मांस का नुक़सान: सिद्धांत और प्रकार | Spoilage of Meat: Principles and Types in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. माँस के खराब होने के कारक (General Principles Underlying Meat Spoilage) 2. माँस में सूक्षजीवों की वृद्धि (Growth of Micro-Organisms in Meat) 3. सामान्य प्रकार (General Types).

माँस (Meat) एक भोजन के रूप बहुत अधिक उपयोग किया जाता है । अधिकांशतः सभी मनुष्यों द्वार माँस का उपयोग खाने में किया जाता है । यह माँस (Meat) भी विभिन्न प्रकार के जानवरों, जैसे- बकरी, भैंस, सुअर, मछली (Fish) व Chicken आदि का होता है ।

सबसे पहले कच्चा मीट एन्जाइम तथा सूक्ष्मजैविक क्रिया द्वार खराब होता है । इसकी वसा रासायनिक रूप से ऑक्सीकृत होती है । माँस Micro-Organisms के लिए एक उचित माध्यम का कार्य करता है ।

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मीट (Meat) में माँस पेशियों (Muscles) पर कुछ Proteolytic क्रियाएँ तथा Connective Tissues पर प्रोटियोलाइटिक (Proteolytic) क्रियाएँ और Fats का जल अपघटन Autolytic परिवर्तन के कारण होते हैं ।

माँस के खराब होने के कारक (General Principles Underlying Meat Spoilage):

ऐसा माना जाता है कि जानवरों (Animals) में सूक्ष्मजीव उनके मारते समय ही प्रवेश कर जाते हैं, परन्तु ये Micro-Organisms चाकू, हवा, डिब्बें तथा उपकरणों द्वारा जानवरों में प्रवेश नहीं करते हैं बल्कि Favourable Condition मिलने पर ही ये आक्रमण करते हैं ।

ये किस प्रकार आक्रमण करते हैं निम्नानुसार है:

(I) Micro Organism द्वारा Tissues पर आक्रमण:

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जानवरों (Animals) की मृत्यु के बाद Micro-Organisms उसके मृत शरीर पर आक्रमण करके उसे संदूषित करते हैं ।

Micro-Organisms द्वारा Tissues पर Attack करने वाले कुछ कारकों (Factors) का प्रभाव निम्न प्रकार है:

(1) जन्तु के उदर भार- पशुओं में जितना ज्यादा उदर का भार होगा उतना ही अधिक उत्तकों पर आक्रमण होगा ।

(2) जन्तु को मारने के तुरन्त पहले की शारीरिक परिस्थितियाँ- यदि जन्तु उत्तेजित होता है, या आक्रमण करता है, तो बैक्टीरिया के ऊत्तकों में प्रवेश करने की सम्भावना कम हो जाती है ।

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(3) Killing और bleeding की विधियाँ- यदि जानवर (जन्तु) को उत्तम तथा अधिक सफाई वाले स्थान पर काटा जाये तो मीट (Meat) की Quality बनी रहती है तथा Spoilage होने की सम्भावना कम हो जाती है ।

(4) ठण्डा करने की दर- माँस को शीघ्र ठंडा करने से ऊत्तकों में सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को कम किया जा सकता है ।

माँस में सूक्षजीवों की वृद्धि (Growth of Micro-Organisms in Meat):

बहुत से सूक्ष्मजीवों के लिए माँस एक आदर्श माध्यम है क्योंकि इसमें रोगाणुओं की वृद्धि के लिए आवश्यक नमी, नाइट्रोजनी पदार्थ खनिज तथा वृद्धि कारक उपस्थित रहते है ।

खनिज की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कुछ निम्न कारक है:

(1) सूक्ष्मजीव द्वारा संदूषण की मात्रा व प्रकार इन जीवों को विभिन्न ऊत्तकों में फैलना ।

(2) माँस की शारीरिक विशेषता किस प्रकार की है ।

(3) माँस की रासायनिक विशेषता पर ।

(4) ऑक्सीजन की उपलब्धता माँस की वायवीय परिस्थितिकी कवक (Fungi) यीष्ट तथा वायवीय जीवाणुओं की वृद्धि के लिए अनुकूलित करती है ।

(5) तापमान (Temperature) पर ।

खराब मांस के सामान्य प्रकार (General Types of Spoilage of Meat):

