Here is a list of top four surface finishing processes in Hindi language.

1. लैपिंग (Lapping):

कुछ जॉब ऐसे होते हैं कि उनको मशीनिंग और ग्राइडिंग करने के बाद भी अधिक परिशुद्ध फिनिशिंग की आवश्यकता होती है । इसके लिए एक कार्य-क्रिया की जाती है जिसे लैपिंग कहते हैं । लैपिंग कार्य-क्रिया करने के लिए लैपिंग टूल और लैपिंग कम्पाउंड की आवश्यकता होती है । लपिंग टूल लैंप के नाम से जाता है । लैपिंग को अंदरूनी और बाहरी दोनों प्रकार की सरफेस पर किया जाता है । यह कार्य- क्रिया हाथ और मशीन से की जाती हैं ।

कारण:

लैपिंग करने के प्रायः निम्नलिखित कारण होते हैं:

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i. अंतिम सीमा तक परिशुद्धता साइज बनाने के लिये ।

ii. उच्च कोटि की सरफेस फिनिश लाने के लिये ।

iii. साइज को नियंत्रित रखने के लिये ।

iv. कार्य के अनुसार निर्धारित फिट लाने के लिये ।

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लैपिंग के लिए माध्यम:

लैपिंग करने के लिये लैपिंग कम्पाउंड प्रयोग में लाये जाते हैं जो कि भिन्न-भिन्न प्रकार के एब्रेसिव से बनाये जाते हैं । इन्हें लैपिंग के लिये माध्यम कहते हैं ।

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प्रायः निम्नलिखित एब्रेसिव लैपिंग कम्पाउंड बनाने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं:

I. लैपिंग के लुब्रिकेंट्‌स:

लैपिंग करने के लिए अकेले एब्रेसिव का ही प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि इसके साथ लूब्रीकेंट का प्रयोग भी किया जाता है । इससे जॉब की सरफेस अच्छी तरह से फिनिश होती है । प्रायः मशीन ऑयल, ग्रीस, मिट्टी का तेल आदि लूब्रिकेंट एब्रेसिव के साथ लैपिंग कार्य-क्रिया करने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं ।

II. लैपिंग के लिए एलाउंस:

लैपिंग करने से पहले प्रायः जॉब की सरफेस पर मशीनिंग और ग्राइडिंग की जाती है और लैपिंग के लिये प्रायः 0.01 मि.मी. एलाउंस रखा जाता है ।

III. लैपिंग विधियां:

लैपिंग प्राय: हाथ के द्वारा या मशीन के द्वारा की जाती है । फ्लैट लैपिंग करने के लिये पहले लेप की धातु का चयन कर लिया जाता है । लैप पर लैपिंग कम्पांड लगाकर और जिस सरफेस पर लैपिंग करनी हो उस पर थोड़ा-सा तेल लगा कर लैप को उस पर आगे पीछे चलाना चाहिये और यह क्रिया तक करते रहना चाहिए जब तक कि सरफेस अच्छी तरह से फिनिश न हो जाये ।

यदि किसी पिन को लैपिंग करना हो तो उसे लेथ मशीन के चॅक में बांध दिया जाता है और लैपिंग करने के लिए मुलायम धातु का एक रिंग प्रयोग में लाया जाता है जिसे लैपिंग स्टॉक में पकड़ा जाता है । लैपिंग कम्पाउंड को पिन पर लगाकर मशीन को चला दिया जाता है और लैपिंग रिंग को पिन पर आगे पीछे चलाकर लैपिंग की जाती है ।

यदि किसी सुराख में लैपिंग करनी हो तो मुलायम धातु के बने गोल आकार के लैप प्रयोग में लाये जाते हैं जिनमें कई सुराख होते हैं । कार्य-क्रिया करते समय इनको प्रायः ड्रिलिंग मशीन के स्पिण्डल में बांधकर और लैपिंग कम्पाउंड लगाकर मशीन को चला दिया जाता है ।

चलते हुए लैप को सुराख में ऊपर-नीचे चलाकर लैपिंग क्रिया की जाती है । लैपिंग मशीन का प्रयोग प्रायः अधिक मात्रा में उत्पादन करते समय किया जाता है जिससे सिलण्ड्रिकल और प्लेन दोनों प्रकार की लैपिंग की जा सकती है ।

2. होनिंग (Honing):

