Read this article in Hindi to learn about the position of Afghans in India during the medieval period.

भारतीय इतिहास लेखन में अफगानों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, हालांकि वे आरंभ से ही भारतीय मुसलमानों के बीच एक महत्वपूर्ण तत्व रहे हैं । महमूद गजनवी की सेना मे भी अफगान थे और वे तुर्क सेनाओं में भी थे । बलबन के दौर मै उत्पाती तत्त्वों को नियंत्रित करने के लिए अफगानों को दोआब और मेवा के इलाके में बसाया गया ।

खलजी हालांकि अफगान नहीं थे पर अफ़गानिस्तान से उनका गहरा संबंध था और उनकी सेनाओं मैं अफगान तत्त्वों की अवश्य वृद्धि हुई होगी । बहलोल लोदी के काल मे बड़ी संख्या में अफगान भारत में आए ।

अफगानों की एक विशेषता यह थी कि दूसरों के विपरीत वे गाँवों में बसने तथा किसान और सैनिक, दोनों बनने के लिए तैयार रहते थे । उनमें कबीलाई एकता की जबरदस्त भावना थी । इसके कारण एक और उनका एकजुट हो पाना मुश्किल होता था तो दूसरी ओर अपने कबीलाई नेता के साथ उनका मजबूत संबंध होने के कारण किसी दुस्साहसी नेता के लिए अफगान मैनिकों का एक बड़ा दस्ता रणक्षेत्र में उतारना संभव हो पाता था ।

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तुर्क अमीरों (कुलीनों) के विपरीत अफगान अपेक्षाकृत सादा जीवन बिताने के लिए तैयार रहते थे । इसी कारण मुगलिया दौर में अफगान अमीरों पर अकसर छीटें कसे जाते थे कि वे सामाजिक गरिमा से वंचित हैं और गँवारों की तरह रहते हैं । बहुत-से अफगान अमीर देहातियों की ही तरह रहते थे ।

अफगानों के हिंदुओ के साथ घनिष्ठ सामाजिक और राजनीतिक संबंध थे । इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि उनमें से अनेक को साधारण हिंदुओं से मेल खाते नाम दिए गए या उन्होंने ऐसे नाम अपना लिए । मसलन सुल्तान सिकंदर का वजीर मियाँ भुआ कहलाता था ।

आगे चलकर काला पहाड़ नाम का एक और मशहूर अफगान योद्धा सामने आया । इसका निश्चित ही यह मतलब नहीं कि कभी-कभी अफगान शासकों ने इस्लाम के समर्थकों की तरह व्यवहार करने और गैर-इस्लामी माने जानेवाले कृत्यों पर प्रतिबन्ध लगाने की कोशिश नहीं की ।

उदाहरण के लिए, सिकंदर लोदी ने मथुरा में अनेक मंदिरों को नष्ट किया और हज्जामों को भक्तों के सर मूड़ने से मना कर दिया । इसी तरह बहराइच में शाह मसूद गाजी के उर्स वाले जुलूस में मुसलमान औरतों के भाग लेने पर रोक लगा दी गई ।

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राजनीतिक क्षेत्र में कुछ लोदी सुल्तानों ने कई हिंदू राजाओं से घनिष्ठ संबंध बनाए और उनमें से कुछ को अमीर का दर्जा भी दिया । उदाहरण के लिए शम्साबाद का रायकरन, कंपिल और पटियाली का राजा प्रताप और राय किलान बहलोल लोदी के अमीर थे । संभवत: अफगान शक्ति-संरचना में कुछ राजपूतों के इसी राजनीतिक समावेश का परिणाम था कि कुछ अफगान सरदार मुगलों के खिलाफ संघर्ष मैं राणा साँगा और राणा प्रताप जैसे राजपूत शासकों की सहायता के लिए तत्पर पाए गए ।

बाबर ने जब ऊपरी दोआब को जीता तो उसने गंगा की वादी और बिहार में अफगान सरदारों को मजबूती से जमा पाया । उगने उनमें से अनेक को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया और यह पेशकश की कि उनके इक्ते उनके ही पास रह जाएँगे ।

यह हिसाब लगाया गया है कि बाबर ने अपने हिंदुस्तानी साम्राज्य के कुल क्षेत्रफल का चौथाई भाग अफगान सरदारों को दे दिया था । फिर भी अनेक अफ़गानों ने पासा बदल लिया तथा पूर्वी उत्तरप्रदेश में जौनपुर के इर्दगिर्द, जहाँ स्वतंत्रता की शर्की परंपराएँ अभी भी मजबूत थीं, और बिहार मैं एक स्वतंत्र अफगान राज्य बनाने का प्रयास किया ।

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