शहरीकरण पर निबंध: अर्थ और चरण | Essay on Urbanisation: Meaning and Stages in Hindi.

Essay # 1. नगरीकरण का अर्थ (Meaning of Urbanisation):

नगरीकरण एक स्वतः स्फूर्त नैसर्गिक प्रक्रिया है, जिससे अधिवासीय तंत्र एवं भूमि प्रयोग परिवर्तित होकर नगरीय संरचना एवं आर्थिक क्रियाओं में परिवर्तित हो जाते हैं । अर्थात् नगरीकरण ऐसी प्रक्रिया है, जो अधिवासित प्रारूप में गत्यात्मक परिवर्तन लाता है । यह परिवर्तन मूलतः जनसंख्या, आकार, संरचना और कार्यिक क्षेत्र में होता है ।

कार्यिक दृष्टि से नगरीय अधिवासित क्षेत्रों में गैर-प्राथमिक कार्यों की प्रधानता होती है । पूर्व में या अतीत में नगरीकरण को दजला-फरात नदियों के मैदानी भाग से जोड़कर देखा जाता है, जिसका काल निर्धारण 5,000 से 3,000 ई.पू. के मध्य किया जाता है । आधुनिक काल में नगरीकरण की प्रक्रिया में विकास का मुख्य कारण औद्योगिक क्रांति और तकनीकी विकास रहा है ।

20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विकसित देशों में नगरीकरण की प्रक्रिया तीव्र थी, परन्तु इसके उत्तरार्द्ध में जनसंख्या विस्फोट एवं ग्रामीण-नगरीय स्थानान्तरण के कारण विकासशील देशों में यह प्रक्रिया तीव्र हो गई है । प्रत्येक देश के लिए नगरीय विश्लेषण के अपने अलग-अलग आधार हैं ।

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डेनमार्क में 250, फ्रांस में 2,000, नीदरलैण्ड्स में 20,000 तो वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका में 2,500 की जनसंख्या को किसी अधिवास को नगर होने के लिए न्यूनतम आधार मानता है ।

भारत में किसी अधिवास को आधिकारिक रूप से नगर घोषित होने के लिए 5,000 की जनसंख्या, 386 प्रति व्यक्ति वर्ग किमी. का घनत्व तथा 75 प्रतिशत वयस्क जनसंख्या का गैर कृषि कार्यों में सलंग्न होना आवश्यक है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार विश्व के नगरों की जनसंख्या में वार्षिक वृद्धि का एक-तिहाई से भी अधिक भाग ग्रामीण-नगरीय स्थानान्तरण का परिणाम है । यह स्थानान्तरण मुख्य रूप से राजधानी नगरों एवं महानगरों की ओर होता है । इसे ही जनसंख्या का धर्मनिरपेक्ष स्थानांतरण (Secular Shift of Population) कहा गया है, क्योंकि इसमें आर्थिक कारक सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं ।

जहाँ विकसित देश नगरीय संतृप्तता को प्राप्त कर रहे हैं, वहीं विकासशील देशों में अभी भी नगरीकरण का स्तर अल्प है । अतः आगामी वर्षों में वहाँ नगरीकरण की प्रक्रिया और भी तीव्र होने की संभावना है । चक्र रेखा के माध्यम से समझ सकते हैं ।


Essay # 2. नगरीकरण के अवस्थाएँ (Stages of Urbanisation):

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नगरीकरण को तीन अवस्थाओं में देखा जा सकता है (Urbanisation can be Seen in Three Stages):

 

 

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i. प्रारंभिक अवस्था (Preliminary Stage):

इस प्रकार की अवस्था में नगरीकरण जनसंख्या का प्रतिशत धीरे-धीरे बढ़ता जाता है । इस कारण रेखा की तीव्रता कम होती है । इस अवस्था में कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का अनुपात 25 प्रतिशत तक होता है । इस अवस्था में निम्न देश आते हैं, जैसे- नेपाल, बांग्लादेश, अफ्रीकी देश ।

ii. त्वरण अवस्था (Accelaration Stage):

इस अवस्था में नगरीकरण जनसंख्या का प्रतिशत काफी तीव्रता से बढ़ता है । इस अवस्था में वक्र रेखा अधिक सीधी होती है । इसमें कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का अनुपात 75% होता है । इस अवस्था में यूरोप व दक्षिण एशिया के देश आते हैं ।

iii. अंतिम अवस्था (Final Stage):

इस अवस्था में रेखा तीव्रता से समाप्त होने लगती है । क्योंकि नगरीय संतृप्ता की स्थिति आ जाती है । इसमें न्यूजीलैण्ड, कनाडा व फ्रांस आते हैं ।

नगर के विकास की अवस्थाएँ (Stages of Development of the City):

