Read this article in Hindi to learn about the construction of jigs and fixtures.

जिग्स एवं फिक्स्चर्स की बनावट में प्रायः निम्नलिखित पार्ट्स होते हैं:

A. जिग्स एवं फिक्स्चर्स की बॉडी:

इससे जिग्स एवं फिक्सचर्स को सुदृढ़ बेस मिलता है जिस पर लोकेटर्स, स्पोर्ट्स, क्लेम्स आदि को फिक्स किया जा सकता है ।

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इसे प्रायः निम्नलिखित तीन फार्म्स में बनाया जाता है:

i. कास्ट बॉडी:

इसे प्रायः कास्ट ऑयरन, एल्युमीनियम या रेजिन से कास्टिंग करके बनाया जाता है । कास्ट बॉडी का लाभ यह होता है कि मशीनिंग समय में बचत होती है तथा यह टिकाऊ भी होती है ।

ii. बेल्डिड बॉडी:

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इसे प्रायः स्टील, एल्युमीनियम या मेग्नीजियम से बनाया जाता है । वेल्डिड बॉडी में उच्च स्ट्रेंग्थ और सुदृढ़ता होती है ।

iii. बिल्ट-अप बॉडी:

यह एक साधारण फार्म है जिसे प्रायः किसी भी मेटीरियल से बनाया जा सकता है जैसे स्टील, प्रि-कास्ट सेक्शन, एल्युमीनियम, मेग्नीजियम, लकड़ी आदि । बिल्ट-अप बॉडी से यह लाभ होता है कि इसके डिजाइन को आसानी से मॉडिफाई किया जा सकता तथा इसमें स्टैण्डर्ड पार्टस का प्रयोग किया जा सकता है ।

B. बुशिंग्स:

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इनका मुख्य कार्य ड्रिल, रीमर, टैप, काउंटर बोर, काउंटर सिंक, स्पॉट फेसिंग टूल व किसी अन्य रोटेटिंग टूल को लोकेट व गाइड करना होता है । बुशिंग्स प्रायः टूल स्टील से बनाए जाते हैं जिन्हें हार्ड करके साइज में गाइड कर दिया जाता है । इन्हें जिग बुशिंग्स या गाइड बुशिंग्स भी कहते हैं ।

बुशिंग्स को फिट करना:

जिग बुशिंग्स को जिग प्लेट के साथ अच्छी तरह से फिट करना चाहिए । यदि इन्हें ठीक तरह से फिट नहीं किया जाता तो ये कार्य के दौरान गिर सकते या टूल के साथ घूम सकते है जिससे जिग प्लेट व टूल के खराब होने की संभावना रहती है । इन्हें फिटिंग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस होल में इन्हें फिट करना हो वह अंडर साइज व पूर्णतया गोलाई में होना चाहिए जिससे बुशिंग्स की फिटिंग सही आ जाती है ।

जिग बुशिंग्स को प्रायः निम्नलिखित विधियों के द्वारा फिट किया जा सकता है:

1. आर्बर प्रैस विधि

2. ड्रा बोल्ट विधि

3. हैमर व पंच विधि

जिग प्लेट:

यह ड्रिल जिग का वह पार्ट है जिस पर प्रायः बुशिंग्स को फिट किया जाता है । इसकी मोटाई प्रायः बुशिंग्स के साइज के अनुसार जो कि प्रायः टूल के व्यास का 1 से 2 गना तक रखी जा सकती है ।

बुशिंग्स के लिए क्लीयरेंस:

बुशिंग्स को फिट करते समय ध्यान रखना चाहिए कि वे कार्य के साथ स्पर्श न करने पाएं अर्थात बुशिंग्स और कार्य के बीच कुछ गैप अवश्य रहना चाहिए जो कि प्राय: टूल के व्यास का 1 से 11/2 गुना तक रखा जा सकता है परंतु अधिक परिशुद्धता के लिए इसे ¼ से ½ गुना तक रखा जा सकता है । यदि यह क्लीयरेंस अधिक रखते हैं तो परिशुद्धता प्रभावित होती है तथा कम रखने से बशिंग्स जल्दी घिस सकते हैं ।

सेट ब्लॉंक्स:

इन्हें सेट-अप गेजिस भी कहते हैं जिन्हें प्राय: फिक्स्चर पर लगा कर प्रयोग में लाया जाता है । इनका मुख्य प्रयोग कार्य से संबंधित कटर को फिक्स्चर पर सेट करने के लिए किया जाता है । कटर की सेटिंग करते समय कटर व सेट ब्लॉक के बीच पर्याप्त क्लीयरेंम रखने के लिए फीलर गेज का प्रयोग करते हैं जिससे कटर के कारण सेट ब्लॉक को घिसने व खराब होने से बचाया जा सकता है ।

डिजाइन इक्नामिक्स:

आधुनिक औद्योगिक युग में पार्ट्स के कम लागत व अधिक मात्रा व उत्पादन करने की आवश्यकता होती है जिसके लिए जिग्स व फिक्स्चर्स की लागत कम होनी चाहिए । इसलिए जिग्स व फिक्स्चर्स का डिजाइन ऐसा होना चाहिए कि उससे कम लागत व अधिक मात्रा व उत्पादन किया जा सके ।

जिग्स एवं फिक्स्चर्स के लिए मेटीरियल्स:

जिग्स एवं फिक्लर्स के लिए प्रयोग किए जाने वाले मेटीरियल्स को निम्नलिखित तीन ग्रुपों में बांटा जा सकता है:

(I) फेरस मेटीरियल्स

(II) नॉन-फेरस मेटीरियल्स

(III) नॉन-मेटालिक मेटीरियल्स

(I) फेरस मेटीरियल्स:

जिग्स व फिक्स्चर्स को बनाने के लिए फेरस मेटीरियल्स का अधिकतर प्रयोग किया जाता है ।

प्रायः निम्नलिखित फेरस मेटीरियल्स का प्रयोग जिग्स व फिक्स्चर्स बनाने के लिए करते हैं:

(क) कास्ट ऑयरन:

इसका प्रयोग प्रायः जिग्स व फिक्स्चर्स की बॉडी बनाने के लिए किया जाता है । इसका प्रयोग करने से जिस व फिक्स्चर्स को कम समय तथा कम लागत में बनाया जा सकता हैं ।

(ख) कार्बन स्टील:

जिग्स व फिक्स्चर्स के लिए निम्नलिखित तीन प्रकार की कार्बन स्टील प्रयोग की जाती हैं:

(i) लो कार्बन स्टील:

जिग्स व फिक्स्चर्स के बेस प्लेटों या स्पोर्ट्स आदि को बनाने के लिए प्रायः इस स्टील का प्रयोग करते हैं ।

(ii) मीडियम कार्बन स्टील:

जिग्स व फिक्स्चर्स के लिए क्लेम्प, स्टॅड, नट व टफनैस वाले पार्टस को बनाने के लिए प्रायः इस स्टील का प्रयोग किया जाता है ।

(iii) हाई कार्बन स्टील:

जिग्स व फिक्स्चर्स के लिए बुशिंग्स, लोकेटर्स, वियर पैड आदि बनाने के लिए प्रायः इस स्टील का प्रयोग किया जाता है ।

(ग) एलॉय स्टील:

इसका प्रयोग अधिक खर्चीला पड़ता है इसलिए जिग्स व फिक्स्चर्स बनाने के लिए इसका प्रयोग बहुत कम किया जाता है । प्रायः कुछ विशेष कार्यों के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है ।

(घ) टूल स्टील:

यह स्टील बिल्कुल सही स्टैण्डर्ड की होती है । जिग्स व फिक्स्चर्स बनाने के लिए इसका प्रयोग प्रायः ऐसे पार्ट्स के लिए किया जाता है जिन्हें हाई वियर रेजिस्टेंस की आवश्यकता हो ।

(II) नॉन-फेरस मेटीरियल:

जिग्स व फिक्स्चर्स बनाने के लिए प्रायः निम्नलिखित नॉन-फेरस मेटीरियल्स प्रयोग में लाए जाते हैं:

(क) एल्युमीनियम:

जिग्स व फिक्स्चर्स के पार्ट्स बनाने के लिए एल्युमीनियम का प्रयोग अधिकतर किया जाता है क्योंकि यह हल्का होता है तथा इसे आसानी से मशीनिंग किया जा सकता है । इसे हीट ट्रीटमेंट की आवश्यकता भी नहीं होती ।

(ख) मेगनीशियम:

जिग्स व फिक्स्चर्स के पार्टस बनाने के मैगनीशियम का प्रयोग भी किया जाता है क्योंकि यह बहुत हल्का होता है तथा इसे एल्युमीनियम व स्टील की अपेक्षा शीध्रता से मशीन किया जा सकता है ।

(ग) बिस्मथ एलॉय:

यह एक लो मेल्ट एलॉय है जिसका प्रयोग प्रायः जिग्स व फिक्स्चर्स के लिए स्पेशल होल्डिंग डिवाइसों के लिए करते हैं जैसे नेस्ट, वाइस जास् आदि ।

(3) नॉन-मेटालिक मेटीरियल्स:

जिग्स व फिक्स्चर्स के कार्य के लिए नॉन- मेटालिक मेटीरियल्स का प्रयोग भी किया जाता है । प्रायः सीमित उत्पादन करते समय इन मेटीरियल्स का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इनसे पार्टस को जल्दी, सस्ता व अच्छा बनाया जा सकता है ।

प्रायः निम्नलिखित नॉन-मेटालिक मेटीरियल्स प्रयोग में लाए जाते हैं:

(क) यूरेथेन:

इसका प्रयोग प्रायः सेकंड्री क्लेम्पिंग करते समय करते हैं । इस मेटीरियल का ब्लॉक बना कर प्रायः क्लेम्प व कार्य के बीच में लगा दिया जाता है जिससे क्लेम्पिंग करते समय कार्य को स्क्रैचिंग से बचाया जा सकता है ।

(ख) लकड़ी:

इसका प्रयोग प्रायः वहां पर करते हैं जहां पर अधिक परिशुद्धता की आवश्यकता नहीं होती है । इसका प्रयोग प्रायः कई प्रकार के विशेष बुशिंग्स तथा इनसर्ट्स आदि बनाने के लिए किया जाता है । इसके बने बुशिंग्स की बाहरी गोलाई वाली सरफेस पर खांचे बने होते हैं जिससे इन्हें प्रैस फिट करते समय या गोंद द्वारा जोड़ते समय अच्छी पकड़ मिल जाती है ।

(ग) इपोक्सी और प्लास्टिक रेजिन्स:

जिग्स व फिक्स्चर्स में इनका प्रयोग प्रायः स्पेशल क्लेम्प्स बनाने के लिए किया जाता है । प्रायः नेस्ट या चॅक के जाम इन मेटीरियल्स से बनाए जाते हैं । इनसे बने पार्टस सस्ते पढ़ते हैं तथा उनकी टफनैस भी अच्छी होती है । रेजिन प्रायः हल्का, स्ट्रोंग व टफ होता तथा विकृत नहीं होता है ।

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