Read this article in Hindi to learn about:- 1. ज्वालामुखी उदगारों के प्रकार (Types of Volcanic Eruptions) 2. उदगार-अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification of Volcanoes on the Basis of Period of Eruption) 3. वितरण (Distribution) 4. समाज पर प्रभाव (Effects on the Society).

ज्वालामुखी उदगारों के प्रकार (Types of Volcanic Eruptions):

ज्वालामुखियों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है, परंतु लेकरायवस महोदय का 1908 का ज्वालामुखी वर्गीकरण अधिक स्वीकार्य है ।

लेकरायस महोदय के अनुसार उदगार के आधार पर जवालामुखियों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

1. हवाई टाइप,

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2. स्ट्रंबोलियन,

3. वलकेनियन, तथा

4. पीलियन ।

1. हवाइयन उदगार (Hawaiian Type):

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इस प्रकार के ज्वालामुखी उदगार में लावा पानी की तरह तरल होता है जो उबलकर तीव्रता के साथ चारों ओर फैलता है । इस प्रकार के ज्वालामुखी उदगार में लावे के साथ गैस एवं जलवाष्प भी निकलती है । इसमें कोई विस्फोटक प्रक्रिया नहीं होती ।

2. स्ट्रंबोलियन अथवा शिखर मुख उदगार (Strambolian or Summit Crater Eruption):

इस प्रकार के ज्वालामुखी का लावा हवाई तुल्य प्रकार के ज्वालामुखी की तुलना में गाढा होता है । उदगार के समय प्रायः विस्फोट भी होता है । यह लावे के साथ-साथ चढ़ानों के टुकड़े इत्यादि भी बाहर फेंकता है । इस प्रकार के ज्वालामुखी का नामकरण उत्तरी सिसली के निकट स्ट्रंबोली द्वीप पर स्थित ज्वालामुखी के आधार पर रखा गया है ।

3. वलकेनियन उदगार (Volcanian Eruption):

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इस प्रकार के उदगार का लावा तीव्रता से गाढ़ा एवं ठोस हो जाता है । इसकी शलीलता अधिक होती है । इससे निरंतर विस्फोट होते रहते है । लावे के साथ-साथ ठोस पदार्थ, चट्टानों के टुकड़े राख, जलवाष्प भी बाहर आते हैं । इस किस्म के ज्वालामुखियों की आकृति शंकु आकार की होती है ।

4. पीलियन उदगार (Pelean Eruption):

पीलियन उदगार में लावा अत्यंत गाढ़ा होता है । इसमें प्रचंड विस्फोट होते हैं । इस प्रकार के उदगार की एक विशेषता नुए-आर्दाते की उत्पत्ति एवं रचना होती है । इनमें काले रंग का धुआँ, गाढ़े बादलों का रूप धारण कर लेता है । जिसके निचले भाग अथवा क्रेटर के मुख से आग की लपटें उठती हुई नजर आती हैं ।

इन आग की लपटों को फ़्रांसीसी भाषा में नुए-अर्दाते कहते हैं । यदि ज्वालामुखी के विदर में लावा गाढ़ेपन के कारण ठोस हो जाये तो अधिक जोर का धमाका होता है । इस प्रकार के ज्वालामुखी प्रायः शंकु आकार के होते हैं । कभी-कभी ज्वालामुखी के शंकु एक संपूरक ज्वालामुखी को भी जन्म देता है । इस प्रकार के ज्वालामुखी प्रायः क्रबियन सागर के द्वीपों में फटते हैं ।

उदगार-अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification of Volcanoes on the Basis of Period of Eruption):

अवधि के आधार पर ज्वालामुखियों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes):

जिन ज्वालामुखियों से लावा, गैस राख इत्यादि लगातार निकलते रहते हैं उनको सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं । वर्तमान समय में विश्व में छ: सौ (600) ज्वालामुखी सक्रिय हैं । विश्व के अधिकतर सक्रिय ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के अग्नि वृत में हैं । भारत वर्ष में अंडमान द्वीप समूह में स्थित बैरन द्वीप एक सक्रिय ज्वालामुखी है ।

(ii) प्रसुप्त/डार्मेट ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes):

