Read this article in Hindi to learn about the recent amendments made by SEBI.

SEBI का गठन 1988 में एक प्रशासनिक आदेश के अन्तर्गत हुआ । जनवरी, 1992 में राष्ट्रपति की स्वीकृति से एक अध्यादेश के रूप में तदुपरांत संसदीय स्वीकृति के बाद प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम के रूप में अप्रैल, 1992 में अवतरित हुआ ।

प्रतिभूति बाजार के विकास के साथ नियम के उद्देश्य की पूर्ति हेतु SEBI अधिनियम में समय-समय पर निम्न संशोधन किए गए हैं:

1. 1995 का संशोधन:

SEBI बोर्ड को विगत अनुभवों से SEBI अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता से निम्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हुई:

ADVERTISEMENTS:

(i) मध्यस्थों का प्रभावी नियमन,

(ii) पूंजी निर्गमन तथा हस्तान्तरण में संलग्न कम्पनी एवं सहयोग व्यक्तियों के क्रियाकलापों का नियमन,

(iii) न्यायकारी अधिकारी के नियुक्ति के प्रावधानों को समाविष्ट करने के लिए ।

2. 1999 का प्रथम संशोधन:

इस संशोधन के निम्न उद्देश्य थे:

ADVERTISEMENTS:

(i) बाजार तथा साख जोखिमों के नियन्त्रण के लिए,

(ii) पूँजी बाजार को गहन एवं विस्तृत करने हेतु,

(iii) डेरिवेटिब्स (Derivatives) को प्रतिभूति का रूप देकर उनमें व्यवहार सम्भव करना,

(iv) कलेक्टिव इन्वेस्टमेन्ट स्कीम (Collective Investment Scheme) के नियमन हेतु ।

3. 1999 का द्वितीय संशोधन:

ADVERTISEMENTS:

प्रतिभूति बाजार के नियमन से सम्बन्धित S.C.R. Act – 1956, SEBI Act – 1992 तथा The Depositories Act – 1996 प्रमुख अधिनियम है । इनमें केन्द्रीय सरकार को प्राप्त अपील सम्बन्धी अधिकारों को, केन्द्रीय सरकार से Securities Appellate Tribunal को हस्तान्तरित कर दिए ।

4. 2002 का संशोधन:

SEBI के निरीक्षण अनुसन्धान तथा कार्यकारी शक्तियों में से कुछ कमजोरियाँ अनुभव की जा रही थी । SEBI को किसी प्रस्तावित निर्गमन को निषेध करने का अधिकार प्राप्त नहीं था । साथ ही किसी कम्पनी द्वारा सम्पत्तियों का ‘Shiphoning’ द्वारा दुरुपयोग रोकने का SEBI के पास कोई अधिकार नहीं था ।

अतः यह संशोधन अध्यादेश द्वारा लाया गया जो बाद में विधेयक के रूप में परिवर्तित किया गया जिसमें निम्न प्रावधानों की व्यवस्था की गई:

(i) SEBI बोर्ड के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर नौ की गई,

(ii) SEBI को किसी भी बैंक, निगम, बोर्ड तथा प्राधिकरण से आवश्यक सूचनाएँ तथा प्रपत्र प्राप्त करने का अधिकार,

(iii) किसी निर्गमन को नियमित तथा निषेध करने का अधिकार,

(iv) प्रतिभूति अपीलेट न्यायाधिकरण (SAT) को तीन सदस्यीय संस्था बनाया गया,

(v) SAT के पीठासीन अधिकारी तथा सदस्यों की योग्यताओं में परिवर्तन किया गया,

(vi) SEBI अधिनियम की धारा 15 के अन्तर्गत अर्थदण्डों को कठोर बनाया गया ।

SEBI अधिनियम एक उपचारी प्रकृति (Remedial Measure) का विधान है और इसका कार्यक्षेत्र एक ऐसे बाजार को नियमित करना है जिसमें नित्य ऐसी परिस्थितियां पैदा होती रहती हैं जिनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है । अतः SEBI को ऐसे अधिकारों से शक्तिशाली करना आवश्यक है जो SEBI के कार्य निष्पादन के लिए समय-समय पर आवश्यक हो । इसी कारण SEBI अधिनियम में समय-समय पर संशोधन किए जाते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे ।

पूँजी बाजार सुधार (Capital Market Reforms):

जुलाई, 1991 से वित्तीय सुधार शुरू करने के बाद भारतीय पूँजी बाजार में असंख्य विकास हुए हैं । इस प्रक्रिया में पूँजी बाजार का पुनर्निर्माण किया गया ।

