ब्रिटिश संविधान और इसकी विशेषताएं | British Constitution and Its Features in Hindi.

ब्रिटिश संविधान यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन तथा उत्तरी आयरलैंड का संविधान है । इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड से मिलकर ग्रेट ब्रिटेन बना है । इंग्लैंड, और वेल्स का एकीकरण 1535 में हुआ था और ग्रेट ब्रिटेन के राज्य का निर्माण करने के लिए उनमें स्कॉटलैंड 1707 में सम्मिलित हुआ था जब कि यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड की स्थापना 1921 में हुई ।

ब्रिटिश संविधान दुनिया में सबसे पुराना है और साथ ही यह सबसे पुरानी जनतांत्रिक प्रणाली भी है । यथार्थ में ब्रिटिश संविधान ‘संविधानों की जननी’ है । प्रतिनिधि सरकार के सिद्धांतों तथा इसकी संस्थाओं का विकास सर्वप्रथम ब्रिटेन में हुआ था । ब्रिटिश संविधान राजतंत्र, अभिजात तंत्र और जनतंत्र का मिश्रण है ।

ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशिष्टताओं का वर्णन नीचे किया गया है:

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अलिखित संविधान  (Unwritten Constitution):

अमरीकी संविधान के विपरीत, ब्रिटिश संविधान अलिखित है । यूनाइटेड किंगडम में सरकारी अधिकारों के विवरण और प्रयोग को निर्धारित करने वाले अधिकांश सिद्धांत लिखित नहीं हैं । ब्रिटिश संविधान का केवल आंशिक भाग ही लिखित दस्तावेजों में है ।

ब्रिटिश संविधान का क्रमिक विकास हुआ है । यह अधिनियमित नहीं है । यह इतिहास की देन है और क्रमिक विकास का परिणाम है । यह संयोग तथा बुद्धिमत्ता की संतान है । यह स्थिर नहीं, बल्कि एक गतिशील संविधान है । अत: अपनी पुस्तक थॉट्स ऑन द कांस्टीट्‌यूशन में एल.एस.एमरी कहते हैं कि ”ब्रिटिश संविधान कानून, पूर्वक्रमितता तथा परंपरा का मिश्रण है ।”

ब्रिटिश संविधान के विभिन्न तत्वों या स्रोतों का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

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i. परंपराएँ (Tradition):

ब्रिटिश संविधान के अधिकांश मूलतत्त्व का गठन परंपराएं करती हैं । ये राजनीतिक व्यवहारों के अलिखित सिद्धांतों तथा संवैधानिक व्यवहार का प्रथागत आचरण है जिनका विकास समय के दौरान हुआ है । जे.एस. मिल ने इनका वर्णन ‘संविधान के अलिखित नीतिवचन’ के रूप में किया है ।

परंतु कानूनों के विपरीत, उनको न्यायालयों द्वारा मान्यता नहीं मिलती है और न ही न्यायालयों द्वारा इन्हें लागू नहीं किया जाता है । ब्रिटिश राजनीतिक संस्थाओं की वास्तविक गतिविधियों में ये परंपराएँ बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं । चूँकि उनको परंपरा और जनमत का समर्थन प्राप्त होता है इसलिए आमतौर पर उनका पालन किया जाता है ।

ब्रिटेन की कुछ जानी-मानी परंपराएँ निम्न हैं:

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(i) राजा या रानी को अपने वैधानिक अधिकारों का प्रयोग प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर करना चाहिए ।

(ii) राजा को प्रधानमंत्री पद पर हाउस ऑफ कॉमंस में बहुमत रखने वाली पार्टी के नेता को नियुक्त करना चाहिए ।

(iii) राजा को संसद के निचले सदन की समाप्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर करनी चाहिए ।