होनिंग एक प्रकार की कार्य विधि है जिसमें सिलण्ड्रिकल सरफेस को एब्रेसिव स्टिक के द्वारा फिनिश किया जाता है । एब्रेसिव स्टिक को होन भी कहते हैं । होनिंग प्राय: इंजन सिलण्डर, बियरिंग बोर, पिनहोल आदि के लिये की जाती है । बाहरी सिलण्ड्रिकल सरफेस पर भी होनिंग की जाती है ।

कारण:

होनिंग कार्य क्रिया करने के प्रायः निम्नलिखित कारण होते हैं:

I. सिलण्ड्रिकल सरफेस पर उच्चकोटि की फिनिश लाने के लिये ।

II. सिलण्ड्रिकल सरफेस को अंतिम सीमा तक परिशुद्ध साइज में बनाने के लिये ।

III. सरफेस के साइज को नियंत्रण में रखने के लिये ।

IV. निर्धारित फिट लाने के लिये ।

होनिंग स्टोन:

इसको होनिंग स्टिक और होने भी कहते हैं । यह प्रायः एल्युमीनियम ऑक्साइड, सिलिकन कार्बाइड तथा डायमंड एब्रेसिव को बाँड के साथ मिलाकर बनाया जाता है । प्राय: विट्रिफाइड और रेजिनॉयड बाँड प्रयोग में लाये जाते हैं ।

होनिंग स्टोन का चयन करना:

कार्य के अनुसार होनिंग स्टोन का चयन करके कार्यक्रिया की जाती है ।

होनिंग स्टोन का चयन करते समय निम्नलिखित संकेतों को ध्यान में रखना चाहिये:

(A) कास्ट ऑयरन के जॉब पर होनिंग करने के लिये सिलिकन कार्बाइड और स्टील के जॉब के लिये एल्युमीनियम ऑक्साइड वाले होनिंग स्टोन का प्रयोग करना चाहिये ।

होनिंग के लिए निम्नलिखित एब्रेसिव वाले होनिंग स्टोन का चयन करना चाहिए:

(B) हार्ड धातु के जॉब के लिये सॉफ्ट बाँड वाले होनिंग स्टोन का प्रयोग करना चाहिये ।

(C) अच्छी फिनिश लाने के लिये फाइन एब्रेसिव वाले होनिंग स्टोन को प्रयोग में लाना चाहिये ।

होनिंग के लिए एलाउंस:

होनिंग करने से पहले सिलण्ड्रिकल सरफेस को मशीनिंग किया जाता है और होनिंग के लिये प्रायः 0.01 मिमी. एलाउंस रखा जाता है ।

होनिंग विधि:

कार्य के अनुसार होनिंग स्टोन का चयन करके इसे होनिंग मशीन के स्पिंडल में बांध दिया जाता है । इसके बाद जॉब को मशीन के टेबल के साथ सही पोजीशन में बांधकर मशीन को चालू किया जाता है । होनिंग स्टोन को जॉब में ऊपर नीचे चलाकर होनिंग की जाती है ।

होनिंग कार्य क्रिया करते समय लूब्रिकेटिंग ऑयल का प्रयोग भी किया जाता है । प्रायः मिट्टी का तेल प्रयोग में लाया जाता है । बाहरी सिलण्ड्रिकल सरफेस पर होनिंग करने के लिये एक्सटर्नल होनिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है । होनिंग ऑपरेशन मेनुअल स्ट्रोक होनिंग और पॉवर स्ट्रोक होनिंग द्वारा किया जा सकता ।

3. फ्रोस्टिंग (Frostings):

यह एक प्रकार की कार्यविधि है जिसमें किसी जॉब की बाहरी फ्लैट सरफेस को चमकदार बनाया जाता है । इस कार्यविधि को करने के लिये जॉब की सरफेस को अच्छी तरह से फिनिश कर लिया जाता है और सॉफ्ट मेटीरियल की बनी पिन और ऐमरी का प्रयोग करके गोल आकार के स्पॉट बनाये जाते हैं । इस कार्यविधि से केवल सरफेस को चमकदार बनाया जाता है । इसमें जॉब की परिशुद्धता नहीं बढ़ाई जाती ।

फ्रोस्टिंग कार्यक्रिया:

फ्रोस्टिंग करने के लिये एक सॉफ्ट मेटीरियल की पिन को ड़िलिंग मशीन पर ड्रिल चॅक में बांध लिया जाता है । जिस जॉब पर फ्रोस्टिंग करनी होती है उसको मशीन के टेबल के साथ क्लेंप कर दिया जाता है और उस पर ऐमरी पेस्ट का लेप कर दिया जाता है ।

इसके बाद मशीन को चालू करके पिन का हल्का-सा दबाव जॉब पर दिया जाता है जिससे जॉब पर गोल आकार का स्पॉट बन जाता है । इस प्रकार जॉब की पोजीशन बदलकर पूरे जॉब पर गोल आकार के स्पॉट बना लिये जाते हैं ।

इससे सरफेस की चमक बढ़ जाती है और देखने में अच्छी लगती है । इसके अतिरिक्त फ्रोस्टिंग करने के लिये कई प्रकार की कार्बोरेंडम स्टिक भी प्रयोग में लाई जाती हैं और कई प्रकार के मशीन और विधियां भी फ्रोस्टिंग करने के लिये प्रयोग में जाती ।

4. प्रोटेक्टिव कोटिंग्स (Protective Coating):

किसी जॉब को हवा और पानी के प्रभाव से बचाने के लिए कुछ उपचार किये जाते हैं जिन्हें प्रोटेक्टिव कोटिंग्स कहते हैं । प्रोटेक्टिव कोटिंग्स करने के बाद जॉब पर जंग नहीं लगता और इसकी सरफेस देखने में भी सुंदर लगती है ।

जॉब पर प्रोटेक्टिव कोटिंग्स कई प्रकार से की जाती हैं जिनको मुख्यतः निम्नलिखित वर्गों में बांटा गया है:

I. नॉन मेटालिक कोटिंग:

धातुओं पर जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए प्रायः निम्नलिखित नॉन-मेटालिक कोटिंग्स का प्रयोग किया जाता है:

(a) ऑयलिंग/ग्रीसिंग:

धातुओं पर जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए उन पर तेल/ग्रीस की अस्थाई कोटिंग कर दी जाती है ।

(b) प्लास्टिक कोटिंग:

धातुओं पर जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए उन्हें पिघले हुए प्लास्टिक में डुबोकर प्लास्टिक की अर्ध स्थाई कोटिंग कर दी जाती है ।

(c) पेटिंग:

धातुओं पर जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए उन पर एनिमल पेंट्‌स की अर्ध स्थाई कोटिंग कर दी जाती है ।

II. मेटालिक कोटिंग:

प्रायः निम्नलिखित मेटालिक कोटिंग्स प्रयोग में लाई जाती हैं:

(a) मेटल स्प्रेइंग:

इस विधि में तैयार की हुई सरफेस पर पिघली हुई धातु के कणों की स्प्रेइंग की जाती है जिससे खराब हुई सरफेस को ठीक किया जा सकता है और उसे जंग वगैरा लगने से बचाया जा सकता है ।

(b) गेल्वेनाइजिंग:

इस विधि में पिकलिंग के बाद जॉब को पिघले हुए जिंक में डुबोया जाता है । यह विधि प्रायः बनावट संबंधी कार्य, बोल्टों और नटों को जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए प्रयोग की जाती है ।

(c) क्लैंडिंग:

यह विधि धातुओं की रोलिंग या ड्राइंग करके की जाती जिससे उन्हें जंग वगैरा लगने से बचाया जा सकता है ।

(d) क्रोमाइजिंग:

इस विधि में धातु को जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए क्रोमियम पाउडर का प्रयोग किया जाता है ।

(e) केलोराइजिंग:

इस विधि में धातु को जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए एल्युमीनियम पाउडर का प्रयोग किया जाता है ।

(f) शेरारडाइजिंग:

यह विधि जिंक पाउडर का प्रयोग करके की जाती है । धातु का जंग वगैरा लगने से बचाने के लिए अगला पेंटिंग ऑपरेशन करने के लिए यह अच्छा बेस प्रदान करती है ।

(e) इलेक्ट्रोप्लेटिंग:

इस विधि में जॉब को इलेक्ट्रोलाइट में डुबोया जाता है जिसमें उस पर अन्य धातु की सजावट वाली और प्रोटेक्टिव कोटिंग चढ़ जाती है ।