कुछ महत्वपूर्ण विकास जो भारतीय बाजार में हुए (या वे सुधार जो कि केन्द्रीय बैंक द्वारा घोषित किए गए थे) वे इस प्रकार से है:

(A) जुलाई 1991 से 1995-96 तक:

1. विभिन्न पूँजी बाजार के घटकों के लिए एक विनियमित प्राधिकारी के रूप में Autonomous Power के साथ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड की स्थापना 1992 में की गयी ।

2. छोटी कम्पनियों को निधियों को इकट्ठा करने के लिए OTCEI की शुरुआत की आशा देना ।

3. CCI समाप्त किया गया एवं स्वतन्त्र मूल्य निर्धारित शुरू किया गया ।

4. अन्तर व्यापार एक अपराध है ।

5. सरकार द्वारा घोषित औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए साधनों का पैकेज एवं नई औद्योगिक नीति का निर्माण ।

6. Disclosures एवं निवेशक की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश निर्गमित ।

7. अधिमान प्रस्ताव अधिकार एवं बोनस अंशों के निर्गमन के लिए नए दिशा-निर्देशों का निर्गमन ।

8. सार्वजनिक निर्गमन के लिए न्यूनतम अभिदपन की राशि को बढाया गया ।

9. सभी सार्वजनिक निर्गमनों के लिए अंशों का आनुपातिक आबंटन जो कि SEBI द्वारा जनवरी 1, 1994 के बाद किया गया है अनिवार्य है ।

10. दलालों के लिए पूंजी पर्याप्तता नियम घोषित किए गए – जो दलाल BSE एवं CSE से सम्बन्धित है उनके लिए न्यूनतम निक्षेप की आवश्यकता 5 लाख रुपये है, दिल्ली एवं अहमदाबाद के लिए 3.5 लाख रुपये है आदि, बाकी स्कन्ध विनिमयों के लिए यह 2 लाख रुपये प्रत्येक के लिए है ।

11. संविधान प्रबन्धकों एवं सहयोग निधियों के लिए नियमों की घोषणा की गई । असंख्य निजी क्षेत्र सहयोग निधियों ने योजना शुरू की है ताकि निवेश के लिए कोषों को इकट्ठा किया जा सके ।

12. विदेशी विनिमय विनियमन अधिनियम, 1973 (FERA) एवं MRTP अधिनियम, 1969 के प्रावधानों में राहत ।

13. विदेशी संस्थगत निवेशक SEBI के साथ पंजीकृत किए गए एवं FIIs के साथ निर्गमनों का निजी स्थापन (Placement) ।

14. भारत में राष्ट्रीय स्कन्ध विपणि ने ऑन लाइर्न Scripless व्यापार शुरू किया गया ।

15. अनुज्ञप्ति प्रणाली का समापन ।

16. जब जनता को एक से ज्यादा प्रपत्र प्रस्ताव किये जाते है तो प्रवर्तकों की प्रत्येक श्रेणी के प्रस्तावों की समता में कम से कम 25% का अभिदान (Subscribe) होना चाहिए ।

17. वित्तीय संस्थाओं तथा बैंकों को पूँजी जारी करने के लिए स्वीकृति (Clearance) जरूरी है ।

18. चालू खाते के साथ-साथ व्यापार में रुपये की पूर्ण परिवर्तनशीलता की घोषणा ।

19. Forward Trading पर प्रतिबन्ध लगाया गया व एक नई व्यापारिक प्रणाली की शुरुआत की गई जिसे 7 Win-Track प्रणाली कहा गया ।

20. MNCs की विदेशी समता निवेश को भारत में उनकी सहायक कम्पनियों की समता पूँजी को 51% तक बढाया गया ।

(B) अप्रैल, 1996 से मार्च, 2002 तक पूंजी बाजार सुधार (Capital Market Reform from April 1996 to March 2002):

पूँजी बाजार सुधारों की प्रक्रियाओं को 1996 से 2002 तक आगे ले जाया गया । प्राथमिक तथा उसके साथ-साथ गौण बाजारों दोनों में ही समता ऋण एवं विदेशी संस्थागत निवेशों के लिए असंख्य सुधार किए गए है ।

इस समयावधि के दौरान किए गए महत्वपूर्ण सुधार इस प्रकार से है:

1. जुलाई 1996 में निक्षेपगार (Depositories) अधिनियम, 1996 अस्तित्व में आया एवं भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (Depositories and Participants), 1996 की सूचीबद्ध (Noti-fied) किया गया ।

2. उच्च लोचशीलता प्रदान करने के लिए सेबी (SEBI) ने सार्वजनिक निर्गमन प्रलेखों की (Vetting) को छोड़ दिया ।

