Here is an essay on ‘Industrial Sickness’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Industrial Sickness’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. औद्योगिक रुग्णता का परिचय (Introduction to Industrial Sickness):

जनसाधारण शब्दों में जो इकाई स्व-सहायता के लिये आन्तरिक कोष उत्पन्न करने के योग्य नहीं है, वह एक रुग्ण इकाई है । अतः जो औद्योगिक इकाई स्वस्थ नहीं है वह रुग्ण इकाई है । यह रुग्णता अनेक रूपों में विद्यमान होती है तथा कभी-कभी तो इस रुग्णता के स्पष्ट चिन्ह दिखाई भी नहीं देते । निःसन्देह, इस रुग्णता की खोज, जानकारी, व्याख्या और माप भिन्न-भिन्न प्रकार से,  भिन्न-भिन्न व्यक्तियों एवं संस्थाओं द्वारा किया जाता है ।

रुग्णता क्या है? (What is Sickness?):

औद्योगिक रुग्णता को भिन्न-भिन्न विद्वानों एवं विशेषज्ञों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है ।

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वर्ष 1975 में भारतीय स्टेट बैंक के अध्ययन वर्ग में औद्योगिक रुग्णता को परिभाषित करते हुए कहा ”वह इकाई जो आन्तरिक रूप में निरन्तर आधार पर कोष जुटाने अथवा उत्पादित करने में असफल है तथा अस्तित्व कायम रखने के लिये बारम्बार बाहरी कोष पर निर्भर करती है ।”

रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया रूग्णता को इस प्रकार परिभाषित करता है, ”एक इकाई जिसने एक वर्ष के लिये नकद हानि उठाई है और बैंक के निर्णय अनुसार, इसके वर्तमान वर्ष में और आने वाले वर्ष में भी हानि उठाने की सम्भावना है, इसकी वित्तीय संरचना में असन्तुलन है जैसे चालू अनुपात 1:1 से कम है, ऋण इक्यूटि अनुपात बिगड़ रहा है ।”

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर तीन बातें विशेष उल्लेखनीय हैं:

(i) कम्पनी कम से कम सात वर्ष से रजिस्टर्ड होनी चाहिए ।

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(ii) किसी वित्तीय वर्ष के अन्त में उसमें संचित घाटा उसकी सकल खरी पूँजी (Entire Net-Worth) से अधिक हो ।

(iii) उसी वित्तीय वर्ष में भी तथा उसके ठीक पहले के वित्तीय वर्ष में भी नकद घाटा (Cash Loans) सहन करना पड़ा हो ।

रुग्ण औद्योगिक कम्पनियों (विशेष व्यवस्था) अधिनियम 1985 के अधीन निर्मित औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण मण्डल (BIFR) ने अनुभव किया कि रुग्ण इकाई की कठोर परिभाषा के कारण केवल वही कम्पनियां ध्यान आकर्षित कर पाती हैं जो पहले ही निराशाजनक स्थिति प्राप्त कर चुकी होती हैं ।

अतः इसे ध्यान में रखते हुये रुग्ण इकाई का उचित संशोधन किया गया । इस अधिनियम के अनुसार, रुग्ण औद्योगिक इकाई के न्यूनतम अस्तित्व के मानदण्ड को सात वर्षों से घटा कर पाँच वर्ष कर दिया गया है । किसी इकाई द्वारा लगातार दो वर्ष तक नकद हानियों की शर्त को समाप्त कर दिये जाने की सम्भावना है । किसी इकाई के शुद्ध मूल्य में कटाव की स्थिति में ऐसा होगा तथा किसी इकाई के शुद्ध मूल्य में 75 प्रतिशत तक कटाव की स्थिति में उसे पुनर्जीवित करने की योजनाएँ बनाई जा सकती हैं ।

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ओद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण मण्डल (BIFR) को ऐसी सम्भावित रुग्ण इकाइयों सम्बन्धी अधिकार दिये जायेंगे जो इकाई के शुद्ध मूल्य के 50% तक हानियां उठाने के बावजूद पाँच वर्षों से अस्तित्व में हैं । यह परिभाषा केवल अधिनियम के प्रयोग के प्रयोजन के लिये है तथा केवल अपंजीकृत इकाइयों को प्रच्छन्न करती है जो पिछले सात वर्ष से अस्तित्व में हैं ।

इसी प्रकार किसी लघु औद्योगिक कम्पनी को तब रुग्ण माना जाता है जब:

(क) जिसे पिछले वित्तीय वर्ष में हानि हुई है तथा वर्तमान वर्ष में भी हानियों की सम्भावना है और जिसने पिछले पांच वर्षों में संचयी नकद हानियों के कारण अपने अधिकतम शुद्ध मूल्य में लगभग 50 प्रतिशत का कटाव दर्ज किया है और/अथवा

(ख) ब्याज की लगातार चार किश्तों का भुगतान नहीं किया अथवा आवधिक ऋण की मूल राशि की दो अर्द्ध-वार्षिक किश्तों का भुगतान नहीं किया तथा कम्पनी ने बैंक के साथ अपनी साख सीमा के प्रयोग में निरन्तर अनियमिताएँ की हैं ।

Essay # 2. औद्योगिक रुग्णता का स्वरूप तथा आकार (Nature and Magnitude of Industrial Sickness):

औद्योगिक रुग्णता निरन्तर चिन्ता का विषय बनी हुई है । दिसम्बर 1980 से दिसम्बर 1986 तक रुग्ण इकाईयों की कुल संख्या में वृद्धि 24,550 से 1,47,740 तक पहुंच गई । इस समय के दौरान देखा जा सकता है बड़ी रुग्ण इकाइयों की संख्या 409 से बढ़ कर 689 हो गई और बैंकों के ऋण की राशि जिसका भुगतान नहीं किया जा सका 1,342.47 करोड़ रुपयों से बढ़ कर 3,238.24 करोड़ रुपये हो गई ।

इसी प्रकार, लघुस्तरीय औद्योगिक इकाइयों की रुग्णता में भी पर्याप्त वृद्धि हुई तथा रुग्ण इकाइयों की संख्या जोकि दिसम्बर 1980 में 23,149 थी मार्च 1990 तक 2,21,097 तक बढ़ गई । इसके अतिरिक्त, दिसम्बर 1987 के अन्त तक अनुसूचित व्यापारिक बैंकों की श्रेणी में रुग्ण इकाइयों की कुल संख्या 2,06,098 थी जिन की ओर 5,737.88 करोड रुपयों की राशि बकाया थी । दिसम्बर 1988 तक इनकी संख्या बढ़ कर 2,42,584 हो गई तथा बकाया राशि बढ़ कर 7,705.30 करोड़ रुपये हो गई । मार्च 1990 तक बकाया राशि 9352.53 करोड़ रुपये थी ।

वर्ष 1989-90 के आर्थिक सर्वेक्षण क अनुसार, ”दश के औद्योगिक क्षेत्र द्वारा रुग्णता के आपतन की बढती हुई समस्या का निरन्तर पामना किया जा रहा है । वित्तीय संस्थाओं के ऋण-योग्य कोष की पर्याप्त राशि रुग्ण औद्योगिक इकाइयों के पास बंधी पड़ी है जिससे न केवल साधनों की व्यर्थता होती है बल्कि औद्योगिक अर्थव्यवस्था की भारी वृद्धि भी प्रभावित होती है ।”

मार्च 2003 के अन्त तक अनुसूचित व्यापारिक बैंकों की सूची पर लगभग 1.71 लाख रुग्ण अथवा कमजोर औद्योगिक इकाइयां थीं इनमें से 1.67 लाख इकाइयां लघुस्तरीय औद्योगिक क्षेत्र से थीं, जोकि कुल संख्या का लगभग 98 प्रतिशत है । पुन:, ‘SICA’, 1985 के अन्तर्गत प्रच्छन्न गैर-लघुस्तरीय इकाइयों की कुल संख्या मार्च 2003 के अन्त में 3,396 थी ।

कुल भुगतान योग्य बैंक ऋण 34,845 करोड़ रुपये था, जिसमें रुग्ण लघुस्तरीय औद्योगिक इकाईयों की राशि 29,109 करोड़ रुपये शामिल थी । तालिका 12.1 रुग्ण औद्योगिक इकाइयों और उनके बकाया ऋण की स्थिति दर्शाती है ।

तालिका 12.1 से स्पष्ट है कि मार्च 2003 के अन्त में कुल रुग्ण उद्योगों में लघुस्तरीय औद्योगिक इकाइयों का भाग 98.0 प्रतिशत था । वर्ष 1991 सितम्बर के अन्त में रुग्ण लघुऔद्योगिक इकाइयों का बकाया बैंक ऋण, लघुस्तरीय उद्योगों के कुल ऋण का लगभग 16.2 प्रतिशत था ।

