Read this article in Hindi to learn about the physical, chemical and biological weathering of rocks.

अपक्षय, ताप जल, वायु तथा प्राणियों का कार्य है, जिनके द्वारा भौतिक एवं रसायनिक अपक्षय होता है और चट्‌टानें अपने ही स्थान पर कमजोर पड़ जाती हैं ।

किसी क्षेत्र की चट्टानों के अपक्षय में निम्नलिखित तथ्यों का काफी प्रभाव पड़ता है (Fig. 2.27):

(i) चट्‌टानों की संरचना एवं कठोरता,

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(ii) जलवायु,

(iii) भू-आकृतियों की ढ़लान,

(iv) प्राकृतिक वनस्पति,

(v) समय, तथा;

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(vi) मानव द्वारा भूमि उपयोग ।

अपक्षय निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है:

(1) भौतिक अथवा यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)

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(2) रसायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)

(3) जैविक अपक्षय (Biological Weathering)

(1) भौतिक अथवा यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering):

(i) ताप परिवर्तन (Temperature Change):

भौतिक अपक्षय के मुख्य कारण सूर्यताप, तुषार (पाला) हैं । इन कारकों में ताप परिवर्तन सर्वाधिक प्रभावशाली है । मरुस्थल एवं अर्द्ध-मरुस्थलों में दिन के समय अधिक तापमान के कारण चट्‌टानें फैलती हैं तथा रात के समय ठंडी होकर सुकुड्‌ती हैं । चट्‌टानों के इस प्रकार निरन्तर फैलने तथा सुकुड़ने से वे अपने ही स्थान पर कमजोर पड़ जाती हैं और उनका विघटन हो जाता है  ।

(ii) तुषार कारक (Frost Action):

तुषार के द्वारा चट्‌टानों का विघटन मुख्य रूप से शीतोष्ण तथा शीत कटिबंध में होता है । इनके अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों के अधिक ऊँचे भागों में भी इस प्रकार का अपक्षय देखा जा सकता है । रात के समय तापमान यदि शून्य डिग्री से नीचा हो जाये तो चट्‌टानों के छिद्रों में वायु में पाया जाने वाला जल बर्फ अथवा तुषार में बदल जाता है। दिन के समय तापमान शून्य से ऊपर होने के कारण तुषार पिघल जाता है । इस प्रकार की निरन्तर प्रक्रिया से चट्‌टानें अपने ही स्थान पर कमजोर पड़ जाती हैं ।

(iii) क्रिस्टलीकरण (Crystallization):

इस प्रकार का अपक्षय मरुस्थलों एवं अर्द्ध-मरुस्थलों’ में होता है । इस प्रकार के अपक्षय में वाष्पीकरण के कारण मिट्‌टी एवं चट्‌टानों के नीचे के लवण ऊपर की तरफ सतह पर आ जाते हैं, जिससे चट्‌टानें अपने ही स्थानों पर कमजोर पड जाती हैं ।

(iv) जलयोजन (Hydration):

जलयोजन प्रक्रिया में जल के कारण कुछ चट्‌टानों के कण फैल कर मोटे हो जाते हैं और धीरे-धीरे चट्‌टानों की संरचना का अपक्षय हो जाता है ।

(v) अपदलन (Exfoliation):

कुछ चट्‌टानें ताप तथा वायु के कारण प्याज के छिलकों की भांति परत-दर-परत उतर कर गुम्बदाकार रूप धारण कर लेती हैं ।

इस प्रकार से चट्‌टानों के अपने स्थान पर कमजोर पड़ने को अपदलन कहते हैं । यह क्रिया प्राय: रवेदार चट्‌टानों में अधिक होती है । अपदलन मुख्य रूप से मरुस्थल तथा अर्द्ध-मरुस्थल क्षेत्रों में अधिक होता है ।

(2) रसायनिक अपक्षय (Chemical Weathering):

वायुमण्डल में पाई जाने वाली ऑक्सीजन, कार्बन-डाइ-ऑक्साइड गैसों तथा वाष्प की मात्रा अधिक होती है । इन गैसों के प्रभाव से चट्‌टानों में रसायनिक परिवर्तन आरम्भ हो जाता है ।

रसायनिक अपक्षय निम्न प्रक्रियाओं से होता है:

(i) ऑक्सीकरण (Oxidation):

जब ऑक्सीजन गैस का संयोग जल से होता है और उनका सम्पर्क चट्‌टानों से होता है तो ऑक्सीकरण का प्रभाव अधिक होता है उनमें ऑक्सीजन का प्रभाव अधिक होता है । लोहे के कणों को जंग लग कर उनका अपक्षय हो जाता है । ऑक्सीकरण विशेष रूप से ऊष्ण-आद्र जलवायु प्रदेशों में होता है ।

(ii) कार्बोनीकरण (Carbonation):

जब कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का मिश्रण जल से होता है तो कई प्रकार के कार्बोनेट बन जाते हैं, जो चट्‌टनों को घोल देते हैं । चूने की चट्‌टानों का संयोग जब कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस से होता है तो चूने का पत्थर कैल्शियम बाई कार्बोनेट में बदल जाता है, जो आसानी के साथ जल में धुल जाता है । इस प्रकार अपक्षय विशेष रूप से कार्स्ट (Karst) अथवा चूने के क्षेत्रों में होता है ।

(iii) जलयोजन (Hydration):

जब चट्‌टनों पर जल पड़ता है तो वह जल को सोख लेती हैं तथा उनके कणों के आयतन में वृद्धि हो जाती है । आयतन के विस्तार के कारण चट्‌टानें कमजोर पड़ जाती हैं ।

(iv) घोल (Solution):

कुछ चट्‌टानें पानी में सरलतापूर्वक घुल जाती हैं । कार्बोनेट विशेष रूप से जल में घुल जाते हैं । इस प्रकार से कठोर चट्‌टानों का भी अपक्षय हो जाता है ।

(3) जैविक अपक्षय (Biological Weathering):

वनस्पति, जीव-जंतु तथा मानव स्वयं भी चट्‌टानों के अपक्षय में सहायक होते हैं । बहुत-से प्राणी चट्‌टानों में बिल बनाते हैं कीड़े-मकोड़े चट्‌टानों को कमजोर करते हैं । वनस्पति की जड़े चट्‌टानों की परती में घुसकर उनको कमजोर कर देती हैं ।

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