Read this article in Hindi to learn about the definition and procedure of selection.

चयन की परिभाषा (Definition of Selection):

डेल योडर ने कहा है कि – ”चुनाव से अभिप्राय संभावित नौकरी के लिए विचाराधीन उम्मीदवारों में से आशाहीन दिखाई देने वाले उम्मीदवारों को छांटकर अलग करने के नकारात्मक व्यवहार से है । इसमें यह निर्णय करना पड़ता है कि पद के लिए अनेक उम्मीदवारों में से किस उम्मीदवार को काम करने का अवसर दिया जाए ।”

1. चयन अधिकार (Selection Rights):

चयन करने हेतु अधिकारसत्ता होनी चाहिए ताकि अपेक्षित संख्या में सेविवर्गीयों का चयन किया जा सके । इसका निर्धारण कार्य भार एवं कार्यशक्ति विश्लेषणों द्वारा किया जाता है ।

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2. चयन प्रमाप (Selection Standard):

सेविवर्गीय को चुनने का प्रमाप होना चाहिए जिसके साथ सम्भावित कर्मचारियों की तुलना की जा सकती है । इसका प्रतिनिधित्व कृत्य विशिष्टता करती है, जिसे कृत्य विश्लेषण द्वारा विकसित किया जाता है ।

3. आवेदनकर्ताओं की संख्या (Number of Applicants):

आवेदनकर्त्ताओं की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए जिसमें से उपयुक्त व्यक्तियों के चुना जाना है । एक नियोजित भर्ती कार्यक्रम के माध्यम से ये आवेदन प्राप्त होते है । आजकल अधिकांश संगठनों में आवेदन की आनलाइन प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है ।

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4. आपसी सम्प्रेषण (Mutual Communication):

चयनकर्ता एवं आवेदनकर्ता में सम्प्रेषण निर्बाध गति से हो ताकि लिये जाने वाले कर्मचारी के विषय में कृत्य अनुरूप पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके ।

5. चयन के लिए आन्तरिक एवं बाह्य दोनों स्त्रोतों का उपयोग होना चाहिए ।

6. चयन में व्यक्ति को महत्व न देकर उसकी योग्यता को महत्व दिया जाना चाहिए ।

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7. भिन्न-भिन्न पदों के लिए भिन्न-भिन्न चयन विधियों का उपयोग होना चाहिए ।

8. चयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण को महत्व दिया जाना चाहिए ।

9. चयन नीति उपक्रम की सामान्य नीति के अनुरूप होनी चाहिए ।

चयन की अवधारणा:

जहां कर्मचारियों की माँग की अपेक्षा कम कर्मचारी बाजार में प्राप्त होते हैं, वहाँ चुनाव की समस्या नहीं उठती क्योंकि जो भी आवेदक योग्य होगा उसे ले लिया जायेगा । परन्तु जहां एक रिक्त स्थान के लिए हजार प्रार्थना-पत्र आते हैं वहाँ अधिकतम कार्यकुशल कर्मचारी का चुनाव करने की समस्या होती है ।

चुनाव करते समय संस्था की रोजगार नीति (Employment Policy) को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए । कर्मचारी चुनाव का कार्य बहुत महत्व रखता है । क्योंकि प्रबन्धकों को श्रमिकों से सम्बंधित जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें से अधिकतर श्रमिकों के गलत चुनाव के कारण पैदा होती है । आदर्श चुनाव विधि का प्रभाव संस्था की अल्पकालीन, दीर्घकालीन समस्याओं पर पड़ता है । नया कर्मचारी न केवल वर्तमान संस्था में स्थान ग्रहण करने के योग्य हो अपितु संस्था की प्रगति में चार चाँद भी लगा सकता हो ।

चुनाव प्रणाली (Selection Procedure):

1. कार्य विश्लेषण (Job Analysis):

सर्वप्रथम विज्ञापन देने, प्रार्थना-पत्र तथा साक्षात्कार के परीक्षण के लिए आवश्यक कार्य-विश्लेषण किया जाता है तथा कार्य सम्बधी कार्य प्रमाप तथा कार्य विवरण एकत्र किए जाते हैं । कार्य विवरण कार्य में किए जाने वाले कार्य, प्रयोग की जाने वाली सामग्री तथा यन्त्रों का विस्तृत विवरण होता है तथा कार्य प्रमाप इन कार्यों के करने के लिए आवश्यक योग्यताओं की सूची होती है । दोनों की चुनाव पद्धति में आवश्यकता पड़ती है ।

2. विज्ञापन (Advertisement):

कार्य विश्लेषण के आधार पर विज्ञापन बनाया जाता है । जिसमें आवश्यक योग्यताओं, वेतन आदि का उल्लेख होता है ।

3. प्रारंभिक साक्षात्कार (Preliminary Interview):

हमारे देश में बहुत कम संस्थाएँ इसका प्रयोग करती हैं । विज्ञापन को देखने के बाद प्रार्थना-पत्र फार्मों की माँग की जाती है । जो अधिकांशतः डाक द्वारा प्राप्त किये जाते हैं । कुछ संस्थाएँ, डाक द्वारा फार्म न माँगकर कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से देने की व्यवस्था करती हैं तथा फार्म देते समय फर्म लेने वाले व्यक्तियों की प्रारम्भिक जाँच करती हैं और अयोग्य व्यक्तियों को फार्म देने से ही इंकार कर दिया जाता है ।

