Read this article in Hindi to learn about:- 1. Definitions of SEBI (SEBI की परिभासा) 2. सेबी की संगठन संरचना (Organisation Structure of SEBI) 3. सेबी के कार्य (Functions) 4. ‘सेबी’ के अधिकार एवं शक्तियाँ (Rights and Powers).

Definitions of SEBI (SEBI की परिभासा):

पिछले दशक के दौरान भारतीय पूंजी बाजार ने आशाजनक उन्नति की है । सरकार की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के फलस्वरूप पूँजी बाजार में जनता की रुचि में वृद्धि हुई है । पूँजी बाजार में निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने के लिये यह आवश्यक था कि निवेशकों का संरक्षण सुनिश्चित किया जाए ।

इसी उद्देश्य को लेकर एक प्रशासनिक संस्था के रूप में 12 अप्रैल, 1998 को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना की गई । 31 जनवरी, 1992 को एक अध्यादेश के द्वारा इसे वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।

1 अप्रैल, 1992 को ‘सेबी’ बिल को संसद द्वारा पारित का दिया गया, जिससे 4 अप्रैल, 1992 से ‘सेबी’ का कार्य एक पृथक कानून के अधीन संचालित होने लगा है तथा इसे अधिक व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त हो गये हैं और इसका कार्य क्षेत्र विस्तृत हो गया ।

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इस बोर्ड (SEBI) का प्रबन्ध सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिसमें एक चेयरमैन (जो केन्द्र सरकार द्वारा नामित होता है) दो सदस्य केन्द्रीय मन्त्रालयों के अधिकारियों में से, जिन्हें वित्त एवं कानून की जानकारी होती है । एक सदन भारत के रिजर्व बैंक के अधिकारियों में से तथा अन्य दो सदस्यों का नामांकन केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाता है । इसका मुख्यालय मुम्बई में है । इन सभी सदस्यों का कार्यकाल केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है ।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड की स्थापना में पूर्व प्रतिभूति बाजार को तीन अधिनियम नियन्त्रित एवं संचालित करते हैं:

1. पूँजी निर्गमन (नियन्त्रण) अधिनियम, 1947:

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यह अधिनियम प्रतिभूति बाजार तक निर्गमनकर्ताओं की पहुंच को सीमित करना था एवं निर्गमित की जाने वाली प्रतिभूतियों के मूल्य को नियन्त्रित करता था ।

2. कम्पनी अधिनियम, 1956:

यह अधिनियम प्रतिभूर्तियों के निर्गमन, आबंटन, हस्तान्तरण एवं सार्वजनिक निर्गमनों में की जानी वाली व्यवस्थाओं के बारे में कम्पनियों के लिए मूल सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता था ।

3. प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम, 1956:

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यह अधिनियम स्टॉक एक्सचेंज पर नियन्त्रण रखता था एवं प्रतिभूतियों के लेन-देन के नियमन के लिए व्यवस्था करता था ।

पूँजी निर्गमन (नियन्त्रण) अधिनियम, 1947 का मूल उद्देश्य उस समय चल रहे युद्ध के प्रयासों के समर्थन के लिए संसाधनों को प्रभावित करना था परन्तु बाद में इस अधिनियम को निवेशकी के हितों के संरक्षण हेतु एवं सरकार के लक्ष्यों एवं प्राथमिकताओं की पूर्ति के लिए कुछ संशोधनों के साथ बनाये रखा गया तथा इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रतिभूतियों का निर्गमन करने वाली किसी भी संस्था को केन्द्रीय सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक था जो निर्गमन के आकार, मूल्य व राशि का निर्धारण करतीं थीं, 1992 में इस अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और पूंजी निर्गमन, निर्गमन के मूल्यन, प्रब्याजि के निर्धारण व ऋणपत्रों के ब्याज की दरों पर सरकारी नियन्त्रण प्रायः समाप्त हो गया एवं बाजार को बिना हस्तक्षेप के स्वतन्त्र छोड दिया गया लेकिन बाजार के प्रभावी नियन्त्रण व नियमन को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय प्राप्ति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 पारित किया गया जिसके अधीन सेबी की स्थापना की गयी ।