परन्तु रुग्ण अथवा निर्बल बडे एवं मध्य स्तरीय औद्योगिक इकाइयों के लिये अनुपात 17.9 प्रतिशत थी, 2427 गैर लघुस्तरीय उद्योग की रुग्ण एवं निर्बल औद्योगिक इकाइयों में 1896 (लगभग 81 प्रतिशत) इकाइयां निजी क्षेत्र में थीं जिन्होंने गैर लघुस्तरीय उद्योग की रुग्ण अथवा निर्बल इकाइयों के बैंक ऋण की कुल बकाया राशि का 72.7 प्रतिशत भाग बांध रखा था ।

उद्योग को वर्ग अनुसार देखते हुये, गैर-लघुस्तरीय उद्योग क्षेत्र में रुग्णता और निर्बलता का आपतन, बकाया ऋण को देखते हुये वस्त्र क्षेत्र उच्चतम था (अर्थात् 25.0 प्रतिशत) इसके पश्चात् इंजीनियरी का (18.3 प्रतिशत) कैमीकलन का (7.0 प्रतिशत) लोह और इस्पात का (6.2 प्रतिशत) विद्युत सम्बन्धी (5.5 प्रतिशत) और कागज का (4.5 प्रतिशत) था ।

मार्च 2003 के अन्त में, लघुस्तरीय उद्योगों और गैर-लघुस्तरीय उद्योगों दोनों में रुग्ण एवं निर्बल इकाइयों की संख्या 1.71 लाख तक घट गई जो कि मार्च 1996 के अन्त में 2.65 लाख थी । तथापि, बैंक ऋण की बकाया राशि सीमांत रूप में बढ़ते हुये मार्च 2003 के अन्त में 34,815 करोड़ तक पहुँच गई जोकि 1996 मार्च के अन्त में 13,748 करोड़ थी ।

31 मार्च 2003 को, 3396 गैर-लघु स्तर की रुग्ण इकाईयां, कुल बकाया बैंक ऋण के 83.6 प्रतिशत के लिये उत्तरदायी थीं । लघुस्तरीय उद्योगों की रुग्ण इकाईयां शेष 16.4 प्रतिशत के लिये उत्तरदायी थीं । वर्ष 1991 मार्च के अन्त में, कुल लाख रुग्ण इकाईयों में केवल 17081 इकाईयों की पहचान व्यवहार्य इकाईयों के रूप में की गई जो कुल जोड़ का 9.60 प्रतिशत बनता है तथा शेष 91.7 प्रतिशत की पहचान अव्यवहार्य रुग्ण इकाईयों के रूप में हुई ।

यह भी देखा गया कि लघुस्तरीय उद्योग क्षेत्र में रुग्ण इकाईयों की व्यवहार्यता कम (7.3 प्रतिशत) थी जबकि गैर-लघुस्तरीय उद्योग क्षेत्र की इससे अधिक (40.3 प्रतिशत) थी । इस प्रकार, छोटी रुग्ण इकाइयों का लगभग प्रतिशत भाग व्यवहार्य नहीं था तथा इन इकाइयों ने बैंक साख का 71.5 प्रतिशत भाग बांध रखा था ।

Essay # 3. औद्योगिक रुग्णता का अध्ययन (Study of Industrial Sickness):

i. उद्योग अनुसार रुग्णता का अध्ययन (Industry-wise Study of Sickness):

उद्योग अनुसार रुग्णता का अध्ययन दर्शाता है कि गैर-लघुस्तरीय उद्योग की निर्बल इकाईयों के बीच निर्बलता की जड़ें पांच उद्योगों में बहुत गहरी हैं । वे पांच उद्योग हैं- वस्त्र उद्योग, विद्युत सम्बन्धी वस्तुओं का उद्योग, लोहा और इस्पात, इंजीनियरिंग और रासायनिक उद्योग ।

ये पांच उद्योग बैंक ऋण की कुल बकाया राशि के 58 प्रतिशत से अधिक भाग को प्रच्छन्न करते हैं । गैर लघुस्तरीय उद्योगों को रुग्ण एवं निर्बल इकाईयों में पाँच उद्योगों अर्थात् वस्त्र उद्योग, कागज, लोहा और इस्पात, इंजीनियरिंग और रासायनिक उद्योग ने बैंक साख का कुल 5956 करोड रुपया बांध रखा है । यह बैंक साख के कुल बकाये का लगभग 59.0 प्रतिशत था ।

