Read this article in Hindi to learn about the non-banking financial institutions along with its characteristics and functions.

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था का प्रारम्भ (Introduction to Non-Banking Financial Institutions):

सभी वित्तीय संस्थाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है, यथा बैंकिंग संस्थाएँ और गैर-बैंकिंग संस्थाएँ । बैंकिंग संस्थाओं में व्यापारिक बैंक, केन्द्रीय बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंक आदि सम्मिलित रहते है । इसी प्रकार गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को भी दो भागो में बाँटा जा सकता है, यथा- विकास बैंकिंग एवं अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ ।

अतः स्पष्ट है कि ऐसी वित्तीय संस्थाएँ जो न तो बैंकिंग से सम्बन्धित है और न ही विकास बैंकर्स है गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ कहलाती है ।

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के अन्तर्गत बचत एवं ऋण देने वाले संगठन, परस्पर बचत बैंक, सामान्य ट्रस्ट कोष, पेंशन कोष आदि संस्थाएँ सम्मिलित रहती है । यही यह भी उल्लेखनीय है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं में विकास बैंकिंग से सम्बन्धित संस्थाएँ भी सम्मिलित रहती है |

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अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ निवल बचतकर्ताओं से उनकी बचतों को संकलित करके उन्हें व्यापारिक संस्थानों, व्यक्तियों, सरकारी संस्थाओं आदि की वित्त व्यवस्था करने के लिए धन राशि उधार देते हैं । इस प्रकार, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ बचतकर्ताओं और ऋण देने वाली संस्थाओं या व्यक्तियों के बीच मध्यस्थ का कार्य करती हैं ।

ये संस्थाएँ बचतों को इकट्ठा करने के लिये अनेक प्रकार के तरीकों का उपयोग करती है, जैसे- सावधि जमा, छोटी-छोटी बचतों का दैनिक आधार पर संकलन, यूनिट या अंशों की बिक्री आदि । उधार चाहने वाली को ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ ये संस्थाएँ लाभ कमाने के उद्देश्य से प्राथमिक प्रतिभूतियों तथा सरकारी बाडों को खरीदने एवं बंधक (Mortgages) रखने का भी कार्य करते है ।

इस प्रकार गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ ऐसी वित्तीय फर्में होती है जो एक प्रकार की वित्तीय परिसम्पत्तियां खरीदती हैं और दूसरी प्रकार की वित्तीय परिसम्पत्तियॉ बेचती हैं । उदाहरणार्थ- बचत एवं ऋण संगठन तथा परस्पर बचत बैंक प्रमुख रूप से ‘बंधक’ खरीदते है और बचत जमाएँ बेचते हैं बीमा कम्पनियाँ प्रमुख रूप से बांड खरीदती है और बीमा पालिसियाँ बेचती है ।

वित्तीय कम्पनियाँ किश्त ऋण खरीदती है तथा बचत कमर्शियल पत्र बेचती हैं । संक्षेप में, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ अन्तिम उधारदाताओं और अन्तिम उधार देने वालों के मध्य अप्रत्यक्ष साधन का काम करती हैं ।

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प्रो. गुर्ले (Gurley) तथा प्रो. शॉ (Shaw) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को परिभाषित करते हुए लिखा है, ”अन्तिम उधार लेने वालों से प्राथमिक प्रतिभूतियाँ खरीदना और अन्तिम उधारदाताओं की विनियोग सूची के लिए अप्रत्यक्ष ऋण देने का कार्य ही गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का है ।”

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की विशेषताएं एवं कार्य (Characteristics and Functions of Non-Banking Financial Institutions):

भारत जैसे विकासशील देशों में मुद्रा बाजार के विकास के साथ-साथ पिछले कुछ वर्षों में गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का तेजी से विस्तार हुआ है । अनेक क्षेत्रों में तो इन संस्थाओं का विस्तार व्यापारिक बैंकों से भी अधिक रहा है । इसका करण यह है कि ये संस्थाएँ सावधिक जमाओ पर व्यापारिक बैंकों की तुलना में अधिक ब्याज देती है और उधार लेने वालों से तुलनात्मक कम ब्याज वसूलते हैं ।

यही कारण कि संस्थाओं ने वित्त के क्षेत्र में काफी लोकप्रियता प्राप्त कर ली है ।

इन संस्थाओं की प्रमुख विशेषताएं एवं कार्य निम्न प्रकार है:

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1. वित्तीय क्रियाएँ (Financial Activities):