(iv) राजा को संसद द्वारा पारित तमाम अध्यादेशों को अपनी स्वीकृति देनी चाहिए ।

(v) हाउस ऑफ कॉमंस के प्रति मंत्रिमंडल सामूहिक तथा व्यक्तिगत तौर पर उत्तरदायी है ।

ii. महान अधिकार पत्र:

इनको संवैधानिक घोषणा पत्र या संवैधानिक सीमाचिह्न भी कहा जाता है । ये ऐतिहासिक दस्तावेज सम्राट की शक्तियों और नागरिकों की स्वतंत्रताओं को परिभाषित करते हैं । ब्रिटिश संविधान के कुछ मूल पक्षों पर अधिकार उनका उल्लेखनीय प्रभाव हैं । इन अधिकार पत्रों में महत्वपूर्ण हैं- मैग्ना कार्टा (1215), पिटीशन ऑफ राइट्‌स (1628), बिल ऑफ राइट्‌स (1689) तथा अन्य ।

iii. अधिनियम (Act):

ये ऐसे कानून हैं जिनका निर्माण ब्रिटिश संसद समय-समय पर करती रहती है । ये ब्रिटेन की अनेक राजनीतिक संस्थाओं के सिद्धांतों, उनके कार्यों और संरचना को निर्धारित तथा नियंत्रित करते हैं । ब्रिटेन में महत्त्वपूर्ण अधिनियम हैं- हेबियस कॉर्पस एक्ट (1679), स्टेटयूट ऑफ वेस्टमिंस्टर (1931), मिनिस्टर्स ऑफ क्राउन एक्ट (1937) और पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट (1948) इत्यादि ।

iv. निर्णय विधि (Decision Method):

न्यायिक निर्णयों, अधिनियमों और अधिकार पत्रों की व्याख्या करते समय न्यायाधीश कुछ निर्णयों की घोषणा कर सकते हैं । ऐसे निर्णय औपचारिक कानूनों के अर्थ और विस्तार को तय करते हैं । इनका महत्व इस तथ्य में निहित है कि समान वादों में निचले न्यायालय उच्च न्यायालयों के निर्णयों को मानने के लिए बाध्य होते हैं । इनमें से कुछ ने लोगों के संवैधानिक अधिकारों तथा उनकी स्वतंत्रताओं को तय किया है ।

v. प्रचलित कानून (Decision Method):

यह न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानूनों का एक निकाय है । इसने सरकार की शक्तियों तथा नागरिकों के साथ इसके संबंधों से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण नियमों तथा सिद्धांतों को परिभाषित किया है । इनको न्यायालयों द्वारा स्वीकार एवं लागू किया जाता है । डॉ. ओग के अनुसार प्रचलित कानून कानूनी बोध तथा उपयोग का वह निकाय है जिसने सदियों से बाध्यकारी और लगभग अपरिवर्तनीय प्रकृति ग्रहण कर ली है ।

vi. कानूनी टीकाएँ (Legal Vacancies):

ये देश के संवैधानिक कानून पर संवैधानिक विशेषज्ञों द्वारा लिखी गई व्याख्याएँ या पाठ्यपुस्तकें हैं । ये ब्रिटेन की राजनीतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली के संबंध में गहरी जानकारी देती हैं । ये कुछ संवैधानिक सिद्धांतों के अर्थों को स्पष्ट करतीं हैं तथा उनके विस्तार को तय करती हैं । ब्रिटिश संविधान पर कुछ प्रचलित टीकाएँ हैं- ए. वी. डाय की लॉ ऑफ कंस्टीट्‌यूशन, बेजहॉट की इंग्लिश कांस्टीट्‌यूशन और ब्लैकस्टोन की ‘कमेंट्रीज ऑन दि लॉ ऑफ इग्लैड’ इत्यादि ।

vii. लचीला संविधान (Flexible Constitution)