सेबी अधिनियम, 1992 के अनुसार ”सेबी एक नियमित संस्था है जिसका अविच्छित उत्तराधिकार होता है । इसको अपने नाम में वाद करने चल एवं अचल सम्पत्ति पाने धारण करने तथा निपटान करने का अधिकार होता है । सेबी पर वाद भी किया जा सकता है ।

सेबी की संगठन संरचना (Organisation Structure of SEBI):

‘सेबी’ ने अपने क्रिया-कलापों का समुचित निष्पादन कराने के लिए एक संगठन रचना तैयार की है । इसके अन्तर्गत ‘सेबी’ के सात सम्भाग निर्धारित किये गये हैं ।

जो निम्नलिखित हैं:

1. प्राथमिक बाजार सम्भाग ।

2. निर्गमन प्रबन्ध एवं मध्यस्थ सम्भाग ।

3. सहायक बाजार प्रशासन सम्भाग ।

4. स्कन्ध विनिमय केन्द्र प्रबन्ध सम्भाग ।

5. संस्थागत निवेश, अधिग्रहण, शोध एवं प्रकाशन सम्भाग ।

6. विधि सम्भाग ।

7. अन्वेषण सम्भाग ।

1. प्राथमिक बाजार सम्भाग:

यह संभाग प्राथमिक बाजार से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं का निरीक्षण, निर्देशन एवं प्रबन्धन करता है ।

इस सम्भाग के प्रमुख रूप से निम्नलिखित कार्य हैं:

(i) प्राथमिक बाजार सम्बन्धी नीतियों एवं नियमों का निर्माण करना ।

(ii) प्राथमिक बाजार के मध्यस्थों का पंजीयन एवं नियंत्रण ।

(iii) निवेशकों की शिकायतों/समस्याओं का समाधान करना ।

(iv) निवेश सलाहकारों एवं अभिगोपकों का नियमन करना ।

(v) ऋणपत्र प्रन्यासियों का पंजीयन एवं नियमन करना ।

(vi) प्राथमिक बाजार से जुड़े हुए स्वायत्तशासी संगठनों का नियमन एवं नियन्त्रण करना ।

(vii) निवेशकों को मार्गदर्शन प्रदान करना ।

(viii) निवेशक संघों का मान्यता प्रदान करना तथा उनका पंजीयन करना ।

2. निर्गमन प्रबन्ध एवं मध्यस्थ सम्भाग:

इस सम्भाग का कार्य कम्पनियों के निर्गमनों का ध्यान रखना तथा मध्यस्थों की क्रियाओं पर नजर रखना है ।

संक्षिप्त में इस सम्भाग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) नये पूंजी निर्गमन प्रस्तावों पर प्रविवरणों की जाँच करना ।

(ii) सार्वजनिक एवं प्रथम अधिकार निर्गमनों का नियमन करना ।

(iii) निर्गमनों से सम्बन्धित मार्गदर्शक नियमों म निर्माण करना तथा इनके क्रियान्वयन पर नजर रखना ।

(iv) निर्गमनों से सम्बन्धित पक्षकारों के परामर्श प्रदान करना तथा उन्हें बदलती परिस्थितिओं की जानकारी देना ।

(v) कम्पनियों से अंशों का आबंटन के बाद सूचनायें माँगना तथा त्रुटियाँ होने पर आवश्यक कार्यवाही करना ।

3. सहायक बाजार प्रशासन सम्भाग:

यह सम्भाग सहायक बाजार की क्रियाओं पर ध्यान रखता है तथा इनका नियमन करता है ।

इसके प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:

(i) स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के सदस्यों का पंजीयन करना तथा इनके कार्यों का नियमन करना ।

(ii) सहायक बाजार के नीतिगत एवं नियमन सम्बन्धी मामलों की देखरेख करना ।

(iii) परिस्थति-जन्य स्थिति में किसी भी स्कन्ध-विनिमय केन्द्र मई कार्यकारिणी समिति का स्थान लेना ।

(iv) स्कन्ध-विनिमय केन्द्रों के सूचकांकों जैसे-सेनसेक्स, नैटेक्स, डोलेक्स आदि पर नजर रखना ।

(v) अन्दरूनी सौदों का नियमन एवं नियन्त्रण करना ।

(vi) सामकों का एकत्रीकरण एवं इन्हें प्रस्तुत-योग्य बनाना तथा सम्बन्धित पक्षकारों में उपलब्ध कराना ।