व्यापारिक बैंकों के समान ही गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ मुद्रा में लेन-देन करती है अर्थात जन-साधारण की बचतों को एकत्रित करती हैं तथा ऋण देती है । प्रतिभूतियों आदि का क्रय-विक्रय भी करती हैं, किन्तु ये संस्थाएँ व्यापारिक बैंक नहीं होती क्योंकि इनकी कार्यप्रणाली, नियंत्रण-विधि, कानूनी प्रक्रियाएँ आदि अलग-अलग होती हैं । व्यापारिक बैंक जहाँ साख का निर्माण करती है, वही गैर-बैंकिंग संस्थाएँ यह कार्य नहीं करती किन्तु दोनों ही प्रकार की वित्तीय संस्थाएँ मुद्रा का कारोबार करती है ।

2. संचय घटाना (Reduce Hoarding):

सामान्यतः जिन क्षेत्रों में व्यापारिक बैंकों का विकास नहीं हुआ है, वही के लोग अपनी करती का या तो संग्रह कर लेते हैं या उन्हें अनउत्पादक कार्यों में लगा देते है- जैसे सोना-चाँदी या आभूषण खरीदना आदि । गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ इन बचतों को एकत्रित करती है । इस प्रकार जो नकद राशि बचतकर्ताओं के पास निष्क्रिय रूप में पड़ी रहती है, उसे ये संस्थाएँ ब्याज के लालच में या अन्य आकर्षक तरीकों से संग्रहीत कर लेते हैं । फलतः मुद्रा का संचय घटता है ।

3. घरेलू क्षेत्र की सहायता (Helpful for Household Sector):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ सम्पूर्ण घरेलू क्षेत्र के लिए उपयोगी होती है । प्रथम ये संस्थाएँ घरेलू क्षेत्र में विद्यमान नकदी की मात्रा या बचतों को संग्रहीत करती है तथा इन बचतों के लिये बचतकर्ताओं को ब्याज प्रदान करती हैं जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है । द्वितीय घरेलू क्षेत्र को उनकी जरूरतों के अनुसार उपभोग या अन्य कार्यों के लिए ऋण उपलब्ध कराती है ।

इससे उनकी ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । दूसरे शब्दों में, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ साधारण लोगों में बचत तथा निवेश की आदतों को प्रोत्साहित करती है । इससे घरेलू क्षेत्र में जो मुद्रा निष्क्रिय रूप से रखी रहती है, उसका उत्पादक कार्यों में उपयोग होने लगता है जिसके सम्पूर्ण समाज को लाभ होता है ।

4. व्यावसायिक क्षेत्र को सहायक (Helpful for Household Sector):

आधुनिक युग में व्यावसायिक क्षेत्र एवं उद्योगों की स्थापना एवं विस्तार बहुत कुछ सीमा तक पूँजी की उपलब्धता पर निर्भर करता है । पूँजी का वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण ही विकासशील देशों में व्यवसाय एवं औद्योगिक वृद्धि की दर धीमी रहती है । गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ व्यावसायिक एवं उद्योगों को ऋणों बंधकों, शेयर्स, ऋण-पत्र एवं अन्य वित्तीय प्रतिभूतियाँ खरीद कर उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती हैं । इससे व्यवसायों एवं उद्योगों का विस्तार होता है तथा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था गतिशील होती है ।

5. सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय (Sales and Purchase of Government’s Securities):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का एक कार्य यह भी है कि ये संस्थाएँ सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करती हैं जिससे पूंजी बाजार का विकास होता है सरकारी बाँड़ों की खरीदी से सरकार को पैसा प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकार ये संस्थाएँ स्थानीय राज्य सरकारी तथा स्थानीय निकायों द्वारा निर्गमित बाँड़ों में पैसा लगाकर इनकी सहायता करती है ।

6. लाभ का उद्देश्य (Profit Motive):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के कारोबार से सभी पक्षों को लाभ होता है । इन संस्थाओं को पैसा देने वालों या बचतकर्ताओं को अपनी बचत राशि पर ब्याज प्राप्त होता है । ऋण लेने वाले व्यवसायियों को अपने उत्पादन से संबंधित कार्यों में निवेश करने से लाभ होता है, क्योंकि निवेश से उनका उत्पादन बढता है या व्यवसाय में वृद्धि होती है ।

एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करने से गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को भी लाभ होता है । इनका लाभ बचतकर्ताओं को दिये जाने वाले व्याज तथा ऋण देने वालों से लिए जाने वाले ब्याज का अन्तर होता है । यही कारण है कि ये संस्थाएँ बचतकर्ताओं को कम ब्याज देते है तथा ऋण लेने वालों से ऊंची दर पर ब्याज वसूल करते है ।

