Read this article in Hindi to learn about the Influence of Portuguese on Indian Business and Politics during the medieval period.

आरंभ से हो पुर्तगाली हिंद महासागर के विशाल क्षेत्र की पर्याप्त निगरानी नहीं कर सके और न ही वहाँ व्यापार और व्यापारियों को नियंत्रित कर सके । उन्होंने केवल यह करने का प्रयास किया कि कुछ वस्तुओं पर अपना एकाधिकार बना सकें और कुछ पर कर वसूल करें । इस प्रकार काली मिर्च, हथियारों, गोला-बारूद और जंगी घोड़ों के व्यापार पर शाही एकाधिकार घोषित कर दिया गया ।

इन वस्तुओं का व्यापार करने की इजाजत किसी भी राष्ट्र को नहीं थी गैर-सरकारी पुर्तगाली व्यापारियों को भी नहीं । दूसरी वस्तुओं के व्यापार में लगे जहाजों को पुर्तगाली अधिकारियों से परमिट लेना पड़ता था । पुर्तगालियों ने पूरब या अफ्रीका की ओर जाने वाले तमाम जहाजों को मजबूर करने की कोशिश कि वे गोवा होकर जाएँ और वहाँ सीमा शुल्क अदा करें ।

इन नियमों को लागू करने के लिए पुर्तगालियों ने मनमाने ढंग से अपने को यह अधिकार दे डाला कि वे ऐसे जहाजों की तलाशी ले सकते हैं जिनके ‘प्रतिबंधित’ व्यापार में लगे होने का उन्हें संदेह हो । तलाशी देने से मना करने वाले जहाज को लूट का माल समझकर उसे डुबोया या पकड़ा जा सकता था और उस पर मौजूद स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाया जा सकता था । इसके कारण बहुत-से टकराव हुए ।

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पुर्तगालियों को जल्द ही पता चल गया कि एशियाई समुद्रों में मुक्त व्यापार की प्रथा और परंपरा से एकदम उलटे तौर-तरीके अपनाने से उनको समुद्र में जितना लाभ मिल रहा था स्थल पर उससे अधिक की हानि हो रही थी । यह सच है कि अनेक अरब और भारतीय जहाज तोपें लेकर चलने लगे पर यह अधिकतर उन समुद्री लुटेरों से सुरक्षा के लिए थे जो मलाबार और अरब के तट पर छाए हुए थे ।

एशियाई व्यापारतंत्रों के सुस्थापित प्रतिमानों को पुर्तगाली शायद ही बदल सके । कुछ सबसे अधिक लाभदायक एशियाई व्यापार पर गुजराती और अरब व्यापारियों का वर्चस्व बना रहा जैसे भारतीय कपड़ों और साथ में चावल और शक्कर के व्यापार पर जिनके बदले वे दक्षिण-पूर्व से मसाले पश्चिम एशिया से सोना और घोड़े तथा चीन से रेशम और चीनी मिट्‌टी और चीनी बर्तन लाते थे ।

आरंभ में कुछ दशकों को छोड़ दें तो पुर्तगाली यूरोप जाने वाली काली मिर्च और मसालों के व्यापार रार भी एकाधिकार नहीं कर सके । सोलहवी सदी के अंत तक स्थल मार्ग और लाल सागर दोनों के रास्ते लिवैंट और मिस्र के बाजारों में काली मिर्च की आपूर्ति पहले जितनी ही बनी रही ।

कारण यह भी था कि एशिया के महान मुगल और सफवी साम्राज्य स्थलीय व्यापार को प्रोत्साहन और सुरक्षा देते रहे और यह भी कि गुजराती सुमात्रा में स्थित आचिन से लेकर लक्षद्वीप और लाल सागर के रास्ते मिस्र तक एक नया आपूर्ति मार्ग बनाने में सफल रहे जहाँ पुर्तगाली नौसेना कार्यरत नहीं हो पा रही थी ।