अमरीकी संविधान के विपरीत, ब्रिटिश संविधान की प्रकृति लचीली है । इसमें संशोधन के लिए किसी विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती है । इसमें संशोधन उसी प्रकार किए जा सकते हैं जिस प्रकार सामान्य कानून बनाये जाते हैं । इस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन में संवैधानिक कानून और सामान्य कानून में कोई भेद नहीं होता है ।

viii. एकात्मक संविधान (Unitary Constitution):

ब्रिटिश संविधान एकात्मक राज्य प्रदान करता है । अत: सरकार की सभी शक्तियाँ केवल केंद्र सरकार में निहित होती हैं । स्थानीय सरकारों का गठन केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए किया जाता है और ये लंदन स्थित केंद्र सरकार के पूरे नियंत्रण सें काम करती हैं । इन्हें इनके प्राधिकार केंद्र सरकार से प्राप्त होते हैं । इन प्राधिकारों व शक्तियों किसी भी समय पूर्णत: समाप्त किया जा सकता है ।

ix. संसदीय सरकार (Parliamentary Government)

ब्रिटिश संविधान संसदीय रूप की सरकार प्रदान करता है जिसमें कार्यपालिका, विधायिका से संबद्ध और उसी के प्रति उत्तरदायी होती है ।

सरकार की ब्रिटिश संसदीय पद्धति की विशिष्टताएँ निम्नलिखित हैं:

1. राजा नाममात्र का प्रशासक होता है, असली प्रशासक मंत्रिमंडल है । राजा राज्य का प्रमुख है जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है ।

2. सरकार वह पार्टी बनाती है जिसका हाउस ऑफ कॉमंस में बहुमत होता है । पार्टी के नेता की प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्ति राजा/रानी द्वारा की जाती है ।

3. अपने कार्यों के लिए सामूहिक तथा व्यक्तिगत तौर पर मंत्री हाउस ऑफ कॉमंस के प्रति उत्तरदायी होते हैं । वे अपने पद पर हाउस अर्थात सदन में बहुमत का समर्थन प्राप्त होने तक बने रहते हैं ।

4. राजा/रानी प्रधानमंत्री की सलाह पर सदन को भंग कर सकते हैं ।

5. मंत्री अर्थात कार्यपालिका के सदस्य ब्रिटिश संसद के सदस्य भी होते हैं । इससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच संघर्ष नहीं होता है और उनके बीच बेहतर तालमेल का मार्ग प्रशस्त होता है ।

x. संसद की प्रभुसत्ता (Sovereignty of Parliament):

प्रभुसत्ता का अर्थ है- राज्य के भीतर सर्वोच्च शक्ति । ग्रेट ब्रिटेन में सर्वोच्च शक्ति संसद के पास होती है अत: संसद की प्रभुसत्ता (या सर्वोच्चता) ब्रिटिश संवैधानिक कानून और राजनीतिक प्रणाली का आधारभूत सिद्धांत है ।

इस सिद्धांत के निम्नलिखित अर्थ होते हैं:

1. ब्रिटिश संसद कोई भी कानून बना सकती है, उसमें संशोधन कर सकती है, उसके स्थान पर दूसरा कानून बना सकती है और उसको निरस्त कर सकती है । डि लोमे कहते हैं कि- “ब्रिटिश संसद किसी औरत को आदमी और आदमी को औरत में बदलने के सिवा कुछ भी कर सकती है ।”

2. ब्रिटिश संसद-सामान्य कानून बनाने की क्रियाविधि से ही संवैधानिक कानूनों को भी बना सकती है । दूसरे शब्दों में ब्रिटिश संसद की संवैधानिक शक्ति तथा विधि निर्माण शक्ति के बीच कोई वैधानिक भेद नहीं है ।

3. न्यायपालिका द्वारा संसदीय कानूनों को असंवैधानिक मानकर वैध घोषित नहीं किया जा सकता है । इसका अर्थ यह है कि ब्रिटेन में न्यायिक पुनरावलोकन की प्रणाली मौजूद नहीं है ।

xi. कानुन का शासन (The Rule of Law):