31 मार्च, 1999 को 3.06 लाख रुग्ण लघुस्तरीय इकाइयां थी । इन इकाईयों की ओर 4,313 करोड़ रुपये बकाया था । इनमें से बैंक केवल 18692 इकाईयों को व्यवहार्य मानते थे जिनकी ओर 377 करोड़ रुपये का बैंक ऋण बकाया था । बैंकों ने 2,71,193 ऐसी इकाईयों की पहचान की जिनकी ओर बैंक ऋण की 3,746 करोड़ रुपये की राशि बकाया थी, इन इकाईयों को अव्यवहार्य माना गया ।

ii. औद्योगिक रुग्णता का प्रान्त अनुसार अध्ययन (State-Wise Study of Industrial Sickness):

गैर लघुस्तरीय औद्योगिक इकाईयों की संख्या महाराष्ट्र में सबसे अधिक 340 इकाईयां हैं, इसके पश्चात् आंध्र प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल का स्थान है जहां क्रमशः 225 तथा 216 इकाईयां हैं, गुजरात में 174, उत्तर प्रदेश में 170, तामिलनाडु में 141 और कर्नाटक में 110 इकाइयां हैं ।

यह भी देखा गया है कि यह सात औद्योगिक रूप में उन्नत प्रांत मिल कर गैर-लघुस्तरीय उद्योगों की रुग्ण इकाईयों की कुल संख्या का 70.6 प्रतिशत बनते है तथा 31 मार्च 1997 को गैर-लघुस्तरीय उद्योगों की रुग्ण इकाईयों की कुल बकाया बैंक साख (8,614करोड़) का 74.2 प्रतिशत (6,388 करोड़) इनकी ओर बनता था ।

यहाँ, यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि औद्योगिक रुग्णता देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न मात्राओं में पायी जाती है । महाराष्ट्र और पश्चिमी बंगाल के प्रांतों में गैर-लघुस्तरीय उद्योगों की श्रेणी में रुग्ण इकाइयों की कुल संख्या का लगभग 28.5 प्रतिशत बनता है तथा कुल बकाया ऋण का 30.7 प्रतिशत इनकी ओर खड़ा है ।

लघुस्तरीय इकाईयों के सम्बन्ध में महाराष्ट्र और पश्चिमी बंगाल कुल रुग्ण इकाइयों के 30.9 प्रतिशत के लिये उत्तरदायी है । इन दोनों प्रातों की ओर बकाया ऋण की राशि मार्च 1997 तक 1,136 करोड़ रुपये थी । वस्र उद्योग, डंजीनियरी वस्तुएं और पटसन के क्षेत्र में मुख्य रुग्ण इकाइयां हैं ।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में 296 संदर्भों में से, 213 (91 CPSUs और SPSUs) दिसम्बर 2006 तक पजीकृत किये गये । केवल 28 CPSUs और 26 SPSUs के लिये पुन: स्थापन योजनाएं स्वीकार की गई । 29 CPSUs और 40 SPSUs को बंद करने की सिफारिश की गई । 9 CPSUs और 14 SPSUs को अब स्वस्थ घोषित किया गया ।

BIFR द्वारा प्रकरणों का कुल निपटारा जो वर्ष 1997 में 188 था वर्ष 1998 में 141 रह गया । इसके पश्चात् 2000 में 385 से घट कर 31 दिसम्बर 2001 में 293 रह गया । वर्ष 2006-07 के दौरान प्रकरणों का कुल निपटारा 4,115 था ।

अन्त में, 31 मार्च 2001 में, रिजर्व बैंक ने देखा कि 252,947 रुग्ण अथवा निर्बल इकाईयां थी जिनमें 2,49,630 इकाइयां लघुस्तरीय उद्योग क्षेत्र से थी तथा 3317 इकाईयां गैर लघुस्तरीय क्षेत्र से थी । इन 3,317 इकाईयों में, निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र तथा संयुक्त/सहकारी क्षेत्र क्रमशः 2,942 इकाईयों, 255 इकाईयों और 105 इकाईयों के लिये उत्तरदायी था ।

रुग्ण लघुस्तरीय उद्योगों की इकाइयों की संख्या 3,04,325 से घट कर 2,49,630 रह गई । परन्तु गैर लघुस्तरीय उद्योग क्षेत्र में रुगण/निर्बल इकाईयों की संख्या 3,164 से बढ़ कर 3,317 हो गई । 31 मार्च, 2001 को रुग्ण इकाईयों की बैंक साख की कुल बकाया राशि 25,775 करोड़ रुपये थी । यह उद्योग को दिये गये बैंक के कुल ऋण का 13.3 प्रतिशत भाग थी ।

