भारत में वन्यजीव संरक्षण परियोजनाएं | Wildlife Conservation Projects in India are: 1. Tiger Project 2. Elephant Conservation Project 3. Crocodile Conservation Project 4. Vulture Conservation Project 5. Gir Lion Project 6. Hangul Project 7. Musk Deer Project 8. Red Panda Project 9. Turtle Conservation Project 10. Rhino Project 11. Snow Leopard Project 12. Dolphin Conservation in Ganges River.

1. बाघ-परियोजना (Tiger Project):

‘एनिमल प्लेनेट’ द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार बाघ दुनिया का सबसे पसंदीदा जानवर है । 1969 ई. में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संघटन संरक्षण संघ (IUCN) के 10वें अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि बाघों को संपूर्ण सुरक्षा दी जाए । भारत में पहली बाघ गणना वर्ष 1972 में की गई थी ।

भारत में मध्य प्रदेश को ‘टाइगर राज्य’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहाँ देश के कुल बाघों की संख्या का लगभग एक तिहाई बाघ पाए जाते हैं । मध्यप्रदेश के ‘वनविहार नेशनल पार्क’ में सफेद बाघ का संरक्षण किया जा रहा है । जिसका उद्देश्य आम लोगों के दिल में वन्य प्राणियों के लिए स्नेह और जागरूकता बढ़ाना है । इस राष्ट्रीय उद्यान में वन्य प्राणियों को गोद लेने की योजना भी है ।

मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में हर वर्ष नवम्बर माह में ‘मोगली महोत्सव’ मनाया जाता है, जिसका मकसद बच्चों में प्रकृति से सरोकार, स्नेह और अपनत्व की भावना विकसित करना है । वर्तमान समय में यह बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, पेंच टाइगर रिजर्व व पन्ना टाइगर रिजर्व में आयोजित किया गया है । वर्ष 2010 को भारत सरकार द्वारा ‘बाघ वर्ष’ के रूप में मनाया गया था ।

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राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority):

4 सितम्बर, 2006 में गठित राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का उद्देश्य बाघ रिजर्व प्रबंधन में सामान्य मानकों को सुनिश्चित करना, विशेष बाघ संरक्षण योजना तैयार करना तथा संसद में वार्षिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट पेश करना है ।

प्राधिकरण को यह अधिकार है कि वह राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई बाघ संरक्षण की योजनाओं को मंजूरी दे सके तथा बाघ बहुल क्षेत्रों में उनके संरक्षण हेतु मानक व दिशा निर्देश तैयार कर सके ।

प्राधिकरण बाघों के रहने के बेहतर दशा, उनसे संबंधित पारिस्थितिकी तथा सामाजिक-आर्थिक मानदण्डों की स्वीकृति प्रदान करेगा ताकि बाघ संरक्षण से स्थानीय लोगों के जीवनयापन व संबद्ध विभागों के हित सुनिश्चित हो सके ।

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वन्य जीवों के अवैध व्यापार को प्रभावी रूप से रोकने के लिए 6 जून, 2007 से एक बहुउद्देश्यीय बाघ एवं अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्य जीवन अपराध नियंत्रण ब्यूरो) का गठन किया गया है ।

स्टेटस ऑफ टाइगर्स इन इंडिया-2014 (Status of Tigers in India):

बाघ संरक्षण के प्रयासों की सफलता का आकलन करने के साथ बाघों की संख्या तथा उनके पारितंत्र पर नजर रखने के उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ (NTCA : National Tiger Conservation Authority) का गठन किया गया है, जो प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर बाघों की स्थिति एवं उनके प्राकृतिक आवास के ‘राष्ट्रीय आकलन’ (National Assesment) का कार्य संचालित करता है ।

इस आकलन के लिए प्रयोग की जाने वाली कार्य-प्रणाली को वर्ष 2005 में ‘टाइगर टास्क फोर्स’ ने अनुमोदित किया था । इस वैज्ञानिक कार्य-प्रणाली पर आधारित बाघों का प्रथम राष्ट्रीय आकलन वर्ष 2006 में किया गया ।

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वर्ष 2006 में देश भर में हुई बाघ गणना के आंकड़े चौकाने वाले थे, जिसके अनुसार भारत में मात्र 1411 बाघ ही शेष थे । इसके बाद वर्ष 2010 में हुई अखिल भारतीय बाघ गणना में बाघों की संख्या के 1411 से बढ़कर 1706 तक पहुँचने का अनुमान व्यक्त किया गया था ।

20 जनवरी, 2015 को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने ‘स्टेटस ऑफ टाइगर्स इन इंडिया-2014’ (Status of Tigers in India-2014) नामक रिपोर्ट जारी की । इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 में भारत में बाघों की संख्या 2226 दर्ज की गई । इस प्रकार पिछले अनुमानों की तुलना में वर्तमान में बाघों की संख्या मं 30.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है ।

नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा केरल में बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई । राज्यों के संदर्भ में कर्नाटक में बाघों की संख्या सर्वाधिक (406) है ।

इसके पश्चात् उत्तराखंड में 340, मध्य प्रदेश में 308, तमिलनाडु में 229, महाराष्ट्र में 190, असोम में 167, केरल में 136 तथा अरूणाचल प्रदेश में 28, बिहार में 28, ओडिशा में 28 तथा गोवा में 5 दर्ज की गई ।

2. हाथी संरक्षण परियोजना (Elephant Conservation Project):

हाथियों की मौजूदा आबादी को उनके प्राकृतिक आवास-स्थलों में दीर्घकालीन जीवन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या में हाथियों की आबादी रखनेवाले राज्यों में 1992 ई. में ‘गजतमे’ के नाम से हाथी संरक्षण परियोजना चलाई गई । वर्तमान समय में यह परियोजना 14 राज्यों में चल रही है । हथियों की संख्या बढ़ाने तथा मानव-हाथी संघर्ष को यथासंभव रोकने के प्रयासों पर बल दिया जा रहा है ।

बाग परियोजना की अपेक्षा हाथी संरक्षण परियोज्म्ना में उद्यानों के लिए बहुत बड़ा क्षेत्र सुरक्षित किया जाता है ताकि हथियों के स्वतंत्र विचरण में बाधा न हो । इस परियोजना के अंतर्गत 32 हाथी संरक्षण क्षेत्र घोषित किए गए हैं, जो 60 हजार वर्ग किमी. का क्षेत्रीय विस्तार रखते हैं ।

इनमें शिवालिक व राजाजी पार्क (उत्तराखंड), काजीरंगा (असोम), देवमाली (अरूणाचल प्रदेश), मैसूर (कर्नाटक), अन्नामलाई-परम्बीकुलम (तमिलनाडु), पेरियार, अनाइमुदी व शांत घाटी (केरल), रेयाला (आंध्र प्रदेश), लेमरू व बादलखोंड (छत्तीसगढ़), वैतरणी व महानदी (ओडिशा) प्रमुख हैं ।

राजस्थान के जयपुर के आमेर (कुंडा गाँव) में केन्द्र व राज्य सरकार की सहायता से एशिया का तीसरा एलीफेंट विलेज बनाया जा रहा है, जिसमें हाथियों के लिए चिकित्सा केन्द्र, महावतों के लिए रहने के लिए घर तथा राइडिंग ट्रैक आदि बनाये जाएंगे । इस प्रकार के दो अन्य विलेज एशिया में श्रीलंका एवं थाइलैंड में हैं । देश में पहला हाथी पुनर्वास केद्रं हरियाणा में बनाया जा रहा है ।

केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 22 अक्टूबर, 2010 को भारत में हाथियों के भविष्य को सुरक्षित रखने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए उसे राष्ट्रीय विरासत पशु (National Heritage Animal) को घोषित दिया गया है । हाथी सदियों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं ।

इसीलिए अब इन्हें भी बाघों की तरह महत्व दिए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है । राष्ट्रीय हाथी संरक्षण प्राधिकरण (NECA) के गठन के दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं । देश में एशिया के 60% (25,000) हाथी हैं ।

24 मई, 2011 को 8 देशों के पर्यावरण मंत्रियों का हाथी-8 मंत्रिस्तरीय सम्मेलन नई दिल्ली में संपन्न हुआ इस सम्मेलन में भारत के अतिरिक्त थाईलैण्ड, तंजानिया, श्रीलंका, केन्या, इंडोनेशिया, कांगो गणराज्य और बोत्स्वाना शामिल थे ।

भारत में हाथियों के संरक्षण हेतु एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान ‘हाथी मेरे साथी’ की शुरूआत की गई । साथ ही हाथियों के संरक्षण एवं कल्याण के लिए विश्व व्यापी संदेश पहुँचाने हेतु वर्ष 2013 में नई दिल्ली में ”एलिफैंट 50:50 फोरम” बनाए जाने पर भी सहमति बनी है ।

3. मगरमच्छ संरक्षण परियोजना (Crocodile Conservation Project):

1974 ई. में मगरमच्छ के संरक्षण के लिए परियोजना बनाई गई । इस परियोजना के तहत 1978 ई. तक कुल 16 मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र स्थापित किए गए । मगरमच्छ अभ्यारण्यों की सर्वाधिक संख्या आंध्र प्रदेश राज्य में है । हैदराबाद में केंद्रीय मगरमच्छ प्रजनन एवं प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई है ।

