Read this article in Hindi to learn about the temperature and salinity of the oceans.

महासागरों का तापमान (Temperature of the Oceans):

सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊष्मा का 80 प्रतिशत सागर सोखते हैं । सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊष्मा का अधिकतर भाग ऊपर के 10 प्रतिशत जल-परत तक सीमित रहता है । महासागरों में वार्षिक एवं दैनिक तापान्तर भी कम रहता है, जिसके मुख्य करण निम्न प्रकार हैं ।

जल, थल की अपेक्षा देर में गर्म होता है तथा देर ही में ठंडा होता है । अधिक तापमान होने पर सागर का जल वाष्प में बदल जाता है । इसके अतिरिक्त जल धारायें तापमान को मिश्रित करने में सहायक होती हैं ।

महासागरों के क्षैतिज तापमान वितरण पर निम्न कारकों का प्रभाव पड़ता है:

ADVERTISEMENTS:

(i) अक्षांश (Latitudes):

विषुवतरेखीय प्रदेशों में सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती है, जिस कारण इन प्रदेशों में ऊँचे तापमान रिकॉर्ड किये जाते हैं । इसके विपरीत ध्रुवीय क्षेत्रों के तापमान नीचे रहते हैं । इस प्रकार विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुये तापमान में कमी आती जाती है ।

(ii) पवनें (Winds):

सागरों के तापमान वितरण पर पवनों का भी प्रभाव पड़ता है । व्यापारिक एवं प्रतिव्यापारिक पवनों के क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से पवनों का प्रभाव कम रहता है, शान्त-वायुमण्डल क्षेत्रों की तुलना में ।

ADVERTISEMENTS:

(iii) जल एवं थल का असमान वितरण (Unequal Distribution of Land and Sea):

उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध का क्षेत्रफल अधिक है । उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध के सागरों का तापमान कम रहता है ।

(iv) सागरों के जिन भागों में बादल अधिक रहते है । वहाँ तापमान कम रहते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

(v) सागर के जल में पाई जाने वाली लवणता का भी तापमान के वितरण पर प्रभाव पड़ता है । सागरों के जिस भाग में लवणता अधिक होती है । वहाँ का तापमान भी अधिक होता है ।

(vi) सागरों के तापमान वितरण को जलधारायें भी प्रभावित करती हैं । गर्म पानी की जलधारायें ठंडे प्रदेशों की ओर प्रवाहित होती हैं तथा ठंडी जलधारायें ध्रुवों की ओर से ऊष्ण प्रदेशों की ओर प्रवाहित होती रहती हैं, जिससे सागरों के क्षैतिज तापमान पर प्रभाव पड़ता है ।

(vii) सागरीय कटक, वाष्पीकरण प्रक्रिया, कोहरे आदि का प्रभाव भी तापमान वितरण पर पड़ता है ।

तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature):

सामान्यत: विषुवतरेखीय प्रदेशों में सागर की सतह की सतह का तापमान लगभग 26°C रहता है । उत्तरी गोलार्द्ध के सागरों का औसत तापमान 19.4°C तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के सागरों का औसत तापमान लगभग 16.1°C रहता है  ।

महासागरीय तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Temperature):

महासागरों का सबसे अधिक तापमान ऊपरी सतह पर पाया जाता है । सूर्य की किरणें सागर के जल में 100 मीटर से अधिक गहराई पर नहीं पहुँच पाती । तापमान के आधार पर सागर की गहराई को निम्न तीन परतों में विभाजित किया जा सकता है (Fig. 4.7) ।

1. ऊपरी परत अथवा फोटिक जोन (Surface or Photic Zone):

सागर की ऊपरी परत की गहराई लगभग 100 मीटर होती है, और सागर के कुल जल का केवल 2 प्रतिशत जल इस परत में पाया जाता है (Fig. 4.7) । सागर की इस परत में तापमान तथा लवणता लगभग समान रहते हैं ।

2. थर्मोकलाइन अथवा पैकनोकलाइन (Thermocline or Pycnocline):

सागर की 100 मीटर से लेकर 1000 मीटर की गहराई तक थर्मोकलाइन परत है । इस परत के तापमान में तीव्र गति से ह्रास है । गहराई की ओर जाते ही, लवणता बढ़ती जाती है ।

3. गहरी परत (Deep Zone):

एक किलोमीटर से लेकर सागर की तली तक सबसे गहरी परत है । इसमें गहराई की ओर जाते हुये तापमान मन्द गति से कम होता है परन्तु सागर के सबसे गहरे भाग-नितल का तापमान भी शून्य से ऊपर रहता है । यदि तापमान शून्य से नीचे हो जाये तो पानी हिम में बदल जायेगा और बर्फ पानी से हल्का होती है, इसलिये वह ऊपर तैर जायेगी (Fig. 4.7) ।

