औद्योगिक बीमारी के कारण | Read this article in Hindi to learn about the internal and external causes of industrial sickness.

औद्योगिक रुग्णता के कारणों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है अर्थात् आन्तरिक कारण और बाहरी कारण । आन्तरिक कारणों में वे कारक सम्मिलित हैं जो इकाई के भीतर जन्म लेते हैं तथा उत्पादन एवं वित्त आदि की भाँति इन पर इकाई का नियन्त्रण होता है, दूसरी ओर वे कारक हैं जिनकी उत्पत्ति इकाई से बाहर होती है । इन इकाईयों का उन पर कोई नियन्त्रण नहीं होता जैसे कच्चे माल की अनियमित उपलब्धता, बिजली की कटौती, बाजार में मन्दी और सरकारी नीति आदि । आओ हम इन दोनों कारकों का विस्तृत अध्ययन करें ।

औद्योगिक रुग्णता के आन्तरिक कारण (Internal Causes of Industrial Sickness):

i. प्रबन्धकीय समस्याएं (Managerial Problems):

औद्योगिक रुग्णता का सबसे महत्वपूर्ण कारण त्रुटिपूर्ण प्रबन्ध है । उत्पादन, विपणन, वित्त आदि क्षेत्रों में त्रुटिपूर्ण प्रबन्धकीय निर्णय व्यापार को तबाह कर सकते है । सूची और सामाजिक प्रबन्धन का अभाव, रख-रखाव के प्रबन्ध की ओर पूरा ध्यान न देना आदि कुछ उत्पादन के सम्बन्ध में कुप्रबन्ध के उदाहरण हैं ।

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क्रियाशील पूंजी का अदक्ष प्रयोग वित्तीय कुप्रबन्ध का कारण बन सकता है । अनुचित वेतन, श्रम-शक्ति के आयोजन का अभाव तथा अदक्ष औद्योगिक सम्पर्क आदि कर्मचारी प्रबन्धन की कुछ त्रुटियाँ हैं । संक्षेप में, मुख्यता यही कारण औद्योगिक रुग्णता के लिये उत्तरदायी हैं ।

ii. त्रुटिपूर्ण प्लांट और मशीनरी (Defective Plant and Machinery):

लघुस्तरीय क्षेत्र में बहुत से उद्यमी उपक्रम के लिये मशीनरी के चुनाव के सम्बन्ध में योग्य प्राधिकारियों से व्यावसायिक तथा तकनीकी सलाह नहीं लेते । फलतः प्लांट के लिये घटिया मशीनरी और घटिया साज-सामान इन उपक्रमों की भारी हानि का कारण बनते हैं तथा यह औद्योगिक रुग्णता की ओर ले जाता है ।

iii. श्रम समस्या (Labour Problem):

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श्रमिकों की समस्या औद्योगिक रुग्णता का एक अन्य कारण है । कुछ स्थितियों में गम्भीर श्रम समस्याएँ हड़तालों, तालाबंदियों और यहां तक कि औद्योगिक इकाईयों को बन्द करने का कारण बनी हैं । ऐसी समस्याएं प्रबन्धकों की वेतन समस्याओं, बोनस, श्रमिक संघों के बीच तनाव आदि विषयों के प्रति उदासीनता से उत्पन्न होती हैं यदि ऐसी समस्याओं का ठीक समय पर समाधान नहीं किया जाता तो औद्योगिक रुग्णता निश्चित रूप में जन्म लेगी ।

iv. स्थान का त्रुटिपूर्ण चुनाव (Defective Selection of Location):

बहुत से प्रकरणों में औद्योगिक इकाई की स्थापना के लिये गलत स्थान चुनाव इसकी रुग्णता का कारण बनता है ।

v. उद्यमीय अदक्षता (Entrepreneurial Incompetence):

