Read this article in Hindi to learn about the distribution and inversion of earth’s temperature.

तापमान वितरण के प्रतिरूप (Distribution of Earth’s Temperature):

सामान्यत: विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुये तापमान में कमी होती जाती है । विषुवत् रेखा से ध्रुवों के ओर तापमान हास को तापमान का ढलान (Temperature Gradient) कहते हैं । चूंकि विषुवत् रेखा पर तापमान की किरणों लम्बवत पड़ती हैं इसलिये विषुवत् रेखीय प्रदेश में ऊँचे तापमान रिकॉर्ड किये जाते है ।

परन्तु विषुवत रेखीय प्रदेश में साल भर बादल रहने के कारण विश्व के सब से ऊँचे तापमान रिकॉर्ड नहीं किये जाते । सबसे ऊँचे तापमान उष्ण मरुस्थलों में कर्क रेखा के क्षेत्रों में रिकॉर्ड किये जाते है । संक्षिप्त में, विषुवत के तापमान वितरण पर अक्षांश, सागर स्तर से ऊँचाई, सागर से दूरी, पृथ्वी, ढलान तथा जलधाराओं का भारी प्रभाव पड़ता है ।

जनवरी में तापमान वितरण (January Temperature):

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विश्व में जनवरी का तापमान वितरण (Fig. 3.5) में दिखाया गया है । जनवरी के महीने में सूर्य की किरणें लम्बवत मकर-रेखा पर पड़ती हैं, इसलिये दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक तापमान रिकॉर्ड किया जाता है तथा तापीय-विषुवत रेखा दक्षिण गोलार्द्ध से गुजरती हैं । इसके विपरीत उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है और बहुत नीचे तापमान दर्ज किये जाते है । इस महीने में वर्कोयांस्क (साइबेरिया) का तापमान गिरकर -68°C तक नीचा होता जाता है ।

जुलाई में तापमान वितरण (Temperature in July):

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जुलाई के महीने का तापमान वितरण (Fig. 3.6) में दिखाया गया है । जुलाई के महीने में सूर्य की किरणें लम्बवत् कर्क रेखा पर पडती हैं । फलस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी का मौसम होता है । उत्तरी गोलार्द्ध के उष्ण मरुस्थलों में दिन का तापमान 59°C को पार कर जाता है । विश्व में सबसे ऊँचा तापमान अल-अजीजिया (लीबिया) में 13 सितम्बर, 1922 को 58°C रिकॉर्ड किया गया था । इस मौसम में सागर स्तर पर सबसे अधिक तापमान 36°C फारस की खाडी में रिकॉर्ड किया गया था (Fig. 3.6) ।

वार्षिक तापान्तर (Annual Range of Temperature):

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जुलाई तथा जनवरी के औसत तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं । विश्व का सबसे अधिक तापान्तर साइबेरिया (Siberia) में पाया जाता है । जहाँ वार्षिक तापान्तर लगभग 64°C है (Fig. 3.7) ।

हडसन की खाडी के पश्चिम में (कनाड़ा) वार्षिक तापान्तर 60°C रहता है । इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में वार्षिक तापान्तर तुलनात्मक रूप से कम रहता है, जिसका मुख्य कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का क्षेत्रफल कम होना है ।

दैनिक तापान्तर (Diurnal Range of Temperature):

किसी दिन के सब से अधिक एवं सब से कम तापमान के अन्तर को दैनिक तापान्तर कहते हैं । किसी भी स्थान पर सब से अधिक तापमान दिन के दोपहर बाद रिकॉर्ड किया जाता है तथा सब से कम तापमान आधी रात के पश्चात रिकॉर्ड किया जाता हैं ।

सब से अधिक दैनिक तापान्तर उष्ण मरुस्थलों में पाया जाता है । सहारा मरुस्थल में स्थित अल-अजीजिया (लीबिया) में सितम्बर 1922 को दिन का तापमान 56°C तथा रात का सब से कम तापमान शून्य डिग्री से. रिकॉर्ड किया गया था ।

तापमान की विलोमता (Inversion of Earth’s Temperature):

