Here is a list of metals used in industries in Hindi language.

1. पिग ऑयरन (Pig Iron):

परिचय यह बहुत ही रफ लोहा होता है जिसे सीधे प्रयोग में नहीं लिया जा सकता है ।

गुण:

यह एक घटिया किस्म का लोहा होता है जिसमें अनेक अशुद्धियां होती हैं । इसमें कार्बन की मात्रा अधिक और दूसरी अशुद्धियां होने के कारण यह बहुत कमजोर और भंगुर होता है ।

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उपयोग:

पिग ऑयरन में लगभग 93% लोहा, 4% कार्बन और शेष सल्फर, मैंगनीज, सिलिकन और फास्फोरस होते हैं । कार्बन की अधिक मात्रा और अशुद्धियों के कारण इसका सीधा प्रयोग मशीन के पार्टस बनाने के लिये नहीं किया जाता है बल्कि दूसरे कई प्रकार के ऑयरन और स्टील बनाने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है जैसे कॉस्ट ऑयरन, रॉट ऑयरन, स्टील आदि ।

2. कास्ट ऑयरन (Cast Iron):

परिचय:

इसका अधिकतर प्रयोग मशीनों के कई प्रकार के पार्ट्स, वाइस, सरफेस प्लेट, ‘वी’ ब्लाक आदि बनाने के लिये किया जाता है ।

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कास्ट ऑयरन में कार्बन की मात्रा निम्नलिखित दो रूपों में पाई जाती है:

1. फ्री कार्बन या ग्रेफाइट

2. कम्बाइंड कार्बन

जिस कास्ट ऑयरन में कम्बाइंड कार्बन अधिक होती है वह हार्ड होता है और उसे आसानी से मशीनिंग नहीं किया जा सकता है । जिस कास्ट ऑयरन में फ्री कार्बन अधिक होगी वह मुलायम होता है जिससे इसे आसानी से मशीनिंग भी किया जा सकता है ।

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उत्पादन विधि:

पिग ऑयरन और कास्ट ऑयरन के स्क्रैप को कोयला और चूने को पत्थर के साथ क्यूपोला फरनेस में निश्चित अनुपात में भरकर 1250°C से 1350°C तक तापमान दिया जाता है और पिघले हुए लोहे के सांचों में भरकर स्टोर कर दिया जाता है ।

गुण:

1. कास्ट ऑयरन भंगुर होता है ।

2. यह मैलिएबल नहीं होता है ।

3. यह डक्टाइल नहीं होता है ।

4. इसको फोर्जिंग नहीं किया जा सकता है ।

5. इसको पिघलाकर किसी भी टेढ़े-मेरे आकार में बनाया जा सकता है ।

6. इसमें खिंचाव शक्ति कम और दबाव शक्ति अधिक होती है ।

7. इसका गलनांक 1150°C से 1200°C  तक होता है ।

8. इस पर जंग कम लगता है ।

कास्ट ऑयरन की सीजनिंग करना:

कास्ट ऑयरन में कार्बन की मात्रा अधिक और दूसरी अशुद्धियां होने के कारण कास्टिंग करने के बाद पार्ट्स में थोडा-थोडा डिस्टॉर्शन आ सकता है । इसलिए कास्टिंग करने के बाद पार्टस की सीजनिंग करने की आवश्यकता पड़ती है ।

सीजनिंग करने के लिए कास्टिंग को खुले वातावरण में कई महीनों तक रखा जाता है जिससे सर्दी और गर्मी लगने के कारण पार्ट्स की सीजनिंग हो जाती है । सीजनिंग के बाद पार्टस पर दूसरे प्रकार की मशीनिंग कार्यक्रियायें की जाती हैं ।

3. रॉट ऑयरन (Wrought Iron):

परिचय:

रॉट ऑयरन एक प्रकार का शुद्ध लोहा होता है जिसको पिग ऑयरन या ह्वाइट कास्ट ऑयरन से पुडलिंग फरनेस के द्वारा दुबारा पिघलाकर बनाया जाता है । पुडलिंग पनरनेस से कार्बन की मात्रा और दूसरी अशुद्धियों को दूर किया जाता है जिससे शेष शुद्ध लोहा बच जाता है । रट ऑयरन में कार्बन की मात्रा 0.15% से भी कम होती है ।

गुण:

i. यह शुद्ध लोहा होता है ।

ii. यह मैलिएबल होता है ।

iii. यह डक्टाइल होता है ।

iv. यह साफ्ट होता है ।

v. इसको आसानी से वेल्डिंग किया जा सकता है ।

vi. यह ताप और बिजली का सुचालक होता है ।

उपयोग:

रॉट आयरन का अधिकतर प्रयोग चेन, हुक, रिवट, पाइप और तारें आदि बनाने के लिए किया जाता हैं । इसका प्रयोग स्टील बनाने के लिए भी किया जाता है ।

4. प्लेन कार्बन स्टील (Plain Carbon Steel):

परिचय:

लोहे और कार्बन के मिश्रण को स्टील कहते हैं । जिस स्टील में केवल कार्बन ही मुख्य मिश्रण तत्व के रूप में पाई जाती हैं उसे प्लेन कार्बन स्टील कहते हैं ।

वर्गीकरण:

i. लो कार्बन स्टील:

इसको माइल्ड स्टील भी कहते हैं । इसमें कार्बन की मात्रा 0.25% तक होती है ।

गुण:

a. इसको फोर्जिंग किया जा सकता है ।

b. इसको आसानी से वेल्डिंग किया जा सकता है ।

c. इसको आसानी से मशीनिंग किया जा सकता है ।

d. यह डक्टाइल होती है ।

e. यह मैलिएबल होती है ।

f. इसको हार्ड व टेम्पर नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे केस हार्ड किया जा सकता है ।

उपयोग:

लो कार्बन स्टील का अधिकतर प्रयोग वायर, शीट, राउंड, फ्लैट, ऐंगल, प्लेट और चैनल आदि बनाने के लिए किया जाता है । इसके अतिरिक्त बॉयलर टैंक, दरवाजे और खिड़कियों के ग्रिल, नट और बोल्ट, क्लेम्पस और साधारण कार्यों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है ।

ii. मीडियम कार्बन स्टील:

इसमें कार्बन की मात्रा 0.25% से 0.7% तक होती है ।

गुण:

(a) यह माइल्ड स्टील की अपेक्षा अधिक हार्ड और स्ट्रांग होती है ।

(b) यह माइल्ड स्टील की अपेक्षा कम डक्टाइल और मैलिएबल होती है ।

(c) यह वीयर और शाक रेसिस्टेंट होती है ।

(d) 0.5% से अधिक कार्बन वाली स्टील को कुछ हद तक हार्ड किया जा सकता है ।

उपयोग:

मीडियम कार्बन स्टील का प्रयोग वायर पाइप, छोटे ऐकसल, साधारण हैंड टूल्स, साधारण स्प्रिंग, क्रो-बार आदि बनाने के लिए किया जाता है ।

iii. हाई कार्बन स्टील:

इसमें कार्बन की मात्रा 0.7% से 1.5% तक होती है ।

गुण:

i. यह स्टील लो और मीडियम कार्बन स्टील की अपेक्षा अधिक हार्ड और स्ट्रांग होती है ।

ii. यह लो और मीडियम कार्बन स्टील की अपेक्षा कम डक्टाइल और मैलिएबल होती है ।

iii. इस स्टील को हार्ड व टेम्पर किया जा सकता है ।

उपयोग:

हाई कार्बन स्टील का अधिकतर प्रयोग चीजल, टैप, डाई, फाइल, ड्रिल, हैमर, शाफ्ट, स्प्रिंग और गेज आदि बनाने के लिए किया जाता है ।

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