल 3-17 दिनों का होता है । अण्डे से निकली लार्वी आरम्भ में झुण्ड में खाती है बाद में अलग-अलग हो जाती है । लारवा 15-40 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाता है । ये पत्तियों, शाखाओं, झाड़ियों आदि में छिपकर प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है । प्यूपाकाल एक सप्ताह का होता है ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. प्रारम्भिक अवस्था में लार्वा एक-साथ में रहकर खाते है अतः उनको हाथ से पकड़कर नष्ट करने से इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है ।

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ii. बड़े लार्वा सुस्त होते है और आसानी से इधर-उधर चलते हुए दिखाई देते हैं । अतः इन्हें हाथ से पकड़कर कीटनाशी घोल में डालकर नष्ट किया जा सकता है ।

iii. पत्ता गोभी की रेड रोक मैमथ, रेड पिकलिंग और रेड ड्रम हैड किस्मों पर इस तितली का प्रकोप कम होता है ।

iv. कार्बोरिल 4 प्रतिशत चूर्ण का 25 किग्रा. प्रति हेक्टर की दर से भुरकाव करना चाहिये ।

v. डाइक्लोरोवास या क्वीनालफॉस या एण्डोसल्फॉन का 0.1 प्रतिशत छिड़काव करना लाभप्रद रहता है ।

vi. ऐपैटेलिस ग्लूमेरैटस नामक कीट इसकी इल्लियों का परजीवी है ।

(2) अर्द्धकुण्ड्लक (Semilooper):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम ट्राइकारेप्लूसिया नी है । ये लेपिडोप्टेरा गण के नाक्टुइडी कुल का कीट है ।

पहचान:

इस कीट का वयस्क पतंगा सुदृढ़, भूरा होता है । इसके अगले पंखों का रंग भूरा होता है जिन पर हल्के रंग के लहरदार निशान होते हैं और अंग्रेजी के ‘वाई’ अक्षर के आकार का एक निशान होता है ।

क्षति:

इस कीट की लार्वी ही क्षति पहुँचाती है । ये बड़ी संख्या में नर्सरी तथा खेत में दिखाई देती है और पत्तियों के हरे भाग को खा जाती है । परिणामस्वरूप पत्तियों पर केवल शिराएँ ही शेष रह जाती हैं । तीव्र प्रकोप होने पर फसल पूर्णतः नष्ट हो जाती है । इसके प्रकोप से लगभग 30-60 प्रतिशत तक उपज में कमी आ जाती है ।

जीवन-चक्र:

मादा पत्तियों की निचली सतज पर 300-400 हरे-सफेद रंग के अण्डे देती है । इनसे 4-5 दिनों में लारवा निकल आते हैं ये आरम्भ में पत्तियों को झुण्ड में खाते हैं । लारवा 20-27 दिनों में पूर्ण विकसित होते हैं । पूर्ण विकसित लारवा पत्तियों की निचली सतह पर पतले रेशमी ककून में प्यूपा बनाती है । प्यूपाकाल एक सप्ताह का होता है । वयस्क कीट 5-6 दिनों तक जीवित रहते हैं । वर्ष में 5-6 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. जब लार्वी समूह में रहकर एक साथ खाती है तो उन्हें पकड़कर नष्ट किया जा सकता है ।

ii. बाद की अवस्था में 0.05 प्रतिशत मैलाथियान या एण्डोसल्फान दवाओं का छिड़काव करना चाहिये ।

(3) आरा मक्खी (Sawfly):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम एथेलिया ल्यूजेन्स प्रोक्जिमा है । ये हाइमेनोप्टेरा गण के टेन्धनीडीडी कुल का कीट है ।

पहचान:

यह मध्यम आकार की मक्खी की तरह का कीट है जो लगभग 1 से.मी. लम्बा होता है । इसका शरीर नारंगी, सिर काला और पंख धुएँ के रंग के होते हैं । पंख झिल्लीदार होते हैं और उनकी नसें स्पष्ट दिखलाई देती हैं अण्डे से निकली हुई इल्लियाँ हरी-सलेटी तथा काले सिर वाली होती है ।