7. तरलता प्रदान करना (Provide Liquidity):

तरलता से आशय या तो नकद मुद्रा रखने से है या ऐसी प्रतिभूतियों को रखने से है जिनके द्वारा तरल मुद्रा सरलता एवं सुविधानुसार प्राप्त की जा सके । गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ सावधि जमाओं के विपरीत सरलता से ऋण उपलब्ध कराती है । इसके साथ ही प्रतिभूतियाँ एवं बांड के लेन-देन से भी वे अर्थव्यवस्था में तरलता उपलब्ध कराती है । इस कार्य में वे प्रतिभूतियों के मूल्य में कोई कमी नहीं आने देते, वरन् केवल अपना कमीशन प्राप्त करते है ।

8. व्याज दरों में प्रतियोगिता (Competition in Interest Rates):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं में ब्याज दर को लेकर तीव्र प्रतियोगिता होती है । अनेक बार तो इन्हें व्यापारिक बैंकों से भी प्रतियोगिता करना पडती है । प्रतियोगिता के कारण ब्याज दरी में कमी आती है । गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ अपने पास नकद राशि नहीं रखती वरन् प्रतिभूतियों में निवेश करती है जिससे प्रतिभूतियों की कीमतें बढती है तथा ब्याज दर कम होती है ।

इसके साथ ही जब लोग गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के पास अपनी नकद राशि रखते है, तो वह राशि सुरक्षित रहने के साथ-साथ तरल भी रहती है । इससे मुद्रा की माँग गिरती है तथा ब्याज दर कम होती है ।

9. कम ब्याज दर से लाभ (Benefits from Low Rate of Interest):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की परस्पर प्रतियोगिता से ब्याज दर कम हो जाती है । इस कम ब्याज दर से निवेशकर्ता एवं बचतकर्ता दोनों को लाभ होता है । कम ब्याज दर के कारण ऋणियों को ऋण देने की वास्तविक लागत घट जाती है । इससे वस्तुओं एवं सेवाओं की उत्पादन लागत में भी कमी आती है और अन्ततः कीमतों में भी कमी आ जाती है ।

इससे माँग में वृद्धि होती है तथा उपभोक्ताओं को लाभ होता है यद्यपि ब्याज दरी में गिरावट के साथ सावधि जमाओ पर प्रतिफल भी घटता है, तथापि अपनी आय के स्तर को बनाये रखने के लिये बचतकर्ताओं को और अधिक बचते करना पडती है ।

दूसरे शब्दों में, कम ब्याज दर से अधिक राशि बचाने की प्रेरणा मिलती है । इसके साथ ही बचतकर्ता को गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं में जमा करने से उन्हें सुरक्षा, सुविधा एवं अन्य सेवाएँ भी प्राप्त होती है । इससे बचतकर्ता के वास्तविक प्रतिफल एवं आय में वृद्धि होती है ।

10. दलाल होने के लाभ (Advantage of Brokers):

उधार लेने एवं देने की प्रक्रिया में गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ एक दलाल या मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है और इस कार्य से उन्हें लाभ भी होता है । ये संस्थाएँ बचतकर्ताओं को अप्रत्यक्ष प्रतिभूतियाँ बेचती है और निवेशकों से प्राथमिक प्रतिभूतियाँ खरीदती हैं ।

अप्रत्यक्ष प्रतिभूतियों वित्तीय संस्थाओं की अल्पावधि देयताएं होती है, जबकि प्राथमिक प्रतिभूतियाँ उनकी अर्जक (Earning) परिसम्पत्तियाँ होती है, परन्तु उधार लेने वालों के लिए ऋण होते है । इस प्रकार ऋण को साख में बदलकर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ उधार देय कोषों के दलालों का कार्य करते है ।

11. बचतों का संकलन (To Mobilise Savings):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ समाज में ऐसी सेवाएँ प्रदान करती है जिससे बडी मात्रा में बचतों को संकलित करने में सफल हो जाती है । इन संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में आसान तरलता, मूलधन की सुरक्षा, समय पर ब्याज या लाभांश का भुगतान आदि करते है ।

यही यह उल्लेखनीय है कि परस्पर बचत बैंक, बचत और ऋण संगठन, साख संस्थाएँ ऐसे वित्तीय मध्यस्थ हैं जो छोटे बचतकर्ताओं को आकर्षित करने में अधिक सफल रहती है । इसके साथ ही कुछ ऐसी संस्थाएँ भी होती हैं जो बचतकर्ता को दीर्घकाल तक अनेक प्रकार के लाभ प्रदान करती है ।