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न ही पुर्तगाली गोवा को एशियाई व्यापार के ऐसे प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित कर सके जो गुजरात में खंबायत को और आगे चलकर सूरत को पीछे छोड़ जाए । लेकिन उन्होंने मलाबार के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव अवश्य डाला और बंगाल के समुद्री व्यापार पर भी जिस पर वे चटगाँव से धावे बोलते थे ।

पुर्तगालियों ने भारत का जापान के साथ व्यापार अवश्य आरंभ किया जहाँ से ताँबा और चाँदी प्राप्त होते थे । उन्होंने फिलीपीन से भारत का व्यापार भी शुरू किया । फिलीपीन से पुर्तगाली भारतीय कपड़े लेकर दक्षिण अमरीका जाते थे और वहाँ से बदले में चाँदी लाते थे । इस प्रकार, उन्होंने दिखा दिया कि भारत जैसे सुविकसित देश में व्यापार को बाधित करने के लिए, तथा नए व्यापार-मार्ग खोलने के लिए भी नौसेना का प्रयोग कैसे किया जा सकता था ।

पुनर्जागरण काल के बाद यूरोप में विकसित विज्ञान और प्रौद्योगिकी को भारत लाने के लिए पुर्तगाली एक माध्यम का काम भी नहीं कर सके । अंशत: इसका कारण यह था कि स्वयं पुर्तगालियों पर पुनर्जागरण का उतना प्रभाव नहीं पड़ा था जितना इटली या उत्तरी यूरोप पर पड़ा था ।

बाद में जेसुइटों के नेतृत्व में कैथलिक धार्मिक प्रतिक्रिया को आगे बढ़ाने के बाद पुर्तगालियों ने तो पुनर्जागरण की ओर से मुँह मोड़ लिया । लेकिन उन्होंने मध्य अमरीका से अनेक खेतिहर पैदावारों को भारत तक स्थानांतरित अवश्य किया, जैसे आलू, तंबाकू, मकई, मटर आदि । ये फसलें धीरे-धीरे ही फैलीं ।

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पुर्तगाली प्रभाव के कारण भारत में यूरोपीय तर्ज के जहाज-निर्माण सुधरी किस्म की तोपों और चश्मे जैसी वस्तुओं का प्रयोग शुरू हुआ । पर पुस्तकों की छपाई दीवार घड़ी जैसे पश्चिमी आविष्कारों का प्रसार नहीं हुआ ।

1565 में बन्नीहट्‌टी में विजयनगर की पराजय ने दकनी राज्यों को इसके लिए हौसला दिया कि वे दकन के समुद्री तट से पुर्तगालियों को भगाने के लिए मिलकर प्रयास करें । दक्षिण में जब तक बीजापुर के सामने विजयनगर का खतरा मौजूद रहा तब तक पुर्तगालियों के साथ उन्हें शांति की आवश्यकता थी क्योंकि घोड़ों के व्यापार पर पुर्तगालियों का नियंत्रण था और उनसे शत्रुता का मतलब था कि इस व्यापार की दिशा विजयनगर के अनुकूल हो जाती ।

1570 में बीजापुर के सुल्तान अली आदिलशाह ने अहमदनगर के सुल्तान से एक समझौता किया । कालीकट के जमोरिन को भी इस गँठजोड़ में खींच लिया गया । इन सहयोगियों ने अपने-अपने इलाकों में पुर्तगाली ठिकानों पर हमले का फैसला किया ।

गोवा पर हमले का नेतृत्व स्वयं आदिलशाह ने किया जबकि निजामशाह ने चौल पर कब्जा कर लिया । लेकिन नौसेना की पुश्तपनाही पाने वाली पुर्तगाली प्रतिरक्षा एक बार फिर कुछ अधिक शक्तिशाली निकली । इस तरह पुर्तगाली भारतीय समुद्र और दकनी समुद्र तट के मालिक बने रहे ।

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