चम्बल नदी क्षेत्र में घड़ियालों के संरक्षण एवं विकास के लिए एक नया वन्य जीव अभ्यारण्य बनाया जाएगा । जैव विविधता एवं पर्यावरण के लिए मशहूर ओडिशा का ‘भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान’ को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए चुना गया है । देश के सबसे बड़े मैंग्रोव क्षेत्र में अवस्थित इस राष्ट्रीय उद्यान में लवणयुक्त पानी में रहने वाले मगरमच्छों की संख्या सर्वाधिक है ।

भागवतपुर मगरमच्छ परियोजना (Bhagvatpur Crocodile Project):

इस परियोजना की शुरुआत 1970 के दशक में की गई थी, जिसका उद्देश्य परियोजना की खारे पानी में मगरमच्छों की संख्या में वृद्धि करना था । अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने पर हर्पेटोलॉजी (Herpetology) के विशेषज्ञों की मदद ली गई जो मगरमच्छों के संरक्षण के लिए विश्व के सर्वोतम तरीकों को इस्तेमाल करते हैं ।

यह सुंदरवन की मुख्य भूमि से दूर ‘लोथियन द्वीप’ के पास स्थित है । इसके तहत विशेषज्ञों द्वारा सुन्दरवन के वन अधिकारियों को एक वर्ष का क्षेत्र प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें प्रजनन में सक्षम व अक्षम अंडों की पहचान, अंडों के संरक्षण हेतु वातावरण तैयार करने एवं मगरमच्छों के अंडों को एकत्र किए जाने की विधि के सम्बंध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ सम्मिलित थी ।

इसके परिणामस्वरूप अंडों के संरक्षण में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई । यह वृद्धि पूर्व के 40 प्रतिशत की तुलना से बढ़कर 70 प्रतिशत हो गई है ।

4. गिद्ध संरक्षण प्रोजेक्ट (Vulture Conservation Project):

गिद्धों के संरक्षण एवं अभिवृद्धि के लिए हरियाणा वन विभाग तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के बीच एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर सन् 2006 में हस्ताक्षर हुआ हैं । इसमें कहा गया है कि भारत में अधिकांश गिद्धों की मृत्यु पशुओं को दी जाने वाली ‘डायक्लोफेनेक, नानस्टीरोइडल एण्टीइनक्लेमेटरी ड्रग’ के उपयोग के कारण होती है ।

एशिया से समाप्त हो रहे गिद्धों के संरक्षण के लिए ‘सेव’ (Saving Asia’s Vultures from Extinction, SAVE) नामक कार्यक्रम को आरंभ किया गया है, जिसका उद्देश्य गिद्धों को समाप्त होने से बचाना है ।

इस कार्यक्रम के तहत 30,000 वर्ग किमी. के सुरक्षित क्षेत्र (जो हानिकारक दवाओं से मुक्त हों) में गिद्धों को संरक्षित किया जाएगा । इसके तहत पशुओं को दी जाने वाली दवा ‘डायक्लोफेनेक’ (Diclofenac) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसके कारण गिद्धों की मौत हो रही थी ।

देश में गिद्धों की तेजी से घटती संख्या को देखते हुए जूनागढ़, भोपाल, हैदराबाद तथा भुवनेश्वर में गिद्ध संरक्षण परियोजना की शुरूआत की गई है । असोम के धरमपुल में देश का पहला ‘गिद्ध प्रजनन केन्द्र’ स्थापित किया जा रहा है । भारत में पिंजौर (हरियाणा), राजभटखावा (पश्चिम बंगाल) तथा रानी (असोम) में तीन गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र सफलतापूर्वक संचालित है ।

5. गिर सिंह परियोजना (Gir Lion Project):

‘एशियाई सिंहों का घर’ की उपमा से प्रसिद्ध ‘गिर अभ्यारण्य’ जिसे 1973 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया । गिर सिंह परियोजना केन्द्र सरकार की मदद से प्रारंभ की गई । गुजरात के जूनागढ़ जिले में 1,412 वर्ग किमी. क्षेत्र में स्थित यह उद्यान अब एक मात्र ऐसा उद्यान है जहाँ यह शेर पाए जाते हैं । गिर वन राष्ट्रीय उद्यान में एशियाई सिंहों की संख्या 2015 के अनुसार 523 है ।

6. हंगुल परियोजना (Hangul Project):

हंगुल यूरोपियन रेन्डियर प्रजाति का एक सरल स्वभाव वाला हिरण है । यह अब केवल कश्मीर स्थित दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में ही शेष बचा है । 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में इसकी संख्या लगभग 5,000 थी परंतु 1970 में ये घटकर मात्र 150 पर आ गई ।

दुनिया के अन्य भागों में विलुप्त हो चुका यह जीव IUCN के रेड डाटा बुक में प्रविष्टि पा चुका है । अतः इसे संरक्षित करने एवं इसकी जनसंख्या में प्रसार हेतु 1970 में हंगुल परियोजना का शुभारंभ किया गया जिसके फलस्वरूप इनकी संख्या में कुछ वृद्धि हुई है ।