4. स्कन्ध विनिमय केन्द्र-प्रबन्ध सम्भाग:

यह सम्भाग अलग-अलग स्कन्ध-विनिमय केन्द्रों के प्रबन्ध सम्बन्धी सभी कार्यों पर ध्यान रखता है ।

इसके महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित है:

(i) उप-दलालों एवं प्रतिभूति एजेन्सियों का पंजीयन एवं नियमन करना,

(ii) कुछ विनिमय केन्द्रों का प्रत्यक्ष नियमन व नियन्त्रण करना तथा उन्हें प्रबन्धकीय निर्देशन देना,

(iii) सभी विनिमय केन्द्रों का निरीक्षण एवं नियमन करना ।

5. संस्थागत निवेश, अधिग्रहण, शोध एवं प्रकाशन सम्भाग:

यह सम्भाग मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करता है:

(i) विदेशी संस्थागत निवेशक संस्थाओं का पंजीयन एवं नियमन करना ।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की कार्यप्रणाली का अध्ययन करना तथा देश में प्रचलित कार्यप्रणाली के साथ समन्वय करना ।

(iii) स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के सम्बन्ध में आवश्यक शोध करना तथा उसके परिणामों को प्रकाशित करना ।

(iv) साहस पूँजी कोषों, पारस्परिक निधियों, सामूहिक कोषों का नियमन एवं नियंत्रण करना ।

6. विधि सम्भाग:

यह सम्भाग प्रतिभूतियों से सम्बन्धित कानूनों का अध्ययन एवं उनके प्रावधानों के क्रियान्वयन पर ध्यान रखता है । कानूनी प्रावधानों क पालन न होने मई दशा में यह सम्भाग कानूनी कार्यवाही करता है । यह ‘सेबी’ के विरुद्ध की गयी अपीलों का प्रत्युत्तर देता है तथा अन्य विधिक समस्याओं का समाधान करता है ।

7. अन्वेषण सम्भाग:

इस सम्भाग का प्रमुख कार्य स्कन्ध विनिमय केन्द्रों, उनके मध्यस्थों, प्राथमिक बाजारों में असूचीबद्ध प्रतिभूतियों के सौदों, कपटपूर्ण व्यवहार आदि क्रियाओं पर कड़ी नजर रखता है । यह सम्भाग इनकी पुनरावृत्ति रोकने हेतु आवश्यक उपाय भी करता है ।

सेबी के कार्य (Functions of SEBI):

सेबी के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है:

1. प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति-बाजार को उचित उपायों के माध्यम से विकसित करना एवं नियमित करना ।

2. स्टॉक एक्सचेंजों तथा किसी भी अन्य प्रतिभूति बाजार के व्यवसाय का नियमन करना ।

3. स्टॉक ब्रोकर्स, सब-ब्रोकर्स, शेयर ट्रांसफर एजेन्ट, ट्रस्टीज, मर्चेन्ट बैंकर्स, अण्डर राइटर्स, पोर्टफोलियो मैनेजर आदि के कार्यों का नियमन करना एवं उन्हें पंजीकृत करना ।

4. म्यूचुअल फण्ड्स को सम्मिलित करते हुए सामूहिक निवेश की योजना को पंजीकृत करना तथा उनका नियमन करना ।

5. स्वयं नियमित संगठनों को प्रोत्साहित करना ।

6. प्रतिभूतियों के बाजारों से सम्बन्धित अनुचित व्यापार व्यवहारों को समाप्त करना ।

7. प्रतिभूतियों के बाजार से जुडे हुए लोगों को प्रशिक्षित करना तथा निवेशकों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना ।

8. प्रतिभूतियों के अन्दरूनी व्यापार पर रोक लगाना ।

9. प्रतिभूतियों के बाजार में कार्यरत विभिन्न संगठन के कार्य-कलापों का निरीक्षण करना एवं सुव्यवस्था सुनिश्चित करना ।

10. उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शोध का कार्य करना ।

‘सेबी’ के अधिकार एवं शक्तियाँ (Rights and Powers of SEBI):

‘सेबी’ को निम्नलिखित अधिकार व शक्तियाँ प्राप्त हैं:

1. प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा करना, विशेषकर छोटे निवेशकों को संरक्षण प्रदान करना ।

2. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों तथा इनकी क्रियाओं और पूँजी बाजार को आवश्यकतानुसार तथा परिस्थितियों के अनुसार विनिमय करना ।