फार्म देने का कार्य मानवीय प्रबन्धक या उसके अधीनस्थ किसी प्रबन्धक के अधीन कर दिया जाता है जो फार्म देते समय न्यूनतम योग्यता, व्यक्तित्व सम्बधी जाँच करता है तथा कुछ प्रश्न पूछकर बिल्कुल ही अयोग्य व्यक्ति को उसी स्तर पर निकाल देता है तथा अन्य को फार्म दे दिये जाते हैं ।

4. रिक्त प्रार्थना-पत्र (Blank Application):

प्रत्येक संस्था ऐसे प्रार्थना-पत्रों का प्रयोग करती है जो प्रार्थना-पत्र भेजने वाले को अनिवार्य रूप से प्रयोग करना पड़ता है । ऐसा इसलिए किया जाता है कि प्रार्थी से सम्बन्धित प्रत्येक आवश्यक जानकारी व्यवस्थित रूप से प्राप्त हो सके ।

अधिकांशतः संस्थाओं के प्रार्थना-पत्रों में समानता पाई जाती है तथा लगभग वही प्रश्न पूछे जाते है । जब ये फार्म भरकर आ जाते है । तब इन सभी की जाँच की जाती है तथा न्यूनतम आवश्यक योग्यता पूर्ण करने वाले प्रार्थियों का चुनाव किया जाता है ।

5. संदर्भ (References):

अधिकांशतः प्रार्थना पत्रों में दो या अधिक उत्तरदायी व्यक्तियों के पते मांगे जाते हैं जो कि प्रार्थी में जानते हों । ये उसके पुराने प्रबन्धक हो सकते हैं या वे अच्छे पदों पर लगे उत्तरदायी व्यक्ति होते हैं ।

प्रार्थना-पत्रों के अध्ययन के बाद चुने हुए प्रार्थियों के प्रार्थना-पत्रों में दिए गए व्यक्तियों से संबंध स्थापित कर उनके विषय में पूछताछ की जाती है, जिसके विषय में जानकारी ठीक प्राप्त नहीं हो उसे साक्षात्कार एवं टेस्ट के लिए नहीं बुलाया जाता है ।

6. मनोवैज्ञानिक परीक्षा (Psychological Test):

प्रार्थना-पत्रों से पाये गये उपयुक्त व्यक्तियों को परीक्षा के लिए बुलाया जाता है तथा लिखित परीक्षा ली जाती है और इसकी सहायता से यह जाना जाता है कि भविष्य में एक व्यक्ति कैसा व्यवहार करेगा । इनकी सहायता से (Intelligence, Attitude, Achievement, Interest, Personality) आदि को मापा जाता है । यह टेस्ट लिखित होते है तथा व्यक्ति द्वारा दिए गए उत्तरों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं ।

7. चयन साक्षात्कार (Selection Interview):

प्रत्येक कम्पनी कर्मचारियों के चुनाव में साक्षात्कार का प्रयोग करती है । यह चुनाव की सबसे प्राचीन विधि होने के साथ-साथ सर्वमान्य है । एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों का बोर्ड बनाया जाता है जो साक्षात्कार (Interview) लेता है । अधिकांशतः बोर्ड का ही प्रयोग होता है, जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ उस पद के उच्चाधिकारी को इसमें सम्मिलित किया जाता है ।

8. सर्वेक्षक की स्वीकृति (Approved by Supervisor):

प्रत्येक अवस्था में सुपरवाइजर की इच्छा को चुनाव करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि उसी को उस कर्मचारी से काम लेना होता है । यदि बोर्ड में सुपरवाइजर को बैठाया गया है तब अन्तिम फैसला करने का अधिकर उसका होना चाहिए तथा यदि बोर्ड में उसे नहीं लिया गया है तो साक्षात्कार के बाद भी अन्तिम फैसला करने का उसे अधिकार होना चाहिए ।

9. डॉक्टरी परीक्षा (Medical Examination):

सुपरवाइजर की सलाह प्राप्त होने के पश्चात् कर्मचारियों की योग्य डॉक्टरों से जाँच करवाई जाती है या उन्हें योग्य डॉक्टर का प्रमाण-पत्र लाने का कहा जाता है ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि संस्था में कमजोर तथा बीमार रहने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा स्वस्थ कर्मचारी आएँ ।

10. नियुक्ति-पत्र जारी करना (Issuing Appointment Letter):

साक्षात्कार एवं परीक्षणों के आधार पर अभ्यर्थी की नियुक्ति कराने अथवा न करने के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है । लेकिन नियुक्ति-पत्र देने के पूर्व अभ्यर्थी के पृष्ठाधार की भलीभाँति जाँच कर लेनी चाहिए । यदि जल्दी नहीं तो उसी समय नियुक्ति-पत्र नहीं देना चाहिए । यदि कर्मचारियों की तत्काल आवश्यकता है तो नियुक्ति-पत्र देते समय जानकारी विवरण (Details of References) की जाँच कर लेनी चाहिए ।

11. परिचय (Introduction):

डॉक्टरी जाँच के पश्चात् प्रार्थी को उसके पद पर लगाया जाता है । जब वह अपनी जगह आता है तो उसे नये-नये साथी एवं प्रबन्धक मिलते हैं । उसे नये कार्य एवं अवस्थाओं का सामना करना होता है ।

अतः वह विधि जिसके द्वारा पुराने र्क्मचारियों एवं प्रबन्धकों से नये व्यक्तियों की जानकारी करायी जाती है, परिचय कहलाती है । इसके अन्तर्गत कर्मचारी के कार्य करने का ढंग, सहायता के लिए किससे मिलना है, कार्यालय के नियम, कार्यालय के शौचालय, कैन्टीन आदि का रास्ता, उनके कार्य का संस्था में महत्व आदि बतलाया जाता है ।

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