हाइड्रोलोजिक चक्र पर अनुच्छेद | Paragraph on the Hydrologic Cycle in Hindi language!

जलवाष्प का ऊर्जा के कारण बदलते स्वरूप एवं स्थान को जलचक्र कहते हैं । जलचक्र में जल निरंतर जलवाष्प, जल तथा हिम में बदलता है । जलचक्र में वाष्पीकरण संघनन, हिमत्व, हिम पिघलना तथा उदात्तीकरण इत्यादि प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं । चित्र (1.11)

जलचक्र में वाष्पीकरण, प्रस्वेदन वायु राशियों का परिवहन वर्षण जल-अपवाह, रिसन तथा भूगृतीकरण जैसी प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं पृथ्वी पर गिरने वाली अधिकतर वर्षणी सागर से उठने वाले वाष्पीकरण का परिणाम होता है । वर्षण का कुछ जल बहकर पुन: सागरों में चला जाता है परंतु बहुत-सा जल मिट्टी तथा ग्रहण कर लेती है । चित्र (1.11)

चित्र 1.11 एवं 1.12 में जल अपवाह बेसिन में जल की प्रक्रिया को दर्शाया गया है । किसी जल-अपवाह बेसिन में जल मिट्टी तथा चट्टानों के छिद्रों के रास्ते भूगृत जल का रूप धारण करता है तथा वाष्पीकरण के द्वारा वापस वायुमंडल में प्रवेश करता है । भूगृत जल जितनी अधिक गहराई में होता है उसको वायुमंडल में प्रवेश करने में उतना ही अधिक समय लगता है ।