जैव विविधता पर अनुच्छेद | Paragraph on Biodiversity in Hindi language!

जैविक-विविधता शब्दावली का उपयोग सबसे पहले 1968 में आर.एफ. डेस्मेन महोदय ने किया था । जैविक-विविधता का अर्थ है- पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक घटकों में विविधता एवं उनका पारस्परिक संबंध, जो किसी पारितंत्र में पाया जाता है । जैविक-विविधता से जीव-प्रजातियों आनुवंशिक तथा पारितंत्र की विशेषताओं का पता चलता है ।

मानव समाज के लिये पारितंत्र से बहुत-से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ है । जीव-जगत एवं वनस्पति जगत के टिकाऊ बने रहने के लिये भी पारिस्थितिकी तंत्र की बड़ी महत्ता है । मानव समाज को भोजन उद्योगों के लिये कच्चा माल तथा औषधियाँ पारितंत्र से प्राप्त होती हैं ।

पारिस्थितिकी तंत्र महत्वपूर्ण सौंदर्यपरक संसाधन भी है । जैविक-विविधता से पर्यावरण में संतुलन स्थापित होता है तथा यह विकासवादी प्रक्रिया में सहायक होता है । अप्रत्यक्ष रूप से जैविक-विविधता प्रकाश-संश्लेषण, परागण, प्रस्वेदन, रासायनिक चक्र, पोषक-चक्र, मृदा संरक्षण, जलवायु-नियम वायु, जल तंत्र के प्रबंधन, जल-शोधन तथा कीटाणु नियंत्रण में भी सहायता मिलती है ।

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पारितंत्र तथा जैविक-विविधता ह्रास का विश्व जलवायु परिवर्तन पर भी प्रभाव पड़ता है । जैविक-विविधता ह्रास का वायुमंडल पर भी प्रभाव पड़ता है, तापमान तथा वर्षण की मात्रा में परिवर्तन होता है फलस्वरूप बाढ़ तथा सूखे की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसका प्राणी जगत एवं मानव समाज पर खराब असर पड़ता है ।

पारिस्थितिकी विज्ञान के विशेषज्ञों के एक अनुमान के अनुसार विश्व में जीव-जातियों की संख्या एक करोड़ से दस करोड़ तक हो सकती है । भारत विश्व के उन बारह देशों में से एक है जहाँ भारी जैविक-विविधता पाई जाती है । जैव- विविधता के उद्देश्य से भारत के 70 प्रतिशत क्षेत्रफल का सर्वेक्षण किया जा चुका है ।

सर्वेक्षण किये गये क्षेत्रफल में 45,600 प्रकार के पेड-पौधे तथा 91,000 प्रकार के पशु-पक्षी तथा जीव-जंतुओं की सूची तैयार की जा चुकी है । मई 1994 में भारत अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता संगोष्ठी का सदस्य बन चुका है ।

जैव-विविधता संगोष्ठी (Convention) के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं:

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1. जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of Biological Diversity)

2. जैविक-विविधता का उपयुक्त एवं टिकाऊ उपयोग करना ।

3. जैविक-विविधता से होने वाले लाभ, पूरे समाज को मिलना ।

4. आर्थिक एवं मानव विकास इस प्रकार करना, जिससे पारिस्थितिकी को कम-से-कम हानि पहुँचे ।

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5. जैविक-विविधता का उपयोग शिक्षा, शोधकार्य तथा ज्ञापन के लिये किया जाना ।

6. जैविक तथा सांस्कृतिक विविधता को संरक्षण प्रदान करना ।

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