3. ऋण बाजार के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए, ऋण निर्गमन समता अवयवों के साथ सम्बन्धित नहीं है एवं उन्हें प्रतिभूति प्रसंविदा (विनिमय) नियमों की धारा 19(2) के अनुसार ”बुक बिल्डिग” की प्रक्रिया के द्वारा बेचने की आज्ञा दे दी ।

4. स्कन्ध विपणियों को अपने सूचीयन अनुबन्ध को संशोधित करने के लिए कहा गया जिसके अन्तर्गत कम्पनियां, निवेशकों के ब्याज की अदायगी सार्वजनिक निर्गमन के बन्द होने के 20 दिन बाद करती है ।

5. असंख्य प्रतिबन्ध जैसे कि OTCEI में सूचीयन के लिए प्रस्तावित निर्गमन आकार की सीमा को हटा दिया गया एवं OTCEI के सूचीयन के तरीके में राहत मिली ।

6. निर्गमन आकार को ध्यान में न रखते हुए, सार्वजनिक निर्गमन के लिए प्रवर्तकों के योगदान में 20% सबके लिए समान बना दिया ।

7. चाहे निर्गमन का आकार कोई भी हो परन्तु सार्वजनिक निर्गमन के लिए प्रवर्तकों के योगदान में 20% तक की भागीदारी में एकरूपता लायी गयी ।

8. सेबी (SEBI) (निर्गमन के लिए रजिस्ट्रार एवं अंश हस्तांतरण अभिकर्ता) नियम एवं विनियमन 1993 को संशोधित किया गया ताकि निर्गमन एवं रजिस्ट्रार के सम्बन्धों में और घनिष्ठता हो सके ।

9. केवल निगम संस्थाओं को ही मर्चेन्ट बैंकर के रूप में कार्य करने की आज्ञा दी गई ।

10. भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) ने कम्पनियों को उनके अंशों के पुनः क्रय (Buy Back) के योग्य बनाने के लिए विनिमयों की रचना की ।

11. सूचीयन कम्पनियों द्वारा, चतुर्मास आधार पर अंकेक्षित (Unaudited) प्रमाणों को प्रकाशित करने की आवश्यकता ।

12. अमूर्त (Demeat) प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में Rolling Settlement की शुरूआत की गयी ।

13. सेबी (Substantial Acquisition of Share) विनियमन, 1997 में जारी किए गए एवं इसके बाद 1998 में संशोधित किए गए ।

14. संस्थागत निवेशकों द्वारा, विशिष्ट Scrips में अंशों की अमूर्तता (डेमटर) छिपता में व्यापार को अनिवार्य बना दिया गया ।

15. कम्पनियों को उनके द्वारा जारी किए जाने वाले अंशों के अंतिम मूल्य का स्वयं निर्धारण करने की स्वतन्त्रता ।

16. सेबी (SEBI) ने बुक बिल्डिंग के लिए कार्य संरचना को संशोधित किया ।

17. 10 चयनित Scrips के लिए Rolling निपटारे की 10 जनवरी, 2000 को शुरुआत ।

18. बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) बिल दिसम्बर, 1999 में संसद द्वारा पारित किया गया ।

19. 15 अक्टूबर, 1999 को CIS (Collective Investment Schemes) के लिए विनियमों को Notified किया गया ।

20. SEBI द्वारा Envisaging System को मान्यता दी गयी तथा स्कन्ध विपणि के विद्यमान अधोसंरचना स्तर का उपयोग IPO में विपणन के लिए किया गया ।

21. साहसिक पूँजी पर सेबी समिति का गठन जुलाई, 1999 में किया गया ताकि साहसिक पूंजी कोषों की वृद्धि के Implements का निरीक्षण किया जा सके एवं भारत में साहसिक पूँजी कोषों की क्रियाओं की वृद्धि के लिए असंख्य सुझाव दिये गये ।

22. Derivative Trading की जून, 2000 में शुरुआत की गई ।

23. अनिवार्य Rolling Settlements की शुस्थात की गई ।

24. 2 जनवरी, 2000 में अमूर्तिकृत (Demat Form) रूप में स्कन्ध विपणि में सूचीबद्ध सभी कम्पनियों के अंशों में व्यापार को अनिवार्य बना दिया गया ।

25. समता में Derivative Trading का सूचकांक विकल्प स्कन्ध विकल्प एवं Stock Future तक विस्तार ।

26. 1 अक्टूबर, 2001 से निवेशक शिक्षा व सुरक्षा कोष (Protection Fund) की स्थापना की अधिसूचना (Notification) ।