7. कस्तुरी मृग परियोजना (Musk Deer Project):

कस्तुरी केवल नर मृग में ही पाई जाती है । कस्तुरी के औषधीय गुण, सुगंध व भारी कीमत के कारण बड़ी संख्या में कस्तूरी मृग मारे जाने के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गया है ।

फलतः प्राकृतिक संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संघ के सहयोग से कस्तूरी मृग परियोजना उत्तराखंड के केदारनाथ अभ्यारण्य में 1970 के दशक से आरंभ की गई । कस्तूरी मृग के लिए उइमाचल प्रदेश का शिकारी देवी अभ्यारण्य तथा उत्तराखंड का बद्रीनाथ अभ्यारण्य प्रसिद्ध है ।

8. लाल पांडा परियोजना (Red Panda Project):

लाल पांडा भारत के पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 1,500 से 4,000 मीटर ऊँचाई पर पाया जाने वाला सीधा सादा सुन्दर जीव है । अरूणाचल प्रदेश में यह कैट बीयर के नाम से भी जाना जाता है ।

सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश तथा दार्जिलिंग के जंगलों में पाए जाने वाले इस जीव की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही थी । अतः सन् 1996 में विश्व प्रकृति निधि के सहयोग से पद्‌मजानायडू हिमालयन जन्तु पार्क ने लाल पांडा परियोजना का शुभारंभ किया ।

9. कछुआ संरक्षण परियोजना (Turtle Conservation Project):

दक्षिण अमेरिकी कछुए की एक प्रजाति है ओलिव रिडले । भारत में इसका निवास ओडिशा के समुद्री तट पर स्थित है । इसका उपयोग कीमती दवाओं के निर्माण में होता है । जिस कारण इसे पकड़ कर विदेशों में भेज दिया जाता है । परिणामस्वरूप इसकी आबादी में अभूतपूर्व गिरावट आ गई ।

इसकी घटती संख्या को देखते हुए ओडिशा सरकार ने इसके संरक्षण की योजना का शुभारंभ 1975 में ओडिशा के कटक जिले के भीतरकनिका अभ्यारण्य में किया । इस कछुए का प्रजनन स्थल गहिरमाथा है, जो दो नदियों के मुहाने के बीच भीतरकनिका अभ्यारण्य में स्थित है । जो तीन किमी. लम्बा और लगभग 350 मीटर चौड़ा द्वीप है, इस अभ्यारण्य में मैंग्रोव वन है ।

10. गैंडा परियोजना (Rhino Project):

एक सींग वाले गैंडे केवल भारत में पाए जाते हैं । इनके सींग की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी कीमत होती है, क्योंकि उससे कामोत्तेजक औषधियाँ बनाई जाती हैं । अवैध शिकार के कारण गैंडों की संख्या में लगातार कमी होती गई ।

अतः इनके संरक्षण के लिए 1987 में गैंडा परियोजना आरंभ की गई । गैंडों के लिए असोम के मानस अभ्यारण्य व काजीरंगा उद्यान तथा पश्चिम बंगाल का जाल्दा पारा अभ्यारण्य गैंडों की मुख्य शरणस्थली है ।

11. हिम तेंदुआ परियोजना (Snow Leopard Project):

यह भारत के हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं । 1972 में IUCN ने हिम तेंदुए को ‘संकटग्रस्त’ श्रेणी में रखा था । इनके संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा 20 जनवरी, 2009 को ‘हिम तेंदुआ परियोजना’ की शुरूआत की गई । यह परियोजना भारत के 5 हिमालयी क्षेत्र के राज्यों-जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश और सिक्किम के उच्च उन्नतांशों वाले क्षेत्रों में क्रियान्वित की जा रही है ।

12. गंगा नदी डॉल्फिन संरक्षण (Dolphin Conservation in Ganges River):

विलुप्तप्राय जीव ‘गंगा डॉल्फिन’ (सूंस) को 5 अक्टूबर, 2009 ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ घोषित किया गया है । यह भारत में गहन संकट ग्रस्त प्रजातियों के तहत वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अनुसूची-1 में शामिल है । WWF-इंडिया द्वारा सन् 1997 से स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग के आधार पर गंगा नदी डॉल्फिन के संरक्षण हेतु कार्यक्रम चलाया जा रहा है ।

बिहार के भागलपुर जिले में सुल्तानगंज से कहलगाँव के मध्य गंगा नदी क्षेत्र में ‘विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण्य’ की स्थापना की गई है, जो एशिया में डॉल्फिन का एकमात्र सुरक्षित आवास है । भारत ने 3 मई, 2013 को जलीय जीव ‘डॉल्फिन’ को ‘नॉन-ह्यूमन पर्सन’ का दर्जा दिया है । ऐसा करने वाला भारत चौथा देश है ।