3. प्रतिभूति बाजार के निवेशकों की शिक्षा तथा मध्यस्थों के प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करना ।

4. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों, पारस्परिक निधियों व स्कन्ध विनिमय केन्द्रों से सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों से निरीक्षण करने जाँच करने तथा अंकेक्षण के लिए सूचना माँगने का अधिकार ।

5. प्रतिभूति बाजारों से सम्बन्धित कपटपूर्ण व अनुचित व्यापारिक व्यवहारों पर रोक लगाने का अधिकार ।

6. स्वायत्तशासी संगठनों को प्रोत्साहित करना व उनका नियमन करना ।

7. अन्दरूनी व्यापार को रोकने के लिए यथोचित कदम उठाने का अधिकार ।

8. साहस पूँजी कोषों तथा पारस्परिक निधियों सहित अन्य सामूहिक निवेश योजनाओं का पंजीयन व नियमन ।

9. कम्पनियों के अंशों का वृहत-स्तरीय क्रय करने तथा कम्पनियों की अधिग्रहण क्रियाओं का नियमन करना ।

10. प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करना ।

11. प्रतिभूति बाजार के मध्यस्थों का पंजीयन व नियमन तथा इनके बारे में पर्याप्त सूचनाये रखने का अधिकार ।

12. निक्षेप निधियों (Depositories) व उसके भागीदारों, प्रतिभूतियों के संरक्षकों, विदेशी संस्थागत निवेशकों क्रेडिट-रेटिंग स्थानों तथा अन्य अध्यस्थों का पंजीयन व नियमन ।

13. शुल्क तथा खर्च निर्धारित करने का अधिकार ।

14. ऐसी विनिर्दिष्ट संस्थाओं से सूचनायें माँगने का अधिकार जो बोर्ड के कार्यों के सरलतम निष्पादन के लिए आवश्यक हो ।

15. बोर्ड के कार्य-निष्पादन के लिये कार्यवाही करने का अधिकार ।

16. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों को मान्यता प्रदान करने अथवा मान्यता को निरस्त करने की शक्ति ।

17. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के नियमों एवं उपनियमों के अनुमोदित करने की शक्ति ।

18. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के अधिकारों को अपने हाथ में लेने की शक्ति ।

19. किसी भी मान्यता प्राप्त स्कन्ध विनिमय केन्द्र में किसी भी व्यवहार को उचित आधार पर, निरस्त करने की शक्ति ।

20. कम्पनियों के प्रविवरणों में विशिष्ट बातों का उल्लेख करने हेतु बाध्य करने की शक्ति ।

21. प्रविवरण की जाँच तथा निर्गमन कार्य जारी करने की शक्ति ।

22. इस अधिनियम (सेवा अधिनियम) के पालन न करने वालों पर अर्थदण्ड लगाने की शक्ति ।

23. केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर सौंपे गये कार्यों, अधिकारों आदि की अनुपालना में प्रयुक्त शक्तियाँ ।

24. किसी भी बैंक, निगम, बोर्ड तथा प्राधिकरण से आवश्यक सूचनाये तथा प्रपत्र प्राप्त करने का अधिकार ।

‘सेबी’ की शक्तियों में और वृद्धि कर दी गयी है । अब किसी भी स्कन्ध से आवश्यक सूचनायें तथा प्रपत्र प्राप्त करने का अधिकार विनिमय केंद्र को विनिमय केन्द्र को मान्यता प्रदान करने को मान्यता प्रदान करने का अधिकार ‘सेबी’ को हस्तान्तरित कर दिया गया है । शेयर बाजार के किसी सदस्य के किसी बैठक में मताधिकार के सम्बन्धों, में नियम बनाने तथा उसे संशोधित करने का अधिकार भी जो केन्द्र सरकार के पास था, अब ‘सेबी’ को हस्तान्तरित कर दिया गया है ।

स्थानीय सुपुर्दगी आधार पर किये गये सौदों के विनिमय व नियन्त्रण तथा किसी स्कन्ध विनिमय केन्द्र द्वारा किसी कम्पनी के शेयरों को सूचीबद्ध न करने सम्बन्धी कम्पनियों की शिकायतों की सुनवाई भी अब ‘सेबी’ द्वारा ही की जायेगी ।