Read this article in Hindi to learn about the three types of problems faced by panchayati raj. The problems are:- 1. संगठनात्मक समस्याएं (Organizational Problems) 2. स्वायत्तता की समस्या (Autonomy Problem) 3. वित्तीय समस्या (Financial Problem).

1. संगठनात्मक समस्याएं (Organizational Problem):

a. पंचायत की त्रिस्तरीय प्रणाली बेहद उलझाव पैदा करती है । जिला, जनपद और ग्राम पंचायत के अंतरसंबधों को स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं किया जा सकता ।

b. वस्तुत: ग्रामों का विकास ग्राम पंचायत के माध्यम से ही है, लेकिन जनपद और जिला पंचायत का अस्तित्व और उनका हस्तक्षेप आदि पंचायतों की स्वायत्तता को सीमित करता है ।

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c. एक समस्या पंचायतों के पास अमले की कमी की है । पंचायतों को निर्माण आदि के काम तो दिये गये लेकिन उसके लिये आवश्यक तकनीकी अमला नहीं दिया गया ।

d. कई पंचायतों के पास कार्यालय भवन तक नहीं है ।

2. स्वायत्तता की समस्या (Autonomy Problem):

11वीं अनुसूची ने उन्हें 29 कार्य सौंपे हैं लेकिन इनके स्वरूप का निर्धारण राज्य सरकार करती है । राज्यों ने पंचायतों को स्वविवेक से काम करने पर अनेक प्रतिबन्ध लगा रखे हैं ।

3. वित्तीय समस्या (Financial Problem):

पंचायती राज के सामने प्रमुख समस्या वित्तीय स्रोतों का अभाव है । उनके पास स्वयं के आय स्रोत नगण्य हैं और उन्हें राज्य और केन्द्र के अनुदान की बैसाखी पर निर्भर रहना पड़ता है । राज्य वित्त आयोग के गठन के बाद पंचायतों को इस दिशा में राहत जरूर मिली है लेकिन उनको सौंपे गये कार्य-दायित्व की पूर्ति के लिये यह माध्यम भी अपर्याप्त हैं ।

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a. जागरूकता का अभाव (Lack of Awareness):

i. अधिकांश प्रतिनिधियों को अपने पद का महत्व, उसके कार्य-दायित्व आदि की जानकारी नहीं है ।

ii. अशिक्षा आदि के कारण जनता के भी यही हालात हैं ।

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b. दलबन्दी का प्रभाव (Impact of Debate):

पंचायतों के चुनावों में भी राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप रहता है ।

c. जातिवादी संकीर्णता (Racism):

गांवों में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया ने जातिवाद को उभार दिया है । निर्वाचित पंचायतें भी अपने काम में जातिवादी संकीर्णताओं से ग्रस्त दिखायी देती हैं ।

d. आरक्षण का गुड़-गोबर (Junkyard of Reservation):

आरक्षण का प्रावधान पंचायतों को अधिकाधिक प्रतिनिधिक बनाने के उद्देश्य से किया गया, लेकिन व्यवहार में महिला सदस्य की आड़ में उनके पति, देवर या ससुर पंचायत के कामों में दखलंदाजी करते हैं । दलित जातियों के प्रतिनिधियों की आवाज समाज के अग्रणी सर्वणों के आगे दबी रह जाती है ।

e. कार्यों और प्रक्रिया से अनभिज्ञता (Ignorance of Tasks and Process):

पंचायत प्रतिनिधि और जनता दोनों वर्तमान पंचायती प्रणाली के स्वरूप से काफी हद तक अनभिज्ञ हैं । ऐसे में वे इसका सही उपयोग कर लाभ कैसे उठा पाएंगे ।

f. प्रशिक्षण का अभाव (Lack of Training):

पंचायत प्रतिनिधियों को उनके कार्यों के सम्बन्ध में वस्तुनिष्ट ओर नियमित प्रशिक्षण का अभाव है ।

g. नौकरशाही का असहयोग पूर्ण रवैया (Untimely Attitude of Bureaucracy):

पंचायती राज की स्थापना को नौकरशाही अपने अधिकारों में कटौती के रूप में देख रही है ।

h. प्रभावशाली वर्ग का हस्तक्षेप (Effective Class Intervention):

समाज के प्रभावशाली लोग और राज नेतागण पंचायतों पर दबाव डालकर स्वार्थसिद्धि में उनका दुरुपयोग करते हैं ।

उपाय और संभावनाएं (Measures and Possibilities):

1. गांवों में सामाजिक सेवाओं का स्तर बढ़ाकर जनता और प्रतिनिधि दोनों की पंचायत राज में भूमिका उन्नत की जा सकती है ।

2. उन्हें पर्याप्त वित्तीय शक्तियां और स्रोत मुहैया कराये जाना जरूरी है । पर्याप्त वित्त के बिना पंचायतें लकवा ग्रस्त हैं । पंचायतों को न सिर्फ उचित कार्य और अधिकार देने की जरूरत है, अपितु उन्हें इनके सम्पादन के लिये नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था भी उतनी ही जरूरी है ।

3. शासन को गांवों में सामाजिक सेवाओं का स्तर ऊँचा करना, पंचायत प्रतिनिधियों को पर्याप्त प्रशिक्षण देना चाहिए और उन्हें वित्त आवश्यक अधिकार प्रदान करने चाहिये-

(i) प्रदेश में पंचायतों को अपने कार्यक्रम के अच्छे क्रियान्वयन तथा उद्देश्यों और लक्ष्यों की सफल पूर्ति हेतु प्रोत्साहन देने हेतु विशेष मापदण्ड निर्धारित कर पुरस्कार घोषित किये गये ।

(ii) पंचायतों की कार्यदक्षता का निर्धारण करने हेतु राज्य संभाग तथा ब्लाक स्तर पर समितियाँ बनाई गईं ।

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