इस प्रकार की संस्थाएँ पेन्शन कोष, जीवन बीमा कम्पनियाँ, सार्वजनिक भविष्य निधि कोष आदि हैं ।

12. कोषों का निवेश (Investment of Funds):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का विस्तार इसी कारण से हुआ है कि ये अपने द्वारा संकलित बचतों को लाभकारी ढंग से निवेश करती हैं । इन संस्थाओं के निवेश द्वारा अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है और पूँजी निर्माण के साथ-साथ उत्पादन, आय एवं रोजगार में वृद्धि होती है अपनी प्रकृति के अनुसार ये संस्थाएँ निवेश-नीति को अपनाती हैं, जैसे- परस्पर बचत बैंक या बचत एवं ऋण संगठन बन्धकों में तुलनात्मक अधिक निवेश करते हैं । इसी प्रकार भविष्य निधि कोष एवं बीमा कम्पनियाँ जैसे संविदा संस्थाएँ (Contractual Institutions) दीर्घकालीन प्रतिभूतियों एवं बांडों में अधिक निवेश करती हैं ।

13. जोखिम को कम करना (To Reduce Risks):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ धन राशि के उधारदाताओं और उधार लेने वालों के बीच एक प्रभावी मध्यस्थ का कार्य करके स्वयं तो जोखिम उठाते है किन्तु अन्तिम उधारदाताओं की जोखिम को कम कर देते है । ये संस्थाएँ विभिन्न प्रकार की परिसम्पत्तियों खरीदते है, जिनमें से कुछ परिसम्पत्तियों पर कम और कुछ पर अधिक लाभ होता है । कुछ परिसम्पत्तियों पर घाटा भी हो सकता है ।

किन्तु कुल मिलाकर उन्हें लाभ ही होता है । इस प्रकार, ये संस्थाएँ अपनी जोखिम भी कम कर लेती हैं । बडे पैमाने पर कार्य करने से उन्हें आन्तरिक एवं बाह्य मितव्ययिताएं भी प्राप्त होती है, जिससे जोखिम कम हो जाती है तथा लाभ बढ जाता है ।

14. पूँजी बाजार में स्थिरता लाना (To Bring Stability in the Capital Market):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य प्रतिभूतियों अ क्रय-विक्रय होता है जो कि पूँजी बाजार के माध्यम से ही किया जाता है । इस प्रकार पूँजी बाजार में प्रतिभूतियों की माँग एवं पूर्ति के मध्य सन्तुलन स्थापित होता है और परिणामस्वरूप पूँजी बाजार में स्थिरता बनी रहती है ।

15. पैमाने की मितव्ययिताएँ (Economies of Scale):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को बचतें जुटाने एवं निवेश करने में विशेषज्ञता प्राप्त हो जाती है और परिणामस्वरूप इनके आकार में वृद्धि के साथ-साथ व्यवसाय में भी वृद्धि होती है । इससे इन संस्थाओं को पैमाने की मितव्ययिताएँ भी प्राप्त होने लगती है । व्यक्तिगत आधार पर एक बचतकर्ता को अपनी धन राशि को किसी व्यक्ति या संस्था को ऋण के रूप में देना एक कठिन, जोखिम भरा एवं महंगा कार्य होता है ।

बडे पैमाने पर कार्य करने से गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के विशेषज्ञता प्राप्त हो जाती है और विशेषज्ञों एवं आधुनिक मशीनरी उपकरणों का उपयोग करते हैं जिससे उनकी लेन-देन की लागत कम हो जाती है तथा कोषों के हस्तान्तरण में उत्पादकता बढ जाती है ।

16. आर्थिक विकास में सहायक (Helpful in Economic Growth):

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ भारत जैसे विकासशील देशों कई विकास प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं । ये वे मध्यस्थ होते है जो सामान्य बचतकर्ता से धन राशि एकत्र करते हैं और उन्हें ऋण लेने वाले व्यक्ति के माध्यम से अर्थव्यवस्था में निवेश को प्रोत्साहित करते हैं । फलतः पूँजी निर्माण में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन, आय एवं रोजगार की वृद्धि में सहायक होते हैं ।

संक्षेप में, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ अर्थव्यवस्था में बचत एवं निवेश को प्रोत्साहित करती हैं जो आर्थिक विकास को गति देने के लिए आवश्यक है । प्रो. गोल्डस्मिथ (Prof. Goldsmith) ने अपने अध्ययन से यह किया है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं ने विकसित देशों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।