Read this article in Hindi to learn about the two main approaches to moral development of an individual.

1. अर्जन उपागम (Acquired Approaches):

इस उपागम के अन्तर्गत ऐसे मॉडल शामिल किये जाते हैं, जो कि इस बात पर बल देते हैं, कि नैतिकता को सीखा जाता है । बच्चा जब छोटा होता है, तब वह प्रयास या भूल विधि द्वारा सीखता है । विभिन्न प्रकार के अनुकथनों व अन्य प्रकार से सीखने के द्वारा वह अपराध शर्म दूसरों के चिन्ता आदि को सीखता है और ये उसके व्यवहार को एक सीमा तथा विनियमित करते हैं ।

सीखने से बच्चों में आदतों मूल्यों व कौशलों में विकास होता है और यह सभी उसके अन्दर समाहित हो जाते हैं जो उसे उचित अनुक्रियाओं का कोष प्रदान करते हैं । धीरे-धीरे वह बच्चा अपने व्यवहार को खुद ही नियन्त्रित करने योग्य हो जाता है ।

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उसमें आत्मनियन्त्रण का विकास हो जाता है । इस प्रकार कहा जा सकता है, कि प्रभावशाली नैतिक विकास प्रभावशाली प्रबलनों, भूमिका व मॉडलों, अनुकरण और तादात्मीकरण की अच्छी दशाओं आदि पर आश्रित रहता है ।

2. वृद्धि उपागम (Growth Approach):

इस उपागम में वह मॉडल शामिल होते हैं, जो इस बात पर जोर देते हैं, कि नैतिक विकास (Transformation and Reconstructing) के माध्यम से चलता है । इस प्रकार का उपागम परिवर्तन की ओर इशारा करता है । नैतिक विकास बौद्धिक विकास पर निर्भर होता है ।

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नैतिक तर्कणा इस बात की ओर इशारा करती है, कि बच्चा विश्व को कैसे सार्थक प्रत्यक्षीकृत करने लगता है और वह व्यवहार को शामिल करने वाले नियमों कानूनों व मानकों के सम्प्रत्यय कैसे बनते हैं ? व्यक्ति अधिक-से अधिक संख्या के नियमों को अर्जित नहीं करता और न ही मानकों के प्रकार्य के विषय में अधिक कारकों को विचाराधीन रखता है ।

वह अनेक विषयों पर अधिक-से-अधिक सख्या में दृष्टिकोण का विकास करता है । बच्चे की बुद्धि तथा विकास में इन कारकों व दृष्टिकोणों में अधिक-से-अधिक विभेदीकरण तथा एकबद्धता आती है । नैतिक विकास के सन्दर्भ में कोहलबर्ग के प्रारूप को समझने से पूर्व पियाजे प्रारूप को सूक्ष्म रूप में समझ लेना उचित होगा।

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