Read this article in Hindi to learn about cold war and its impacts in India.

शीत युद्ध की जटिलताओं तथा चुनौतियों की दृष्टि से अपने तथा अन्य विकासशील देशों के हितों की रक्षा करने के लिये भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया । भारत का विश्वास था कि शीत युद्ध की राजनीति विश्व शान्ति के लिये एक खतरा है तथा विश्व शान्ति व सुरक्षा के बिना भारत व अन्य विकासशील देशों का विकास संभव नहीं है । अत: गुटनिरपेक्षता की नीति विकासशील देशों के व्यापक राष्ट्रीय हितों की पूर्ति की दृष्टि से आवश्यक थी ।

इस नीति के अन्तर्गत शीत युद्ध के प्रति भारत की रणनीति के तीन पहलू सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं (Three Impacts of Cold War on India):

1. महाशक्तियों तथा उनके गठबन्धनों से दूर रहना ।

ADVERTISEMENTS:

2. महाशक्तियों द्वारा नवोदित राष्ट्रों को अपने गठबन्धनों में शामिल करने का विरोध करना ।

3. विकासशील देशों में एकता व सहयोग को मजबूत बनाना ।

भारत की नीति न तो तटस्थता की नीति थी और न ही यह अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में निष्क्रियता की नीति थी । नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता की नीति अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से दूर भागने की नीति नहीं थी । इसके विपरीत यह एक सक्रिय तथा प्रत्येक मामले में स्वतंत्र निर्णय लेने की नीति थी ।

भारत वैश्विक मामलों में हस्तक्षेप कर शीत युद्ध के तनावों तथा महाशक्तियों के मध्य चल रही प्रतिद्वन्द्विता को कम करना चाहता था ताकि शीत युद्ध एक पूर्ण युद्ध का रूप धारण न कर ले । कोरिया युद्ध-(1950-53) में भारत की मध्यस्थता की भूमिका भारत के इसी दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है । भारत ने कोरिया में अपनी भूमिका में अन्य गुटनिरपेक्ष देशों को भी शामिल करने का प्रयास किया ।

ADVERTISEMENTS:

साथ ही भारत ने शीत युद्ध के समय ऐसे क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को सक्रिय बनाने का प्रयास किया जो दोनों महाशक्तियों के गठबन्धनों के अंग नहीं थे । नेहरू स्वतंत्र व आपसी सहयोग से प्रेरित देशों के ऐसे समुदाय में विश्वास करते थे जो अपनी सकारात्मक भूमिका द्वारा शीत युद्ध को शिथिल कर सके ।

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति केवल विश्व शान्ति को बढ़ाने तथा शीत युद्ध की विभीषिका को कम करने के लिये ही आवश्यक नहीं थी वरन् यह भारत के ठोस राष्ट्रीय हितों की पूर्ति में भी सहायक थी ।

निम्न दो आधारों पर भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति उसके हितों की पूर्ति में सहायक सिद्ध हुई:

1. गुटनिरपेक्षता के कारण ही भारत के लिये वैश्विक मामलों में अपने हितों के अनुकूल स्वतंत्र निर्णय लेने का अवसर प्राप्त हुआ । अन्यथा भारत को महाशक्तियों के हितों के अनुकूल निर्णय लेने के लिये विवश होना पड़ता ।

ADVERTISEMENTS:

2. भारत ने अपनी आवश्यकता के अनुसार दोनों महाशक्तियों के मध्य संतुलन स्थापित करने में सफलता प्राप्त की । यदि एक महाशक्ति द्वारा भारत के हितों की अवहेलना की जाती तो भारत को दूसरी तरफ झुकने का अवसर उपलब्ध था । अत: कोई भी महाशक्ति भारत के हितों की अवहेलना नहीं कर सकती थी ।

गुटनिरपेक्षता की नीति की समीक्षा (Neutrality Policy Review):

गुटनिरपेक्षता की नीति भारत की विदेश नीति का आधार है । भारत ने स्वयं इस नीति का पालन करने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेतृत्व भी किया है । गुटनिरपेक्षता के कारण ही शीतयुद्ध काल में भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने में सफल हो सका है ।

फिर भी निम्न आधारों पर भारत की गुटनिरपेक्षता की आलोचना की जाती है:

1. गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत की विदेशनीति में दृढ़ता व सुनिश्चितता का अभाव रहा है । अमेरिका के विदेश मंत्री जान फास्टर डलेस ने भारत की नीति को अनैतिक माना है । कई मामलों में भारत ने अपने हितों के नाम पर सैद्धान्तिक दृष्टि से मजबूत निर्णय नहीं लिया है ।

2. व्यवहारिक दृष्टि से भी भारत की नीति में सुसंगतता का अभाव है । भारत ने एक ओर जहाँ अन्य देशों को महाशक्तियों के गठबन्धन से दूर रहने की सलाह दी वहीं दूसरी ओर 1971 में सोवियत संघ के साथ मित्रता व सहयोग की सन्धि पर हस्ताक्षर किये ।

व्यावाहरिक दृष्टि से इसका तात्पर्य सोवियत गठबन्धन में शामिल होने जैसा है । भारत का दृष्टिकोण यह है कि भारत ने ऐसा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका की धमकी के आलोक में सोवियत संघ से कूटनीतिक व सैनिक सहायता पाने के लिये किया था । जो भारत की सुरक्षा के लिये आवश्यक था ।

गुटनिरपेक्षता की नीति का आरंभ शीत युद्ध काल की चुनौतियों का सामना करने के लिये किया गया था । 1991 में सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त यद्यपि भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति तथा गुटनिरपेक्ष आन्दोलन दोनों की सामयिक उपयोगिता में कमी आयी है तथापि गुटनिरपेक्षता की धारणा में कुछ स्थायी महत्व के सिद्धान्त निहित हैं जिनके कारण शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी गुटनिरपेक्षता का महत्व बना हुआ है ।

प्रथम गुटनिरपेक्षता की नीति गुण-दोष के आधार पर वैश्विक मामलों में स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने की पक्षधर है । भारत तथा अन्य विकासशील देशों के लिये आज भी अपने हितों की रक्षा के लिये स्वतंत्र विदेश नीति अपनाये जाने की आवश्यकता है ।

दूसरा, गुटनिरपेक्ष आन्दोलन इस विचार का पोषक रहा है कि विकासशील देशों व उनके हितों में उपनिवेशवादी अनुभव के कारण एक स्वाभाविक समानता है । यदि ये देश एक साथ एक मंच पर आते हैं तो वे बिना किसी महाशक्ति का अनुसरण किये एक शक्तिशाली समूह का रूप धारण कर सकते हैं ।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन इन देशों को एक ऐसा ही मंच प्रदान करता है । इस मंच के माध्यम से ये राष्ट्र असमानता पर आधारित वर्तमान वैश्विक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण कर सकते हैं तथा समता व न्याय पर आधारित वैकल्पिक विश्व व्यवस्था की स्थापना हेतु प्रयास कर सकते हैं । इन स्थायी तत्वों के कारण शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी गुटनिरपेक्षता का महत्व बना हुआ है ।

Home››Indian History››Cold War››