ऐसा ज्वालामुखी जो लुप्त न हुआ हो परंतु सोया हुआ हो और उसमें से कभी भी लावा, गैस इत्यादि निकलने शुरू हो जाये प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाता है । इटली का वेसुवियस एक प्रसुप्त ज्वालामुखी है । इस ज्वालामुखी में पहला उदगार 79 ए.ड़ी. में हुआ था ।

यह ज्वालामुखी लगभग 1550 वर्षों तक सुप्त रहा जिसके बाद 1631 ई॰ में यह फिर से सक्रिय हो गया इसमें से लावा गैस राख इत्यादि का उदगार होने लगा । उसके पश्चात् यह ज्वालामुखी 1803, 1872, 1906, 1927, 1928, 1929 में सक्रिय हो उठा ।

अफ्रीका महाद्वीप में तंजानिया का किलिमंजारी बाण एक प्रसुप्त ज्वालामुखी है । भारत के अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में नारकोंडम ज्वालामुखी भी प्रसुप्त ज्वालामुखी का एक उदाहरण है ।

(iii) लुप्त अथवा शांत ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes):

ऐसे ज्वालामुखी जो भूगर्भीय इतिहास में सक्रिय रहे हों परंतु मानव इतिहास में सक्रिय रहे हो उनका लुप्त ज्वालामुखी में सम्मिलित जाता है । ऐसे ज्वालामुखियों के मुख/क्रेटर में पानी जाता है और वे एक का रूप धारण कर लेती है । स्काटलैंड की राजधानी, ऐडिंबर्ग की आर्थर सीट, ऐन्डीज पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊँची शिखर एकंकागुआ, इरान का देमावंद कोह-सुलेमान लुप्त ज्वालामुखियों के उदाहरण हैं ।

ज्वालामुखीयों का विश्व वितरण (Distribution of Volcanoes in the World):

अधिकतर ज्वालामुखियों के उद्गार भूकंपीय क्षेत्रों में आते हैं और इसका वितरण विशेष रूप से भूपटल की प्लेटों के छोर पर पाया जाता है ।

i. अभिभारी प्लेट सीमाएं (Convergent Plate Margins):

अधिकतर सीमाएँ प्रशांत महासागर में है । इन सीमाओं को अग्निवृत के नाम से जाना जाता है । इस अग्निवृत का विस्तार दक्षिणी अमेरिका के एन्डीज पर्वत से लेकर, मध्य अमेरिका, प॰ संयुक्त राज्य अमेरिका का पर्वतीय क्षेत्र, एल्युशियन द्वीप समूह, कमचटका, क्यूराइल, द्वीप समूह, जापान, फिलीपाइन, सेल्वार्सा, यूगिनी, सोलोमन द्वीप समूह, यूकेलिडोनिया तथा न्यूजीलैंड तक है ।

विश्व के अधिकतर 70% ज्वालामुखियों का उदगार उपरोक्त क्षेत्रों में होता है तथा सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी भी इन्हीं क्षेत्रों में स्थित हैं ।

ii. अपसारी प्लेट सीमाएँ (Divergent Plate Boundaries):

महासागरों में पाये जाने वाले कटकों को प्लेटों की अपसारी सीमाएँ कहते हैं । इन अपसारी प्लेटों पर नया लावे का उदगार होता रहता है, इसलिये कटकों पर ज्वालामुखियों की पेटियाँ फैली हुई हैं । आइसलैंड देश एक कटक पर स्थित है, इसलिये इस देश में ज्वालामुखियों की बारंबारता अधिक पाई जाती है ।

अंडमान द्वीप समूह में स्थिति बैरन-ज्वालामुखी भी एक कटक पर स्थित है । पूर्वी अफ्रीका की रिफ्ट-बैली में भी बहुत-से ज्वालामुखी अपसारी प्लेट सीमाओं पर पाये जाते हैं । किलिमंजारों (तंजानिया) ज्वालामुखी भी अपसारी सीमा पर स्थित है ।

iii. हॉट-स्पॉट (Hot Spot):

भू-पटल के अंदरुनी भाग में बहुत-से स्थान गर्म-लावे के केंद्र (Hot-Spots) हैं । ज्वालामुखियों के विशेषज्ञों के अनुसार इस समय विश्व में सौ से अधिक हॉट-स्पॉट है । इन हॉटस्पॉट पर लावा, ऊष्मा एवं ऊर्जा एकत्रित होती रहती है और लावे की ऊर्जा अत्यधिक हो जाती है तो ज्वालामुखी उदगार हो जाता है ।