कानून के शासन का सिद्धांत ब्रिटेन की संवैधानिक पद्धति की एक मूलभूत विशिष्टता है । यह कानून को सर्वोच्चता देती है और इसलिए आदेशित करती है कि सरकार को कानून के अनुसार और कानून की सीमाओं में काम करना चाहिए ।

ए.वी. डायसी ने अपनी पुस्तक ‘दि लॉ ऑफ कांस्टीट्‌यूशन’ (1885) में कानून के शासन के तीन आशय गिनाए हैं:

1. निरंकुश सत्ता की अनुपस्थिति अर्थात किसी भी व्यक्ति को कानून तोड़ने की स्थिति में ही दंडित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं ।

2. कानून के समक्ष समानता अर्थात न्यायालयों द्वारा प्रशासित देश के आम कानून समान रुप से सभी नागरिकों पर लागू होंगे; चाहे वे गरीब हों या अमीर, ऊँचे हो या नीचे, अधिकारी हों या गैर-अधिकारी ।

3. व्यक्ति के अधिकारों को प्रमुखता । संविधान व्यक्ति के अधिकारों का स्रोत नहीं बल्कि न्यायालय द्वारा परिभाषित और प्रवर्तित व्यक्ति के अधिकारों का परिणाम है । ग्रेट ब्रिटेन में नागरिकों के अधिकार संविधान से नहीं, न्यायिक निर्णयों से प्रवाहित होते हैं ।

xii. संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional Monarchy):

ग्रेट ब्रिटेन राजतंत्रीय राज्य है । इसको सीमित वंशानुगत राजतंत्र कहा जाता है । राज्य प्रमुख वंशानुगत राजा/रानी होता/होती है । सर्वोच्च कार्यपालक सत्ता का प्रतीक ताज है, परंतु राजा या रानी केवल राज करते हैं शासन नहीं चलाते हैं । इन शक्तियों का उपयोग वास्तव में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल करता है ।

अपनी गतिविधियों के लिए मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से संसद और अंततोगत्वा मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी है । अत: ग्रेट ब्रिटेन में संवैधानिक राजतंत्र है । ताज और राजा के बीच वही अंतर है जो एक संस्था के रूप में राजा और एक व्यक्ति के रूप में राजा के बीच होता है ।

दूसरे शब्दों में, राजा एक व्यक्ति है वहीं ताज एक संस्था अर्थात राजशाही की संस्था है । राजा नश्वर है, परंतु ताज अनश्वर । यह बात ग्रेट ब्रिटेन में प्रचलित एक वक्तव्य से स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है । ”राजा मृत है; राजा अमर रहे ।” जिसका अर्थ है कि सिंहासन पर बैठने वाला व्यक्ति मर गया है, किंतु राजशाही की संस्था जीवित है ।

xiii. द्विसदनीय पद्धति (Bicameral System):

ब्रिटेन की संसद द्विसदनीय है अर्थात इसमें दो सदन होते हैं- हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमंस । हाउस ऑफ लॉर्ड्स उच्च सदन होता है । यह दुनिया का सबसे पुराना सदन है । इसमें लॉर्ड, रईस और सामंत होते हैं जो ब्रिटिश राजनीतिक प्रणाली के अभिजात तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

वर्तमान में इसके 1150 मनोनीत सदस्य सात विशेष समूहों से आते हैं । अधिकांश में यह एक वंशानुगत निकाय है । हाउस ऑफ कॉमंस निचला सदन है लेकिन यह हाउस ऑफ लॉर्ड्स से अधिक महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली है ।

यह दुनिया की सबसे पुरानी लोकप्रिय विधायी संस्था ‘है । इसका गठन आम वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा होता है । वर्तमान में हाउस ऑफ कॉमंस में इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड से निर्वाचित 659 प्रतिनिधि होते हैं ।

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