निवेश पर निबंध | Essay on Investment in Hindi.

Essay # 1. विनियोग का प्रस्तावना (Introduction to Investment):

विनियोग मापदण्ड से तात्पर्य उस निदेशक सिद्धान्त से है जिसके अनुरूप नियोजन सत्ता समुदाय के विनियोग कोषों की कुल मात्रा को विभिन्न धाराओं में प्रवाहित करती है । देश के आर्थिक विकास हेतु नियोजन करते हुए समुदाय के दुर्लभ संसाधनों को पूर्व निर्धारित उद्देश्यों व लक्ष्यों के अनुरूप एक निश्चित समय में आवण्टित किया जाता है ।

संसाधनों का आवण्टन करते हुए विनियोग का मापदण्ड इस कारण महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि कम विकसित देशों में पूंजी निर्माण की दर अल्प होने के कारण विनियोग योग्य कोषों का अभाव होता है ।

ऐसी स्थिति में नियोजन अधिकारी यह निर्णय लेते है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों का आवण्टन किस प्रकार किया जाये ? आस्कर लागे के अनुसार विकासशील देशों की मुख्य समस्या मात्र पर्याप्त मात्रा में विनियोग की नहीं होती वरन् सीमित विनियोग साधनों को उपयुक्त क्षेत्रों की ओर प्रवाहित करने की होती है ।

ADVERTISEMENTS:

जिससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमताएँ तीव्र गति से वृद्धि की जा सके । प्रो॰आर्थर लेविस ने विनियोग आवण्टन की समस्या को विनियोग की दर से अधिक महत्व दिया है ।

Essay # 2. परम्परागत विश्लेषण एवं विनियोग निर्णय (Classical Approach and Investment Decisions):

परम्परागत आर्थिक विश्लेषण में उत्पादन के अधिकतमीकरण हेतु आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में पूंजी की सीमान्त उत्पादकता बराबर रहे । यह माना गया कि (1) पूर्ण प्रतियोगिता की दशा विद्यमान है जहां कीमतें अपनी अवसर लागतों को प्रदर्शितकरती हैं । (2) बाह्यताओं की अनुपस्थिति है । (3) अर्थव्यवस्था में एक ऐसी स्थिति विद्यमान है जहाँ एक क्षेत्र में होने वाले अल्प परिवर्तन अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता को गम्भीर रूप से खतरा नहीं पहुंचाते ।

प्रतिष्ठित विश्लेषण के अनुरूप समाज के द्वारा किया जा रहा उत्पादन एवं सामाजिक कल्याण तब अधिकतम होगा जब इनमें से प्रत्येक साधन का सीमान्त उत्पाद उनके विभिन्न प्रयोगों में समानता रखे । साधन आवण्टन का यह सीमान्त नियम कुशलता के मापदंड को ध्यान में रखता है ।

कुछ अर्थशास्त्रीयों के अनुसार विकासशील देशों में विद्यमान दशाओं के अधीन सीमान्त नियम का लागू होना सम्भव नहीं बन पाता इसके कारण निम्न हैं:

ADVERTISEMENTS:

(1) परम्परागत व्याख्या पूर्ण प्रतिस्पर्द्धा एवं बाजार शक्तियों से अहस्तक्षेप की संकल्पना पर आश्रित है जिसमें कीमतें समाज में वास्तविक अवसर लागतों को प्रदर्शित कर सकें ।

इन अर्थव्यवस्थाओं में एकाधिकारी शक्तियाँ कार्य करती हैं जिससे वस्तु बाजार में कीमतें उत्पादन सीमान्त लागतों से अधिक रहती हैं । श्रम संगठनों द्वारा मजदूरी में वृद्धि के प्रयासों में मजदूरी श्रमिकों की अवसर लागत से अधिक हो जाती है ।

(2) इन अर्थव्यवस्थाओं में बाह्यताएँ विद्यमान नहीं होतीं ।

(3) सीमान्त नियम एक स्थैतिक निर्धारक है । यह इस बात को सुनिश्चित नहीं करता कि विकासशील देशों का लक्ष्य उत्पादन उपभोग या कल्याण के वर्तमान स्तर का अधिकतमीकरण है ।

ADVERTISEMENTS:

(4) परम्परागत स्थैतिक विश्लेषण ऐसे कई घटकों को ध्यान में नहीं रखता जिनसे संसाधनों का सामाजिक अनुकूलतम आवण्टन प्रभावित होता है ।

ए॰ पी॰ थिरवाल के अनुसार ऐसे देश में जहाँ आधारभूत संरचनात्मक असाम्य तथा बाजार की अपूर्णताएँ विद्यमान हैं, यह माना नहीं जा सकता कि वस्तुओं तथा उत्पादन के साधनों की बाजार कीमतें सामाजिक लागतों व उत्पादन के लाभों को सूचित करेंगी ।