महासागरों की लवणता (Salinity of the Oceans):

सागर के जल में घुले प्रदूषण लवण आदि को सागर की लवणता कहते हैं । सागर की औसत लवणता 35 ग्राम लवण प्रति हजार ग्राम जल है । महासागरों में 96.5 प्रतिशत जल तथा 3.5 प्रतिशत लवण है ।

लवणता के स्रोत (Sources of Salinity):

सागर में पाये जाने वाले लवण का अधिकतर भाग धरातल से आता है । वर्षा का बहता पानी, चलती पवन, हिमनदियाँ तथा सागरी लहरें स्थल से लवणता सागर में सम्मलित होती हैं । इनके अतिरिक्त सागरों में उद्‌गम होने वाले ज्वालामुखी तथा सागर में मरने वाले जीव-जन्तु तथा घास-फूस भी लवणता में वृद्धि कुढ़ते हैं ।

सागरीय लवणता के निर्धारक (Determinants of Salinity in Oceans):

लवणता के वितरण पर निम्न कारकों का गहरा प्रभाव पड़ता है:

1. वाष्पीकरण (Evaporation):

वाष्पीकरण एवं लवणता की मात्रा में सीधा सम्बंध होता है । सागर के जिन भागों में वाष्पीकरण अधिक होता है । वहाँ की लवणता भी अधिक होती है दक्षिणी-पश्चिमी एशिया में लाल-सागर, फेरिस की खाड़ी तथा मृत सागर में वाष्पीकरण, स्वच्छ आकाश के कारण अधिक होता है । इसलिये इन भागों में लवणता भी अधिक है ।

2. तापमान (Temperature):

जिन सागरों का तापमान अधिक होता है । वहाँ की लवणता भी अधिक होती है । इसी कारण शीतकटिबंध की तुलना में उष्णकटिबंध के सागरों में लवणता अधिक होती है ।

3. वर्षण (Precipitation):

वर्षण की मात्रा तथा सागर की लवणता में विपरीत सम्बंध है । सागरों के जिन भागों में वर्षा अधिक होती है, उन भागों में लवणता कम है । उदाहरण के लिये विषुवतरेखीए प्रदेशों में वर्षा अधिक होती है, इस कारण इन भागों में लवणता की मात्रा कम है ।

4. जलधारायें (Ocean Currents):

जलधारायें अधिक लवणता के क्षेत्रों से कम लवणता के क्षेत्रों में ले जाती हैं ।

5. नदियों के डेल्टे (River Deltas):

नदियों के डेल्टे के सामने लवणता की मात्रा कम होती है । नदियों से आने वाला जल सागर की लवणता मात्रा को कम कर देता है । सुन्दरवन के डेल्टे तथा अमेजन नदियों में सागरों की लवणता तुलनात्मक रूप से कम है ।

लवणता का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Salinity):

महासागरों की औसत लवणता 35% है । परन्तु महासागरों के विभिन्न भागों, सागरों तथा झीलों की लवणता में भारी अन्तर पाया जाता है ।

लवणता के आधार पर सागरों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) सामान्य से अधिक लवणता वाले सागर- लाल सागर, भूमध्य तथा फारस की खाड़ी में लवणता 37% से लेकर 41% है ।

(ii) सामान्य लवणता के सागर- कैरेबियन सागर, मैक्सिको की खाड़ी, चीन सागर, पीला सागर तथा जावा सागर में लवणता की मात्रा लगभग सामान्य (35%) है ।

(iii) सामान्य से कम लवणता के सागर- आर्किटक तथा अंटार्कटिक महासागरों में लवणता सामान्य से कम अर्थात 31% से कम है ।

लवणता का लम्बवत वितरण (Vertical Distribution of Salinity):

सागर की गहराई में जाते समय लवणता में अन्तर आता जाता है । हैलण्ड हैनसेन ने लम्बवत लवणता दर्शाने के लिए 1916 में T-S डायग्राम तैयार किया था । इस आरेख के अनुसार महासागरों के विभिन्न अक्षांशों में तापमान तथा लवणता के प्रतिरूप निम्न प्रकार हैं । इन प्रतिरूपों को Fig. 4.8 में दर्शाया गया है ।

लम्बवत लवणता के वितरण प्रतिरूप निम्न प्रकार हैं:

(i) सागर के ऊपरी भाग में लगभग एक किलोमीटर तक लवणता का ह्रास होता जाता है ।

(ii) सागर की ऊपरी परत की लवणता तुलनात्मक रूप से कम है ।

(iii) मध्य अक्षांशों में गहराई की ओर जाते समय लवणता में वृद्धि होती जाती है ।

Home››Geography››Oceans››