भारत में जनजातीय क्षेत्रों की समस्याएं (और समाधान) | Problems of Tribal Areas in India with solution in Hindi.

भारत में जनजातीय क्षेत्रों की समस्याएँ (Problems of Tribal Areas in India):

1. भूमि पर अधिकारों में आती कमी (Decline in Land Rights):

अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भूमि पर उनका पूर्ण अधिकार था, परंतु उनके आगमन व स्वतंत्रता के पश्चात् तथा वन कानूनों से भूमि पर उनका अधिकार छिनता चला गया जिनसे इनकी संस्कृति प्रभावित हुई ।

2. विस्थापन की समस्या (Problems of Displacement):

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विभिन्न विकास योजनाओं उद्योग धंधों के निर्माण के कारण से जनजातियों पर विपरीत असर पड़ा है तथा वे बड़ी संख्या में विस्थापित होने को बाध्य हुए हैं ।

3. गैर-आदिवासी जनसंख्या का प्रभाव (The Impact of the Non-Aboriginal Population):

आदिवासी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती गैर-आदिवासी जनसंख्या से उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है तथा उनमें जनांकिकी परिवर्तन हुए हैं । महाजनी शोषण बढ़ने से वे कर्ज के जाल में फँस गए हैं, जिनकी काफी तीखी प्रतिक्रिया भी हुई है तथा इस क्षेत्र में अशांति का वातावरण बना है । आदिवासी क्षेत्रों में उसका जनांकिकी संतुलन भी बिगड़ रहा है । 1961 ई. में झारखंड क्षेत्र में कुल आदिवासी जनसंख्या लगभग 50% था, जो 1991 ई. में 29% तक पहुँच गया ।

4. लिंग-आधारित समस्या (Gender-Based Problem):

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गैर आदिवासियों द्वारा सामाजिक-आर्थिक शोषण के कारण आदिवासी महिलाओं के शोषण की समस्या उभरी है ।

5. सांस्कृतिक विलगाव (Cultural Isolation):

विस्थापन, जनांकिकी परिवर्तन आदि के कारण सांस्कृतिक रूप से उनकी प्राकृतिक जीवन-शैली पर असर पड़ा है, जिनसे ये जनजातियाँ प्रभावित हुई हैं ।

6. शिक्षा सम्बंधी समस्या (Education Related Problem):

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विभिन्न जनजातियों में निरक्षरता अभी भी है, जिससे उनमें रूढ़िवादिता है । साक्षरता व शिक्षा के अभाव के कारण उनकी श्रम उत्पादकता का मूल्य कम है तथा वे महाजनी शोषण का भी शिकार हो जाते हैं ।

समाधान (Solution):

स्वतंत्रता के पश्चात् से ही आदिवासियों के विकास हेतु विभिन्न योजनाएँ बनाई जाती रही हैं, परंतु पाँचवीं योजना में जनजातीय उप-योजना के आने के पश्चात् इस प्रक्रिया में तेजी आई है । इसके तहत समेकित जनजातीय विकास कार्यक्रम (Integrated Tribal Development Programme – ITDP) के अंतर्गत 193 परियोजना चलाई जा रही है, जिससे 50% जनजातीय जनसंख्या लाभान्वित हो रही है ।

ये जिला व विकास प्रखंडों में चल रहे हैं । संशोधित क्षेत्र विकास अभिकरण (Modified Area Development Agency – MADA) के अंतर्गत 249 परियोजनाएँ ऐसे केन्द्रों में चलाई जा रही है, जहाँ की अधिकतम जनसंख्या 10,000 तक हो तथा 50% से अधिक जनसंख्या जनजातीय हो ।

आदिम जनजातीय समूह के विकास के लिए 74 जनजातियों को पहचाना गया है तथा इनके लिए 14 राज्यों एवं केन्द्रशासित राज्यों में सूक्ष्म परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं ।

जनजातीय उत्पादन के विपणन के लिए TRIFED (Tribal Federation) बनाया गया है जो उन्हें उनके उत्पादन का लाभप्रद मूल्य उपलब्ध करता है । स्थानीय संसाधनों के आधार पर जनजातियों के विकास को गरीबी निवारण कार्यक्रम व समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) का अंग बनाया गया है ।

उनमें शिक्षा के विकास के साथ-साथ उन्हें महाजनी शोषण से बचाने का प्रयास किया जा रहा है तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने पर बल दिया जा रहा है ।

प्रस्तावित नई राष्ट्रीय जनजाति नीति ‘नेहरूवियन एप्रोच’ पर आधारित है । इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, पुनर्वास, भूमि-जुड़ाव पर जोर दिया गया है । जनजातीय भाषा का संरक्षण व लेखांकन प्राथमिक स्तर पर उनको मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहन, संयुक्त वन प्रबंधन में जनजातीय भागीदारी को प्रोत्साहन देना शामिल है ।

जनजातियों को सूचना का अधिकार प्रदान किया गया है ताकि वे ग्रामीण स्तर पर भूमि-दस्तावेजों से सम्बंधित सूचनाएं प्राप्त कर सकें । अनुसूचित जनजाति और वनवासी अधिकार विधेयक के अंतर्गत जनजातियों के भूमि सम्बंधी अधिकारों को बढ़ाया गया है ।

मध्य प्रदेश के अमरकंटक में ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय’ खोला गया है, जो जनजातियों से सम्बंधित विभिन्न अध्ययनों पर केन्द्रित होगा । इससे उनकी विशेषताओं के सम्बंध में जागरूकता बढ़ेगी तथा संवेदनशील प्रयासों के द्वारा उन्हें मुख्य धारा में लाना संभव होगा ।

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