लघुस्तरीय क्षेत्र की इकाईयों में 4,506 करोड़ (17.5 प्रतिशत) रुपया बकाया था जबकि गैर-लघु क्षेत्र में यह राशि 21,270 करोड रुपये (82.5 प्रतिशत) थी । इसी समय के दौरान, गैर-लघुस्तरीय उद्योग क्षेत्र में बैंकों का बकाया ऋण निजी, सार्वजनिक और संयुक्ता सहकारी इकाईयों में क्रमशः 17,705 करोड़ रुपये, 2,986 करोड़ रुपये और 537 करोड़/ 42 करोड़ और रुपये था ।

राष्ट्रीय कम्पनी लॉं न्यायाधिकरण की स्थापना (Establishment of Natural Company Law Tribunal):

कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2002 ने राष्ट्रिय कम्पनी लॉं न्यायाधिकरण को बनाया है । न्यायाधिकरण का पूरा केन्द्र प्रक्रिया को तेज करने के लिए आशयित है । उदारीकरण के नये माहौल में, पुनर्वास के बाजाए बीमार कम्पनियों के परिसमापन के हक में स्पष्ट प्राथमिकता है ।

अब बीमार इकाईयों की समापती के पुनर्वास और पुनरुद्धार करने के उपाय से शिफट किया जा रहा है । सभी पूर्व किय उपाय सरकार पर बोझ डालते है । यदि बीमार इकाइयों की व्यवहार्यता का अवसर कम है तो इन इकाईयों की व्यवहार्यता का अवसर कम है तो इन इकाइयों के पुनर्वास के बजाए इन्हें बद करने की सलाह दी जाती है ।

यह भी देखा जाता हे कि कुछ कम्पनियों को प्रदाताओं और निर्देशकों द्वारा फंडो के दुरूउपयोग के कारण बीमार घोषित किया जाता है । इस प्रकार बीमारी के कारण इस नुक्सान को ऐसे प्रदाताओं और निर्देशकों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से बीमार इकाइयों के लेनदारों, कर्मचारियों को क्षतिपूर्ति करने के लिए प्राप्त किया जाना चाहिए ।

The Securitisation, Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Ordinance, 2002:

बैंक क्रेडिट की बड़ी रकम बीमा कम्पनियों के विवरण बकाया होती है । साल 200 में, ऐसे 1,31,553 बीमार इकाइयां थी और बीमार इकाइयों में फंसे हुए बैंक ऋण 38.819 रु. 38,819 करोड़ थे । इस फंसी हुई रागियों को प्राप्त करने के लिए और स्टॉक इकाइयों की संभाल के लिए Securitisation, Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Ordinance, 2002 को 21 जून 2002 को बनाया गया था । इस अध्यादेश के तहत, बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बीमार इकाईयों के विरुद्ध अपने बकाया बैंक को प्राप्त करने लिए अतिरिक्त साधारण शक्तियाँ दी गई थी ।

अब बैंक और वित्तीय संस्थानों को अपने बकाया ऋण को प्राप्त करने के लिए मुश्किल प्रक्रिया की जरूरत नहीं है बल्कि अब वे सीधे अपने बकाया ऋण की प्राप्ति के लिए वीमार कम्पनियों की, सम्पत्तियों को अधिग्रहित कर सकते हैं । दिसम्बर 2002 में, कम्पनी अधिनियम 2002 को संसद गृह द्वारा पास किया गया ।

यह अधिनियम बीमार औद्योगिक इकाइयों के साथ व्यवसाय करने के लिए National Company Law Tribunal को बनाता है, NCLT का मुख्य उद्देश्य, बीमार इकाइयों की समाप्ति की प्रक्रिया को उन्हें हाई कोर्ट तक पहुंचाए बगैर तेज करना है । NCLT से पहले, बीमार कम्पनियों की संभाल के लिए निम्न तीन फोरम थे ।

ये थे:

1. कम्पनी अधिनियम, 1956 के निश्चित प्रावधान ।

2. समाप्ति के लिए हाई कोर्ट और बीमा कम्पनियों के पुनर्वास और पुनरवद्धार के लिए औद्योगिक और वित्तीय पुननिर्माण बोर्ड ।

3. बीमार औद्योगिक कम्पनी अधिनियम, 1985 ।