ज्वालामुखियों का समाज पर प्रभाव (Effects of Volcanoes on the Society):

ज्वालामुखी उदगार एक चमत्कारी भौगोलिक घटना मानी जाती है । ज्वालामुखियों में निकट रहने वाले लोगों के लिये सैकड़ों वर्षों तक ये प्रकृति का एक रहस्यमय चमत्कार माना जाता रहा है; परंतु ज्वालामुखी उदगार एक रहस्यमय घटना नहीं है, ये क्योंकि पृथ्वी के इतिहास में इसकी बारंबारता बहुत पाई गई है और भविष्य में भी इनका उदगार होता रहेगा ।

सामान्यतः ज्वालामुखियों से मानव समाज को जान-माल की भारी हानि होती रही तथा परिस्थितिकी तंत्र पर भी इनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता रहा है ।

ज्वालामुखियों की उत्पत्ति अंतरजात बलों के कारण होती है । यूँ तो अंतरजात बलों के बारे में भविष्यवाणी करना कठिन कार्य है, फिर ज्वालामुखी उदगारों के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है । वर्तमान समय में प्रस्तुत ज्वालामुखियों के बारे में निरंतर जानकारी प्राप्त की जाती है और मोनिटर किया जाता है ।

वास्तव में ज्वालामुखी उदगार से पहले कुछ लक्षण नजर आने लगते हैं जिनका विवरण निम्नानुसार है:

(i) भूपटल में कंपन्न की बारंबारता बढ़ जाती है ।

(ii) ज्वालामुखी के मुख क्रेटर की आकृति विकृति हो जाती है ।

(iii) क्रेटर झील के पानी के तापमान में वृद्धि हो जाती है ।

(iv) ज्वालामुखी के क्रेटर से गैस अथवा धुआँ निकलने लगता है ।

(v) पशु-पक्षियों तथा रेंगने वाले जीवकों में बेचैनी हो जाती है तथा सरीसृप जमीन से बाहर आकार रेंगने लगते हैं ।

यदि प्रबंधन एवं प्रशासन भली-भांति किया जाए तो ज्वालामुखी आपदा से होने वाली हानि को बहुत हद तक कम किया जा सकता है । ध्यान रहे, बहुत-से ज्वालामुखियों से बहुत तरल लावा निकलता है और तेजी से ढलानों पर बहता है । ऐसे लावे से प्राकृतिक वनस्पति, फसलों, जीव-जंतुओं, मकानों, इमारतों, पशु-पक्षियों तथा मानव समाज को भारी हानि होती है ।

लावे की लपटों में आकर ये सब नष्ट हो जाते हैं । यदि जनसंख्या को समय से हटा लिया जाये तो बहुत-से लोगों की जान को बचाया जा सकता है । यदि लावा मद गति से बह रहा हो जम पर भारी मात्रा में छिडकाव करने से लावे को ठंडा किया जा सकता है ।

कुछ रासायनिक तत्त्वों से भी लावे को ठंडा करने ओर उसके बहाव को कम करने में सहायता मिलती है । इनके अतिरिक्त प्रसुप्त ज्वालामुखी के आस-पास बस्ती बसाने और रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ।

उपरोक्त हानि के बावजूद ज्वालामुखियों से मानव समाज को बहुत-से लाभ भी होते हैं ।

उदाहरण के लिये:

(i) ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे के ठंडे होने के पश्चात जो मृदा उत्पन्न होती है वह बहुत उपजाऊ होती है,

(ii) सोना, चांदी, ताँबा, लोहा, मैंगनीज जैसे धातु तथा बहुमूल्य पत्थरों की उत्पत्ति में ज्वालामुखी लावे की विशेष भूमिका होती है,

(iii) भूगर्भ ऊष्मा से ऊर्जा का उत्पादन किया जाता तथा गंधक के चश्मे मानव स्वास्थ्य के लिये उपयोगी हैं तथा

(iv) पानी जो हम पीते हैं तथा वायु जिसमें हम साँस लेते हैं सभी ज्वालामुखियों की देन हैं ।

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