वे लगभग 2 मि. मी. लम्बी होती हैं । पूर्ण विकसित ग्रब 15 से 18 मि.मी. लम्बे हरे-काले होते हैं । इनके वक्ष पर 3 जोड़ी टांगें तथा उदर पर 7 जोड़ी प्रपाद होते हैं जो 2 से 9 वें खण्ड तक स्थित होते हैं । प्रारंभिक अवस्था में ग्रब समूह में खाते है और बाद में अलग-अलग फैल जाते हैं ।

ये सुबह तथा शाम के समय पौधों पर दिखाई देते हैं और दिन में पत्तियों या सूखी मिट्‌टी या ढेलों के नीचे छिपे रहते हैं । जरा सा छेड़ने पर ये मुड़कर कुण्डलाकार बनकर जमीन पर गिर जाते हैं । इनके पृष्ठ भाग पर पाँच बिन्दीदार धारियाँ स्पष्ट होती है ।

क्षति:

इस कीट के ग्रब गोभी वर्गीय सब्जियों की पत्तियों को क्षति पहुँचाते हैं । ये पत्तियों को खाकर उनमें छेद कर देते हैं । तीव्र प्रकोप होने पर पत्तियों को पूर्णतः खा जाते है । फलतः पौधे मर जाते हैं । बड़े पौधों में प्रकोप होने पर शीर्ष छत का आकार छोटा रह जाता है ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. सुबह तथा सांयकाल आरा मक्खी के ग्रबों को हाथ से एकत्रित कर नष्ट करा जा सकता है ।

ii. 0.05 प्रतिशत मैलाथियान या 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव कीट के नियन्त्रण में पूर्ण प्रभावी है ।

iii. मैलाथियान 5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या क्वीनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से भुरकाव करना चाहिये ।

iv. एकोरस कैलेमस 0.05 से 1 प्रतिशत ईथर सत में आरा मक्खी भृंग के प्रति उच्च आविषालुता पायी जाती है । अतः इसे उपयोग में लाना चाहिये ।

v. इकानियोमोनिड परजीवी पेरीलिसस सिगलेटर आरा मक्खी की भृंगों का परजीवी है । अतः इसका संरक्षण तथा संवर्धन करना चाहिये ।

(4) हिरक पृष्ठ शलभ या डायमण्ड बैक माथ (Diamondback Moth):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम प्लूटैला जाइलोस्टेला है । ये लेपिडोप्टेरा गण के प्लूटेलीडी कुल का कीट है ।

पहचान:

वयस्क कीट छोटा धूसर रंग का पतंगा होता है । जब यह बैठता है, तो इसके पृष्ठ भाग पर 3 हीरे की तरह के चमकीले चिन्ह दिखाई देते हैं । इसलिये इसे हिरक पृष्ठ शलभ या डी.बी.एम. कहते हैं । यह लगभग 8 मि.मी लम्बा होता है ।

जब यह बैठा होता है, उस समय इसके पंख बाहर फैले हुए और दूरस्थ सिरे की ओर कुछ उठे हुए रहते हैं । पिछले पंखों में लम्बे-लम्बे बालों की धारियाँ होती हैं । इस कीट की लार्वी पीलापन लिए हुए हरे रंग की होती है । अगले सिरे पर ये भूरे रंग की होती है । पूर्ण विकसित लार्वी लगभग 8 मि.मी. लम्बी होती है ।

क्षति:

इस कीट के छोटे लार्वा पत्तियों की निचली सतह को खाते हैं और उनमें छोटे-छोटे छिद्र बना देते हैं । तीव्र प्रकोप होने पर छोटे पौधे पूर्णतः पत्तियों रहित हो जाते है और मर जाते है । ये बड़े पौधों के शीर्षों में छिद्र बना देते हैं जिनमें इनका मल भरा रहता है । इस प्रकार बन्द गोभी का बाजार भाव कम हो जाता है तथा वह स्वास्थ्यप्रद भी नहीं रहती है ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर पीले-सफेद रंग के अण्डे एक-एक करके अलग-अलग देती है । मादा अपने जीवन काल में 57-60 तक अण्डे देती है । इन अण्डे से 6-7 दिनों में लारवा निकलता है । ये पत्तियों को खाकर 10-30 दिनों में 3-4 निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाता है ।

पूर्ण विकसित लारवा पत्तियों पर ही रेशमी धागों से ककून बनाता है । ये ककून ठीला होता है एवं इसी में ये प्यूपा में बदलता है । प्यूपाकाल एक सप्ताह का होता है । वयस्क कीट 6-10 दिनों तक जीवित रहते हैं । एक वर्ष में इस कीट की 8-12 पीढियां पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. पत्ता गोभी या फूलगोभी और सरसों की रोपाई एक साथ करने पर इसे कीट की मादा गोभी के पौधों पर कम संख्या में अण्डे देती है । फसल उगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि गोभी की रोपाई सरसों की रोपाई के 30 दिन बाद की जाए ।

ii. नासिक-1 किस्म की फूल गोभी इस कीट के प्रति प्रतिरोधी क्षमता रखती है ।

iii. गोभी की रोपाई के 10 दिन के पश्चात् 0.5 ग्राम प्रति पौधे की दर से फ्यूराडान कण से भूमि उपचारित करके हल्की सिंचाई करना कीट नियंत्रण में सहायक रहता है ।

iv. कोटेशिया प्लूटेली तथा टेट्रास्टिकस सोकोलोवोस्की क्रमशः लार्वा तथा प्यूपा के परजीवी है तथा काफी संख्या में कीट को नियंत्रित करते हैं ।

(5) मोयला (Aphid):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम बैबीकार्न ब्रैसिकी है । ये हैमिप्टेरा गण के एफिडीडी कुल का कीट है ।

पहचान:

यह हरे पीले रंग का होता है । कीट पंखदार और पंखरहित, दोनों ही तरह के होते है । ये सदैव चूर्णीमोम से के रहते हैं जो कि इनका हरा रंग छिपाये रखता है । इनकी कूणिकाएँ छोटी और गहरे रंग की होती है । उदर पर टूटी-फूटी, गहरे रंग की धारियाँ होती हैं जो कि मोमी आवरण में छिपी रहती हैं ।

क्षति:

इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़, दोनों ही पौधों को क्षति पहुँचाते हैं । ये पत्तियों पर हजारों की संख्या में चिपके रहते हैं । फलतः पत्ते पीले पड़ जाते हैं और शीर्षों का विकास रूक जाता है एफिड चिपके होने से तथा बाहरी पत्तों के पीले पड़ जाने से गोभी का बाजार भाव भी कम हो जाता है ।

जीवन-चक्र:

मादा पत्तियों की निचली सतह पर या कक्ष में गड्डों में 1-5 तक अण्डे देती है । अण्‌डे से निम्फ पैदा होते हैं । ये पत्तियों का रस चूसकर 3-4 दिनों के अन्तराल पर 4-5 बार निर्मोचन करके 15 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाते हैं । ये लगभग 45 दिनों तक जीवित रहते हैं । एक वर्ष में इस कीट की 21 पीढ़ियाँ पायी जाती हैं ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. नीम की पत्ती या निबोली का 10 प्रतिशत सान्द्रता का घोल बनाकर छिड़काव करें ।

ii. क्राइसोपा 50,000 प्रति हेक्टर परभक्षी कीट को पौधों पर तीन बार छोडें ।

iii. मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या मैलाथियॉन 5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर के हिसाब से भुरकाव करें ।

iv. मैलाथियान 50 ई.सी. या एण्डोसल्फॉन 35 ई.सी. 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करें ।

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