सामान्यत: वायुमण्डल में ऊपर की ओर जाते हुये तापमान में ह्रास होता है, जिसकी दर 6-4°C प्रति एक हजार मीटर की ऊँचाई पर है । इसके विपरीत यदि वायुमण्डल में ऊँचाई की ओर जाते हुये तापमान में वृद्धि होने लगे तो उसे तापमान की विलोमता कहते हैं । तापमान की विलोमता धरातल के निकट हो सकती है तथा वायुमण्डल के ऊपरी भाग में भी ।

1. धरातल के निकट की तापमान विलोमता (Ground Surface Inversion of Temperature):

मानव समाज पर सब से अधिक प्रभाव धरातल के निकट की तापमान विलोमता का पड़ता है ।

वायुमण्डल के ऊपरी भाग की तापमान विलोमता:

यदि वायुमण्डल के ऊपरी भाग में तापमान अधिक और उसके नीचे कम तापमान हो तो उसको ऊपरी वायुमण्डल में तापमान की विलोमता कहते हैं ।

धरातलीय तापमान विलोमता के लिये भौगोलिक परिस्थितियाँ:

धरातलीय तापमान की विलोमता के लिये निम्न भौगोलिक परिस्थतियों की आवश्यकता होती है:

(i) सर्दी के मौसम की लम्बी रातें ।

(ii) स्वच्छ आकाश में बादल न हों ।

(iii) वायुमण्डल में सापेक्षिक आर्द्रता कम हो ।

(iv) वायुमण्डल शान्त हो या हल्की हवा चल रही हो ।

(v) धरातल पर बर्फ जमी हुई हो ।

2. वायुमण्डल के ऊपरी भाग की विलोमता (Inversion of Upper Surface of Atmosphere):

इस प्रकार की विलोमता उस समय उत्पन्न होती है जब वायु गर्म होकर ऊपर उठती है और उसका स्थान ठंडी हवा ले, या ऊपर से नीचे की ओर उतरती वायु से नीचे वायु भार में वृद्धि हो जाये ।

3. वाताग्र विलोमता (Frontal Inversion):

इसको चक्रवर्ती विलोमता भी कहते हैं । इस प्रकार की तापमान विलोमता शीतोष्ण कटिबन्ध में उत्पन्न होती है । शीतोष्ण चक्रवर्ती पेटी में गर्म वायु नीचे की और तथा ठंडी वायु ऊपर की ओर रहती है । गर्म वायु ऊपर की ओर उठती है तथा उसका स्थान ठंडी पवन ले लेती है । इस प्रकार वाताग्र तापमान विलोमता उत्पन्न हो जाती है ।

तापमान की विलोमता का समाज पर प्रभाव:

तापमान की विलोमता का समाज पर निम्न प्रभाव पड़ता है:

i. कोहरे का पड़ना:

तापमान में विलोमता उत्पन्न होने पर घना कोहरा पड़ता है, वास्तव में धरातल के निकट बादल-सा उत्पन्न हो जाता है । फलस्वरूप धरातल के निकट कोहरे के कारण पारदर्शिता बहुत कम हो जाती है । ऐसे मौसम में सड़कों पर दुघर्टनाओं की संख्या बढ जाती है ।

ii. दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि:

सड़कों पर तथा रेलमार्गों तथा सागरों में दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं । हवाई जहाजों की उड़ानों में देरी होती है तथा रेलगाड़ियां विलम्ब से चलती हैं ।

iii. फसलों को हानि:

तापमान की विलोमता पर प्राय: कोहरा पड़ता है । कोहरे से रबी की फसलों पर खराब प्रभाव पड़ता है । गेहूँ, चने, सरसों, तिलहन, गन्ने और सब्जियों की फसलों पर खराब प्रभाव पड़ता है । भूमध्य सागरीय प्रदेशों में सेब, सन्तरे, अंगूर आदि की फसलें खराब हो जाती है ।

iv. मानव अधिवासों पर प्रभाव:

जिन क्षेत्रों में तापमान की विलोमता होती है वहाँ पर मानव अधिवास 500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर बनाये जाते हैं । सागर से लगभग 500 मीटर की ऊँचाई पर विलोमता की सम्भावना कम होती है ।

v. तापमान की विलोमता तथा वायुमण्डल की स्थिरता:

तापमान की विलोमता से वायुमण्डल में स्थिरता उत्पन्न हो जाती है । इस प्रकार वायुमण्डल स्थिरता उत्पन्न हो जाती है और वर्षा की सम्भावना कम हो जाती है ।

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