Read this article in Hindi to learn about the three main theories of language development in an individual.

1. सामाजिक सीखना सिद्धान्त (Social Learning Theory):

इस सिद्धान्त में भाषा का विकास क्रियाप्रसूत अनुकथन और अनुकरण की संयुक्ति के द्वारा अर्जित किया जाता है । जब बच्चे कोई ऐसी आवाजें करते हैं, जो उनकी मातृ-भाषा से मिलती हो तो उनकी तारीफ की जाती है या उन्हें किसी और ढंग से पुरस्कृत किया जाता है ।

इसके अतिरिक्त माता-पिता अपने बच्चों द्वारा अर्जित करने के लिए ऐसी आवाजें करते हैं, जो सरल होती हैं । ये सीखने के आधारिक प्रारूप होते हैं, जो मिलकर बने द्वारा तेज अर्जन में योगदान करते हैं ।

2. जन्मजात दृष्टिकोण (Innate Viewpoint):

Noam Chomsky (1968) इस दृष्टिकोण के प्रतिनिधित्व हैं । उन्होंने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है, कि भाषा अर्जन कम से कम आशिक रूप से जन्मजात होता है । उनके अनुसार मानव में Language Acquisition Device होता है ।

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इस मत के अनुसार मानव भाषा को अर्जित करने के लिए तैयार होते हैं । इसी कारणवश बच्चे भाषा को तेज गति से अर्जित कर लेते हैं ।

3. संज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive Theory):

इसका निर्माण Slobin (1979) ने किया है । यह सिद्धान्त जन्मजात क्रियातन्त्रों और सीखना दोनों को महत्वपूर्ण बनाता है । इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चों में निश्चित सूचना प्रक्रमण योग्यताएँ तथा रणनीतियाँ होती हैं । बच्चे इन्हीं को उपयोग करके भाषा को सीखते हैं ।

इन्हें Operating Principles के नाम से जाना जाता है । ये या तो जन्म के समय ही उपलब्ध होते हैं या फिर इनका जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही विकास हो जाता है । Pay attention to the ends of words और Pay attention to the order of words ऐसे ही Operating Principle के उदाहरण हैं ।

यह देखा जाता है, कि बच्चे शब्दों में आरम्भिक और मध्य भाग की तुलना में आखिरी भाग की ओर अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं । विभिन्न भाषाओं में Suffixes के महत्वपूर्ण अभिप्राय होते है । बालक अपने माता-पिता वाले शब्द को दर्शाते हैं और शब्द क्रम एक भाषा से दूसरी भाषा में परिवर्तित हो जाते हैं । अत: यह भी एक प्रमुख Principle है ।

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उपर्युक्त सिद्धान्तों के साथ प्रश्न यह उठता है, कि इन सिद्धान्तों में से कौन-सा सिद्धान्त सही है? अत: हम यह कह सकते हैं, कि उपर्युक्त तीनों सिद्धान्तों में से प्रत्येक के समर्थन में साक्ष्य मौजूद हैं, किन्तु कोई भी एकल सिद्धान्त भाषा विकास के सभी पहलुओं का पूर्णत: वर्णन नहीं कर पाता है ।

जिस प्रकार सामाजिक सीखना सिद्धान्त के पक्ष में कहते हुए कुछ मनोवैज्ञानिकों ने कहा है, कि प्रत्येक संस्कृति में बच्चों की भाषा अपने माता-पिता की भाषा से मिलती-जुलती है, इसलिए कहा जा सकता है कि बच्चों द्वारा भाषा अर्जन में अनुकरण मुख्य भूमिका अदा करता है, किन्तु Gordon (1990) के अनुसार बच्चों में तेज गति से भाषा की व्याख्या करने के लिए माता-पिता के माध्यम से प्रदान किया गया पृष्ठपोषण ही पूरा नहीं है ।

कुछ अध्ययनकर्ताओं ने जन्मजात भाषा अर्जन साक्ष्य की सम्भावना के पक्ष में साक्ष्य प्रदर्शित किए हैं । जैसे, Elliot(1981) ने बताया है, कि भाषा विकास के क्रान्तिक अवधि होती है, जिनमें बच्चे विभिन्न भाषा को आसानी से अर्जित कर सकते हैं । अगर किसी कारणवश बच्चों को उस अवधि में सामान्य वाणी को सुनने के अवसर प्राप्त नहीं होते तो बाद में उनके लिए भाषा को पारंगत करना अत्यन्त कठिन हो जाता है ।

कुछ अध्ययनकर्ताओं ने भाषा अर्जन में संज्ञानों की भूमिका की पुष्टि की है । साक्ष्यों के मिले-जुले प्रतिमानों के आधार पर हम यह कह सकते हैं, कि भाषा का विकास ऐसा प्रक्रम है, जिसमें विभिन्न प्रकार के सीखने, संज्ञानात्मक प्रक्रम और जननिक ढंग से निर्धारित क्रियातन्त्र मिल-जुल कर भूमिकाएँ अदा करते हैं ।

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