नगरीय भूगोल के क्षेत्र में लेविस मम्फोर्ड और पैट्रिक गेडिस का प्रहत्वपूर्ण योगदान है । ‘गेडिस’ को यूरोप में नगरीय भूगोल का जनक कहा जाता है । इन्होंने बाह्य विस्तार के परिणामस्वरूप कई नगरों के परस्पर मिल जाने से निर्मित सतत् नगरीकृत क्षेत्र को सन्नगर (Conurbation) की संज्ञा प्रदान की गई थी ।

लुइस मम्फोर्ड ने अपनी पुस्तक ‘The Culture of Cities’ 1938 में नगरों के विकास की 6 अवस्थाओं का उल्लेख किया है:

i. पूर्व नगर (Eopolis):

यह नगर के विकास की प्राथमिक अवस्था है । इसमें नगर की आकारिकी (Merphology) का विकास नहीं होता है ।

ii. सभ्य नगर (Polis):

इस अवस्था में नगर की आकारिकी का विकास हो जाता है तथा कार्यों का विशेषीकरण होने लगता है ।

iii. महानगर (Metropolis):

मेट्रोपोलिस अवस्था में नगर का आकार वृहद् हो जाता है तथा उसके उपनगर विकसित होने लगते हैं ।

iv. विकसित नगर (Megalopolis):

जब बड़े नगर के पृष्ठ प्रदेश भी नगरीकृत होने लगते हैं तथा सम्पूर्ण प्रदेश में नगरीय संस्कृति का विस्तार मिलता है ।

विश्व के तीन प्रमुख मेगालोपोलिस हैं:

a. टोकियो – याकोहामा – कावासाकी क्षेत्र

b. बोस्टन – रिचमोण्ट – बाल्टीमोर

c. रॉटरडम क्षेत्र – एम्सटर्डम

v. अनियमित नगर (Tyranopolis):

इस अवस्था में बड़े नगर के पार्श्व का पतन प्रारम्भ हो जाता है । जैसे- लंदन, पेरिस, रोम आदि ।

vi. कीर्तिशेष नगर (Necropolis):

इस अवस्था में नगर इतिहास के पन्नों तक सीमित रह जाता है, केवल उसके अवशेष मात्र मिलते हैं । जैसे- वैशाली, कन्नौज, हम्पी ।

नगरीकरण से विकसित और विकासशील दोनों देशों में यद्यपि जीवन स्तर में सुधार हुआ है, तथापि अनेक समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं । विकसित देशों में प्रदूषण की समस्या गम्भीर हुई है । नगरों के क्षैतिज फैलाव से ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रदूषण स्तर बढ़ा है । उपजाऊ भूमि में कमी की प्रवृत्ति विकसित हुई है तथा ये नगरीय निर्मित क्षेत्रों के अंतर्गत भी शामिल हो रहे हैं ।

इससे इन देशों में खाद्य समस्या उत्पन्न होने की आशंका है । बढ़ते नगरीकरण से सामाजिक समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं, जैसे- परिवारों का टूटना, प्रजनन क्रिया का धीमा होना, वृद्ध आयु वर्ग के लोगों का प्रतिशत बढ़ना, आयु पिरामीड में असंतुलन आदि । यहाँ श्रमिकों की कमी होने लगी है, जिससे उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।

विकासशील देशों में बड़े नगरों में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति देखने को मिल रही है । इसका मुख्य कारण ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण है । आवासीय मकानों की कमी के कारण मलिन बस्तियों का विस्तार हो रहा है । यहाँ लोग अस्वास्थ्यकर दशाओं में रह रहे हैं तथा बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं । विकासशील देश के अधिकतर नगर अनियोजित हैं ।

नगरीय विकास के साथ-साथ ग्रामीण-नगरीय उपांत (Rural Urban Fringe) में वृद्धि हुई है । ये नगर के सम्भावित विस्तार के क्षेत्र हैं, परंतु अपने पूर्ण विकास के पूर्व ही ये मलिन बस्तियों जैसे प्रतीत होने लगे हैं । धीमा परिवहन, प्रदूषण, सार्वजनिक क्षेत्रों का अतिक्रमण, अपराधों में वृद्धि आदि विकासशील देशों के नगरीकरण की कुछ अन्य प्रमुख समस्याएँ हैं ।

अभी हाल में दिल्ली एवं तमिलनाडु शहर को अनियोजित शहर का करार दिया गया है, क्योंकि दिल्ली को (WTO) ने सर्वाधिक प्रदूषण वाला स्थान बताया है एवं चेन्नई शहर को सही ढंग से नियंत्रित न करने के कारण अनियोजित शहर कहा गया ।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) नवीन रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के करांची में स्थित ‘ओरांगी’ एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है । अब तक मुम्बई स्थित धारावी को एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी मानी जाती थी ।

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