Essay # 3. पूंजीवादी के अधीन विनियोग निर्णय (Investment Decision under Capitalism):

अनियोजित पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में प्रत्येक उपक्रमी यह निर्णय लेता है कि वह अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र व भाग में विनियोग करें । इस प्रकार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विनियोग निर्णय व्यापक रूप से फैले रहते है । वह एक उद्देश्य के साथ एक-दूसरे से समन्वित नहीं होते, क्योंकि विभिन्न उपक्रमियों के मध्य आपस में कोई विचार-विमर्श नहीं होता ।

निजी उपक्रमी विनियोग सम्बन्यी निर्णय लेते हुए केवल एक निर्धारक को ध्यान में रखते हैं जिसे निजी लाभ के अधिकतमीकरण के नाम से जाना जा सकता है । एक उपक्रमी इस प्रकार विनियोग करता है कि वह अधिकतम लाभ कमा सके ।

रोजेन्सटीन रोडान के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यापक रूप से फैले हुए व्यक्तिगत विनियोग निर्णय समुदाय के विनियोग कोषों का सबसे कुशल प्रयोग नहीं कर पाते । ऐसी स्थिति में विनियोग कोषों का समर्थ आवण्टन हो पाना सम्भव नहीं बनता ।

प्रायः इन देशों में एक उद्योग में ही अतिरिक्त क्षमता का सृजन होता है । इससे साधन व्यर्थ जाते है, क्योंकि पूरक उद्योगों में अन्य विनियोगियों के द्वारा विनियोग नहीं किए जाते । इसके साथ ही कीमत प्रक्रिया समर्थ रूप से कार्य नहीं कर पाती तथा उपभोक्ता के अधिमान को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पाती ।

अनियोजित पूंजीवादी की दशा में विनियोग कोषों का व्यर्थ प्रयोग होता है । इस प्रकार यह विनियोगों की आदर्श प्रकृति को सूचित नहीं करता तथा इससे राष्ट्रीय आय भी अनुकूलतम नहीं हो पाती ।

 

Essay # 4. विकासशील अर्थव्यवस्था में विनियोग निर्णय (Investment Decisions in Developing Economies):

विकासशील नियोजित अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक विनियोग सामाजिक सीमान्त उत्पादकता के अधिकतम होने से सम्बन्धित होता है । विकासशील देशों में विनियोग हेतु आवश्यक कोष अल्प होते हैं । इसलिए उनका आवण्टन सावधानीपूर्वक चुने हुए विनियोग मापदण्डों पर किया जाता है जिससे आर्थिक नियोजन के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना सम्भव बन सके ।

विकासशील देशों में विनियोग मापदण्ड के चुनाव की समस्या इस कारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन देशों में सामाजिक सांस्कृतिक विशिष्टताओं की प्रकृति भिन्न होती है ।

 

मुख्यतः निम्न पक्ष ध्यान में रखे जा सकते है:

(i) साधन बहुलताओं का असंतुलित होना अर्थात् सामान्य रूप से श्रम की अति बहुलता एवं पूंजी का अभाव । इसके परिणामस्वरूप श्रम के स्थान पर तकनीक का प्रतिस्थापन कर पाना सम्भव नहीं होता ।

(ii) इन देशों में व्यापक बेरोजगारी की प्रवृतियाँ विद्यमान होती हैं ।

(iii) मजदूरी दर एवं श्रम के सीमान्त उत्पाद के मध्य विभेद विद्यमान होता है । संगठित क्षेत्र में श्रम की सीमान्त उत्पादकता प्रचलित मजदूरी दर से काफी कम होती है ।

(iv) इन देशों में द्वैतता विद्यमान होती है । एक ओर श्रम गहन कृषि व लघु स्तरीय व कुटीर उद्योग क्षेत्र विद्यमान होता है तो दूसरी ओर उच्च पूंजी गहन संगठित औद्योगिक क्षेत्र । यह द्वैतता आय व सम्पत्ति की असमानताओं को बढ़ाती है ।

विकासशील देश न केवल आर्थिक विकास की तीव्र दर को प्राप्त करना चाहते है बल्कि कई अन्य उद्देश्यों की प्राप्ति से भी सम्बन्धित रहते हैं । अतः विनियोग का कोई एक निर्धारक अपनाया जाना सम्भव नहीं होता । इसलिए विभिन्न विनियोग निर्धारकों का एक उचित संयोग नियोजन के विविध उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रयोग किया जाता है ।

एक विकासशील देश में संसाधनों को आवंटित करने का उद्देश्य सामान्यतः निम्न बिन्दुओं से सम्बन्धित है:

(i) राष्ट्रीय उत्पादन एवं आय में वृद्धि जिसके फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय बढ़े ।

(ii) देश में आय एवं उत्पादन की विषमताओं का निवारण करना ।

(iii) भुगतान संतुलन में समायोजन स्थापित करना ।

उपर्युक्त विनियोग निर्णय लेते हुए संसाधनों का आवण्टन इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इसके द्वारा-

(i) सीमित संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है ।

(ii) विकास की प्राथमिकताओं के आधार पर महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विनियोग किया जाना सम्भव बनता है ।

(iii) लोकहित व कल्याण के पक्ष को ध्यान में रखकर विनियोग सम्भव होता है ।

(iv) अर्थव्यवस्था में सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आपसी निर्भरता स्थापित करना सम्भव बनता है ।

यह ध्यान रखना होगा कि विनियोग के विभिन्न निर्धारकों आर्थिक वृद्धि या कुल उत्पादन को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करते है । अत: योजना में निर्दिष्ट विकास के उद्देश्यों के अनुरूप भी विनियोग निर्धारक परिवर्तित होते हैं ।

संक्षेप (Conclusion):

विकासशील देश में उपर्युक्त विनियोग मापदण्डों में किसी एक का चुनाव करना सम्भव नहीं हो पाता, क्योंकि प्रत्येक देश अपनी नियोजन के अनुरूप भिन्न-भिन्न समयों में विभिन्न उद्देश्यों व लक्ष्यों से सम्बन्धित रहता है ।

इनमें किसी एक विनियोग मापदण्ड की व्यावहारिक उपयोगिता इस कारण भी सीमित होती है, क्योंकि यह विनियोग पर पडने वाले मात्रात्मक व गुणात्मक प्रभावों, जैसे- बाजार स्थिति, आय के वितरण, कीमतों के परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि व सामाजिक, सांस्कृतिक व संस्थागत घटकों की उपस्थिति को प्रायः ध्यान में रखते ।

डी० ब्राइट सिंह के अनुसार विनियोग मापदण्ड की समस्या अत्यन्त जटिल है तथा ऐसे में एक उपयुक्त मापदण्ड का चयन करना असम्भव हो जाता है । प्रायः विकास के लक्ष्य ही एक रूप नहीं होते । अतः विनियोग मापदण्डों में भी तालमेल बनाए रखना सम्भव नहीं होता ।

प्रो॰ मेयर के अनुसार कोई भी मापदण्ड सभी समय अवधियों के लिए श्रेष्ठ नहीं है तथा किसी एक मापदण्ड का चयन करना बुद्धिमानी नहीं है ।

भारत जैसे विकासशील देश में विनियोग मापदण्ड का विनियोग हेतु परियोजनाओं का चुनाव करते हुए ऐसी परियोजनाओं में विनियोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए:

(1) जो दिए हुए संसाधनों की सीमित मात्रा से अधिक उत्पादन करने में समर्थ हों अर्थात् राष्ट्रीय उत्पाद में अधिकतम योगदान करें ।

(2) दुर्लभ विदेशी विनिमय की न्यून मात्राओं के प्रयोग से अधिक उत्पादन करने में समर्थ हों । इससे देश के भुगतान सन्तुलन पर विपरीत प्रभाव नहीं पडेगा ।

(3) घरेलू संसाथनों की अधिकतम मात्रा (मुख्यतः श्रम) के उपयोग द्वारा उत्पादन में अधिक वृद्धि करा सकें ।

(4) जिनसें आय वितरण में सुधार आए तथा ऐसी वस्तुओं का अधिक उत्पादन हों जिन्हें जनसंख्या का बहुल भाग आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयोग करता है ।

(5) संक्षेप में, भारत जैसे श्रम अतिरेक व दुर्लभ व सीमित पूंजी वाले देश में ऐसी विनियोग परियोजनओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो-

(a) विनियोजित पूंजी का अधिकतम प्रयोग करें । उदारीकरण के दौर में यह अधिक दृश्य भी है ।

(b) विदेशी विनिमय संसाधनों का कम उपयोग करें । पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते स्वरूप में यह संभव नहीं ।

(c) ऐसी परियोजनाओं को प्रोत्साहन मिले जो निर्यातों में शुद्धि करें जिनसे अधिक विदेशी विनिमय कोष प्राप्त हो सके 1

(d) ऐसी परियोजनाएँ जो बेरोजगारी दूर करने में सहायक ही तथा जिनसे प्रति व्यक्ति श्रम की वृद्धि सम्भव बने ।

(e) व्यक्तियों के जीवन-स्तर में सुधार आए व आय वितरण की विषमताएँ कम हों ।

Home››Essay››Investment››