माँस की खराबी को सामान्यतः वायवीय या अवायवीय परिस्थिति या फिर जीवाणु, यीष्ट, कवक द्वारा उत्पन्न खराबी के आधार पर वर्गीकृत किया गया है ।

वायवीय परिस्थिति के अंतर्गत जीवाणु द्वारा निम्न खराबी उत्पन्न होती है:

(A) Surface Slime:

यह Pseudomonas, Streptococcus, Leuconostoc, Bacillus and Micrococcus Species आदि द्वार उत्पन्न होता है । Surface Slime को उत्पन्न करने वाले Micro Organisms को Temperature तथा नमी प्रभावित करती है ।

(B) Meat Pigment के रंग में परिवर्तन:

Meat का लाल रंग जिसे Brown कहते हैं । Oxidizing Compounds के बनने के कारण Green तथा Grey रंग का हो जाता है । यह Lactobacillus Leuconostoc द्वार होता है ।

(C) Changes in Fats:

Meat में उपस्थित असंतृप्त वसा का हवा द्वारा ऑक्सीकरण (Oxidation) हो जाता है जिससे वसा रासायनिक प्रकृति की हो जाती है तथा यह Light व कॉपर (Copper) द्वारा उत्प्रेरित होता है तथा जिससे जीवाणुओं का आक्रमण होता है ।

(D) गन्दी महक व गन्दा स्वाद:

Bacteria के आक्रमण से Meat में गन्दी महक व गन्दा स्वाद उत्पन्न हो जाता है और Meat में से पानी निकलना शुरू हो जाता है ।

वायवीय परिस्थितियों में फफूँद विकसित होकर निम्न परिवर्तन कर देती है:

(1) Stickiness- इसमें माँस चिपचिपा हो जाता है ।

(2) Whiskers- जब माँस को एक निश्चित तापमान संग्रह करते है या Freeze करते हैं तो कुछ Mycelial Growth होती है जो Meat को Spoiled करते है । उदाहरण- Thamnidium Chaetocladioldes or T. Elegans Mucor Mucedo आदि से होता है ।

(3) Black Spot- माँस के ऊपर काले धब्बे बनते हैं जो Cladosporium Herbarum के कारण होते हैं ।

(4) White Spot- माँस पर सफेद धब्बे पड़ते है जो Mold के कारण या Yeast Like Colonies पड़ती है जो Sporotrichum Carnis के द्वारा होते हैं ।

(5) Green Patches- माँस पर Green Patches Penicillium के Green Spores के करण होते है ।

(6) Off Odors and Off Tastes- Thamnidium Trint के कारण Meat में गन्दी Smell और स्वाद भी बदल जाता है ।

(7) Spoilage under Anaerobic Condition- Facultative और Anaerobic Bacteria तथा Anaerobic परिस्थितियों में Meat में वृद्धि करने में सक्षम होते हैं तथा Spoilage करते हैं तथा इससे अलग-अलग प्रकार के Termalogy से उपयोग करते है ।

जो निम्न प्रकार से हैं:

 

(i) Souring:

सूक्ष्मजीव माँस में वृद्धि करके इससे खट्टापन उत्पन्न कर देते हैं । जिसे इसकी महक से पहचाना जा सकता है । ये खट्टापन Acetic Butyric और Higher Fattyacids आदि बनते हैं तथा Anaerobic Production of Fatty Acids का Bacterial के द्वार होता है तथा Proteolysis की क्रिया Putrefaction के बगैर होती है तथा ये Anaerobic Bacteria से होता है जैसे- Clostridium, Coliform Bacteria आदि अधिक प्रभावी होती है ।

(ii) Putrefaction:

जब माँस सड़ने लगता है तथा प्रोटीन Anaerobic अपघटन होता है तथा गन्दी महक उत्पन्न करने वाले Compound, जैसे- Hydrogen Sulfate Ammines आदि का उत्पादन होने लगता है जो महक उत्पन्न करते हैं । ये Bacterial Pseudomonas, Alcaligenes, Proteus Species के द्वारा होता है ।

(iii) Taint:

जब माँस में अत्यधिक गंदी महक व गंदा स्वाद हो जाता है । तब माँस पर धब्बे बन जाते हैं, प्रायः इसका अर्थ सड़ना होता है । इसे Bone Taint के नाम से भी जाना जाता है ।