भारत में गरीबी पर निबंध | Short Essay on Poverty in India in Hindi Language.

भारत विकासशील अर्थव्यवस्था वाला देश होने के साथ सर्वाधिक कुपोशित जनसमुदाय वाला देश है । यहाँ विश्व के कुल गरीब जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग निवास करता है । ”जब भारत आजाद हुआ, उस समय देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति वर्ष लगभग 13 लाख लोग संक्रामक रोगों के कारण काल-कवलितत हो जाते थे ।”

जिसका मुख्य कारण गरीबी और भूख था । स्वतंत्रता से लेकर आज तक गरीबी निवारक कार्यक्रमों के उपरान्त भी 2012 में कुल जनसंख्या 21 फीसदी लोग बुनियादी सेवाओं से वंचित गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं ।

”मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स पर संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट 2010 के अनुसार-भारत में निर्धनता अनुपात, जो 1990 में 51 प्रतिशत था, 2015 में 24 प्रतिशत तक आने की सम्भावना है । योजना आयोग के सदस्य डॉ॰ अभिजीत सेन के अध्ययन के अनुसार- 2004-05 व 2009-10 के पाँच वर्षों में देश में निर्धनता अनुपात में जहाँ कमी आई है, वहीं निर्धनों की संख्या में वृद्धि हुई है । 2004-05 में देश की कुल 100 करोड़ जनसंख्या में लगभग 37.00 करोड़ लोग निर्धन थे, जबकि 2009-10 में 121 करोड़ जनसंख्या में निर्धनों की संख्या 385 करोड़ हो जाना गरीबी के कड़ी में वृद्धि को दर्शाता है ।”

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गरीबी वास्तव में विषमता का ही एक स्वरूप है, और जब देश में विषमता का स्तर अधिक होता जाता है तो आर्थिक-सामाजिक विकास में अवरोध पैदा हो जाता है । विषमता बढ़ने के मुख्य कारणों में कुपोषण की मुख्य भूमिका होती है । अन्ततः कहा जा सकता है कि कुपोषण गरीबी की समस्या का एक मुख्य आयाम है, इस लिए गरीबी की किसी भी संकल्पना में कुपोषण का महत्व बहुत अधिक होना स्वाभाविक है ।

इस प्रकार गरीबी निवारण और आर्थिक-सामाजिक विकास में स्वास्थ्य सुविधाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है । डडले सिअर्स ने कहा- ”आर्थिक विकास की प्रक्रिया की चर्चा करते समय निम्न प्रश्नों पर ध्यान देना आवश्यक है- क्या गरीबी के स्तर में कमी हो रही है ? क्या बेरोजगारी का स्तर कम हो रहा है ? और क्या अर्थव्यवस्था में असमानताएँ कम हो रही है ?

यदि इन तीनों प्रश्नों के उतार सकारात्मक हैं तो निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था में विकास हो रहा है” और यदि प्रश्नों के उत्तर नकारात्मक हैं तो आर्थिक विकास न के बराबर हो रहा है, तथा हमें उन कारणों को दहना होगा जो हमारे आर्थिक विकास में अवरोध पैदा कर रहें है । इस सम्बन्ध में यदि भारत की स्थिति देखे तो पायेगें की अभी बहुत कुछ किये जाने जरूरत है ।

उपरोक्त तालिका 03 के अनुसार 1993-94 में कुल गरीबों की संख्या 40.37 करोड़ थी, जिसमें ग्रामीण गरीबों और शहरी गरीबों की संख्या क्रमश: 3288,746 करोड़ थी, जो 2009-10 और 2011-12 में क्रमश: 3263 और 8.08, 21.65 और 5.28 करोड़ हो गयी ।

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इससे स्पष्ट होता है कि देश में गरीबों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है, परन्तु जब 1993-94 से 2004-05 से आँकड्रों को देखें तो पायेंगे कि इस अवधि में शहरी गरीबों की संख्या में 0.63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।

तालिका 04 के ग्राफ पता चलता है कि 1993-94 से 2011-12 के वर्षों में भारत की कुल गरबों की संख्या में 23.4 फीसदी की कमी आयी है, और इसी समयावधि में ग्रामीण क्षेत्रों में 22.4 और शहरी क्षेत्रों में 18.1 फीसदी गरीबों की संख्या में कमी आयी है । 2004-05 से 2009-10 की अवधि में भारत में 7.4 अंक की कमी को दर्शाता है ।

 

तालिका 05 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि 2009-10 में बिहार ऐसा राज्य था जिसमें कुल जनसंख्या का 535 फीसदी जनसंख्या गरीबी में निवास कर रही थी । और तालिका 06 से यह निष्कर्ष निकलकर आता है कि उतार प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहाँ गरीब लोगों की सर्वाधिक संख्या है ।

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