Read this article in Hindi to learn about how to control diseases and pests of bitter gourd.

1. चूर्णी फफूँदी:

यह रोग ऐरोसाइफी सिकोरेसिएरम नामक फफूँदी के द्वारा होता है । इसमें पुरानी पत्तियों की निचली सतह पर सफेद धब्बे उभर आते हैं ।

धीरे-धीरे इन धब्बों की संख्या एवं आकार में वृद्धि हो जाती है और बाद में पत्तियों के दोनों ओर चूर्णी वृद्धि दिखने लगती है । इन पत्तियों की सामान्य वृद्धि रुक जाती है । जब इस रोग का आक्रमण नई पत्तियों पर होता है तब पत्तियाँ हरिमाहीन हो जाती है एवं पौधा मर जाता है ।

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नियंत्रण:

इस रोग के नियंत्रण के लिए 0.3 प्रतिशत कारबेन का साप्ताहिक छिड़काव करना चाहिए ।

2. मृदरोमिल फफूँदी:

यह रोग पेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस नामक फफूँदी के कारण होता है । यह रोग अधिक गर्मी वर्षा एवं नमी वाले क्षेत्रों में होता है । रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों के ऊपरी भाग पर पीले धब्बे एवं निचले भाग पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं उग्र रूप में तना एवं संजनी पर भी आक्रमण होता है । परिणामस्वरूप पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं ।

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नियंत्रण:

इस रोग के नियंत्रण के लिए डाइथेन एम-45 का 0.21 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए ।

3. रेड पम्पकीन बीटल:

यह कीट लाल रंग का होता है जो 5-8 से॰मी॰ लम्बा होता है तथा फसल पत्तियों के बीच के भाग को खाता है जिसके परिणामस्वरूप पत्तियाँ छलनी जैसी दिखाई देती है । पत्तियों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

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नियंत्रण:

इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियॉन 0.02 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए चेपा (एफिड) ये बहुत छोटे हरे रंग के कीट होते हैं । ये पौधों के कोमल भाग से रस चूसते हैं । इन कीटों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि होती है । पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और उनके ओज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । यह कीट विषाणु रोग फैलाने का कार्य भी करता है ।

नियंत्रण:

कीट की रोकथाम के लिए मौटासिस्टक्स का 0.2 प्रतिशत घोल का छिडकाव करना चाहिए ।