वायु मास पर अनुच्छेद | Paragraph on Air Mass in Hindi!

वायुराशि वायुमंडल के उस विस्तृत और घने भाग को कहते हैं, जिसमें विभिन्न ऊँचाई पर क्षैतिज रूप में तापमान और आर्द्रता सम्बंधी समानताएँ होती हैं । ये जिस मार्ग पर चलती है, उसकी तापमान एवं आर्द्रता सम्बंधी दशाओं को परिमार्जित (Modify) करती है तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित होती है । विश्व के विभिन्न भागों में मौसम के अधिकांश परिवर्तन विभिन्न वायुराशियों की क्रिया-प्रतिक्रिया एवं स्वयं उनमें अंतर्निहित तापमान व आर्द्रता सम्बंधी दशाओं के कारण होते हैं ।

वायुराशि की उत्पत्ति के लिए एक विस्तृत किन्तु समान स्वभाव वाला (पूर्णतः स्थलीय या पूर्णतः सागरीय) क्षेत्र होना आवश्यक है, जहाँ पर विशाल मात्रा में वायु उतरती हो । उत्पत्ति क्षेत्र पर वायुमंडलीय दशाएँ लम्बे समय तक स्थिर रहना चाहिए ताकि वायुराशि धरातलीय विशेषताओं को आत्मसात कर सके ।

वायुराशि के वर्गीकरण के समय यह ध्यान रखा जाता है कि इससे उनकी मौसम सम्बंधी विशेषताओं विशेषकर तापमान व आर्द्रता का समेकन हो सके । अतः इनके वर्गीकरण हेतु वायुराशियों के उत्पत्ति क्षेत्र की मौसमी दशाओं तथा मार्ग में उनमें होने वाले ऊष्मागतिक व यांत्रिक परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाता है ।

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ध्रुवीय वायु राशि (Polar Air Mass):

इन्हें महाद्वीपीय व महासागरीय प्रकारों में बाँटकर देखा जा सकता है । महाद्वीपीय ध्रुवीय वायुराशि (cP) उत्पत्ति क्षेत्र पर अत्यधिक ठंडी, शुष्क व स्थिर होती है । ये अपने प्रवाह मार्ग के तापमान को हिमांक से भी नीचे ला देती है । गर्म सागरीय भागों से गुजरने पर आर्द्रता ग्रहण कर ये ध्रुवीय महासागरीय वायुराशियों में रूपांतरित हो जाती है ।

महाद्वीपीय ध्रुवीय वायुराशि (cP) की तुलना में महासागरीय ध्रुवीय वायुराशि (mP) अपेक्षाकृत थोड़ी अधिक गर्म व आर्द्र होती है । अपेक्षाकृत गर्म धरातल के संपर्क में आने पर ये अस्थिर हो जाती है तथा इनमें संवहन तरंगें उठने लगती है ।

इससे कपासी-वर्षी मेघों का निर्माण हो जाता है एवं थोड़ी मात्रा में वर्षण व हिमपात होते हैं । cP व mP वायुराशियों के मिलने से आर्कटिक वाताग्रों का निर्माण हो जाता है तथा उसके सहारे उत्पन्न होने वाले शीतोष्ण चक्रवातों से वर्षा व हिमपात होते हैं ।

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उष्णकटिबंधीय वायुराशि (Tropical Air Mass):

इन्हें महाद्वीपीय व महासागरीय दो भागों में बाँटकर देखा जा सकता है । महाद्वीपीय उष्णकटिबंधीय वायुराशि (cT) उत्पत्ति क्षेत्र में अत्यधिक गर्म, शुष्क व अस्थिर होती है ।

परंतु आर्द्रता के अभाव के कारण इनसे वर्षा नहीं हो पाती । जब ये अपेक्षाकृत ठंडे धरातल के संपर्क में आती है तो गर्म व स्थिर हो जाती है, गर्म महाद्वीपीय वायुराशि जब सागरीय भागों से होकर गुजरती है तो उनका रूपांतरण महासागरीय गर्म वायुराशि में हो जाता है एवं इससे सम्बंधित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं । महासागरीय उष्णकटिबंधीय वायुराशि (mT) की आर्द्रता धारण सामर्थ्य काफी अधिक होती है ।

जब यह वायुराशि आगे बढ़ती है तो नीचे से ठंडी होने के कारण इसकी सापेक्षिक आर्द्रता बढ़ने लगती है । इससे ये शीघ्र संघनित हो जाते हैं तथा कुहरा, धुंध व स्तरी मेघों का आविर्भाव हो जाता है एवं हल्की वर्षा होती है । कभी-कभी वायुराशि में तापमान का प्रतिलोमन होने लगता है तथा वह स्थिर हो जाती है ।

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जब गर्म महासागरीय वायुराशि किसी पर्वतीय अवरोध के सहारे ऊपर उठती हैं तो रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठंडी होती चली जाती है, जिससे पर्वतीय क्षेत्र में पवन अभिमुख ढालों पर भारी वर्षा होती है । जब यह वायुराशि चक्रवातों के सहारे आरोहित होती हैं तो चक्रवाती वर्षा का कारण बनती है ।

गर्म धरातल के संपर्क में आने पर ये वायुराशियाँ संवहनीय प्रक्रिया से ऊपर उठती है एवं संतृप्त होकर संवहनीय वर्षा करती है । गर्म शुष्क भागों के संपर्क में आने पर इन वायुराशियों की आर्द्रता में कमी आ जाती है, जिससे इनमें वर्षण की क्षमता का ह्रास हो जाता है । cP वायुराशि से मिलने पर ये ध्रुवीय वाताग्रों का निर्माण करती है जिनके सहारे शीतोष्ण चक्रवातों से वर्षा होती है ।

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