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बहुत से व्यक्ति एक नई इकाई की स्थापना के योग्य नहीं होते क्योंकि उन्हें उत्पाद के सम्बन्ध में मूलभूत तकनीकी ज्ञान नहीं होता । वह उत्पाद की लगाना नहीं जानते यहाँ तक कि उन्हें अपने व्यापार के खातों की देख-रेख का ज्ञान नहीं होता ।

vi. कच्चे माल की पूर्ति न होना (Non-Availability of Raw Material):

कच्चे माल जैसे बिजली, परिवहन सुविधाओं आदि की उपलब्धता का न होना एक बाधा का कार्य करता है जिससे औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि में रुकावट उत्पन्न होती है । संरचनात्मक और ऊर्जा सम्बन्धी निवेशों जैसे परिवहन, विद्युत, ईंधन तेल और कोयले आदि का अभाव औद्योगिक रुग्णता को बढ़ाता है । इसके अतिरिक्त कच्चे माल की अपर्याप्त बना देती है । परिमाणित हानि इकाई की रुग्णता में योगदान करती है ।

vii. दुर्बल औद्योगिक सम्बन्ध (Weak Industrial Relations):

अनेक बीमार इकाइयों में औद्योगिक सम्बन्धें की दुर्बलता के कारण भी अकसर तालेबन्दियाँ, हड़ताले व अनेक संघर्ष पाए जाते है जो एक सीमा के पश्चात संस्था को अवगति के अन्धेर में ढकेल देते हैं ।

viii. वित्त का अभाव (Paucity of Funds):

औद्योगिक रुग्णता का एक अन्य कारण वित्त का अभाव भी है । अनेक नयी इकाइयाँ अल्प पूंजीकरण का शिकार होती हैं । कुछ इकाइयां अनुत्पादक पूँजीगत सम्पत्तियों में भारी निवेश कर देती है । अतः यह समस्या को और जटिल बना देते हैं ।

औद्योगिक रुग्णता के बाहरी कारण (External Causes of Industrial Sickness):

i. बिजली संकट (Power Cuts):

बिजली की कमी औद्योगिक असफलता का मुख्य लक्षण है । बहुत सी औद्योगिक इकाईयों को बिजली संकट का सामना करना पड़ता है । बिजली का उत्पादन इसकी वास्तविक आवश्यकता से बहुत कम होने के कारण राज्य सरकारें बिजली की कटौती का सहारा लेती हैं । बहुत से राज्यों में सूखे की स्थिति में समस्या और भी गम्भीर हो जाती है ।

ii. आर्थिक बाधाएं (Economic Constraints):

कृत्रिम आर्थिक बाधाएँ बढ़ती हुई औद्योगिक रुग्णता को बढ़ाने में सहायक बनती है । सरकार उत्पाद मिश्रण पर नियन्त्रण रखती है तथा कीमतें कुछ उद्योगों में गम्भीर समस्याएं खड़ी करती हैं । अतः अविवेकी कीमत नियन्त्रण और कठोर वित्तीय नियन्त्रण औद्योगिक क्षेत्र की स्वस्थ वृद्धि में कठिनाइयाँ उत्पन्न करता है ।

iii. श्रमिक अशान्ति (Labour Unrest):

श्रमिक श्रेणी में अशान्ति कम उत्पादन के लिये उत्तरदायी है तथा औद्योगिक रुग्णता को जन्म देती है । अन्तर-संघीय स्पर्धा व व्यापार संघों का राजनीतिकरण और सामाजिक सुरक्षा उपायों से इंकार आदि ने औद्योगिक परिदृश्य को प्रतिकूल प्रभावित किया है । इन कारकों के कारण रुग्णता के एक ऐसे देश में आर्थिक परिणाम बहुत अधिक होते हैं जहां बेरोजगारी एक महान् जोखिम है तथा संसाधन दुर्लभ हैं ।

iv. निवेशों की अनियमित पूर्ति (Erratic Supply of Inputs):

बहुत सी इकाईयों में अनुकूलतम उत्पादन दुर्लभ कच्चे माल पर निर्भर करता है जिसकी पूर्ति अनियमित है । फलतः उत्पादन का कार्यक्रम अव्यवस्थित हो जाता है जिससे औद्योगिक इकाई को हानि होती है । यह प्रायः उन इकाईयों में होता है जहां पूर्ति आयातों पर निर्भर करती है ।

v. संरचना की समस्या (Problem of Infrastructure):

ऊर्जा, बिजली, ईंधन, तेल आदि का अभाव भी औद्योगिक रुग्णता का कारण है ।

vi. आर्थिक शिथिलता या मन्दी (Economic Recession or Depression):

इनकी आशंकाएँ उस प्रकार के उद्योगों में अधिक होती हैं जिनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग लोचपूर्ण होती है, जैसे रासायनिक उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, इलैक्ट्रानिक उद्योग आदि । इन उद्योग की माँग एवं पूर्ति के सन्तुलन में थोड़ा सा भी अन्तर आने पर बिक्री घटने लगती है, और आर्थिक शिथिलता की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । कुटीर एवं लघु उद्योगों तथा हस्तशिल्प की कलात्मक वस्तुओं का उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों की दशा में भी ऐसी आशंकाएं अधिक रहती है ।

vii. शक्ति संकट (Energy Crisis):

औद्योगिक रुग्णता बढ़ने का एक अन्य कारण शक्ति संकट भी है । भारत में बिजली, कोयला एवं तेल की माँग में औद्योगीकरण के साथ-साथ तीव्रता से वृद्धि हुई है । जबकि इनकी पूर्ति में वृद्धि की दर उस अनुपात में नहीं बढ़ सकी है, फलतः शक्ति का संकट बने रहना एक साधारण समस्या है, जिसके कारण उद्योगों की स्थापित क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है, उत्पादन स्तर गिरने लगता है, और उपक्रम को हानि होने लगती है ।

viii. अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में परिवर्तन (Changes in International Markets):

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाले परिवर्तनों के कारण भी औद्योगिक रुग्णता में अधिकता हो सकती है । पिछले वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अनेक ऐसे परिवर्तन हुए हैं, जैसे तेल के मूल्यों में अप्रत्याशित वृद्धि, आयात-निर्यातों पर रोक, विकसित देशों द्वारा अपनायी जाने वाली संरक्षण की नीति, पहले से मिलती आ रही विदेशी सहायता में किन्हीं कारणों से यकायक कमी अथवा उस पर पूर्ण रोक आदि । बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा अपनायी जाने वाली नीतियों के कारण भी किसी देश के उद्योगों के समक्ष सकट उत्पन्न हो सकता है ।

ix. क्रांतिकारी प्राविधिक परिवर्तन (Revolutionary Technological Changes):

औद्योगिक क्षेत्र में प्राविधि विकास व हस्तान्तरण हमेशा होता रहा है । परन्तु कभी-कभी नवीन आविष्कार अथवा नवीन खोज कुछ उत्पादनों को अप्रचलित एवं अनुपयुक्त बना देते हैं जिससे उनसे सम्बन्धित औद्योगिक इकाइयों में रुग्णता बढ़ जाती है ।

x. सरकारी नीति (Government Policy):

कीमतों, वितरण, आयात, निर्यात, औद्योगिक लाइसैंस और कराधान सम्बन्धी सरकारी नीतियां समय-समय पर परिवर्तित होती रहती हैं । अविवेकी कीमत नियन्त्रण तथा कठोर वित्तीय नियन्त्रण औद्योगिक इकाईयों की समतल वृद्धि के लिये हानिकारक सिद्ध होते हैं । सरकार द्वारा अपनायी गई औद्योगिक कीमत नीति को अनेक अवसरों पर अवैज्ञानिक माना गया है तथा वह औद्योगिक इकाईयों के लिये अहितकर प्रमाणित हुई हैं ।